भारतीय प्रकाशन जगत में एक चमत्कारी घटना थी स्वाधीनता के स्वर्ण जयंती वर्ष संबंधी समारोहों के अंतर्गत नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा समांतर कोश का...
भारतीय प्रकाशन जगत में एक चमत्कारी घटना थी स्वाधीनता के स्वर्ण जयंती वर्ष संबंधी समारोहों के अंतर्गत नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा समांतर कोश का सफल प्रकाशन. अरविंद कुमार के समांतर कोश ने आधुनिक भारत को पहला संपूर्ण विश्वस्तरीय थिसारस मिला था. इसे बनाने में उन्होँने अपने जीवन के पूरे बीस साल होम दिए थे.
बीस साल की लगन और मेहनत के बाद 1996 मेँ प्रकाशित भारत के पहले थिसारस की दोनों खंड. इस का पहला सैट तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर शंकर दयाल शर्मा को भेँट किया गया था.
1800 पेजों वाले उस कोश का 5,000 (पाँच हज़ार) प्रतियों का पहला संस्करण हाथोंहाथ बिक गया. छह महीने बीतते न बीतते इस की पुनरावृत्ति की 10,000 (दस हज़ार) प्रतियाँ छापी गईं. अब तक उस की छह पुनरावृत्तियाँ हो चुकी हैं.
उस के लिए अरविंद कुमार को अनेक साहित्यिक पुरस्कार और सम्मान प्रदान किए गए: महाराष्ट्र हिंदी अकादेमी कामहाराष्ट्र भारती अखिल भारतीय हिंदी सेवा पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन काडाक्टर हरदेव बाहरी सम्मान, केंद्रीय हिंदी संस्थान कासुब्रह्मन्य भारती पुरस्कार, और 2011 में हिंदी अकादेमी (दिल्ली) का सर्वोच्च शलाका सम्मान.
अब सतरह साल की मेहनत के बाद आया है इस का बृहत् संस्करण
बृहत् समांतर कोश के आगमन के साथ अब हुआ है वैसा ही एक और चमत्कार.
आज विश्व भर में फैला हिंदी समाज और संसार में दूसरे नंबर की भाषा हिंदी तेज़ी से बदल और बढ़ रहे हैं. नित नई तकनीकों के प्रादुर्भाव से नई शब्दावली आ रही है. नए वैश्विक सांस्कृतिक और भौगोलिक संदर्भ हम से जुड़ रहे हैं. भारत में रहने वाले हिंदी साहित्यकारों और समाचारपत्रों का ध्यान नए विषयों की ओर जा रहा है, तो विदेशों में बसे भारतवंशी नए अनुभवों पर पर लिख रहे हैं. बदलते और आगे बढ़ते हिंदी वालों को चाहिए था एक भारत-केंद्रित अंतरराष्ट्रीय थिसारस जो यह सब आत्मसात कर सके.
इस के लिए समांतर कोश के डाटा का गहन पुनरीक्षण किया गया. कुछ आर्थी कोटियोँ मेँ पर्यायोँ की अत्यधिक भरमार थी, जैसे ‘शिव’ के लिए समांतर कोश मेँ 700 पर्याय थे. वे कम किए गए. (कम करने का मतलब है कि अनेक शब्दोँ को प्रकाशित होने वाली सूची मेँ से निकाल दिया गया. न कि उन्हेँ डाटा मेँ से निकाल दिया गया. इस समय हमारे डाटा मेँ शिव के कुल पर्यायोँ की संख्या 2,519 है.) डाटा मेँ कई शीर्षक बहुत छोटे थे, उन्हेँ अन्य शीर्षकोँ मेँ सम्मिलित किया गया. अब शीर्षकोँ की कुल संख्या 1100 से घट कर 988 रह गई.
शीर्षक तो कम किए, लेकिन कई नई आर्थी कोटियाँ सम्मिलित की गईं. हमारी अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओँ को अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संदर्भों मेँ दिखाने के लिए कई नए उपशीर्षक बनाए गए. इस प्रकार समांतर कोश के 23,759 से उपशीर्षकोँ से बढ़ कर अब बृहत् समांतर कोश मेँ 25,562 उपशीर्षक हैँ.
