कहानी माहिम पर प्रार्थना - अजय गोयल ढोलक की तत्काल व्यवस्था पाली हिल की उस बारह मंजिला इमारत में नहीं हो सकी। खचाखच भरे हॉल में 'रिं...
कहानी
माहिम पर प्रार्थना -
अजय गोयल
ढोलक की तत्काल व्यवस्था पाली हिल की उस बारह मंजिला इमारत में नहीं हो सकी। खचाखच भरे हॉल में 'रिंग सेरेमनी' के लिए आए उन छ: सदस्यों के अलावा कोई अन्य उत्तर भारतीय नहीं था। अन्य परिवार मुम्बई वाले थे, जिनकी जड़ें अलग-अलग प्रान्तों में थीं।
नवीन ने विभा को रिंग पहनाई। इसके बाद परम्परा अनुसार विभा का श्रृंगार होना था। जबकि विभा की निमन्त्रित कुछ सहेलियों के सवालों में नवीन उलझ गया। यह युद्ध उसे अकेले ही लड़ना था। उसने लड़ा भी और सटीक उत्तर दिए। दूसरे अर्थों में सहेलियों ने छान लिया। ठोक-बजा भी लिया कि नवीन अप्रवासी भारतीय है। उस समय मम्मी थोड़ी अनमनी हो गई थीं। उन्होंने महसूस किया अपना क्षेत्र होता तो...? तब नायन साथ होती। ढोलक की थाप पर ताल से बँधी घर-भर की महिलाएँ नाचतीं-गातीं। यहीं से सासू का लाड़-प्यार बहू के लिए शुरू होता है और इसी प्यार के सहारे एक औरत जिन्दगी भर अपने आपको सींचती है। पकाती है।
विभा का मृंगार करती जेठानी सरला ने मम्मी को समझाया, “ढोलक यहां कहां से मिलेगी? हम अपने गीत बिना इसके नहीं गा सकते क्या ?”
इंटरनेट के माध्यम से नवीन का सम्बन्ध विभा से तय हुआ था। नवीन ने पसन्द किया। वह परम्पराओं को जीते हुए अपना विवाह सम्पन्न करना चाहता था। उसके पिता शर्माजी को अहसास था कि उनकी भूमिका आशीर्वाद देने वाले खिलौने जैसी रह गई है। उनके सामने वक्त्र की करवटें थीं। समय सम्बन्ध तय करने वाले नाई-नाइन के हाथ से निकल अखबारी विज्ञापनों की गलियों में घूमकर इंटरनेट की परिधि में पहुँच चुका था। ढोलक की व्यवस्था न हो सकने पर विभा आहत हुई। उसने अपने पिता और भाई नकुल की तरफ देखा, दोनों असहाय थे। कुछ क्षणों के लिए ढोलक के सामने पाली हिल कमतर हो गई थी। सुबह जब दिल्ली से मुम्बई सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन पहुंचे, उस समय सरला में बच्चों जैसी बेचैनी थी। वह उड़कर पाली हिल पहुंचना चाहती थी, क्योंकि 'सिल्वर स्कीन' से लेकर अखबारों तक में अबीर-गुलाल उड़ाने वाले चमकते फिल्मी सितारों का हिल पर जमावड़ा है।
तपन सरला को बार-बार समझा रहा था, “फिल्मी सितारे आसमान के सितारे नहीं हैं, जो हर रात हमारी छत पर मुफ्त मेँ चले आते हैं। '' फिर भी रास्ते भर सरला की नजरें सड्कों को टटोलती रही थी।
छठी मंजिल पर गेस्ट हाउस था, जिसकी खिड़कियों से सूरज की खरीज में झिलमिलाती समुद्र की फैली चादर दिखती थी। विभा के पिता मि. राठी ने बताया कि यहीं जिस फ्लैट की समुद्र से सीधी मुठभेड़ है, उसकी कीमत में दो-एक करोड़ तो अलग से जुड़ जाते हैं।
