मुर्दाखोर /कहानी मजदूर बाप सुखीराम , नाम भर ही सुखीराम था।उसके जीवन में पग-पग पर कांटे और पल-पल दर्द था। ऐसे दर्द भरे जीवन में और मुर्दाखो...
मुर्दाखोर /कहानी
मजदूर बाप सुखीराम,नाम भर ही सुखीराम था।उसके जीवन में पग-पग पर कांटे और पल-पल दर्द था। ऐसे दर्द भरे जीवन में और मुर्दाखोरों यानि छुआछूत के पोषकों जाति के नाम पर कुत्ते बिल्ली जैसा दुर्व्यवहार करने वाले,पैतृक सम्पति हथियाने,आदमी होने का सुख छिन लेने वाले शोषक समाज के चंगुल में फंसा बंधुवा मजदूर सुखीराम सत्याग्रह कर बैठा था बेटे सुदर्शन को एम․ए․ तक पढ़ाने का।उसका सत्याग्रह पूरा भी हुआ था ।सुखीराम के सत्याग्रह की बात स्वामीनरायन बस्ती के मजदूरों से बड़े गौरव से कहता।वह बस्ती के मजदूरों को उकसाता रहता था कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें ना कि दबंग जमींदारों के खेत खलिहानों में मजदूरी करने को। स्वामीनरायन बी․ए․पास सुदर्शन को बतौर नजींर पेश करता।वह कहता बाप ने तो बहुत सत्याग्रह किया जमीदार की हलवाही करते हुए और अपने सत्याग्रह में पास हो गया। सुदर्शन को मजदूर बनाने की जमींदार की लालसा पूरी नही हो सकी।देखो वह शहर चला गया,भगवान उसकी मदद करें उसे बाप की तरह सत्याग्रह ना करना पड़े।
सुदर्शन गांव से शहर की ओर कूंच तो कर गया पर उसे शहर में कोई ठिकाना ना था कई बरसों तक शहर में नौकरी की तलाश में बावला सा फिरता रहा पर वह मेहनत मजूदरी करने में तनिक नही हिचकिचाया। मेहनत मजदूरी कर झुगी का किराया और खुराकी चलाने लायक कमाने लगा था। इस सबसे जो बचता वह अपने बाप का मनिआर्डर कर देता। बाप का लगता की बेटा सरकारी अफसर की नौकरी मिल गया। वह मूंछ पर ताव देते हुए कहता अरे बस्ती वालों तुम भी अपने बच्चों को उंची पढ़ाई करो। बिना पढ़ाई के नसीब नही बदलेगी,देखो मेरे बेटवा को हर महीने मनिआर्डर कर रहा है भले ही सौ रूपये का । सुदर्शन बस्ता के लिये उदाहरण बन गया था परन्तु बेरोजगारी की समस्या से उबर नही पा रहा था।पांच वर्ष की भागदौड़ और निराशा से दिल्ली में होकर भी उसे दिल्ली दूर लगने लगी।पल-पल बदलते दिल्ली के रंग में उसे दिल्ली सेे दूर जाना कैरिअर संवरने की तरकीब लगने लगा।वह इतना धनिखा तो था नही कि वह नौकरी खरीद सके। दिल्ली की मण्डी में झल्ली ढोकर मां बाप के सपनों को पूरा कर सके।दिल्ली में उसे अपना भविष्य मरता हुआ नजर आने लगा था।अन्ततः उसने दिल्ली को अलविदा कहने का मन बना लिया ।
एक दिन वह पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से रेल में बैठ गया,दूसरे दिन वह झलकारीबाई की त्याग भूमि की ओर प्रस्थान कर गया। रेल से उतरते ही वह रेलवे स्टेशन के मेनगेट से बाहर निकला और अपना भष्यि तलाशने निकल पड़ा । अनजान शहर में कई दिनों की भागदौड़ के बाद उसकी सोई नसीब ने करवट बदला और उसे एक अर्धशासकीय असत्कारी कम्पनी में अस्थायी कलर्क की नौकरी मिल गयी।