देवेन्द्र कुमार पाठक 'महरूम' घर घर घुस बैठी है दहशत पल पल अब दुश्वारी है. किसका मातम कौन मनाए कौन ग़मोँ से खाली है. खूब दलाली ...
देवेन्द्र कुमार पाठक 'महरूम'
घर घर घुस बैठी है दहशत पल पल अब दुश्वारी है.
किसका मातम कौन मनाए कौन ग़मोँ से खाली है.
खूब दलाली की लफ़्ज़ोँ ने थोथे सब्र बँधाए खूब ;
चेहरे चेहरे दर्द लिखा जो लफ़्फ़ाज़ोँ पर भारी है.
साहिल पर ही बैठ समंदर की गहराई नाप रहे ;
घोंघे शंख सीपियोँ से ही झोली भरी तुम्हारी है.
जब अपने ही बेगाने होँ ग़िला करेँ क्या ग़ैरोँ से ;
घर के अंदर हो जाती अक्सर घर मेँ घरदारी है.
आकर पहले ही दोराहे पर ली राह बदल तुमने ;
आखिरकार दिखा दी तुमने क्या औक़ात तुम्हारी है.
नीँद से बाहर जागी आँखेँ ख़्वाब अजब सा इक देखेँ ;
मंदिर मेँ काज़ी का आगमन मस्जिद आया पुजारी है.
धोख़े से भी नाम न उसका लूँ 'महरूम' मेरी तौबा ;
सूरत मे है यारी जिसकी सीरत मेँ गद्दारी है.
~~ ~~ ~~ * ~~ ~~ ~~
प्रेषण - 06/09/2013; 04.00अपराह्न.
pathakdevendra24@gmail.com
जसबीर चावला
०भाग खबर भाग०
तेज और तेज
परोसो
गरम परोसो / गरमा गरम
पकी / पक्की नहीं
कच्ची ही परोसो
दस मिनिट में दस बीस नहीं
सौ / दो सौ खबरें परोसो
हांफते / बिना सांस लिये
मत दो मोका तनिक
खबर पर रुकने / सोचने / विश्लेषण का
तुम परोसो
दूसरी तीसरी चौथी
यह जान कर
खबर है ही नहीं खबर
खबरों के बोझ से दब जाएं
जायका / हाजमा बिगड़े
उल्टी कर दें
नहीं खबर तो खबर बनाओ
ताजी नहीं है / बासी चलाओ
एक है तो तोड़ो / टुकड़े बनाओ
दस खबरों के नाम चलाओ
पर परोसो
तेज सबसे तेज
भाग खबर भाग
इसी वक्त / दूसरों से आगे / सबसे पहले
अभी अभी / खबर से पहले खबर
सुपर फ़ास्ट
भाग / चाहे मुंह के बल गिरे
***
// ऊंचे लोगों की ऊंची बातें //
ऊंचा दर्जा
ऊंची बातें
ऊंचे लोग
ऊंचे अधिकारी
ऊंची फीस
ऊंचे वकील
ऊंची अदालत
ऊंची बीमारी
ऊंचे डाक्टर
उनकी तो हर बात ऊंची
ऊंचे बंगले में रहते हैं
जब जब जेल जाते हैं
ऊंचे दर्जे में रहते हैं
--
//तात्//
''''''''''
तात्
जाड़ा
ठंडा
गात
*
तात्
कब
बनेगी
बात
*
तात्
मत
करो
घात
*
तात्
कब
मिटी
जात
*
तात्
बीत
गई
रात
*
तात्
फिर
हुई
मात
*
तात्
हिल
गये
पात
००
०घर तो घर है०
'''''''''''''''''
बच्चों
रात बाहर मत रहो
वक्त पर
आओ
वक्त पर
जाओ
घर को घर ही रहने दो
संसद मत बनाओ
***
०मिड डे मील०
'''''''''''''''''
मिड डे मील
अगर होता
मिड डे मीली
तो तुक मिलाते
उचित है
खाने में छिपकली
पर बिना नाम बदले भी
खाना पोषक है / पाचक है
मारक है
क्योकि इसमें
कीट नाशक है
०००
(सन्दर्भ : बिहार में मिड डे मील में कीट नाशक