पहले अभिव्यक्तियोँ की संख्या कुल 1,60,850 थी. अब वे 2,90,477 हैँ. एकदम 1,803 उपशीर्षकोँ और 1,39,627 अभिव्यक्तियोँ की वृद्धि!
सतरह सालों की मेहनत
पिछले सतरह सालों की मेहनत के बाद बना यह बृहत् समांतर कोश इसी दिशा में सफल प्रयास है. इस में 988 शीर्षकों के अंतर्गत 25,562 उपशीर्षकोँ में 2,90,477 अभिव्यक्तियाँ हैं. समांतर कोश में उपशीर्षकों के परस्पर संबद्ध तथा विपरीत क्रौस रैफ़रेंस नहीं थे. परिणामस्वरूप किसी किसी अभिव्यक्ति से संबद्ध या विपरीत शब्द उस के आस पास नहीं मिलते थे. उदाहरणार्थ - गणित ज्योतिष से फलित ज्योतिष बहुत दूर था. ऊपर नीचे पन्ने पलट कर भी पाठक भाग्य बताने वाली ज्योतिष तक नहीं पहुँच सकता था. इस का हल करने के लिए पुनरीक्षण की प्रक्रिया में बृहत् समांतर कोश मेँ 62,371 क्रौस रैफ़रेंस सम्मिलित किए गए हैँ.
समांतर कोश में वायुमंडल के पर्याय मात्र दिए गए थे. उन में एक पर्यावरण भी था. बृहत् में वायुमंडल के विभिन्न स्तर तो बताए ही गए हैं, पर्यावरण पर अपनेआप में स्वतंत्र ख़ासी सामग्री भी है—
वायुमंडल - ध्वनिवाही आकाश, परिमंडल, पर्यावरण, फिजाँ, वातावरण, वियत, विहायस, वेष्टन, शब्दवाही आकाश, हवा.
क्षीण वायुमंडल - पतली पर्वतीय हवा, पतली हवा.
वायुमंडल स्तर (सूची) - आउटर वान ऐलन लेयर, आयन मंडल, इनर वान ऐलन लेयर, ई लेयर, उच्च वायुमंडल, ऐक्सोस्फ़ियर, ऐफ़-1 लेयर, ट्रोपोपौज़, ट्रोपोस्फ़ियर, डी लेयर, थर्मोस्फ़ियर, निम्न वायुमंडल, मीज़ोपौज़, मैसोस्फ़ीअर, वान ऐलन लेयर, सल्फ़ेट लेयर, स्ट्रैटोपौज़, स्ट्रैटोस्फ़ियर.
उच्च वायुमंडल - इतर स्तर, उच्च वायुमंडल, विषम स्तर.
निम्न वायुमंडल - निम्न वायुमंडल, समस्तर.
आयन मंडल- आयनस्फ़िर, विद्युदणु मंडल, विद्युन्मंडल.
स्ट्रैटोस्फ़ियर - ओज़ोन आवरण, ओज़ोन पट्टी, समताप क्षेत्र, समताप मंडल.
मीज़ोपौज़ - मध्य सीमा, मैसोस्फ़ियर और थर्मोस्फ़ियर के बीच क्षेत्र.
स्ट्रैटोपौज़ - समताप सीमा, स्ट्रैटोस्फियर और मैसोस्फ़ियर के बीच क्षेत्र.
ऐक्सोस्फ़ियर - परामंडल, बहिर्मंडल, बाह्य मंडल, बाह्य वायुमंडल.
ट्रोपोपौज़ - क्षोभ सीमा, ट्रोपोस्फियर और स्ट्रैटोस्फ़ियर के बीच क्षेत्र.
थर्मोस्फ़ियर - ताप मंडल, तापवृद्धि मंडल, बाह्य वायुमंडल, मैसोपौज़ के ऊपर वाला क्षेत्र.
मैसोस्फ़ियर - मध्य मंडल, मध्य वायुमंडल, स्ट्रैटोपौज़ के ऊपर वाला क्षेत्र.
पर्यावरण - परिवेश, पृथ्वी पर जीवन संरक्षक परिदशा, फिजाँ, माहौल, वातावरण, हवापानी, हालात.