क्षेत्र प्रमुख रामपूजन साहब ने शुरूआती दौर में शिक्षक की भूमिका में नजर आये। तीन महीना तक निश्चिन्तता के साथ नौकरी किया। चौथे माह के प्रारम्भ में रामपूजन साहब का तबादला हो गया।उनकी जगह रजिन्दर गिद्धू आ गये।गिद्धू साहब तो उपर से बड़े भलमानुष थे।सुनने में आया कि रामपूजन साहब का तबादला गिद्धू साहब करवाकर खुद कार्यालय प्रमुख बन गये। गिद्धू साहब के कार्यभार संभालते ही सुदर्शन पर मुसीबतों के पहाड़ गिरने लगे। गिद्धू साहब कहने को तो अहिंसावादी थे पर शोषित गरीब को आंसू और उसके भविष्य का कत्ल करने में उन्हें तनिक हिचक नही होती थी। सुर्दशन छोटी जाति का है गिद्धू साहब को यह खबर डां․विजय प्रताप साहब से लग गयी पहले ही लग गयी थी। अब क्या गिद्धू साहब कार्यालय प्रमुख बनते ही सुदर्शन को बाहर का रास्ता दिखाना तय कर लिये।इस षणयन्त्र में डां․विजय प्रताप साहब विभाग में जनरल मैनेजर थे उनका पूरा सहयोग गिद्धू साहब को मिल रहा था।इन्ही के षणयन्त्र से गिद्धू साहब कार्यालय प्रमुख बने थे जिनके अधीनस्थ तीन संभाग के दर्जनो जिले थे। मामूली ग्रेजुयेट गिद्धू साहब डां․विजय प्रताप साहब के अंध भक्त थे उनके लिये शबाब,शराब और कबाब की व्यवस्था गिद्धू साहब करते थे।जिसकी वजह से पूरे विभाग में गिद्धू साहब का रूतबा सबसे उपर था। रूतबे का प्रभाव दिखाकर गिद्धू साहब ने जातीय अयोग्यता के कारण सुदर्शन को नौकरी से निकलवा दिये।वैसे भी इस सत्कारी विभाग में अछूतों को नौकरी नही दी जाती दी थी।रामपूजन साहब ने सुदर्शन की जाति नही उसकी तालिम और काबलियत देखकर नौकरी की सिफारिस किये थे पर गिद्धू साहब को सुदर्शन फूटी आंख नही भाता था। गिद्धू साहब जातीय षणयन्त्र के तहत् नौकरी से तो निकलवा दिया। सुदर्शन सतकारी विभाग में नौकरी करने के लिये सत्याग्रह पर उतर गया । इस विभाग में जैसे कुछ सौ साल मंदिरों और स्कूलों में अछूतो का प्रवेश वर्जित था उसी तर्ज पर सतकारी विभाग 19वी शताब्दी के आखिर में भी अघोषित रूप से में अछूतों को नौकरी देने की मनहाई थी।
सुदर्शन का संघर्ष रंग लाया आखिकार असतकारी विभाग के जमींदार व्यवस्था ने उसे बहाल तो कर दिया। बहाली के बाद गिद्धू साहब का अत्याचार बढ़ गया। अत्याचार के खिलाफ विभाग में कोई सुनने को तैयार नही था। गिद्धू साहब ने सुदर्शन का कैरिअर बर्बाद करने में जुट गये।धीरे-धीरे सी․आर․ करने में जुट गये।डां․विजय प्रताप साहब की सह तो गिद्धू साहब को भरपूर प्राप्त थी।विभाग में छोटे कर्मचारी से लेकर उच्च अधिकारी तक अधिकतर प्रथम एवं द्वितीय वर्ण के लोग थे,मध्य भारत के दफतर में तो सुदर्शन अनुसूचित जाति का इकलौता कर्मचारी था और सभी का कोपभाजन बनता था।वह चाहता तो उसे सरकारी नौकरी के लिये भी कोशिश कर सकता था। असतकारी विभाग में ज्वाइन करने के बाद कई परीक्षाएं दिया था,पास भी कर गया था पर अत्याचार के खिलाफ सत्याग्रह का फैसला कर लिया था। इसलिये अत्याचार के खिलाफ मौन शब्दबीज बोने लगा जिसकी गूंज दूर-दूर तक सुनायी देने लगी थी। डां․विजय प्रताप साहब ने गिद्धू साहब की समझाइस पर सुदर्शन का प्रमोशन न करने की कसम खा लिये।