मिलने से अनेक बच्चें की मौत हुई)
काफिया कोश
''''''''''''''''''''''
नहीं मिल रहा
सही शब्द
क़ाफ़िया
०
कैसा रहेगा
खनन
माफ़िया
००
--
मोतीलाल
मेरी आत्मा
जो नहीं भागती
मुझे छोड़कर
चिपटी रहती है
मेरी देह के साथ
और साथ-साथ चलती है
मेरे आफिस तक
या भीड़भाड़ वाले बाजार में
मेरे घर वापस होने पर
मेरे साथ घर में घुस जाती है ।
इसे आदमी बनाने की जिद में
मैं ही टूटता रहा हूँ
हर चौराहे पर
और तलाश नहीं पाता हूँ
एक सीधी राह
जब कभी सही रास्ता
चुनता हूँ अपने लिए
मेरी आत्मा
दूसरे रास्ते पर भाग जाती है ।
मैं अपनी जिद में अड़ा हूँ
और ये अपनी
इस कसमकस में
अक्सर भूल जाता हूँ
अपने शब्द
कि शब्द का कोरे होना
भीतर तक तोड़ डालता है
अंत में मैं ही चुप हो जाता हूँ
और वह हँस पड़ता है ठठाकर ।
* मोतीलाल/राउरकेला
* 9931346271
--
मोहसिन खान
बहुत दिनों बाद
अबके मौसम में जो गिरा है शजर।
कितने पंछियों का उजड़ा है घर।
अब जंगल में नहीं बसते हैं साँप।
यहाँ जबसे बसने लगा है शहर।
उसकी ज़िन्दगी में भूख,प्यास थी।
मिटाने को उसे मारता रहा हुनर।
वतन की बुलंदी गिनाती सियासत।
पता नहीं ग़रीबों की कैसी है बसर।
जिसकी आवाज़ है आज़ान सी
क्यों इक सूरत है अनजान सी।
रोज़ अस्मत लुटती बाजारों में
रहती हैं बेटियाँ परेशान सी।
आँगन में आई तो शक्ल दिखी
माँ हो गई है घर के सामान सी।
ज़िंदा लाशों के बीच रहते हैं हम
बस्तियाँ बन गईं कब्रस्तान सी।
हो जाती फ़नाह कबकी दुनिया
कोई चीज़ बची है ईमान सी।
रिश्तों की तिजारत की सौदागिरी
दुल्हन सजती है इक दुकान सी।
ग़ज़ल -1
अबके मौसम में जो गिरा है शजर।
कितने पंछियों का उजड़ा है घर।
अब जंगल में नहीं बसते हैं साँप।
यहाँ जबसे बसने लगा है शहर।
उसकी ज़िन्दगी में भूख,प्यास थी।
मिटाने को उसे मारता रहा हुनर।
वतन की बुलंदी गिनाती सियासत।
पता नहीं ग़रीबों की कैसी है बसर।
ग़ज़ल-2
जिसकी आवाज़ है आज़ान सी
क्यों इक सूरत है अनजान सी।
रोज़ अस्मत लुटती बाजारों में
रहती हैं बेटियाँ परेशान सी।
आँगन में आई तो शक्ल दिखी
माँ हो गई है घर के सामान सी।
ज़िंदा लाशों के बीच रहते हैं हम
बस्तियाँ बन गईं कब्रस्तान सी।
हो जाती फ़नाह कबकी दुनिया
कोई चीज़ बची है ईमान सी।
रिश्तों की तिजारत की सौदागिरी
दुल्हन सजती है इक दुकान सी।
डॉ. मोहसिन ख़ान
अलीबाग (महाराष्ट्र)
09860657970
07385663424
--
चन्द्र कान्त ‘रवि’
1) प्रतीक
नदी के घाट पर कृशकाय शरीर के
उकड़ू बैठे हुए एक दीन
भूख से व्याकुल भिखारी को देखकर
‘रवि’ पुकार उठा लो यही तो है
इस देश के विकास का, परिमाप
फल, श्राप या कुछ और शायद
“प्रतीक”.