पर्यावरण रक्षा - परिरक्षण, पर्यावरण परिरक्षा, प्रकृति रक्षा, संरक्षण.
पर्यावरण प्रेम - पर्यावरणवाद.
पर्यावरणवादी - ग्रीन, पर्यावरण प्रेमी, प्रदूषणविरोधी.
इसी प्रकार की जानकारी मिलती है पोषव्यों के बारे में—
पोषव्य सं न्यूट्रीऐंट, पुष्टिकर पदार्थ, पोषक आहार, पोषक तत्त्व, पोषक द्रव्य.
पोषव्य (सूची) सं अमीनो अम्ल, ऐनज़ाइम, कार्बोहाइड्रेट, कैलरी, ग्लूकोस, प्रोटीन, सूक्ष्म पोषव्य.
अमीनो अम्ल सं अमीनो ऐसिड, आधार एकक, मूल एकक.
ऐनज़ाइम सं अनुयूषम, आयूषम, किण्वज, किण्वाणु, ख़मीर, प्रकिण्व.
ऐनज़ाइम (सूची) सं आर्गीनेज़, इनुलेज़, एस, ऐक्सोपैप्टिडेस, ऐनज़ाइम, ऐमिलेज़, और्गीनेज़ (विकल्प), काइनेज़, ज़ाइमेज, ट्रिपसिन, न्यूक्लिएज़, पैनक्रिएटिन, पैपेन, पोलिमरेज़, प्लाज्मिन, रैडक्टेज़, लाइसोज़ोम, हायालुरोनिडेज.
पैपसिन सं जठरिन, पाचकिन, पाचव्य, पाचिन.
लैक्टेस सं दुग्धेस, स्तन्य (प्राप्तिस्थानानुसार).
कार्बोहाइड्रेट सं अंगारोद्केट, अंगारोस, कार्बोद्केट (रूढ़ीकृत), शर्करव्य.
कैलरी सं खाद्य पदार्थ से उत्पन्न ऊर्जा.
ग्लूकोस सं फल रस में उपलब्ध शर्करा, मधुरव्य, मधुरोस.
शर्करोस सं इक्षु शर्करा, कार्बोहाइड्रेट, ग्लूकोस शूक्रोस आदि, घुलनशील मिष्ठ द्रव्य, शक्कर, शर्करव्य, शर्करा, शूक्रोस, सेक्कारोस.
शर्करोस (सूची) सं चुकंदर शर्करोस, जुआर शर्करा, फ्रक्टोस, मधु शर्करा, मधुशर्करा, माल्टोस, मैन्नोस, मैपल शूगर, लैक्टोस.
चुकंदर शर्करोस सं चुकंदरव्य, चुकंदर शर्करव्य, चुकंदर शर्करा, चुकंदरोस, बीट शूगर.
लैक्टोस सं दुग्ध शर्करा, दुग्धोस, मिल्क शूगर.
फ्रक्टोस सं फलव्य, फल शर्करव्य, फल शर्करा, फल शर्करोस, फलोस, लेव्यूलोस.
मधुशर्करा सं क्षौद्रजा, मधुव्य, माधवी, शुभ्रिका, सितजा.
मैपल शूगर सं मैपल शर्करा, मैपिल शर्करा, मैपिल शर्करोस, मैपिल शूगर.
माल्टोस सं अंकुरोस, जौ शर्करा, माल्ट शूगर, यवव्य, यव शर्करा, यवोस.
जुआर शर्करा सं जलबिंदुजा, पिंड शर्करा, यवनाल शर्करा, हिमशर्करा.