एक कम्पनी के अधिकारी हैं मि. राठी और मुम्बई वाले भी, क्योंकि तीन-चार पीढ़ी तक पहले उनके परदादा मुम्बई में आ बसे थे। कम्पनी की तरफ से पाली हिल पर उनका एक फ्लैट मिला हुआ था। रेलवे स्टेशन से कदम-कदम पर साथ थे। कम्पनी का गेस्ट हाउस था, जिसमें उन्होंने सबकी ठहरने की व्यवस्था कर दी थी। सरला क्या? मम्मी तक विभा के श्रृंगार के समय कोई पारस्परिक मांगलिक गीत पूरा नहीं कर सकीं। किसी गीत का मुखड़ा पूरा होता, तो कोई बीच में ही छोड़ना पड़ता। उन्हें पहली बार नायन के महत्व को अनुभव हुआ। उत्सवों में ढोलक बजाने के साथ गाते-गाते नाइन आहिस्ता-आहिस्ता गीत की पंक्तियाँ भी पकड़ाती जाती। उन्हीं पंक्तियों को अन्य महिलाएँ ऊँची आवाज में गाकर गीतों की फुहारों से घर को सराबोर कर देतीं।
“जब कोई याद नहीं आ रहा, तो जन गण मन ही गा दो।” तपन ने सरला को छेड़ते हुए कहा। इसके साथ एक हँसी का ताजा झोंका हाल में घुस आया था। सरला और मम्मी गुस्से में भी हँसने को विवश थीं। बाद में फिल्मी गीतों की धुनों ने हाल में पसरी विविधता को एकता के सूत्र में पिरो दिया।
हँसते-खेलते समय को अकस्मात ही मि. राठी ने गम्भीर मोड़ दे दिया। जब वे कोका कोला लेकर तपन के सामने उपस्थित हो गए। विनीत मुद्रा में बोले, “बेटा तपन, आपने कोल्ड ड्रिंक्स नहीं ली। नकुल पूछ गया। मेरा छोटा भाई भी। किसी बात से नाराज हो क्या ?”
संगीत ठहर गया था। तनाव की रेखाएँ नवीन और पिताजी के चेहरों पर झाँकने लगी थीं। बीच-बचाव के लिए सरला उठी, बोली - “मौसाजी, आप इसे अन्यथा न लें। कोकाकोला ये पसन्द नहीं करते। '' मि. राठी से बातें करते हुए उसने गिलास उठाकर तपन के हाथ में पकड़ा भी दिया था।
इसके साथ ठहरा फिल्मी संगीत एक बार फिर धड़कने लगा। उस रात सामूहिक प्रतिभोज के समय नवीन अपने भाई तपन से खींच रहा। पिताजी उसे जरूर हडका गए, “हर जगह पागलपन! मल्टीनेशनल कम्पनियों के विरोध में झंडा गाड़ना चाहते हो पर भगवान की लीलाओं का आखों देखा हाल बताने वाले तक पेप्सी और कोकाकॉला के चटोरे हैं। लस्सी यदि विदेशों से आने लगे, तो तुम्हारे तमाम देशी रणबाँकुरे उसमें दंड पेलना शुरू कर देंगें, पर तुम हो कि अपनी हरकतों की वजह से यहीं भी अलग पहचान लिए गए। अच्छा होता जो तुम यहीं नहीं आते। वहीं धरने पर विराजे रहते। ''
अन्तिम टुकड़े गटककर तपन ने जल्दी-जल्दी पानी पिया। गेस्ट हाउस चला आया।