2) एक चिंगारी
हिरोशिमा और नागासाकी में
आग के उठते हुए शोले देखकर
सबने कहा यह विप्लवकारी प्रभाव है
एक अणु बम का
‘रवि’ सोचता है यह क्यों नहीं सोचा गया
भविष्य में लगने वाली आग की थी यह मात्र
“एक चिंगारी”.
3) अपना प्रतिशोध
दो देशो के आपसी युद्ध में कितने
अबोध, निरपराध, निरीह, बेबस
व्यक्ति मारे गए यह किसको होश है
‘रवि’ भी नहीं पूछता क्योंकि
उसे पता है दोनों देश ले रहे है
“अपना प्रतिशोध”.
4) क्षणिक जन्नत
रहने दो तनहा खोये हुए अपने ही
ख्यालों में दिन रात ‘रवि’ मत जगाओ
तुम न बुलाओ हमें हमें भाने लगी है अब
यह स्मैक (गर्त) की
“क्षणिक जन्नत”.
5) जनतंत्र
आगे से यहाँ चुनाव प्रसार के लिए
बड़े बड़े मांत्रिको तांत्रिको को लगाया जाएगा
भारत विश्व का विशालतम जनतंत्र देश है न
इसलिए अब जनता के वोटों को
मंत्र से बाँधा जाएगा तंत्र से माँगा जाएगा.
क्षणिकाएं
6) आजकल रामलीला में
कुछ ऐसे प्रसंग भी देखे
लक्ष्मण ने खाए बेर
और राम ने फेंके.
7) कलियुग की छटा महाभारत में
कुछ यूँ छा गई
गांधारी अगले ही दिन
धृतराष्ट्र से तलाक लेकर
अपने मायके आ गई.
8) रामचरित मानस ने लोगो के मानस पर
अपना प्रभाव कुछ यूँ दिखाया
लोग राम तो न बन सके
पर दशरथ का चरित्र जरुर अपनाया.
9) दीवाली
दीवाली नहीं होती किसी दीवाले से कम
जब घर में हो जुआ और शोर करे बम
आओ हम सब करे यूँ दीपमाला तैयार
न शराब न जुआ न पटाखे घर-द्वार
बच्चों को दे मिठाइयाँ और बड़ो को सत्कार
आओ मनाये इस वर्ष कुछ यूँ दीवाली त्यौहार.
10) परीक्षा
परीक्षा को सोचकर सिर्फ एक इम्तिहान
मि० नटवरलाल ने लगायी जी और जान
लगायी जी और जान लगा बिजली का झटका
जब परीक्षाफल ने उन्हें जमीं पर ला पटका
आया तब समझ में अर्थ क्या है परीक्षा
यह नहीं है एक इम्तिहान यह है पर इच्छा.
--
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
बहुचर्चित प्रश्न
यह सच है
सचाई कुछ भी हो
कितनी सचाई है
यह जाँच का प्रश्न है ?
यह भी एक छलावा
मामला आया-गया
सुरताल सदैव एक
कही छाया कही धूप
यही है असली रूप
मिसाल-वे मिसाल
अधपका फल तोड़ने की बेताबी
सचाई क्या है
यह जानने का मोह नहीं
सचाई की उलटवासी
सुन कर आती हाँसी
सच से सन्न हुए
आखिर कब चेते
ढर्रा नहीं बदलो
खुद ही बदल गए।
-सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305 ओ0सी0आर0 बिल्डिंग
विधानसभा मार्ग, लखनऊ
--
सुमित्रा मैत्रीय
अब नहीं आती वो आवाजें !
जैसे ही
झपकी लगे ,
बर्तन बजने की आवाजें !
