नेता के आंसू/ प्रमोद यादव श्री ‘क’ एक विख्यात नेता हैं और चूँकि विख्यात नेता हैं,उन्हें अक्सर रोना पड़ता है. कभी बाढ़ की विनाशलीला पर रोते है...
नेता के आंसू/ प्रमोद यादव
श्री ‘क’ एक विख्यात नेता हैं और चूँकि विख्यात नेता हैं,उन्हें अक्सर रोना पड़ता है. कभी बाढ़ की विनाशलीला पर रोते हैं,कभी सूखे पर,कभी गरीबी पर तो कभी बेकारी पर,कभी भ्रष्टाचार पर तो कभी मंहगाई पर. देश की दुर्दशा का रोना तो उनके हर. भाषण में होता है. उनका रोना जायज है इसलिए उनकी आंसुओं की बड़ी कीमत से इनकार नहीं किया जा सकता.
कहीं एक शेर पढ़ा था- ‘ गर अश्क बजा टपके,आंसू नहीं मोती है ‘ इस शेर के अनुसार श्री ‘क’ का हर आंसू एक मोती है और मोती को बर्बाद कर देना आदमी की फितरत में अभी शामिल नहीं हुआ. लिहाजा प्रबुद्ध कहलाने वाले चंद लोगों ( जिन्हें नेताजी ससम्मान ‘जनता’ कहते हैं ) ने नेताजी के आंसुओं को संचित करने का उपाय किया. वे नहीं चाहते थे कि अश्कों के कीमती मोती धूल में बिखर जाएँ. अंततः उपाय निकल आया. नेताजी के आंसू शीशियों में इकट्ठे होने लगे और उनकी बड़ी-बड़ी कीमतें लगने लगी. लोग आंसुओं को खरीदते रहे और खरीद-खरीद कर मोतियों जैसी हिफाजत से रखते रहे.इतने बड़े नेता के आंसुओं की क़द्र करके जनता कृतार्थ होती रही. बड़े-बड़े ड्राईंगरूम में उनके आंसुओं का होना अनिवार्य-सा हो गया. उनके आंसुओं की शीशी रखकर लोग बिना कुछ बोले जता जाते थे कि लो देखो,हमें भी राष्ट्र और राष्ट्रवासियों के प्रति गहरी सहानुभूति है,तभी तो हमने अपने प्रिय नेता के आंसुओं तक को संभाल कर रखा है.
नेताजी के आंसुओं पर कवियों की बहुत सी कवितायें भी पत्र-पत्रिकाओं में छपी. कुछ उदाहरण निम्नांकित हैं-
” शीशी भर आंसू “ शीर्षक से श्री ‘काजुवाला’ ने लिखा-
शीशी भर आंसू-
मुझे रोज याद दिलाते हैं
कि देश यंत्रणाओं को
भोग रहा है
कि बेकारी और बढ़ रही है
या
बाढ़ अथवा सूखे से
हम मुक्त नहीं हुए
शीशी भर आंसू-
हाँ, शीशी भर आंसू ही हैं
जो मुझे प्रेरित करते हैं
और मैं देश के लिए ,
देशवासियों के लिए
आंसू बहा देता हूँ
( यह अलग बात है कि
कोई इकट्ठा नहीं करता
मेरे आंसुओं को )
दूसरी कविता है एक कवियित्री ‘बेलारानी ’ की, “ शीशे में आग “शीर्षक से, गौर करें-
शीशी में आंसू नहीं
आग है
ऐसी आग जो जला देगी
जुल्मो-सितम की
हर कहानी को
दर्द की निशानी को
शीशी में आंसू नहीं
आग है
ऐसी अनगिनत कवितायें हैं. लेखों में भी श्री ‘क’ के आंसुओं की महत्ता का बखान किया गया. लेखों में लिखा गया कि ये श्री ‘क’ के आंसू नहीं वरन हिन्दुस्तान के आंसू हैं.इसके विपरीत कुछ साहित्यकारों को श्री ‘क’ के आंसुओं में ‘ स्टंट ‘ नजर आया और उन्होंने जहर उगला. इस सन्दर्भ में ये विद्रोह भरी कविता विशेष महत्त्व रखती है-
कविता का शीर्षक है- “ आंसुओं का भुलावा “-
कविता इस प्रकार है –
तुम हमें आंसुओं से मत बहलाओ
मत बार-बार रोकर
आंसुओं को बदनाम बनाओ
क्यों माने या समझें
कि तुम्हारे आंसुओं की
कीमत या लागत है
अरे, रोना तो तुम्हारी हाबी
तुम्हारी आदत है
श्री ‘क’ की दृष्टि में जब ये विद्रोही कवितायें आई तो उन्होंने एक सभा का आयोजन करवा डाला और कवियों के रुख पर आंसू बहाना शुरू किया.श्रद्धालु जनता अपने प्रिय नेता के आंसुओं से द्रवित हुई और उनके भी नयनों के कोर गीले हुए.उस दिन नेताजी के नयनों ने पूरे दो सौ पचास ग्राम आंसुओं की बरसात की.