“धरने से मोह भंग न होता तो क्यों मुम्बई आता मैं ?'' गेस्ट हाउस में बैठा-बैठा तपन अपनी इस उधेड़-बुन में पिसता रहा। उसे लगा था कि धरने से एक मूवमेंट की शुरूआत हो सकती थी। वह एक कोना था, जिसे पकड़कर अपने आप बिलोया जा सकता था। गाँधीजी की मूर्ति के नीचे अपने क्लब और अन्य संगठनों के साथियों के साथ इसी उम्मीद की डोर के साथ बैठा जा सकता था। क्लब के सदस्य पेशेवर धन्धे से थे। डाँक्टर, इंजीनियर और उस जैसे बिजनेस मैनेजमेंट वाले। विधायक भी साथ था, पर जल्द तपन की डोर टूटने लगी। विधायक इसलिए साथ था, क्योँकि कॉन्वेंट स्कूल ने उसकी दो सिफारिशों को धूल चटा दी थी जिस वजह से वह बड़ी लड़कियों की पीटी क्लास में स्कर्ट उठाकर एक मल्टीनेशनल कम्पनी की बनी स्लैक्स देखने के प्रकरण में ज्वालामुखी बन बैठा था। कॉन्वेंट स्कूल मैं क्लब के बहुत से साथियों की लड़कियाँ पड़ती थीं। इसलिए सब धरने में सम्मिलित हुए। वहाँ तपन पूछकर शुरूआत करना चाहता था, “हम बिजली चाहते हैं या सुगन्धित तेल। इस्पात चाहते हैं या टूथपेस्ट
क्योंकि टूथपेस्ट या तैल बेचने वाली विदेशी कम्पनियाँ मुनाफा बटोरकर अपने-अपने देशों मैं चढ़ा आती हैं।” धरने पर बैठे तपन को महसूस हुआ, लोगों के सपनों में बस मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स का रंग घुला है। जो अपनी बच्चियों को कम-से-कम मिस सिटी बनाकर फिल्मी सीढियाँ चढाना चाहते हैं, या विज्ञापनों की दुनिया का गोताखोर बनाना चाहते हैं। इसके लिए चाहे नंगा बदन कर सफलता का सिलसिला क्यों न शुरू करना पड़े। तपन ने सोचा, फिर स्कर्ट उठाने को रिहर्सल माना जाना चाहिए।
दूसरे दिन धरने के लिए तपन विधायक निवास पहुँचा। उस समय विधायकजी निकटस्थ लोगों से घिरे थे। बोले, “बच्चियों के प्रिंसिपल ने वियाग्रा वगैरह तो नहीं खा ली थी।”
हँसी का फव्वारा सबके मुँह से उबलने लगा था।
एक बड़ी-सी गाँधी जी की तस्वीर विधायक की कुर्सी के पीछे थी। उस समय उनके एक मुँह लगे साहब बोले, “साहब, ये वियाग्रा यदि गाँधीजी के जुमाने में होती, तो क्या होता ?”
“यार, फिर आजादी-वाजादी की किसे फुर्सत रहती ?”
तपन उस समय लौट आना चाहता था। अकस्मात विधायक जी गम्भीर हो गए। बोले, “बापू के नेतृत्व में इस देश ने विदेशी कपड़ों की होली खेली थी। आज वही देश विदेशी माल की पहरेदारी कर रहा है। ''
साधारण-सी बात कही थी विधायक ने। उसकी वाह-वाह भी नहीं हुई। इस बीच उन्हें कुछ सूझ गया था। इस बार उन्होंने बड़े दमखम के साथ शुरूआत की। बोले, “हमारे देश में कामसूत्र जैसा ग्रन्थ लिखा गया। बाहर के लोग वियाग्रा बनाकर इतरा रहे हैं। इतिहास गवाह है, हमारा विज्ञान इतना ऊँचा था कि चाहने से वृद्ध ययाति राजा को पुत्र का यौवन प्राप्त हो गया। इसके लिए कोई तो मन्त्र होगा या कोई औषधि? हमें खोजनी चाहिए। अपने वेद पुराण खँगालने चाहिए। वे ज्ञान के समुद्र हैं। पश्चिम ने तरक्की की है तो क्या? उनके पैर चाँद पर हैं, पर ध्यान तो वहीं हैं। बुढ़ापा तो बेबस होता है। जवानी मोल मिलने लगेगी तो मार-काट मच जाएगी, फिर विदेशी धन का प्रवाह अपने देश की ओर मुड़ जाएगा। खरबों के कारोबार में टनों की रायल्टी पक्की। तब इस देश को गरीबी, बेरोजगारी