मुझे देख कर बार बार,
कहराने की आवाजें!
कभी कभी तो बिना बात ही ,
हसने हँसाने की आवाजें!
कभी भयंकर गुस्से में ,
उलाहनें
की आवाजें !
पास रहूँ तो
नजरें चुराना ...
ख़ामोशी की आवाजें !
दूर जा कर
चीखना ,चिल्लाना
दिल दह्लानें की आवाजें !!
अम्मा !
तेरी आवाजों से ,
डर गई मेरी आवाजें !
कितनी ही कुरेदी!
जम गई तह में,
ऊपर ना आई आवाजें ....
दिल !!
हर पल डर में ही जीता
खुल ना पाई आवाजें !
मन तो तेरा आशीष दे रहा ...
प्यार बना नहीं आवाजें!
तेरे नेह को पाने के खातिर ,
हर पल रोती आवाजें !!
अन्त में !
तेरा मेरी गोद में सोना !
मुझको आँचल में भर लेना !!
सर्वस्व लुटाती आँखें तेरी
मुझे बुलाती बाहें तेरी
पर !!
ख़ामोश हो गई आवाजें ...
अब तो केवल सन्नाटा है !
अब !!
मूक हो गई ,मेरी आवाजें!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
एक बहु की आवाज़ !
.........................................................
अमित कुमार सिंह
मृत्यु की शहनाई
पूनम की चॉद में
अपनी अंतिम सांस गिनते
शिमला का शर्मीला
जंगली नीला फूल
न जाने क्यों
इतना खुश था,
चॉदनी की चादर ओढे
रात भी ढलने वाली थी
फिर भी,
शिमला का शर्मीला
जंगली नीला फूल
न जाने क्यों,
इतना बेसुध था.,
आनंद के आलिंगन में,
शायद चॉद ने
कुम्हलाए नीले फूल से
कुछ कानाफुसी की
..............................
तु भविष्य की चिंता छोड़,
अतीत का बोझ मत ओढ,
और बस इस लम्हे को
गहरे से जी ले
जी भरकर इसे पी ले,
फिर मुस्कुराते हुए कहा
अरे,तु तो आज
पहली और अंतिम मर्तबा मरेगा,
लेकिन मैं तो
रोज सुबह मरती हूं.......
विरह के इस सुहागरात में,
शर्मीले फूल और शीतल चॉद का
प्रेम –उत्सव देखकर,
मौत खिसियाई
और,
नंगे पॉव ,
दबे पॉव
चुपचाप
वापस लौट गई.
-----
अमरेन्द्र सुमन
अपने ही लोगों के खिलाफ
आत्मग्लानि, अपराध बोध से ग्रसित
दिख रहे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, खेत-खलिहान
उपस्थिति में ही जिनकी
खो रहा जंगल अपनी पहचान
अपनी संस्कृति, अपनी निशां
दिख रहीं उदास
माँ की रसोई की हांड़ी,
बेटी के बेहतर भविष्य की बापू की कल्पनाएँ
बाहा, करमा मनाती बहनों के हाथों की मेंहदी।
कुछेक दिनों से दिख रहा
उल्टा-उल्टा सा सबकुछ यहाँ ।
बस्ती की यह हालत
इन दिनों, ऐसी क्यों ?
जानना चाहता हूँ, तुझसे ही
तुम्हारी बस्ती में पसरे अंधेरे का रहस्य
गूंगी-बहरी घर की दिवारों के एकाकीपन का वास्तविक सच
अपने अंंदर छिपाए जिनके दर्द में
पिघल रहे मोम की तरह दिन-प्रतिदिन तुम
तुम्हारी बस्ती के लोग।
रहस्यमयी तुम्हारी चुप्पी का राज क्या है मंगल आहड़ी ?
