'आज २ अक्टूबर: राष्ट्रपिता गांधीजी की जन्मजयंती' संकलन : हरेश दवे (जूनागढ़) : प्रस्तुति एवं अनुवाद: हर्षद दवे. --------------------...
'आज २ अक्टूबर: राष्ट्रपिता गांधीजी की जन्मजयंती'
संकलन : हरेश दवे (जूनागढ़) : प्रस्तुति एवं अनुवाद: हर्षद दवे.
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बधाई हो...!
'तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार...' बड़ी रोचक कल्पना है और यह भावनाशील भी है! पर वास्तविकता क्या है इस पर भी एक नजर डालना जरुरी है. आईए, हमारे राष्ट्रपिता इस विषय में क्या सोचते हैं और क्या कहते हैं इस पर गौर फरमाएँ:
आज २ अक्टूबर, मतलब राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का जन्मदिवस, जिसे देश व दुनिया में उमंग एवं उत्साह के साथ सरकारी हिसाब से घिसेपिटे ढंग से मनाया जाएगा. इस उत्सव के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार के द्वारा लाखों रुपयों का व्यय किया जाएगा, किन्तु गाँधीजी की उपस्थिति में उन का जन्म दिवस कैसे मनाया जाता था यह जानना काफी दिलचस्प रहेगा.
बापू के एक जन्मदिवस पर कस्तूरबा ने घी का दिया जलाया तब बापू ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था. गांधीजी ने उन से कहा था, 'हमें ऐसा व्यय नहीं करना चाहिए क्यों कि देश के लाखों गरीबों के घर में रात को दिया जलता ही नहीं है इसलिए हमें इस प्रकार से दिया जलाने का कोई अधिकार नहीं.'
सादगी एवं त्याग के पर्याय गांधीजी अपने जन्मदिवस पर भी निरंतर सक्रिय रहते थे. गांधीजी के जन्मदिवस को मनाने के लिए कोई जश्न या पार्टी का आयोजन कभी नहीं होता था. वे इन बातों पर विश्वास नहीं करते थे. उपर्युक्त घटना हमें इस बात की प्रतीति कराता है. आज जन्मदिवस को मनाने का मतलब अमीरी का प्रदर्शन वन गया है. अमीर लोग अपनी अमीरी का प्रदर्शन करने के मौके की ताक में रहते हैं. वे अपने बच्चों के जन्मदिन पर न जाने कितने रूपये पानी की तरह बहा देते हैं (जहाँ लोग बूँद बूँद के लिए तरस जाते हैं, वैसे में तो अब पानी भी नहीं बहाना चाहिए!) इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते. बड़े पंचतारक होटल के विशाल खंड में, रोशनी एवं सुशोभन की झगमगाहट में पाश्चात्य ढंग से 'हैपी बर्थ डे टू यू' के गीत-संगीत के साथ मनाते हैं जिस में नाचना-झूमना, खाना-पीना, उपहारों की वर्षा...रिटर्न गिफ्ट्स! यह सब देख कर आम आदमी के बच्चे भी मन ही मन अपने जन्मदिवस पर ऐसा ही कुछ करने के बारे में सोचने लगते हैं.
तीसरीबार दक्षिण अफ्रिका जाने के बाद गांधीजी ९ जनवरी, १९१५ के दिन हमेशा के लिए भारत आ गए थे और ३० जनवरी, १९४८ के दिन, याने कि उन के देह विलय तक, प्रत्येक वर्ष की २ अक्टूबर के दिन (मतलब कि अपने जन्मदिवस पर) बापू कहाँ थे और वे क्या कर रहे थे इस की एक झलक यहां पर प्रस्तुत है:
सन १९१५ की २ अक्टूबर के दिन गांधीजी अहमदाबाद में थे. सन १९१६ में भी वे अमदावाद में थे जब कि सन १९१७ में वे रांची में थे. सन १९२८ में जन्मदिवस पर उन का स्वास्थ्य ठीक नहीं था. पिछली रात को उन के स्वास्थ्य पर बहुत ही खराब असर हुआ था, जब वे साबरमती आश्रम में थे. उन के ह्रदय पर असर हुआ था. धडकनें अनियमित हो गईं थीं. एक समय गांधीजी को लगा कि अब उन का अंतिम समय नजदीक आ गया है इसलिए उन के बेटे हरिलाल और देवदास को भी बुलवा लिया था. यह जन्मदिवस उन्होंने बिस्तर में ही बिताया. वे १५ दिन तक बीमार रहे, बाद में स्वस्थ हो गए.
सन १९१९ में वे मुंबई में थे. इसी वर्ष आपने ५० वर्ष पूर्ण किए. इस सुवर्ण महोत्सव के अवसर पर मुंबई में भगिनी समाज के आश्रम पर वनिता विभाग में महिलाओं की सभा में गांधीजी को रु.२०,१००- अर्पण किए गए जो कि उन्होंने बाद में एक ट्रस्ट का गठन कर के उसे सौंप दिए थे.