सुदर्शन बड़ी ईमानदारी से काम करता । काम को पूजा समझा संस्थाहित में आगे रहता। समय से आता देर से जाता पर वह जमींदार व्यवस्थापकों निगाह में अच्छा कर्मचारी नही था क्योंकि उसके पास उच्चजातीय योग्यता नही थी। कई तो ऐसे जातिवाद के पोषक उच्चधिकारी तो ऐसे थे जिनको अंग्रेजी क्या चार लाइन हिन्दी में भी लिखने पर पसीना छूट जाता था पर वे उच्च अधिकारी थे क्योंकि वे जातीय योग्यता की दृष्टि से योग्य थे। सुदर्शन उच्चशिक्षित होकर भी अयोग्य था।सुदर्शन अपने सत्याग्रह पर अडिग था अपने साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ मौन संषर्षरत् था । असतकारी विभाग में वह अपनी योग्यता के बल पर उच्च पद हासिल करना चाहता था।विभाग की कई आन्तरिक परीक्षाओं में बैठा भी परीक्षा तो पास कर जाता पर डां․विजय प्रताप साहब के इशारे पर इन्टरव्यू में फेल कर दिया जाता था। डां․विजय प्रताप साहब अब जनरल मैनेजर बन चुके थे पूरे विभाग की डोर उनके हाथ में थी। सुदर्शन की लगन को देखकर परेशान करने की नियति से गिद्धू साहब उसको काले पानी भेजने के नाम पर आंतकित करने का प्रयास करते रहते थ।सुदर्शन को तबादले से डर तो नही था क्योकि वह सत्याग्रह पर उतर चुका था । उसे ये भी पता चल चुका था कि डां․विजय प्रताप,देवन्द्र प्रताप,अवध प्रताप आर․पूजन,सुरेन्द एस․द्वारिका पी․रजिन्दर गिद्धू जैसे मुर्दाखोर उसका कैरिअर बर्बाद कर देगें। उसे तो बस एक ललक भी कि असतकारी कम्पनी में वह डटा रहे जहां शोषितों का प्रवेश वर्जित जैसा है। वह शोषित समाज के प्रतिनिधि कर्मचारी के रूप में विभाग काबिज रहते हुए अपनी ्रतिभा दिखाना चाहता था परन्तु मुर्दाखोर किस्म के रूढि़वादी अफसर सारे रास्ते बन्द कर दिये थे । कहते है ना जहां चाह वही रहा। उसकी प्रतिभा उभर कर आने लगी जिससे वह मुर्दाखोर अफसरों की आखों में खटकने लगा था। विभाग में सुदर्शन को नौकरी करते तीस साल हो चुके थे पर तरक्की अभी भी कोसो दूर थी।डां विजय प्रताप रिटायर होकर भी रिटायर नही हो रहे थे,कम्पनी के उच्च पद से चिपके हुए थे।सुदर्शन का कैरिअर समाप्त तो हो ही चुका था पर उसे अपनी योग्यता,कर्म और श्रम पर विश्वास था । कम्पनी में डां․विजय प्रता की दबंगता को लेकर दबी जबान विरोध होने लगा था। एक दिन उनके एक विरोध ने सरेआम दफतर में जूता माार दिया। अब वे दफतर में मुंह दिखाने लायक नही बचे थे पर उनके मुर्दाखोर चम्मचें जिन्हे उनकी तरह ही कमजोर,शोषित वर्ग की तबाही को उतना ही मजा आता था जैसे जीवित पशु नोच-नोच कर खाने में लकड़बग्धे को।इसी आमनुषता का शिकार सुदर्शन भी था।नौकरी में उसके जीवन के तीस से अधिक मधुमास मुर्दाखोरो ने पतझड बना दिया गया था पर श्रमवीर सुदर्शन का विश्वास सदकर्म से नही उठा था ।कोई मुर्दाखोर उसे बिना वजह परेशान करता तो वह कहता सांच बात शहतुल्ला कहे सबके चित से उरतल रहे।मुर्दाखोर उसके मुंह निहारते रह जाते। सुदर्शन जब कभी अधिक परेशान हो जाता तो वह एकान्त में बैठकर गुनगुना उठता,