क्या तुम यही सोंच रहे
कि पिछले दिनों
लबदा ईसीआई मिशन हॉस्टल की जिन चार नाबालिग लड़कियों के साथ
दुष्कर्म की वारदातें घटित हुई थीं
वे कोई और नहीं
तुम्हारी ही बस्ती की बहन-बेटियाँ थीं।
कि जिन दुष्कर्मियों ने
रात के अंधेरे में घटना को अंजाम तक पहुँचाया
तुम्हारी बस्ती के बाजू में स्थित जामजोड़ी के रहने वाले लोग थे।
कि बाहरी दखलंदाजी
छल-प्रपंच से दूर
जिन्हें सिखाया करते थे
जंगल, पहाड़, आदिवासियों के हक-हकुक की रक्षा के लिये
बुरे वक्त के नुस्खे
दगाबाजी उन्होनें ही की
तुम्हारी बस्ती की आत्मा से, तुझसे
तुम्हारी बहन-बेटियों से।
अपराधियों की जाति
अपराध के उनके तौर-तरीके
उनका धर्म नहीं देखा जाता मंगल आहड़ी ?
नहीं देखा जाता उनमें
अपने-पराये का कोई बोध
काला-गोरा का अन्तर ?
तुम्हारी खुद की ही व्यवस्था में
चुनौती बने
उन श्ौतानों के विरुद्ध
लड़नी होगी लम्बी लड़ाई
जिन्हें नहीं भाती
बाँसुरी की सुरीली तान पर मुस्कुराती जंगल की हवाएँ, लताएँ
मांदर की थाप पर थिरकती नदी की तरह शांत, निश्चल स्वभाव लड़कियाँ
पेड़ों पर कुहुक-कुहुक करती कोयल !
पाकुड़ (झारखण्ड) जिला के लिट्टीपाड़ा प्रखण्ड अन्तर्गत ग्राम लबदा ईसीआई मिशन हॉस्टल की चार नाबालिग (आदिम जाति ) पहाड़िया लड़कियों के साथ बीते 14 जूलाई 2013 को हुए सामुहिक दुष्कर्म की घटना पर ।
द्वाराः- डॉ0 अमर कुमार वर्मा ''मणि विला'', प्राईमरी स्कूल के पीछे, केवटपाड़ा (मोरटंगा रोड) दुमका, झारखण्ड
---
अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव
क्या करें हम ऐसे संतों का
जिनके भक्त हैं करोड़ों में
जिनकी ख्याति है आसमान तक
जिनके पास है अकूत धन
उनके पास है हर प्रकार की शक्ति
इस असीम शक्ति ने उनकी
बुद्धि की भ्रष्ट और वे
भटक गये सन्मार्ग से
करने लगे भ्रष्टाचार व व्यभिचार
दुराचार धन और बल का दुरुपयोग
जब भेद खुला भक्त हैरान परेशान
जिसे भगवान माना वो निकला शैतान
महा घिनोना दुष्ट बलात्कारी बेईमान
अब ऐसे संतों का क्या करें कि वे
अपने दुष्कर्मो का फल भोगें
न्याय व् धर्म का है ये तकाजा
कि देश की न्याय व्यवस्था पर
रखकर भरोसा उसे करने दें अपना काम
बिना किसी रोकटोक या रुकावट बने
ये ही मानवता और देश की सही सेवा होगी
और सच और झूठ की भी पहचान होगी
आइये हम अपने देश के जागरूक नागरिक बन
इस महान देश की सेवा करें
मातृभूमि का ऋण अदा करें
मातृभूमि का ऋण अदा करें
--
विकास कटारिया
समय की लीला”
वक़्त का कोई मोल नहीं होता
यह बड़ा अनमोल है
रुकता नहीं कभी किसी के लिए
इसका यही झोल है
कभी आता किसी के पास अच्छा
कभी आता किसी पर बुरा है
बिना वक़्त के जीवन बिल्कुल अधुरा है
वक़्त ही सिखाता है
वक़्त ही रुलाता है
यही ज़िन्दगी के हर उतार चड़ाव
व्यक्ति को जीवन में दिखता है
जिसने करा इस्तेमाल सही
उसके वारे न्यारे है
निकल गया अगर सही वक़्त
फिर न अपनी किस्मत को मारे है !!
