सिंगापुर में हिन्दी ग़ज़ल श्रद्धा जैन 1․ मुश्किलें आईं अगर तो, फ़ैसला हो जाएगा। कौन है पानी में कितने, सब पता हो जाएगा। दूरियाँ दिल ...
सिंगापुर में हिन्दी ग़ज़ल
श्रद्धा जैन
1․
मुश्किलें आईं अगर तो, फ़ैसला हो जाएगा।
कौन है पानी में कितने, सब पता हो जाएगा।
दूरियाँ दिल की कभी जो, बढ़ भी जाएँ तो हुजूर
तुम बढ़ाना इक कदम, तय फ़ासला हो जाएगा।
लाए थे दुनिया में क्या तुम, ले के तुम क्या जाओगे
रिश्ते- नाते, ज़र, ज़मीं सब कुछ जुदा हो जाएगा।
गर दुआ माँगोगे दिल से, और उस पे हो यक़ीं
जब बुरा होना भी होगा, तो भला हो जाएगा।
जिंदगी का रास्ता होगा, बड़ा काँटों भरा
साथ तुम होगे तो “श्रद्धा” हौसला हो जाएगा।
2․
मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना।
पल में रोता, पल में हँसता है आईना।
शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना।
दिलवर हैं आ बैठे पल भर को पास मेरे
इक दुल्हन जैसा अब सजता है आईना।
गैरों के घर रोशन करने की है आदत
चुपचाप इसी धुन में जलता है आईना।
राजा और प्यादे में अंतर करता है जग
हर इक को इक क़द में रखता है आईना।
आग़ाज़ ग़ज़ल का कर ही दो अब “श्रद्धा” तुम
उलझा-उलझा सा ये दिखता है आईना।
3․
अच्छी है यही ख़ुद्दारी क्या।
रख जेब में दुनियादारी क्या।
जो दर्द छुपा के हँस दें हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या।
हँस के जो मिलो सोचे दुनिया
मतलब है, छुपाया भारी क्या।
वे जि़स्म के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या।
बातें तो कहे सच्ची “श्रद्धा”
वे सोचें मीठी खारी क्या।
4․
कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले।
फ़ानूस की न आस हो, उस पर हवा चले।
लेता है इम्तिहान गर तो सब्र भी तो दे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले।
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके परचमे-अम्नो-वफ़ा चले।
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
तो उम्र भर सज़ा का यूँ ही सिलसिला चले।
खंजर लिये खड़े हुए हों दोस्त हाथ में
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ फि़र क्या दुआ चले।
5․
आप भी अब मिरे ग़म बढ़ा दीजिए।
उम्र लम्बी हो मेरी दुआ दीजिए।
मैंने पहने हैं कपड़े, धुले आज फिर
तोहमतें अब नई कुछ लगा दीजिए।
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नहीं तो मिरा दिल जला दीजिए।
चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूँ
आईने से यूँ मुझको मिला दीजिए।
ग़र मुहब्बत ज़माने में है इक ख़ता
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए।
चाँद मेरे दुखों को न समझे कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए।
हँसते हँसते जो इक पल में गुमसुम हुई
राज़ “श्रद्धा” नमी का बता दीजिए।
6․
जिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का।
रात देखा है, ताज फूलों का।
उसकी खु़श्बू, उसी की यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का।
हुस्न के, नाज़ भी उठाता है
इश्क़ को, इहतियाज़ फूलों का।
नफ़रतें मिट तो जाएँगी गर हम
आग को दें, इलाज फूलों का।
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का।
लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज़ फूलों का।
7․
इक नया दीपक जलाया जाएगा।
फिर किसी से दिल लगाया जाएगा।
चाँद गर साथी न मेरा बन सका
साथ सूरज का निभाया जाएगा।
रस्मे-रुख़सत को निभाने के लिए
फूल आँखों का चढ़ाया जाएगा।
कर भला कितना भी दुनिया में मगर
मरने पे ही बुत बनाया जाएगा।
आईना सूरत बदलने जब लगे