सच लगने लगा है,कुव्यवस्थाओं के बीच थकने लगा हूं,
वफा,कर्तव्य परायणता पर,शक की कैंची चलने लगी है,
ईमान पर भेद के पत्थर बरसने लगे है।
कर्म-पूजा खण्डित करने की साजिशें तेज होने लगी हैं,
पूराने घाव तराशे जाने लगे हैं
भेद भरी जहां में बर्बाद हो चुका है,कल आज
कल क्या होगा,क्या पता,
कहां सेम कौन तीर छाती में छेद कर दें,
चिन्तन की चिता पर बूढा होने लगा हूं,
उम्र के मधुमास पतझड़ बन गये हैं,
पतझड़ बनी जिन्दगी से,बसन्त की उम्मीद लगा बैठा हूं,
कर्मरत् मरते सपनों का बोझ उठाये फिर रहा हूं,
कलम का साथ बन जाये कोई मिशाल,अपनी भी
इसी इन्तजार में शूल भरी राहों पर, चलता रा रहा हूं․․․․․․․․․․
विभाग के मुर्दाखोर अफसर सुदर्शन के कैरिअर को बर्बाद तो कर चुके थे अब उसेे पागल करार करने के फिराक में जुटे रहते थे पर वह साजिशों से बेखबर कर्म-पूजा पर ध्यान केन्द्रित किये रहता था। सुदर्शन के बाप उसे अफसर देखने की इच्छा में मरण शैय्या पर पड़े चुके थे। पिता की बीमारी की खबर पाते ही सुदर्शन छुट्टी की अर्जी लगाकर गांव की ओर चल पड़ा। सुदर्शन को देखते ही सुखीराम उठ बैठे,जैसे उन्हें जिन्दगी का उपहार मिल गया हो।
स्वामीनरायन देखो बेटा को देखते ही उम्र मिल गयी।स्वामी नरायन बेटा अफसर बन गये ।
सुदर्शन बाप की आंखों में देखते हुए बोला बाबा जीत-जीत कर हारता रहा हूं पर जल्दी ही सपना पूरा होने की उम्मीद है।बेटा बड़ा दुख होता है,यह जानकर कि पढ़े लिखे उच्च वर्णिक अफसर पुराने जातीय भेदभाव की मुर्दाखोरी से नही उबर पाये है।
ये मुर्दाखोर किस्म के नर पिशाच लोग,
सज्जनों को आंसू देना,अपनी विरासत समझते है,
छल-प्रपंच में माहिर ये दोगले, आदमी के दिल को चीर कर रख देते है।
छीन को यतीम तक कर देते है, झूठी शान के दीवाने हिटलर
नरपिशाच की बाढ़ में बह जाते हैं, वक्त के ताल बेपर्दा होकर बदनाम हो जाते हैं।
सुदर्शन-बाबा जातीय व्यवस्था की तासिर शोषित वर्ग के लोगों का जीवन तबाह करने की है।
बाबा जाति व्यवस्था दुर्जनों की डरावनी नीति है,
सज्जनों को डंसती-सताती मित्ति है,इन खुदगर्जो की महफिलों में,
सच्चे नेक की कब्र खोदी जाती है।
भेद-चम्मचागीरी औजार ऐसा जिससे,सोने की डाल काटी जाती है
कर्म-श्रमवीर को रूसुवाई दी जाती है।
सुदर्शन-यही तो गम है अपनी जहां से।
कल नर के वेष में शैतान ने,श्रमवीर का जनाजा निकाला था,
आज माथे पर मुर्दाखोर के कु-करनी का रौब दहक रहा था,
वह जीता सा जुबान की तलवार भांज रहा था,
लूटी नसीब का मालिक अदना कर्म-पथ पर चला जा रहा था।
स्वामीनरायन-बेटा वैदिक काल में अखण्ड भारत के वक्रवर्ती सम्राट महाराजा की तनिक सी गलती से आज युगों बाद भी मूलनिवासियों जो लगभग ग्यारह सौ से पन्द्रह सौ उपजातियों में बंट चुके है,को दण्ड भुगतना पड़ रहा है।
सुदर्शन- कैसी गलती बाबा ․․․․․․․․?