अरविंद कुमार दिल्ली की सर्दियोँ से बचने बेटे सुमीत केपास आरोवील चले जाते हैँ. वहा कंप्यूटर पर काम करते अरविंद कुमार
आज हिंदी वैश्विक है
अरविंद कुमार का कहना है कि विश्व भर में फैला हिंदी समाज और संसार में दूसरे नंबर की भाषा हिंदी तेज़ी से बदल और बढ़ रहे हैं. नित नई तकनीकों के प्रादुर्भाव से नई शब्दावली आ रही है. नए वैश्विक सांस्कृतिक और भौगोलिक संदर्भ हम से जुड़ रहे हैं. भारत में रहने वाले हिंदी साहित्यकारों और समाचारपत्रों का ध्यान नए विषयों की ओर जा रहा है, तो विदेशों में बसे भारतवंशी नए अनुभवों पर पर लिख रहे हैं. बदलते और आगे बढ़ते हिंदी वालों को चाहिए था एक भारत-केंद्रित अंतरराष्ट्रीय थिसारस जो यह सब आत्मसात कर सके.
समांतर कोश मेँ केवल भारतीय देवीदवताओँ के नाम और पर्याय थे. बृहत् समांतर कोश मेँ बच्चोँ का प्यारा सांता क्लौस तो है ही. और भी बहुत कुछ है—जैसे उदाहरण के तौर पर अभारतीय देवता अपोलो (ग्रीस), आमोन रे (मिस्र), एलगाबाल (हिब्रू), टाइटन (ग्रीस), फाइटोन (ग्रीस), फीबुश (ग्रीस), र (मिस्र), शमल (शाम), शोल (रोम), सूर्य देवता हाइपेरियोन और हेलियोस (ग्रीस). और भी बहुत से ऐसे देवीदेवता बृहत् समांतर कोश मेँ हैँ. इस का एक लाभ यह है कि यदि आप मिथकीय मान्यताओँ पर कुछ लिख रहे हैँ, बनी बनाई जानकारी आप को तत्काल मिल जाएगी.
पूरी दुनिया मेँ क़दम बढ़ाते आज हम भारतीयोँ का, विशेषकर अंतरराष्ट्रीय स्वरूप ग्रहण करने के रास्ते पर तेज़ी से बढ़ती हिंदी का और हिंदी वालोँ का, साबक़ा अनेक अल्पपरिचित संदर्भों से पड़ता है. इसलिए अनेक अंतर्सांस्कृतिक शृंखलाएँ हमारी अपनी शब्दावली से इस संस्करण मेँ परस्पर संबद्ध करते पिरोई गई हैँ. देखिए—.
स्वर्ग सं अक्षय लोक, अगिर, अजर लोक, अदन, अपरलोक, अमरधाम, अमरपुर, अमर लोक, अमरालय, अमरावती, अमृत लोक, आनंद लोक, इंद्रपुरी, इंद्रलोक, ऊर्ध्वलोक, कैलास, ख़ुदा का घर, गार्डन आफ़ ईडन, जन्नत, जन्नते अदन, तरीष, ताविष, त्रिदशालय, त्रिदिव, त्रिविष्टप, दिव्यलोक, देवता लोक, देवभूमि, देवलोक, देवसदन, देवागार, देवालय, द्यावा, द्यु, द्युलोक, नाक, निसर्ग, नेमतकदा, पुण्यलोक, प्रमोद लोक, फ़िरदौस, बहिश्त, बाग़े क़ुदूस, बाग़े बिहिश्त, मंदर, मंदार, रहस, रोद, विष्टप, वीरमार्ग, वैकुंठ, शक्रलोक, सातवाँ आसमान, सुखधाम, सुखलोक, सुखाधार, सुरग, सुरधाम, सुरपुर, सुरलोक, सुरवास, सुरवेश्म, सुरसदन, सुरेंद्र लोक, सोनापुर, सोमधारा, स्वर्, स्वर्गद्वीप, स्वर्गधाम, स्वर्गलोक, हैवन.
बाग़े अदन सं अदन, अदन बाग़, अद्न, आदम पहला आवासस्थान, आदम हौवा उपवन, ईडन, गार्डन आफ़ ईडन, जन्नते अदन, बाग़े बिहिश्त.
ग्रीक स्वर्ग सं ओलिंपस पर्वत, ओलिंपिक पर्वत, देवता वासस्थान, देवलोक, माउंट ओलिंपस.
ऐलीसियम क्षेत्र सं आनंद लोक, एलीसियम, ऐलीसियम, ऐलीसियम फ़ील्ड्स, मृत्यूपरांत स्वर्ग, सुखधाम, सुखलोक.
