नाचते हुए मोरनी को देखकर शारदेन्दु शेखर घोस मुग्ध हो रहे थे और सोच रहे थे कि ईश्वर ने मोर पक्षी को निहायत सुंदर बनाया परंतु उसके पांव इतन...
नाचते हुए मोरनी को देखकर शारदेन्दु शेखर घोस मुग्ध हो रहे थे और सोच रहे थे कि ईश्वर ने मोर पक्षी को निहायत सुंदर बनाया परंतु उसके पांव इतने कुरूप क्यों बनाए ? फिर सोचते शायद आत्ममुग्धता से मोर को बचाने के लिए․
शारदेन्दु शेखर घोस ने अपने एनिमल फार्म में बहुत से पशु और पक्षियों को पाल रखा था जैसा कि घोस बाबू के दादा और पिता के जमाने से चला आ रहा था․ घर के पीछे से होती हुई एक व्यक्तिगत सड़क फार्म को जाती थी․ घोस बाबू के रिश्तेदारों, मित्रों एवं शहर के लोगों के बीच एनिमल फार्म के चर्चे थे․ घोस बाबू के यहां अतिथियों के आने-जाने का तांता लगा रहता था और अतिथिगण भी बिना फार्म हाउस का आनंद लिए वापस नहीं जाते थे․
आत्मकेन्द्रित होती जिंदगी में पशु और पक्षियों पर कौन ध्यान देता है आज परंतु इसके विपरीत घोस बाबू के फार्म में कई पशु और काफी मात्रा में पक्षियां निवास करती थी जिसका पूरा-पूरा ध्यान घोस बाबू रखते थे․
घोस बाबू के एनिमल फार्म का मुख्य आकर्षण था नीलू नामक एलसेशियन नस्ल का कुत्ता और एक हिरण की छोटी सी बच्ची नीशू․ दोनों के बीच कोई समानता नहीं रहने के बावजूद दोनों की प्रगाढ़ मित्रता देखने वालों के कौतूहल का विषय बनी हुई थी․ नीलू और नीशू घोस बाबू के दो बीघा में फैले फार्म में साथ-साथ घूमते, खेलते, खाते-पीते नजर आते थे․ एक भी दिन दोनों एक दूसरे से अलग नहीं रहते․ नीशू जो अभी बहुत ही छोटी और मासूम थी जब वह अपने छोटे-छोटे पैरों से कुलाचें भरती तो पीछे-पीछे नीलू भी दौड़ता, इस नजारा को देखने से ऐसा प्रतीत होता कि नीलू नीशू को दौड़ना सीखा रहा हो․ नीशू भी नीलू के साथ खूद को सुरक्षित महसूस करती․ घोस बाबू को नीलू और नीशू बहुत ही प्रिय थे तथा नीलू को नीशू को साथ-साथ देखकर घोस बाबू इत्मीनान रहते थे कि नीशू को किसी तरह का खतरा नहीं है․
एनिमल फार्म का दूसरा आकर्षण था एक गिलहरी और एक सफेद रंग का छोटे से खरगोश की मित्रता․ भूरे रंग की छोटी सी गिलहरी और सफेद रंग का छोटा सा खरगोश साथ-साथ फार्म में धमा-चौकड़ी मचाते रहते थे․ गिलहरी दौड़ती हुई जब विशालकाय नीम के पेड़ की टहनियों में चढ़ जाती तो छोटा सा प्यारा खरगोश अपनी लाल-लाल आंखों से गिलहरी को निहारता रहता मानो याचना कर रहा हो कि पेड़ से नीचे आ जाओ․ गिलहरी पेड़ के उपर से नीम के छोटे-छोटे फलों को तोड़कर गिरा देती और उन फलों को जब खरगोश अपने मुंह में लेता तो तीता लगने पर गिलहरी पर क्रोधित हो जाता था और चुपचाप पेड़ के जड़ के नीचे जाकर बैठ जाता और कई तरह का शक्ल बनाते हुए मुंह चलाता रहता मानो तीतापन को पचा जाना चाहता हो․ गिलहरी ये सब देखकर आनंद लेती रहती और तब पेड़ से नीचे उतर आती तथा अपने मित्र खरगोश को दौड़ने के लिए प्रेरित करने लगती․ गिलहरी और खरगोश एक-दूसरे के पीछे भागने लगते हालांकि जीत हमेशा गिलहरी की होती क्योंकि उसे जब थकावट महसूस होती, वह पूंछ उठाकर पेड़ के किसी टहनी पर दनदनाती चढ़ जाती और खरगोश पेड़ के जड़ के नीचे आकर ठिठक जाता․