स्वामीनरायन-बेटा ऐ कैसी आजादी है आजाद होकर भी हम शोषित,हाशिये के लोग,कमेरी दुनिया के लोग झंख रहे है । हमारे समाज की वही हाल है-झंखै खरभान जेकर खाले खलिहान,महाराज बलि ने दान क्या कर किया कि वैदिक काल में आख्एड भारत के राजा सोने की चिडि़या कहे जाने वाले देश के मूलनिवासी वर्तमान में शोषित रंक हो गये। महाराजा बलि गुरू शुक्राचार्य की बात मानकर छली वामन को अपना सर्वस्व दान नही करते तो आज शोषित वर्ग की दुर्दशा ना होती बेटा,
सच लगन लगा है,कुव्यवस्थाओं के बीच थकने लगा हूं,
वफा,कर्तव्यपरायणता पर शक की कैची चलती रही है
ईमान पर भेद के पत्थर बरसने लगे है,
कर्मपूजा खण्डित करने की साजिश होती रही है,
जातिवाद के पुराने घाव तराशे जा रहे हैं,
भेद भरी जहां में शोषित वर्ग बर्बाद हो चुका है
क्ल क्या होगा कुछ पता नही,कहा से कौन तीर छाती में छेद कर दे,
यही सोच-सोच सोच बूढ़ा हो गया हूं,
डम्र के मधुमास पतझड़ बना दिये गये है,
पतझड़ बनी जिन्दगी से बसन्त की उम्मीद लगाये बैठा हूं,
कर्मरत् मरते सपनों का बोझ उठाये फिर रहा हूं,
कलम बने हथियार,शोषित समाज की बन जाये मिशाल
इसी इन्तजार में शूल भरी राहों पर चलता जा रहा हूं․․․․․․․․․
बेठा सुदर्णन अपने कर्म से विचलित ना होना,कर्म एक दिन जरूर निखरेगा,वैसे ही जैसे शिला घिस-घिसकरअनमोल रत्न बन जाती है। भले ही मुर्दाखोरो ने तुम्हारा भविष्य चौपट कर दिया हो।इस बस्ती के बच्चों के लिये तुम उदाहरण हो।
सुदर्शन-हां बाबा मै जानता हूं मेरे घर-परिवार के अलावा बस्ती के लोगों की उम्मीदें मुझसे हैं उन्हीं की दुआओं का प्रतिफल है कि दर्द में भी सकूंन ढू़ढता जा रहा हूं पर बाबा,
अपनी जहां के कैसे-कैसे लोग,तरासते खंजर कसाई जैसे लोग,
अदना जानकर लूटते हक,छिन जाते आदमी होने का सुख,
कर रहे युगों से कैद नसीब,अपनी जहां के लोग․․․․․․
कैसा गुमान,वार, रार,तकरार, करते रहते लहुलूहान,
अदने का जिगर,भले ना हो कोई गुनाह,देते रहते,
भय शोषण,उत्पीड़न दिल को कराह․․․․․․․․․․․
अपनी जहां उमें उम्र गुजर रही,अदने की जिन्दगी दर्द की शैय्या पर,
मुश्किलें हजार काटों का सफर,बेमौसम अंवारा बादल बरस रहे
डूबती उम्मीदें किनारे नही मिल रहे․․․․․․
अदना हिम्मत कैसे हारे,मुर्दाखोरों की महफिल में सत्याग्रह कर रहा
हौशले की पतवार से जीने को सहारा ढू़ढ़ रहा,मुर्दाखोरों से चौकन्ना,
खुली आंखों से सपना बो रहा․․․․․․․․