और पिछड़ेपन से मुक्ति मिलेगी। यही तो गाँधीजी चाहते थे। बता दिया न इलाज समस्याओं का। मेरा दिमाग कम्यूटर है, कम्प्यूटर। '' इसके साथ विधायकजी को पोर-पोर आत्म-प्रशंसा की गंगा में डूब गया था। तपन को पहली बार महसूस हुआ था कि अपनी नैया के केवट उन्मादी हैं। युवावस्था की अदला-बदली का कोई मन्त्र हाथ लग जाए, तो हर सुबह की शुरूआत किसी की युवावस्था डँस कर करेंगे। युवावस्था के निर्यात को उद्योग में बदल देंगे।
तपन को ढूँढती हुई सरला गेस्ट हाउस तक आ गई। जहाँ वह टीवी. देख रहा था। सरला ने टीवी. बन्द किया और प्रश्नचिन्ह चेहरे पर उतारकर उसके सामने बैठ गई। धीरे से बोली, “चलें, सब लोग हमारा इन्तजार कर रहे है। '' साथ ही वह तपन को हाथ पकड़कर उठा लाई थी।
मि. राठी ने मुम्बई दर्शन की रूपरेखा विनायकजी के मंदिर से आरम्भ की। इसके बाद हैगिग गार्डन से शुरू कर वे गेट वे ऑफ इँडिया से गुजरते हए नरीमन प्वांइट तक पहुँच गए।
कोकाकोला प्रसंग के कारण पिताजी द्वारा तपन के साथ किए गए दुर्व्यवहार की सूचना सरला को थी। गेस्ट हाउस वापस आने तक वह तपन के साथ सुबह फ्ताइट से वापस जाने का मन बना चुकी थी। तपन ने समझाया, “हम मि. राठी के मेहमान हैं। यहाँ बहुत इसरार पर आए हैं। फिर कल की बात और है। कल घूमने में उड़ जाएगा और परसों थोड़ी खरीददारी करने के बाद वापस चल देना है। '' तपन का तर्क सरला को समझ आया और उसने माना भी। भाई और पिता से दूरी तपन को पिछले साल से महसूस होने लगी थी। नवीन कुछ दिनों के लिए विदेश से लौटा था। दिल्ली हवाई अड्डे पर उसे लेने के लिए तपन भी गया। फ्लाइट देर रात मैं आई थी। बाहर नवीन छींकता आया। बोला, “कितनी गर्द हैं यहाँ।”
लगभग दो साल बाद घर लौटा था नवीन। दिन भर गहमा-गहमी रही। रात उतरने पर पिताजी व्हिस्की लेकर बैठ गए। जश्न मनाने का यह उनका पुराना अन्दाज था। बेटे के आने की खुशी में उन्हें लग रहा था कि जुमाने के सीने पर अपना तिरंगा ठोक दिया है। इसके साथ बड़े आदमी बनने की वे कई सीढ़ियाँ एक साथ चढ गए। उन्होंने पहली बार अपने साथ उन दोनों को भी दावत दी।
एक-एक पैग उतारने के बाद उन तीनों को अपना-अपना शरीर गुनगुनी जैसी धूप में सिकता हुआ लगा। तपन को उस दिन पिता के चेहरे के तिलिस्म से बहुत पुराना जवान चेहरा झाँकता हुआ अनुभव हुआ था।
उस जश्न के समय पिताजी बोले, “एक आम हिन्दुस्तानी के पास महान् बनने का एक ही रास्ता है। वह विदेश चला जाए।” नवीन थोड़ी पीकर उस समय बहुत बहका था। देश छोड़ने के बचे-खुचे अपराध-बोध से निपटते हुए वह बोला, “डैडी, जहाँ सिल्वर स्कीन पर हिन्तु-मुस्तिम जोड़े की शादी देखकर दंगा हो जाए। फिर उसमें सौ-पचास मर-खप जाएँ, तो वहीं रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। यह कोई आदमी होने का सबूत है ?”