पक्षियों में घोस बाबू के फार्म का आकर्षण था एक तोता और एक मैना की जोड़ी․ तोता का नाम मिट्ठू मिंया और मैना को घोस बाबू मिटकी कहा करते थे․ वैसे तो फार्म में कई तोता और मैना एक बड़े से कमरानूमा जाली के पिंजरे में रहते थे लेकिन मिट्ठू और मिटकी की मित्रता चर्चा का विषय बनी हुयी थी․ मिट्ठू और मिटकी अपने बड़े से कमरानुमा पिंजरे में हमेशा साथ-साथ ही देखे जाते․ एक दिन मिट्ठू मिंया को बुखार हो गया था, मिटकी उस दिन बहुत उदास सी थी․ अपने नन्हें-नन्हें चोंच से पानी का एक-एक बूंद लाकर मिट्ठू मिंया को पिलाती और उसके पास ही पिजंरें के जाली पर लटकी रहती․ मिट्ठू मिंया को मिटकी के रूप में अच्छा तीमारदार मिल गया था․ कहते है दवा से ज्यादा तीमारदारी से रोगी ठीक हो जाता है और यही हुआ मिट्ठू के साथ, वह भी दो दिन बाद भला चंगा हो गया․ घोस बाबू मिट्ठू को ‘आमी तोमा के भालो बासी' अर्थात मैं तुम्हें प्यार करता हॅूं, बोलना सिखा दिया था․ मिट्ठू चंगा होने के बाद मिटकी को ‘आमी तोमा के भालो बासी' कहा करता था, मिटकी शरमा जाती थी․
एनिमल फार्म में पशुओं एवं पक्षियों के बीच सौहार्दपूर्ण जीवनयापन को देखकर घोस बाबू को बाहर की दुनिया से ज्यादा अच्छा अपना एनिमल फार्म ही लगता था․ बाहर की दुनिया में फैली लूट-खसोट, हिंसा, भ्रष्टाचारी, घृणा, द्वेष घोस बाबू को चिंतित करती थी लेकिन घोस बाबू जब भी बाहर की दुनिया से तालमेल नहीं बिठा पाते तो अपने फार्म चले जाते थे जहां नाचती हुयी मोरनी, कुलाचें भरते नीलू और नीशू, दौड़ते गिलहरी और खरगोश, प्यार करते हुए मिट्ठू और मिटकी को देखकर घोस बाबू का मन तृप्त और आनंदित हो जाता था․ घोस बाबू के फार्म में एक बड़ा सा पोखरा था जिसमें दर्जनों बत्तक और एक राजहंस भी थे․ पोखरा में आगे-आगे राजहंस और उसके पीछे दर्जनों बत्तके इधर से उधर तैरते हुए काफी मनोरम दृश्य सृजित कर देते थे․ पोखरा के किनारे-किनारे लगे फलदार वृक्षों के साए तले घोस बाबू बैठ कर ये नजारा देखते और आनंदित होते रहते थे․
घोस बाबू ने फार्म में ठहरने के लिए एक घास-फूस का क्वार्टरनूमा घर भी बनवाया था जहां वे सप्ताह और कभी-कभी तो महीनों रहते थे․ समरू नामक रसोईया उनके साथ ही फार्म में रहता था जो घोस बाबू के क्वार्टर में रहने, खाने-पीने का इंतजाम करता था․ समरू के साथ मिलकर घोस बाबू का फार्म में कार्य यह होता था कि वे सभी पशु-पक्षियों से मिलते थे, पक्षियों के लिए पेड़ों पर रहने का घोंसला बनवाते थे, कई कड़े पेड़ों पर रहने के लिए मचान भी बनवाते थे जिसपर घोस बाबू लकड़ी की सीढ़ी से चढ़कर अपनी दूरबीन से फार्म का कोना-कोना का मुआयना करते थे․ फार्म में अपने प्रवास के दौरान अगर कोई रिश्तेदार घोस बाबू के यहां आते तो उन्हें भी घोस बाबू अपने साथ क्वार्टर के बगल के कमरे में रहने की व्यवस्था करा देते थे․