---
ज्योति चौहान
वो नन्हा सा हँसता खिलखिलाता फ़रिश्ता ,
ज़िन्दगी में खुशी की वो एक फ़ुआर,
खिलौनों के बीच में बैठा ,बुनता एक निराली दुनिया,
बड़े लोगों- सी बातें बनाता , वो सबको हँसाता,
है कृष्णा का एक स्वरुप,
अपनी सारी डिमांड प्यार से रखता, हमें मनाता
कभी नए कपड़े , कभी नए जूतों से खुश होता
कभी माँगता चॉकलेट , तो कभी नए खिलौने,
नये वस्त्र धारण किये, लगता कृष्ण सा मनमोहक
घुटने चलता, हकलाता, डांस करता,
रखता सबका पूरा ख्याल,
प्यार और मासूमियत से भरा,
उस तोते में है मेरी जान,
जितना करू उसके लिए, लगता मुझे उतना ही कम,
जिन्दगी में बहुत कुछ सिखाता,
परेशानियों का हँसकर सामना करना,
"जिंदगी कितनी सुँदर है, जीना है पूरी तरह" -एहसास वही मुझको कराता
मेरी दुनिया में उजाला वो लाता,
भूल गयी मैं अपने सारे ग़म उसकी दुनिया में खोकर,
खुशकिस्मत है वो, जिसके घर में हो एक छोटा सा फ़रिश्ता,
--
सीताराम पटेल
पपीहा की पुकार
1ः-
प्रेम पुकार
पपीहा की पुकार
प्रकृति का आकर्षण
परमात्मा का अनुभव
2ः-
दिल का द्वार
रखना खुला सदा
आएँगे न जाने कब
परम तुम्हारे द्वार
3ः-
फूलों का रंग
मनाएँ होली पर्व
उल्लास उमंग प्यार
सहयोगात्मक त्यौहार
4ः-
सहजीवन
हमारी है संस्कृति
परस्पर करें प्रीति
इनमें न लाएँ विकृति
5ः-
अंधतमिस्रा
पवन का प्राचीर
चौराहे एवं बाजार
नाव फँसी हो मँझधार
6ः-
लगन की लौ
हृदय की कुसुम
कोकिल की कुहू कुहू
कीचड़ में खिले कमल
7ः-
आज की माँग
संवेदनशीलता
शासन का सूत्रधार
संसार एक परिवार
8ः-
भारत देश
मानवता संदेश
बने विश्व सिरमौर
सदा सत्य मेव जयते
9ः-
काम वासना
जीवन का आधार
सत्य यहाँ अनुराग
निराला है राग विराग
10ः-
दूर के ढोल
सुहावने हैं होते
सभी जानते मानते
पास सभी पहचानते
11ः-
कैसा व्यापार
मँहगाई की मार
भ्रष्टाचार शिष्टाचार
दिया हमें अनोखा प्यार
12ः-
शशि सितारा
सागर ने निहारा
हमको बहुत प्यारा
उपरवाला है सहारा
13ः-
प्रेम कहानी
जवानी की निशानी
सुबह शाम सुहानी
अद्भुत इसमें रवानी
14ः-
दूध मलाई
चाट चाट के खाई
शासन कोई बनाई
भ्रष्टाचारी हैं भाई भाई
15ः-
परमहंस
काली अनन्य भक्त
प्रतिमा किया साकार
भगवान का अवतार
16ः-
महानायक
अमिताभ बच्चन
बनेगा करोड़पति
इसमें मारी जाती मति
17ः-
महानायिका
अभिनेत्री माधुरी
इसमें न करो शक
करने लगो धक धक
18ः-
भिखारी तुम
चुपके से आते हो
मेरे द्वार बार बार
भिक्षा से न करूँ इंकार
19ः-
पत्थर दिल
तेरी करूँ मैं पूजा
आँख में गाड़ दो सूजा
सिवा तेरी मेरा न दूजा
20ः-
प्रेम पपीहा
स्वाति नक्षत्र जल
पीउ करे हर पल
अनन्य प्रणय प्रतीक
21ः-
चंपा चमेली
दोनों हैं गुड़ की भेली
परस्पर हैं सहेली
बूझे कौन प्रेम पहेली
22ः-
आत्म पुकार
प्रभु योग की चाह
विश्व वेदना अथाह