स्वामीनरायन-शाबाश मेरे लाल,तू जरूर बस्ती का नाम रोशन करेगा। मुर्दाखोरों के बीच रहकर भी तुम सत्याग्रह कर रहे हो अपने सपने बो रहे हो क्या यह सफलता से कम है।बेटा जो लोग गरीब,हाशियें के आदमी,शोषित वर्ग का उत्पीड़न,शोषण करते हैं,हक छिनते हैं, उनको आसूं देते हैं,वे लोग मुर्दाखोर तो ही होते है।ऐसे लोगों के बीच तुम टिके हुए हो यह तुम्हारी उच्च शैक्षणिक योग्यता और काबिलियत का सबूत है वरना ये लोग लील गये होते ।बेटा तू जरूर अफसर बेटा मुसाफिर का सपना जरूर पूरा होगा। मुर्दाखोर तुम्हें नही रोक पायेंगे। तुम्हारे साथ तुम्हारे मां-बाप और पूरी बस्ती की दुआयें है।देखो तुम्हें देखकर मरणासन्न सुखीराम के चेहरे पर रौनक आ गयी है।उनकी सेवा सुश्रुषा करो उठकर चलने लगेगे।वैसे अपनी शक्ति भर चक्रदर्शन और उसके बच्चे कर रहे है।मैं घर चलता हूं बूढि़ा इन्तजार कर रही होगी,मेरे खाने के बाद ही वह खाना खायेगी कहते हुए स्वामीनरायन बाबा उठे और अपने घर की ओर लपक पड़े।
सुर्दशन बाप के इलाज करवाकर शहर लौट आया।मन लगाकर नौकरी करने लगा।बाप के स्वास्थ की चिन्ता तो सताती रहती थी पर पापी पेट का सवाल था नौकरी तो करनी थी पर यह नौकरी तो दर्द के दरिया में डूबकर सुदर्शन को करना पड़ रहा था ।चैतीस साल की विभागीय सेवा में पांच छः बार प्रमोशन के अवसर तो आये पर वह हर परीक्षा पास करने के बाद मुर्दाखोर अफसरों के इशारे पर प्रमोशन से दूर फेके दिया जाता था।मुर्दाखोरों ने रगजीत,कामनाथ रतीन्द्रनाथ जैसे कई अन्य मुर्दाखोरों की पौध भी तैयार कर कर दिये थे जो विभाग को अपनी जागीर समझकर जमींदारी-सामन्तवादी सल्तनत कायम करने का भरपूर प्रयास कर रहे थे।सुदर्शन दर्द के दरिया में डूबा हुआ तो था ही,उसका कैरिअर तो पहले ही सामन्तवादी मुर्दाखोरो ने चौपट कर दिया था। उसे अब कैरिअर की चिन्ता तो थी नही बस वह इसलिये सत्याग्रह कर रहा था कि उस जैसे लोगों के लिये विभाग का दरवाजा खुले परन्तु सामन्तवादी लोग भी बहुत ढ़ीठ मुर्दाखोर थे।सुदर्शन नौकरी की उम्र के आखिरी छोर पर पहुंच चुका था इसी बीच फिर एक परीक्षा हुई उसमें भी वह पास हो गया पर पहले कि भांति फिर फेल कर दिया परन्तु सत्याग्रही सुदर्शन बोर्ड आफ डायरेक्टर के दफतर के सामने बैठ गया,बोर्ड आफ डायरेक्टर कोे सुदर्शन के सत्याग्रह के सामने झुकना पड़ा। सुदर्शन अफसर बन गया यह खबर उसके बाप को जीवनदायिनी साबित हुई और बस्ती के लिये दीवाली। असतकारी कम्पनी सतकारी के नाम से जानी जाने लगी और इस अर्न्तराष्ट्रीय कम्पनी के दरवाजे सब के लिये खुल गये। जमींदारी-सामन्तवादी मुर्दाखोर सल्तनत का अन्त हो चुका था। सुदर्शन का मुर्दाखोरो ने बहुत उत्पीड़न,शोषण किया,यदि उसके साथ न्याय हुआ होता तो वह बहुत बड़ा अफसर बनकर रिटायर होता इसका उसे मलाल तो था पर खुशी इस बात की थी कि वह मुर्दाखोरों का गरूर तोड़ चुका था सुदर्शन सत्याग्रह के पथ पर चलकर।भले ही छोटा अफसर था पर चहुंओर उसके सत्याग्रह की जयजयकार थी और मुर्दाखोरों की निन्दा।