भादो का महीना शुरू हो चुका था․ घोस बाबू के एक एनआरआई मित्र पियूष सक्सेना अमेरिका से आए हुए थे․ पीयूष सक्सेना बड़े तामसी प्रवृति के व्यक्ति थे․ रात के खाने के पहले अच्छे किस्म का ‘वाइन' भूने हुए मुर्गे, बत्तक, तीतर-बटेर वगैरह के साथ लेना पसंद करते थे․ पीयूष सक्सेना को घोस बाबू से न जाने क्यों ईर्ष्या सी होती थी․ शायद अमेरिका में यांत्रिक हो चुकी उनकी जिंदगी घोस बाबू के सादगी भरे जीवन से ईर्ष्या का कारण रहा हो․ पीयूष बाबू जब भी सुनते की घोस बाबू एक पखवारे से एनिमल फार्म में रह रहें है तो घोस बाबू की पत्नी को फोन पर यह सोच कर उकसाते रहते थे कि घोस बाबू और उनकी पत्नी में नोंक-झोंक हो पर घोस बाबू की पत्नी दीन-दुनिया से गाफिल रहने वाली शांत स्वभाव की स्त्री थी, जो अपने गृहस्थी में खुश रहना जानती थी․ पीयूष बाबू की बातों का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था․
इस बार जब पीयूष बाबू भारत आए थे तो अपने मित्र घोस बाबू के शांतिपूर्ण जीवन में खलल डालने की सोच कर आए थे․ पीयूष बाबू को मौका भी अच्छा मिला, जब उन्हें पता चला कि घोस बाबू इन दिनों फार्म-प्रवास में है․ पीयूष बाबू भी फार्म-प्रवास कर गए और प्रतिदिन शाम को अतिथि सत्कार में घोस बाबू उन्हें अच्छी ‘वाइन' और भूने हुए मुर्गमुसल्लम उपलब्ध कराते रहे․ घोस बाबू के फार्म में बहरहाल बहुत सारे मुर्गे और मुर्गियां का जमावड़ा तो था ही इसलिए पीयूष बाबू को भूने हुए मूर्गमुसल्लम खिलाने में घोस बाबू को कोई आपत्ति भी नहीं थी․ पीयूष बाबू का फार्म-प्रवास सप्ताह भर से उपर हो चला था․ घोस बाबू द्वारा किए जा रहे अतिथि सत्कार से उन्हें जलन सी हो रही थी․ पीयूष बाबू खूद किसी अतिथि को अपने यहां अमेरिका में बर्दाश्त नहीं कर सकते थे, उन्हें बस अपने छोटे परिवार एक पत्नी और दो संतानों से ही मतलब था․ वे घोस बाबू के चेहरे पर अतिथि सत्कार करते हुए चिंतित देखना चाहते थे पर घोस बाबू के चेहरे में हरदम व्याप्त खुशी को देखकर पीयूष बाबू ने एक शाम ‘वाइन' गटकने के बाद घोस बाबू की परीक्षा लेनी चाही․ पाइप में तंबाकू ठूंस कर जलाते हुए पीयूष बाबू ने अपने मित्र घोस बाबू को कहा, यार तुमने तो मेरे सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी लेकिन मेरा पापी मन संतुष्ट नहीं हुआ है․
घोस बाबू सब कुछ बर्दाश्त कर सकते थे पर घर आए अतिथि उनके सत्कार से असंतुष्ट रह जाए, ये कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे․ पीयूष बाबू का शातिर दिमाग यह सब समझता था इसलिए पीयूष बाबू ने ऐसी भूमिका बांधी थी․ घोस बाबू ने अपने एनआरआई मित्र से उन्हीं के भाषा में पूछा कि वे क्या करें जिससे उनका पापी मन संतुष्ट हो जाए․ पीयूष बाबू पर ‘वाइन' की खुमारी चढ़ चुकी थी, पाइप से तंबाकू का गहरा कश लगाते हुए पीयूष बाबू ने कहा, यार, आज मैं तुम्हारे फार्म में टहल रहा था तो मुझे एक हिरण का बच्चा दिखा․