एक दिन नेताजी के किसी हितैषी ने जाने कैसे सोचा कि नेताजी के आंसुओं का महत्त्व और अधिक बढ़ सकता है यदि आंसुओं की शीशी पर उनके बहाने की तारीख और बहाने का कारण लिख दिया जाय. यह सुझाव सभी को बेहद पसंद आया. यह सुझाव अमल में लाया गया और शीशियों पर लिखा जाने लगा- “ फलां तारीख को फलां जगह की बाढ़ पर बहाए गए श्री ‘क’ के आंसू या फलां प्रांत के सूखे पर बहाए गए श्री ‘क’ के आंसू...”
एक दिन मेरी बड़ी इच्छा हुई कि श्री ‘क’ से मिलूं. बड़ी कोशिशों के बाद उनके कमरे में पहुँच पाया. वे टेलीफोन पर किसी से बात कर रहे थे. वे जोर-जोर से देश की दुर्दशा का जिक्र कर रहे थे मगर आँखें उनकी बिलकुल सूखी थी. मैंने उनसे पूछा- “ ताज्जुब है कि आप रो नहीं रहे हैं जबकि बात देश की दुर्दशा की कर रहे “
“ हम घर पर नहीं रोते...पब्लिक की अमानत पब्लिक के सामने ही पेश करना चाहिए..” उन्होंने कहा और व्हिस्की की बोतल खोलने लगे. मेरी आस्था पर व्हिस्की की बोतल बिजली बनकर गिरी और यह शायद उन्होंने महसूस कर लिया, बोले-“ इसके पीने के बाद आंसू बहाने में आसानी होती है.” सुनकर मन का काँटा निकल गया.
कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने अगला प्रश्न किया- “ आपके आंसुओं को कैसे इकठ्ठा किया जाता है ?” उत्तर में उन्होंने अपने कुरते की जेब से एक खादी का रुमाल निकाला और इशारा करते हुए बोले- “ इस रुमाल के द्वारा आंसू इकट्ठे होते है “
“ सो कैसे ? “ मैं हैरान हुआ.
“ बहुत सीधा तरीका है “ वे बोले- “ मैं भाषण के दौरान इस रुमाल से अपने आंसुओं को पोंछता हूँ. भाषण के बाद आंसुओं से गीले रुमाल को निचोड़कर शीशियों में भर लिया जाता है....और कुछ पूछना है...”
मैं एक क्षण अभिभूत- सा उन्हें देखता रहा फिर बोला- “ सिर्फ एक बात और पूछनी है आपसे, आपके मन में आंसुओं का यह सागर आता कहाँ से है ? “ उत्तर में उनका कहकहा गूंज उठा. मैं उनके कहकहे को उनका उत्तर मान उठ आया.
फिर एक दिन अखबारों में एक चौका देनेवाली खबर छपी कि नगर में धड़ल्ले से नेताजी के नकली आंसू असली दामों में बेचे जा रहे हैं. इस समाचार से भूचाल- सा आ गया. श्रद्धालु जनता की आस्था पर यह करारी चोट थी. लोगों ने सरकार को चेतावनी दी कि नकली आंसुओं के विक्रेताओं को तुरंत गिरफ्तार करें और कड़ी से कड़ी सजा दें. सरकार सक्रिय हुई मगर नतीजा शून्य रहा. लोगों की उत्तेजना बढती गयी. सरकार ने एक पांच सदस्यीय आयोग की स्थापना की और इस मामले की तफ्शीश शुरू हुई. आयोग ने सबसे पहले चंद गवाहों की मौजूदगी में नेताजी के असली आंसुओं को इकठ्ठा किया फिर ऐसी सौ शीशियाँ इकट्ठी की जिनके नकली होने का संदेह था. ये सौ शीशियाँ और असली के नमूने लेबोरेटरी टेस्ट को भेज दिए गए. वैज्ञानिक गण इन आंसुओं पर परी क्षण करते रहे और लोगों की उत्तेजना नए-नए रंग लाती रही. श्री ‘क’ इस बीच सभाओं में इस काण्ड पर आंसू बहाते रहे और लोग उनके आंसुओं को बड़ी सावधानी से इकठ्ठा करते रहे.
अंततः लेबोरेटरी टेस्ट का परिणाम सामने आया.आयोग में रिपोर्ट पढ़ी गयी.लिखा था कि हमें भेजी गई सौ शीशियों में से पैंतीस शीशियाँ नकली आंसुओं की थी और बाकी असली आंसुओं से भरी थी. किन्तु परी क्षण के दौरान एक विचित्र तथ्य उपस्थित हुआ है कि नेताजी के असली आंसुओं में इंसानी आंसुओं का कोई तत्व या गुण नहीं है. इस सन्दर्भ में आगे परी क्षण जारी है.