ख़ुद को फि़र कैसे बचाया जाएगा।
8․
वक़्त करता कुछ दग़ा या तुम मुझे छलते कभी।
था जुदा होना ही तुमसे, हाथ को मलते कभी।
आजकल रिश्ते ही क्या हैं, लेने-देने के सिवा
काश खाली हाथ रिश्ते भी यहाँ पलते कभी।
थक गया था तू जहाँ, वो आखि़री था इम्तिहाँ
दो कदम मंजि़ल थी तेरी, काश तुम चलते कभी।
कुरबतें ज़ंजीर जैसी, हो गई हैं प्यार में
चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी।
इन दिनों मिट्टी वतन की, रोज़ कहती है मुझे
लौट भी आओ न ‘श्रद्धा', शाम के ढलते कभी।
9․
हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे।
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे।
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे।
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुख़र् मुस्कानें गईं
हर खु़शी को हम मगर, उसका पता देते रहे।
चल न पाएगा वो तन्हा, जिंदगी की धूप में
उस को हम सा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे।
मेरे चुप होते ही, कि़स्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे।
पाँव में ज़ंजीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा' उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे।
10․
मेरे दामन में काँटे हैं, मेरी आँखों में पानी है।
मोहब्बत नाम जिसका है, ये उसने दी निशानी है।
क़ज़ा ही लगती है आसाँ, अगर जीना जुदाई में
मिटाना है मुझे खु़द को, उसे यादें मिटानी हैं।
वफ़ा के वादे हैं टूटे, ज़रा सी बात पर रूठे
सज़ा बन जाती है कुरबत, अजब दिल की कहानी है।
मिटा कर ऩक्श कदमों के, बने अंजान हम फिर से
मिले शायद कभी हँस कर, कि लंबी जिंदगानी है।
कहाँ क़ुरबान होता है, कोई भी संग में ‘श्रद्धा'
ये बातें हीर राँझे की, हुई कब से पुरानी हैं।
ऑस्ट्रेलिया में हिन्दी ग़ज़ल
अब्बास रज़ा अल्वी
1․
छोटी सी बिगड़ी बात को सुलझा रहे हैं लोग।
ये और बात है कि यूँ उलझा रहे हैं लोग।
चर्चा तुम्हारा बज़्म में ग़ैरों के इर्द-गिर्द
कुछ इस तरह से दिल मेरा बहला रहे हैं लोग।
अरमाँ नये, साहिल नये, सब सिलसिले नये
उजड़े हुए दयार से, दिखला रहे हैं लोग।
कहते हैं कभी इश्क था, अब रख-रखाओ है
फिर आज क्यों यूँ देखकर, शरमा रहे हैं लोग।
हमने ख़ुद अपने जुर्म का इकरार कर लिया
अब क्यों रज़ा से इस क़दर कतरा रहे हैं लोग।
2․
लड़ाई दर्द और दहशत में जीना।
मिला यह आदमी को आदमी से।
बुरा कहते हैं हम क्यों दूसरों को
बढ़ी हैं रंजिशें अपनी कमी से।
शहर ऐसा जलाया बिजलियों ने
सहम जाते हैं अब हम बिजलियों से
जहाँ गुज़रा था इक बचपन सुहाना
वह दर छूटा है कितनी बेदिली से।
बची न अब कोई ख़्वाहिश हमारी
सुनाए क्या रज़ा अपनी ख़ुशी से।
3․
अश्कों से पी रहा था मैं अरमानों का लहू।
पर बह रहा सड़क पे था नादानों का लहू।
फिर क्यों जला रहे हो तुम बेगुनाहों को
क्या रग में तुम्हारे नहीं है माँओं का लहू।
छप्पर में लगी आग परिन्दों की बेबसी
फिर भी सहम न उट्ठा इन्सानों का लहू।
बेकस है हर यतीम और लाचार है हर माँ
यह देख कर ख़ुश हो रहा हैवानों का लहू।
जब भी दिखे वो ख़ुश तो हम गुनगुना दिये
ता-उम्र सलामत हो रज़ा जानों का लहू।
4․
पावों में छोटा छाला था वह फूट गया।
काँटों से मेरा रिश्ता भी अब टूट गया।
दिन में मुझको दिखते थे सारे दोस्त मेरे
जब रात हुई साया भी मुझसे छूट गया।
सींचा तो तूने वहशत से इस दुनिया को
जो बचा खुचा सब्ज़ा था वह भी सूख गया।
बचपन को मैंने खोया है बस अभी अभी
जो आँख खुली तो सपना बन कर टूट गया।
कैसे मानूँ तू मालिक है इस दुनिया का
इन्साँ ही जब जि़न्दा इन्साँ को फूँक गया।
यह शोर लगे है गूँगी बहरी बस्ती का