वियोग से रहा कराह
23ः-
दीनों की सेवा
सच्ची है आराधना
सबसे बड़ी साधना
पूरी करें मनोकामना
24ः-
इलाहाबाद
तीर्थराज प्रयाग
गंगा यमुना संगम
सबका हो महामिलन
25ः-
अंधी गांधारी
स्वामी की है लाचारी
शाप दी कितनी खारी
आज महाभारत जारी
26ः-
कूलर पंखा
हर रोज चलाएँ
गर्मी से राहत पाएँ
क्वांर ठंडक पहुँचाएँ
27ः-
लाई के फूल
प्रभु पर चढ़ाएँ
स्वर्ग सोपान बनाएँ
मनमाफिक वर पाएँ
28ः-
अपानवायु
पेट में बुरा हाल
कभी खुशी कभी गम
पेट निकले पाएँ दम
29ः-
आज पपीहा
गाले तू कोई गीत
जीवन बने संगीत
मौत से जाएँ हम जीत
---
सतीश कसेरा
नेता बनकर नेक हो गए.......
चोर—उच्चके एक हो गए
नेता बनकर नेक हो गए।
बेच दिया ईमान-धर्म सब
कम-ज्यादा बस रेट हो गए।
लूट-खसोट मचाई ऐसी
कंगले थे,अब सेठ हो गए।
देश खा गए, फिर भी भूखे
कैसे इनके पेट हो गए।
सोने की चिडिय़ा और हडिड्डयां
सब कुछ इनकी भेंट हो गए।
जेल से हंसते बाहर आते
जैसे कितने ग्रेट हो गए।
शर्म से रखा नहीं वास्ता
जहां देखा, लमलेट हो गए।
जनता अब भी अगर न जागी
फिर मत कहना, लेट हो गए।
-सतीश कसेरा
अबोहर;पंजाब
--
सुरेश कुमार 'सौरभ'
रचना वर्तमान में मुजफ्फरनगर में हो रहे दंगे पर है-
न हिन्दू मरा है, न मुसलमान मरा है ।
इंसानियत मरी है और इंसान मरा है ।।
₹ ₹ ₹ ₹ ₹
कटते हैं भाल रक्त की नित बह रही गंगा ,
कुछ शान्ति के दुश्मन कराके हँस रहे दंगा ,
इनका न भाई-बन्धु, न मेहमान मरा है ।।
न हिन्दू मरा है, न मुसलमान मरा है ।
इंसानियत मरी है और इंसान मरा है ।।
₹ ₹ ₹ ₹ ₹
दंगे की भेंट तो सदा निर्दोष ही चढ़े ,
दोषी लगाके आग देखते खड़े-ख़ड़े ,
बच्चा मरा, बूढ़ा मरा, जवान मरा है ।।
न हिन्दू मरा है, न मुसलमान मरा है ।
इंसानियत मरी है और इंसान मरा है ।।
₹ ₹ ₹ ₹ ₹
'गेहूँ के साथ घुन पिसे' बदलो मुहावरा ,
दोषी को सिर्फ दंड मिले हो परम्परा ,
क़ानून, विधि-विधान, संविधान मरा है ।।
न हिन्दू मरा है, न मुसलमान मरा है ।
इंसानियत मरी है और इंसान मरा है ।।
₹ ₹ ₹ ₹ ₹
फिर इस अखण्ड देश के हुए हैं खण्ड-खण्ड ,
सौहार्द-एकता को चोट लगी है प्रचण्ड ,
कट्टरपने में पुन: हिन्दुस्तान मरा है ।।
न हिन्दू मरा है, न मुसलमान मरा है ।
इंसानियत मरी है और इंसान मरा है ।।
₹ ₹ ₹ ₹ ₹
भारत ग़ुलाम था, तभी लगता है ठीक था ,
कम से तो कम हिन्दू व मुसलान एक था ,
'सौरभ' वो भाई-चारा ही, महान मरा है ।।
न हिन्दू मरा है, न मुसलमान मरा है ।
इंसानियत मरी है और इंसान मरा है ।।
₹ ₹ ₹ ₹ ₹
--
हिन्दी-दिवस-विशेष रचना :-
* * *
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।।
* * *
'इंडिया' वाले अंग्रेजी ही छाँट रहे हैं,
थूक गए अंग्रेज उसे ही चाट रहे हैं,
कब हिन्दी का इनके मुँह गुणगान होगा ?