सन १९२० में मुंबई में उन के जन्मदिवस पर ओल इंडिया कोंग्रेस समिति की बैठक में वे उपस्थित रहे जिस में लोकमान्य तिलक स्वराज के लिए एक करोड रुपये का चन्दा एकत्रित करने का निर्णय किया गया. सन १९२१ में भी वे मुंबई में थे जब कि १९२२ एवं १९२३ में वे यरवडा जेल में थे और १९२४ में आप दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम एकता हेतु अनशन व्रत पर थे.
तत्पश्चात सन १९२५ में अपने जन्मदिवस पर बापू भागलपुर में थे. सन १९२६ में वे अमदावाद में थे और सन १९२७ में वे उस समय दक्षिण भारत के विरुधुनगर में थे. सन १९२८ में वे अमदावाद में थे. सन १९२९ में उत्तर भारत के गाजीपुर में म्युनिसिपलिटी के द्वारा गांधीजी को मानपत्र दिया गया. सन १९३० में बापू अपने जन्मदिवस पर यरवडा जेल में थे. सन १९३१ में वे लन्दन में आपके जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हिंदी एवं विदेशिओं के द्वारा आप का अभिवादन किया गया. उस समय वे गोलमेजी (राउंड टेबल) परिषद में उपस्थित होने के लिए गए हुए थे. सन १९३२ में अपने जन्मदिवस पर वे यरवडा जेल में थे. सन १९३३ में अपने जन्मदिवस पर आप पूना में थे. सन १९३४ व १९३५ में आप वर्धा में थे. दिनांक २ अक्टूबर १९३५ के दिन गांधीजी ने मद्रास में श्रीमती अम्बुजम्माल (दक्षिण भारत के सुविख्यात कार्यकर्ता एस. श्रीनिवास आयंगर की सुपुत्री) को एक खत लिखा था. जिस में उन्होंने लिखा था: 'मेरी वर्षगांठ पर तुमने मेरे दीर्घायु के लिए प्रार्थना की है. इस के पीछे छिपी तुम्हारी गहन भावनाओं को मैं समझ सकता हूँ. किन्तु मनुष्य चाहे जितनी कोशिश कर ले, विधाता ने मुझे जितना जीवन दिया है उस में वह एक मिनट की भी वृद्धि करने से रही.'
गांधीजी अपने जन्मदिवस पर सन १९३६ व् १९३७ में सेगांव थे. सन १९३८ में और सन १९३९ में आप दिल्ली में थे. दिल्ली में बिडलाभवन में उन्होंने राजेन्द्र बाबु और जवाहरलाल नेहरु के साथ मंत्रणा की. सन १९४० में वर्धा में वर्षगांठ के अवसर पर आश्रम की छात्राओं ने आप के प्रति शुभकामनाएँ अभिव्यक्त कीं थीं. सन १९४१ के वर्ष में अपने जन्मदिवस पर वर्धा में छात्राओने अपने हाथों से बुनी हुए धोती आपको भेंट की थी. उस दिन गांधीजी ने कांतण यज्ञ में हिस्सा लिया था.
सन १९४२ में पूना में आगाखान जेल में अपने ७४ वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में जेलर ने आप के गले में हार डालकर ७४ रुपयों का उपहार दिया था. सन १९४३ में भी आप वहीँ पर थे. सन १९४४ में सेवाग्राम में अपने जन्मदिवस पर सुविख्यात लेखक वर्नार्ड शो एवं कइं अन्य लोगों की तरफ से शुभकामना सन्देश मिले थे. तब आप को कस्तूरबा स्मारक निधि की राशि अर्पित की गई. आप सन १९४५ में अपने जन्मदिवस पर पूना में थे. सन १९४६ और १९४७ में आप अपने जन्मदिवस पर दिल्ली में थे.
गांधीजी ने १९४७ में अपनी मौजूदगी के अंतिम दिन पर दिल्ली में बहुत सारे लोगों के अलावा लेडी माउंटबेटन ने भी आपके जन्मदिवस पर आप का अभिवादन किया था. तब बापू ने कहा, 'इसे अभिवादन नहीं पर शोक-सन्देश कहना अधिक उचित होगा. अब अधिक जीने की मेरी इच्छा नहीं है.'
पूना की आगाखान जेल में कस्तूरबा और बापू के निजी सचिव महादेवभाई देसाई की मृत्यु, जिन्ना के साथ बातचीत में असफलता, भारत का विभाजन, देश की स्वतंत्रता के समय हुए कौमी दंगे, उन के सामने आ रहीं भ्रष्टाचार की फरियादें इत्यादि से शायद गांधीजी हताश हो गए थे. जो कभी १२० साल तक जीने की बातें करते थे वही महात्मा आज मृत्यु की बातें कर रहे थे.
[आज उन की जन्म जयंती के अवसर पर उपर्युक्त जानकारी का संकलन श्री चंदूलाल भागुभाई दलाल संपादित 'गांधीजीनी दिनवारी' (गांधीजी की दैनन्दिनी) और 'गांधीजी का अक्षर देह' से किया गया है.]
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हर्षद जी और हरेश जी को बधाई ! सही समय पर सही प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंभरत कापड़ीआ