आखिर मैं तपन की तरफ इशारा करते हुए पिताजी बोले, “थर्ड वर्ल्ड तो गन्दा नाला रह गया है अब। जो कीड़े नहीं बने रहना चाहते, उन्हें चले जाना चाहिए।”
पिता की तरह सरला भी तपन पर ताना कसती। कहती, “आप तो हाथ-पैर नहीं मारते। आपसे मेरा कम पढ़ा-लिखा भाई बेहतर है। अमेरिका में एक सर्विस में है। बीस डीलर प्रति घंटा के हिसाब से टनाटन कमाता हे। आपसे बहुत ज्यादा है। ''
तपन ने सरला को उत्तर दिया, “अमेरिका में कोई डीलर कमा कर रूपये नहीं खर्च करता, पर हम जब रूपये को इस तरह तौलते है, तो अपने आपको, अपनी जमीन को और अपनी सभ्यता तक को बौना मान लेते हैं। '' उस रात तीनों काफी देर तक साथ रहे। अन्त में नवीन के विवाह की चर्चा हुई। उस समय तपन नवीन से पूछना चाहता था कि तुम विदेश में बसना चाहते हो तो अपने घर को छोटा सा भारत क्यों बनाए रखना चाहते हो। परन्तु चुप रहा। जानता था कि उसके कहने का महत्त्व ही क्या है?
नवीन से तपन का संवाद मुम्बई के सफर के समय ट्रेन में नहीं हुआ। तपन को लगता कि वह कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर बोलता है। चाहता है, उसकी बात अक्षरश: शिरोधार्य की जाए। सफर के दौरान नवीन पिताजी को घटनाओं और आकड़ों का माया-जाल फैलाकर बताता रहा कि धीरे-धीरे एशिया के देशों की अर्थ-व्यवस्थाएँ किस तरह रेत के महल की तरह ढहती चली जाएंगी और गुलामों जैसी स्थिति हो जाएगी, सम्पूर्ण क्षेत्र की।
दूसरे दिन सुबह विभा को जीन्स और शर्ट में देख मम्मी को चक्कर आ गया। सरला ने स्थिति संभाली। उसने विभा को गेस्ट हाउस से वापस भेजा। सलवार-सूट पहनकर आने की हिदायत दी। चिढ़ी मम्मी कल से थीं, क्योंकि विभा की दो-तीन सहेलियाँ 'रिंग सेरेमनी' में स्कर्ट और बूट्स पहन आई थीं।
- “चकराने के सिवा बचता क्या है? जब हम पश्चिमी मॉडल का क्लोन बनने निकल पड़े हैं। आज का युग 'यंग एंड वाइल्ड' जैसे जुमले के सींचे में ढला, 'मूवर्स एंड सेकर्स' जैसी हसरतों से सजा और 'फन एंड लव' में रंगा लीला तरी है। इसकी लीलाओं को श्रद्धा-भाव से देखो! असीम सुख मिलेगा। फिर नवीन विदेश में विभा को स्कर्ट पहनाना चाहता है। साडी की ड्राईक्लीन वहाँ बजट बिगाड़ देती है।” इतना कुछ समझाकर तपन मम्मी का क्षोभ दूर करना चाहता था।
'मुम्बई दर्शन' के दौरान अपनी एयर-कंडीशन गाड़ी में मि. राठी ने बैठे-बैठे अपने सम्बन्धों के मकड़जाल में झुलाते हुए सबको विश्व-दर्शन करा दिए। विनय की आखों में ऊँची-ऊँची सीढ़ियाँ झाँकने लगी थीं। उन्होंने बताया कि नकल भी तैयार है। कुछ मह्रीनों में विदेश चला जाएगा। फिर यहीं की फिजा में ज्हर पुल गया है। सब एक-दूसरे के खिलाफ पाँच हजार वर्ष पुराना बहीखाता खोले बैठे हैँ। आजादी की लड़ाई में जो मरे, शहीद कहलाए, पर इस लड़ाई में मरने वालों को काफिर तक नहीं माना जाएगा। कब तक चलेगी हिसाब-किताब की लड़ाई, पता नहीं? मैं सोचता हूँ हमारे नेता इतने ही अपने आपको मर्द बनते हैं, तो करें अंग्रेजों से हिसाब-किताब। जिन्होंने दो सौ साल में हमें चूसकर निचोड़ लिया।