अब आयोग के सामने नई उलझन आ गई. वे नहीं चाहते थे कि उत्तेजित लोगों को यह नई जानकारी मिले मगर बात अंततः लीक हो गई और लोगों में तरह-तरह की चर्चा होने लगी.नेताजी ने सभाओं में जाना छोड़ दिया और अनशन पर बैठ गए कि अब लेबोरेटरी टेस्ट का यह लफड़ा बंद करो...क्या फायदा जब लेबोरेटरी टेस्ट इंसानी आंसुओं को न पहचान सके. स्थिति और उलझ गई.
इसी बीच एक दिन मैं अकेले ही चिड़ियाघर गया -घुमने के उद्देश्य से. मैं एक कोने में बैठा था कि दो सज्जन बगल में बैठे बतिया रहे थे.एक कह रहा था- “लेबोरेटरी टेस्ट ने रिपोर्ट दी है कि नेताजी के आंसुओं में इंसानी आंसुओं जैसी कोई बात नहीं....ठीक भी तो है, भगवान के आंसुओं में इंसानी आंसुओं के तत्व कैसे मिल सकते हैं ? नेताजी तो अवतार हैं अवतार....”
“ बिलकुल यही बात है...” दुसरे ने अपनी श्रद्धा प्रकट की और फिर वे उठकर आगे बढ़ गए.
तभी मुझे एक अजीब- सा कहकहा सुनाई पड़ा.मैंने इधर-उधर देखा तो पाया कि चिड़ियाघर के टैंक में पल रहा मगरमच्छ कहकहा लगा रहा है.मैंने उससे कडाई से पूछा – “ ऐ..इस तरह कहकहा क्यों लगा रहे हो ? “ जवाब में उसने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए कहा- “ हंसी आती है..इंसान की अक्ल पर....लोग समझते हैं कि नेताजी के आंसुओं में इंसानी आंसुओं जैसी कोई बात नहीं, सो वे भगवान के आंसू हैं..मगर वे मूरख क्या जाने कि जिसे वे भगवान के आंसू समझ रहे हैं, वे न नेता के आंसू है ,न भगवान के बल्कि मेरे आंसू हैं...मेरे यानी मगरमच्छ के आंसू. वह नेता मुझसे ही तो आंसू ले जाकर आज तक बहाता रहा है. यकीन न हो तो पूछ लो उस नेता से.”
इससे पहले कि मैं मगरमच्छ से कुछ कहता एकाएक वे नेताजी वहां पहुँच गए. वे अकेले थे. उनके हाथ में टिफिन का डिब्बा था टिफिन खोलकर उन्होंने मांस का एक टुकड़ा मगरमच्छ की ओर उछाल दिया. मगरमच्छ ने मांस झपट लिया मगर दूसरे ही क्षण वह पलटी खा गया. मांस में शायद तेज जहर था.मैंने नफ़रत से नेताजी की ओर देखा. वे बोले- “ मैंने इसकी सारी बातें सुन ली थी इसलिए इसे ख़त्म करना पड़ा...इस स्थिति के लिए मैं हमेशा तैयार रहता था...अतः हमेशा इसकी मौत का सामान अपनी जेब में रखता था..आज जेब का बोझ हल्का हुआ...” सुनकर मेरी इच्छा हुई कि गला दबा दूँ इस आदमी का मगर अपने क्रोध को नियंत्रित करने का प्रयास करते हुए कहा- “ नेताजी, अब आयोग को मैं बताऊंगा कि वे नेताजी के आंसुओं को किसी मगरमच्छ के आंसुओं से मिलाकर देखें...समझ गए आप ? “ मेरे क्रोध को देखते हुए अचानक वे मोम हो गए. मेरे पैरों पर गिरते हुए बोले- “ मुझे बचा लो...मैं बाल-बच्चों वाला आदमी हूँ..मेरी नहीं तो मेरे इन आंसुओं की क़द्र करो....”
“इन आंसुओं की ?” मैं चीखा- “ ये तो मगरमच्छ के आंसू हैं..”
“ नहीं...नहीं...” वह गिडगिडाने लगा- “ कोई भी कसम ले लो ...ये मेरे अपने आंसू हैं...बिलकुल अपने...चाहो तो लेबोरेटरी टेस्ट करवा लो....चाहो तो...”
xxxxxxxxxxxxxx
प्रमोद यादव
दुर्ग, छत्तीसगढ़
मोबाइल-09993039475
Badhiya prastuti. Promod ji badhaiee
जवाब देंहटाएंबहुत करार व्यंग्य
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंश्री अखिलेशजी, ओंकारजी..धन्यवाद..बड़ी खुशी होती है कि आप लोग नियमित मेरी रचना पढते हैं..
- प्रमोद यादव