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
* * *
बिनकारण क्यों लोग यहाँ अंगरेजी झाड़ें ?
अपनी ही भाषा का ये क्यों आँचल फाड़ें ?
कबतक निजभाषा का यूँ अपमान होगा ?
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
* * *
नीति चीन-जापान की अपनाएगा जो,
अपनी ही भाषा को उपर लाएगा जो,
उसी राष्ट्र का लगातार उत्थान होगा ।।
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
* * *
हिन्दी अपने भारत-माता की ममता है,
स्नेह जगाने की इसमें अदभुत् क्षमता है,
मन से मन को मिलवाना आसान होगा ।।
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
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हिन्दी को क्यों अंगरेजी से कम तोलें हम?
हिन्दी में क्या कमी है जो इंग्लिश बोलें हम?
शब्दकोश इसका उससे धनवान होगा ।।
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
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हिन्दी भाषा के प्रयोग से कतराना क्या ?
झिझक-लाज-संकोच इस तरह दिखलाना क्या ?
पढ़ो-लिखो-बोलो हिन्दी सम्मान होगा ।।
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
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दामन अभी ग़ुलामी का हम पकड़े ही हैं,
अंगरेजी की बेड़ी में हम जकड़े ही हैं,
'इंडिया' से कब 'भारत' मुक्त महान होगा ।।
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
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हिन्दीभाषी के उपर तू कभी न हँसना,
हिन्दी वाले को कम तू मत कभी समझना,
सम्भव है तुझसे ज़्यादा विद्वान होगा ।।
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
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'सौरभ' हिन्दी की सेवा में लीन रहूँगा,
तबतक मैं इसका आदर-सम्मान करूँगा,
जबतक मेरे तन में मेरा प्राण होगा ।।
हिन्दी होगी तब ये हिन्दुस्तान होगा ।
ना जाने कब लोगों को ये ज्ञान होगा ।।
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(हिन्दी दिवस पर कविता)
जय हिन्द जय हिन्दी बोलो
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मनोज 'आजिज़'
मुल्क हमारा हिन्दोस्तां है
करते सभी गुणगान
एक सूत्र में बंध जाएँ सब
है हिन्दी का आह्वान ।
विविध भाषाएँ, विविध बोलियाँ
और विविध है जीवन-शैली
हिन्दी ही तो राष्ट्रभाषा बन
हर हृदय में है फैली ।
हिन्दोस्तां की हिन्दी अब तो
विश्वपटल पर छायी है
देश, विदेश, महादेश में भी
करोड़ों को यह भायी है ।
आदि, रीति, भक्ति में ही
सिमट कर नहीं रह पाई है
ज्ञान, विज्ञान, इन्टरनेट पर भी
हिन्दी आज खूब हावी है ।
जय हिन्द, जय हिन्दी बोलें
जय घोष हिन्दी की कर लें
युग-युग यह भाषा जीये
यह प्रभु से विनती कर लें ।
पता- इच्छापुर, ग्वालापाड़ा , पोस्ट- आर. आई.टी.
जमशेदपुर -- 14 , झारखण्ड, भारत
फोन- +91 9973680146
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