अब शेर रज़ा का गाल गली में गूँज गया।
․․
संकलन के संपादक की ग़ज़लें
तेजेन्द्र शर्मा
1․
अपने को हँसता देख के हैरान हो गया।
ऐ जि़न्दगी मैं तुझ से परेशान हो गया।
हैं कैसे कैसे लोग यहाँ आ के बस गये
बसता हुआ जो घर था, वो वीरान हो गया।
किसका करें भरोसा, ज़माने में आज हम
दिखता जो आदमी था वो शैतान हो गया।
इलज़ाम भी लगाने से वो बाज़ है नहीं
बन्दा था अक़्लमंद वो नादान हो गया।
या रब दुआ है तुझसे कि उसपे करम तू कर
वो दोस्त मेरा मुझ से ही अनजान हो गया।
मैखाने में था साथ निभाता वो रोज़ ही
क़ाफ़िर था अच्छा खासा, मुसलमान हो गया।
2․
थक गया हूँ अब तो मैं, दिन रात की तकरार से
गोया टूटा हो मुसाफ़िर, रास्तों की मार से।
अब तलक है आस मुझमें, क्योंकि बाक़ी साँस है
जीते जी शायद वो मुझसे, बात करले प्यार से।
जो भी आए झोलियाँ भर कर सभी गए
मैं ही लौटा हाथ खाली, आपके दरबार से।
ऐ जहाँ वालों भला क्यों आपको इलज़ाम दूँ
मैं परेशाँ हूँ बहुत, ख़ुद अपने ही किरदार से।
देखते रह जाइयेगा मेरे कदमों के निशाँ
जब चला जाऊँगा इक दिन दूर इस संसार से।
3․
चेहरा तेरा देख के मन में उठी है बात
आकाश से ज्यों प्यार की होने लगी बरसात।
चेहरा छिपा के आप जो निकले हैं मुझी से
मैं जानता हूँ आज मुनासिब नहीं हालात।
दिन रात ख़्यालों में मेरे आप बसी हैं
छोटी सही, कर लें कभी बस एक मुलाक़ात।
मैं कर सकूँ महसूस तेरे जिस्म की ख़ुश्बू
झोली में मेरी डाल दे ऐसे कभी लम्हात।
बिस्तर की सभी सिलवटें अब तक हैं कुँवारी
गर तूँ नहीं तो कैसे मनाऊँ सुहाग रात।
4․
ये जो तुम मुझको मुहब्बत में सज़ा देते हो।
मेरी ख़ामोश वफ़ाओं का सिला देते हो।
मेरे जीने की जो तुम मुझको दुआ देते हो
फ़ासले लहरों के साहिल से बढ़ा देते हो।
अपनी मग़रूर निगाहों की झपक कर पलकें
मेरी नाचीज़ सी हस्ती को मिटा देते हो।
हाथ में हाथ लिए चलते हो जब ग़ैर का तुम
मेरी राहों में कई काँटे बिछा देते हो।
तुम जो इतराते हो माज़ी को भुलाकर अपने
मेरी मजबूर सी यादों को चिता देते हो।
जबकि आने ही नहीं देते मुझे ख़्वाबों में
मुश्किलें और भी तुम मेरी बढ़ा देते हो।
राह में देख के भी, देखते तुम मुझको नहीं।
दिल में कुछ जलते हुए जख़्म लगा देते हो।
5․
मुश्किलों में भी ऐ यारो मुस्कुराते ही रहे।
इस तरह हम जि़न्दगानी को लुभाते ही रहे।
ऐ मेरी किस्मत जो चाहा तूने वो हमने किया
हर तमन्ना जि़न्दगी भर हम दबाते ही रहे।
मुफ़लिसी का साथ था और ग़म मेरे हमराज़ थे
फिर भी ख़ुशियों के तराने गुनगुनाते ही रहे।
हर तरफ़ छाया अंधेरा, जि़न्दगानी में मगर
फिर भी हिम्मत के दिये हम नित जलाते ही रहे।
जेब थी खाली मगर दिल में उमंगें थीं हज़ार
ख़्वाब की ताबीर मेहनत से सजाते ही रहे।
फिर मिले वो प्यार का जिसने नशा हमको दिया
उस नशे में आजतक हम डगमगाते ही रहे।
जब बहार आई चमन में फूल सुन्दर से खिले
हम उन्हीं फूलों से जीवन को सजाते ही रहे।
जि़न्दगी भर जो ज़माने से मिला हमने लिया
फिर भी जब मौक़ा मिला सबको हँसाते ही रहे।
हमको शिकवा था किसी से, ना ही था कोई गिला
वक़्त जैसा बीता वैसा हम बिताते ही रहे।
6․
घर जिसने किसी गै़र का, आबाद किया है।
शिद्दत से आज, दिल ने उसे याद किया है।
जग सोच रहा था कि, है वो मेरा तलबगार
मैं जानता था उसने ही बरबाद किया है।
ये सोच नहीं! शीशा सदा सच ही है कहता,
जो ख़ुश करे वो आईना, ईजाद किया है।
सीने में मेरे जख़्म हैं पर टपका नहीं ख़़ून,
कैसे मगर ये तुमने ऐ सय्याद किया है।
तुम चाहने वालों की सियासत में रहे गुम,
सच बोलने वालों को नहीं शाद किया है।
7․
जो तुम न मानो मुझे अपना, हक़ तुम्हारा है।