घोस बाबू ने कहा कि हाँ उसका नाम नीशू है, उसकी नीलू नामक एलशेसियन डॉग से मित्रता इस फार्म का मुख्य आकर्षण है․ दोनों में कोई समानता नहीं फिर भी दोनों की मित्रता उदाहरणीय है․
पीयूष बाबू ने कहा, हाँ, हाँ, वही हिरण के बच्चे का मांस मुझे खाना है․ हिरण का मांस तो मैंने बहुत खाया परंतु हिरण के बच्चे का मांस की बात ही कुछ और है․
घोस बाबू स्तब्ध रह गये․ कल्पना में भी नीशू की हत्या के संबंध में नहीं सोचा जा सकता था․ घोस बाबू ने टालने की नियत से अपने मित्र को समझाया कि हिरण की हत्या कानून अपराध है इसलिए․․․․․․․․पीयूष बाबू बीच में ही बात काटते हुए कहा कि यार, हिरण का बच्चा तुम्हारी व्यक्तिगत संपत्ति है․ इसके अलावे तुम्हारे फार्म में कोई पहरा तो है नहीं․ अब फैसला तुम्हें करना है कि अपने घर आए अतिथि को पूर्ण रूप से संतुष्ट भी कर पाते हो या नहीं ?
घोस बाबू हतप्रभ से हो गए थे लेकिन उन्होंने सोचा अतिथि को रूष्ठ नहीं किया जा सकता․ लंबे समय से अतिथि सत्कार की परम्परा ने घोस बाबू तोड़ नहीं सके․ उन्होंने समरू को हिरण के मांस का इंतजाम करने का आदेश दे दिया․ समरू का मन हाहाकार कर उठा पर आदेश का गुलाम समरू क्या करता ? दूसरे दिन सूरज ढल जाने के बाद समरू नीशू को पकड़ कर ले आया, ले जाते हुए नीशू की मासूम आंखों ने नीलू को देखा, फिर समरू को देखा, उसे जरा भी भय नहीं लगा था क्योंकि सभी तो अपने थे, नीशू बिना प्रतिकार के समरू के गोद में बैठे वहां पहुंच गया था जहां उसका अंत होना था․
उस रात पीयूष बाबू नीशू के मांस को खाकर अपने पापी मन को संतुष्ट कर लिया था․ ईर्ष्या की हद तो तब हो गयी जब पीयूष बाबू ने जबरन घोस बाबू को भी नीशू का मांस खाने के लिए मजबूर कर दिया․ यद्यपि घोस बाबू ने मांस तो खाया पर बड़े शिद्त से सोचने लगे कि पीयूष बाबू जैसा अगर मित्र हो तो उन्हें दुश्मन की क्या आवश्यकता है․
रात को खाने में नीलू को दिए जाने वाला मांस समरू उसके कटोरे में डाल गया था․ नीलू ने मांस को छूआ तक नहीं अपनी सांघ्र शक्ति से उसे पता चल गया था कि मांस उसके प्रिय मित्र नीशू का है․ समरू सुबह को देखा कि नीलू भूखा ही रहा रात भर, उसके आंखों से बहता हुआ आंसू सूख कर उसके गालों पर दो सफेद धारी की तरह उग आए थे․
पापी मन को संतुष्ट कर पीयूष बाबू दूसरे दिन सुबह अमेरिका के लिए रवाना हो चुके थे․ नीलू अब शांत रहने लगा था, एनिमल फार्म के अन्य पशु-पक्षी भी नीशू के जाने के बाद बेहद उदास थे, उनके आंखों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अगर वे सभी बोल सकते तो घोस बाबू का जीना मुहाल कर देते․
घोस बाबू अतिथि सत्कार के परम्परा को निभा तो अवश्य दिए परंतु नीशू को खोकर उन्हें अपनी संतान को खो देने जैसा दुख हुआ था․ अपने को खो देने का जख्म बहुत ही गहरा था, अब वे अपने एनिमल फार्म से दूर-दूर ही रहते थे․
राजीव आनंद
सेल फोन - 9471765417
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