वे सब नरीमन प्वाइंट पर आ पहुंचे थे। सामने समुद्र में बच्चों जैसी किलकारियाँ भरती लहरें उठ रही थीं। सबकी आखों में समुद्र उतार आया। किसी-किसी के मुँह से कोई गीत झरने लगा।
शाम को अल्पाहार के समय मि. राठी ने विभा के लिए बनवाई गई ज्वैलरी दिखाई। लगभग सौ तोले के स्वर्णाभूषण थे। बाद में सरला ने तपन को चहकते हुए बताया, “मम्मी मुझे भी एक सेट दे रही हैं। इससे भी क्या कम लूँगी। आखिर देवर की शादी है।”
गेस्ट हाउस में लौटते समय तपन चुप रहा। सरला को अच्छा नहीं लगा, पर वह तपन का उत्तर जानती थी। “हमारे घरों में तीस हजार टन सोना दफन है। इसलिए श्मसान-सा बना हुआ है यह मुल्क। हम सबसे ज्यादा गरीब हैं। सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं, पर सबसे ज्यादा हर साल सोना घरों में गाड़ देते हैं। इसमें कोई समीकरण नजर आता है क्या ?” गेस्ट हाउस में नकुल आया था। पूछने लगा, “आप खरीददारी के लिए बाजार चलेंगे? या विभा के साथ माहिम जाना पसन्द करेंगे ?”
सरला अनमनी-सी हो गई थी। मन अच्छा न हो तो, खरीदने में भी कहीं लगेगा, सोचा उसने। बोली, “माहिम जाएँगे। ''
चाचाजी उगैर पिताजी के साथ मि. राठी विवाह समारोह की विस्तृत रूपरेखा बना रहे थे। नवीन समारोह को इंटरनेट के माध्यम से अपने विदेश स्थित दोस्तों को दिखाने की घोषणा कर चुका था। तपन बुलाए जाने पर भी रूपरेखा बनाने में सम्मिलित नहीं हुआ। उसने सिरदर्द का बहाना बना लिया था। इस पर सरला झुँझला तक गई। गुस्से में बोली, “आपका जो शेखचिल्ली जैसा सपना है कि सब लोग अपना-अपना सोना निकाल दें, पर निकाल देने पर क्या होगा, सोचा है? यहीं के नेता उसे लूटकर स्विस बैंकों में भर देंगे। आज कोई सुभाष है क्या? जब थे, तो उनके खून माँगने पर उनको सोने से तौला भी था लोगों ने। ''
तपन अवाक् रह गया था।
विभा आ गई थी। दोनों व्यवस्थित हुए। मुस्कराने लगे।
विभा भोर-सी मासूम लग रही थी। सरला ने उसे गले से लगा लिया। सरला के पास बैठकर बोली, “भाभी, सारी मुम्बई में माहिम के चर्च के लिए श्रद्धा है। बहुत भीड़ रहती है। मैंने जो भी मन्नत माँगी, पूरी हुई। मैं बाहर जाना चाहती थी। मैँ चाहती थी कि नकुल के जाने की भी जल्दी व्यवस्था हो जाए। आज मैं ...।''
सरला ने विभा के मुँह पर हाथ रख दिया। विभा मुस्कराने लगी।
''माहिम तो हर इतवार को तुम जाया ही करोगी। मेरी भी एक केंडिल लेकर जाना।'' तपन ने विभा से कहा। ''आपकी कौन-सी मन्नत है?'' सरला बोली।
वे दोनों दो कदम आगे थीं। तीनों गेस्ट हाउस से निकल रहे थे। तपन का कहा सरला सुन नहीं पा रही थी।
---
- अजय गोयल
निदान नर्सिग होम
फ्री गंज रोड
हापुड़ - 2451०1
ek bar phir yadgar kahani mili
जवाब देंहटाएं