यहाँ जो आ गया इक बार, बस हमारा है।
कहाँ कहाँ के परिन्दे, बसे हैं आ के यहाँ
सभी का दर्द मेरा दर्द, बस ख़ुदारा है।
नदी की धार बहे आगे, मुड़ के क्यों देखे
न समझो इसको भँवर अब यही किनारा है।
जो छोड़ आये बहुत प्यार है तुम्हें उससे
बहे बयार जो, समझो न तुम, शरारा है।
ये घर तुम्हारा है इसको कहो न बेगाना
मुझे तुम्हारा, तुम्हें अब मेरा सहारा है।
8․
किसका करें भरोसा, पानी भी है जलाता।
वादा हैं सभी करते, पर कौन है निभाता।
कि़स्से बहुत सुने हैं, हमने मुहब्बतों के
मजनू है अब तो बदला, लैला को है सताता।
जिससे रचाई शादी, पत्नी जिसे बनाया
रोटी खिला के उसपे, अहसान है जताता।
ऋतुओं तलक ने अपने अंदाज़ सारे बदले
मौसम हो चाहे कोई, अब कुछ नहीं सुहाता।
कहने को है पड़ोसी, रंगत भी मिले मुझसे
जब हूँ नज़र उठाता, दुश्मन नज़र है आता।
9․
बहुत से गीत ख़्यालों में सो रहे थे मेरे
तुम्हारे आने से जागे हैं, कसमसाए हैं।
जो नग़मे आजतक मैं गुनगुना न पाया था
तुम्हारी बज़्म में खातिर तुम्हारी गाए हैं।
मेरे हालात से अच्छी तरह तू है वाक़िफ़
ज़माने भर की ठोकरों के हम सताए हैं।
तेरे किरदार की तारीफ़ में जो लिखे थे
उन्हीं नग़मों को अपने दिल में हम बसाए हैं।
हुए हैं चाँद-सितारे भी मंद-मंद सभी
मगर हजूर, तेरी याद हम सजाये हैं।
कि उनके सामने मस्ती शराब की कैसी
तेरे चपल से नयन मुझको जो पिलाए हैं।
10․
जि़न्दगी आई जो कल मेरी गली।
बंद किस्मत की खिली जैसे कली।
जि़न्दगी तेरे बिना कैसे जियूँ
समझेगी क्या तू इसे ऐ मनचली।
देखते ही तुझको था कुछ यूँ लगा
मच गई थी दिल में जैसे खलबली।
मैं रहूँ करता तुम्हारा इन्तज़ार
तुम हो बस, मैं ये चली और वो चली।
तुमने चेहरे से हटायी जुल्फ़ जब
जगमगाई घर की अंधियारी गली।
छोड़ने की बात मत करना कभी
मानता हूँ तुम को मैं अपना वली।
चेहरा यूँ आग़ोश में तेरे छिपा
मौत सोचे वो गई कैसे छली।
दोनों गज़लकारों की लाजवाब गज़लों का संकलन है ... दोनों ही जाने माने नाम हैं ...
जवाब देंहटाएंआभार पढवाने का ...
शानदार ग़ज़लें हैं, नए अनुभवों से भरी । कृपया www.sarvahara.blogspot.com पर लॉगिन करने का कष्ट करे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह वाह
श्रृद्धा जी को नमन-
कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले।
फ़ानूस की न आस हो, उस पर हवा चले।
लेता है इम्तिहान गर तो सब्र भी तो दे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले--
सही बात है रहनुमा कब तक चलेगा चलना तो हमें ही पड़ेगा... कांत जी कहते हैं कि हमारे पांव का कांटा खुद हमी से निकलेगा.. वाह वाह..
अल्वी साहब की बात में वाकई उर्दू हिन्दी की रवानगी है.
..
पावों में छोटा छाला था वह फूट गया।
काँटों से मेरा रिश्ता भी अब टूट गया---- वाह बहुत खूब..कहीं नीरज जी ने भी लिखा है कि टूटी माला विखरे मोती खुद ही हल हो गई समस्या....
और तेजेन्द्र जी की तो बात ही कुछ और है--- हे भगवान इतने अलग -अलग कैनवासों को यह आदमी कैसे सहेजता संवारता है.....काश हम इनका एक प्रतिशत भी होते..
..... क़ाफ़िर था अच्छा खासा, मुसलमान हो गया.
. वाह वाह..
. भारतीय राजनीति के संदर्भ में एक दम फिट-
-अभी थोडी देर पहले टीवी पर दिग्विजय सिंह जी को सुन रहा था.... फिर तेजेन्द्र जी की यह रचना पढी --- वाह आनंद आ गया...
.और यह तो आखिर में जिंदगी का फलसफा भी मिल रहा है कि -
हमको शिकवा था किसी से, ना ही था कोई गिला
वक़्त जैसा बीता वैसा हम बिताते ही रहे----..
सभी रचनाकारों एवं रचनाकार को हमारा नमन एवं आभार..
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सादर आभार