यहूदी स्वर्ग सं ज़ायन, ज़ीयन, साइयो (हिब्रू), सायन, सेणयोन.
सातवाँ स्वर्ग सं उच्चतम स्वर्ग, जन्नतुल फ़िरदौस, जन्नतुल मावा, लांतव
आप लेखक या पत्रकार हैं और स्पेन पर लिख रहे हैं तो उस के बारे में कुछ अतिरिक्त जानकारी आप की रचना को रोचक बना देगी. मसलन यह कि अरब लोग उसे ‘अंदलुस’ कहते थे, कभी उसे 'इबीरिया’ कहा जाता था, लैटिन में उसे 'श्पानिया 'कहते हैँ. ‘हिस्पानिया’ इसी का एक अन्य रूप है, और स्पेन के लोग अपने देश को ' ऐस्पान्या’ कहते हैं. स्पेन का नाम आते ही ‘बुलफ़ाइटिंग’ खेल की याद आना स्वाभाविक है, जो अभी ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा फ़िल्म मेँ दिखाया भी गया था. अतः स्पेन से सबंद्ध कोटियों में इस जानलेवा खेल का संदर्भ दिया गया है.
पूरी दुनिया की सैर करने वालों में आज हिंदुस्तानियों की गिनती सब से ऊपर मानी जाती है. अब अगर आप सैर सपाटे के लिए लोकप्रिय पहाड़ी देश स्विट्ज़रलैंड जा रहे हैं तो यह जानना लाभप्रद साबित हो सकता है कि यूरोप की भिन्न भाषाओं में इस देश के अन्य नाम क्या हैं- ‘श्फ़ीट्स’ (जरमन), ‘सुईस’ (फ़्रांसीसी), ‘स्वित्सेरा’ (इतालवी), ‘ हेलवेशिया’ (लैटिन) . इसे ‘स्वीज़रलैंड’ और ‘स्वीस’ भी कहा जाता है.
बढ़ती आर्थिक सामर्थ्य के आधार पर भारत की गिनती आज नई सदी मेँ संसार को प्रभावित करने वाले मुख्य देशों मेँ की जाती है. इस से देश का और हिंदी का दायित्व बढ़ जाता है. समय की माँग है कि हमारे भाषाई संसाधन समय की आवश्यकताओं को पूरा करें. इसलिए बृहत् समांतर कोश थिसारसों के दायरे को बढ़ा कर उसे मिनी ऐनसाइक्लोपीडिया या विश्वकोश के स्तर तक ले जाता है और सब प्रकार के विषयों की संक्षिप्त जानकारी देने वाला संदर्भ ग्रंथ बन जाता है. अंतरिक्ष से भूगर्भ तक, पूर्व से पश्चिम तक, प्राचीन से नवीन तक, विदा से स्वागत तक सभी विषयोँ को समेटता यह महाकोश आज के हमारे वैश्विक समाज का दर्पण बन जाता है.
--
अरविंद जी को बधाई व शुभकामनाएं!
इस अथाह व अथक परिश्रम मेरा को नमन.
जवाब देंहटाएंआज लिखने का अधिकांश काम कम्प्यूटर पर हो रहा है. इसलिए अब आवश्यकता इसे हिंदी लिखने वाले साफ़्टवेयरें के साथ समेकित करने की है ताकि इसका सर्वाधिक प्रयोग हो सके जैसे कि दूसरी भाषाओं में उनके शब्दकोषों का प्रयोग हो रहा है. इससे हिंदी का कहीं अधिक विकास होगा.
अति उत्तम प्रयास, अरविन्द जी की जितनी सराहना की जाए कम है, मैंने इसके प्रथम प्रकाशन के तुरन्त बाद खरीदा था, अति उपयोगी। इसका कम्प्यूटरीकरण समय की आवश्यकता। मैं इसी सन्दर्भ में अरविन्द जी से सम्पर्क करना चाहता हूँ, किसी के पास सम्पर्कसूत्र हो तो कृपया भेजें।
हटाएंनरेश कुमार धीमान्
प्रिंसीपल,
दोआबा कॉलेज, जालन्धर (पंजाब)
(M): +91 9780518504
dhimaann@yahoo.com