02․09․2013
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नौकरी /कहानी
नौकरी कर्मपूजा का वह स्थान जहां परोक्ष रूप से व्यक्ति परिवार पालन के लिये धनार्जन तो करता ही है अपरोक्ष रूप से मानव समाज राष्ट्र और विश्व की सेवा करता है। व्यक्ति जब मानवीय कारणों से निर्मित दीवारों की वजह से दर्द की दरिया में डूब और आंखों में आंसू लेकर नौकरी करता है तब यह कर्म तपस्या बन जाता है। दफ्तर से काफी देर से लौटकर अचेत सा टूटी कुर्सी में समाया लोकरत्न जैसे स्वयं से बाते कर रहा था। गीतांजलि पानी का गिलास थमाते हुए बोली अरे जल्दी सुबह घार से जाते हो आधी रात में लौटते हो इसके बाद भी दफ्तर के काम का चिन्ता घर लेकर आते हो। तनिक घर के कामों की भी चिन्ता किया करो वह दर्द में कराहते हुए बोली।
लोकरत्न-भागवान,मैं भी सोचता हूं पर करूं तो क्या करूं नौकरी नौकर जैसी नही रही है।
गीतांजलि-क्या हो गया।कोई अशुभ खबर तो नही।
लोकरत्न-शुभ कब थी भेदभाव और नफरत दोयम दर्जे का बना दिय है,नौकरी अब तपस्या जैसी हो गयी है।
गीतांजलि-मेरी बीमारी तुम्हारे पांव की जंजीर बन गयी। जहां पल-पल दहकते दर्द से जूझना पड़ रहा हो वहां नौकरी कौन करता है। सच तपस्या कर रहे हो । उठो मुंह हाथ धो लो,तुम्हारे मित्र आकर चले गये फिर आने का कहकर गये है।
लोकरत्न-कौन․․․?
गीतांजलि-मनेरिया भैया।
इतने में बाहर से आवाज आयी अरे आ गये क्या रत्नबाबू ?
गीतांजलि-हां भैया आ गये है।
मनेरिया-कहां दुईज के चाँद हुए हो यार,कुछ पता ही नहीं तुम्हारा चलता रिटायर तो नौकरी से हुआ हुई सामाजिक बन्धनों से नहीं मित्रों से भी नहीं।
गीतांजलि-हाथ पांव धो रहे है,आप बैठो।
दिन तो बइठउकी में कट रहा है बोले, इतने में लोकरत्न बोले भइया पांव लागू।
मनेरिया-खूब पदोन्नति करो।
लोकरत्न-यही तो नहीं हो सकता।
मनेरिया-नौकरी में पदोन्नति न होने का मतलब काले पानी की सजा ।
लोकरत्न-वही भोग रहा हूं। अपनी नौकरी तो सरकारी नही है ना।
मनेरिया तो क्या हुआ अर्धसरकारी तो है।
लोकरत्न-हमारे जैसे का प्रमोशन नही हो सकता ना इस विभाग मेें । मेरी नौकरी को कुछ लोग स्वयं का उपकार मानते है। कहते हैं तु अपने वालों को देखो दिन भर हाड फोड़ते है। बदले मेें भर पेट रोटी भी नसीब नही होती है। तुम तो नसीब वाले हो दुनिया की सबसे बड़ी साझेदार कम्पनी मे काम कर रहे हो। अच्छी तनख्वाह मिल रही है,बच्चे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे है क्या तुम्हारे लिये तरक्की नही है।तुमको तो प्रबन्धन का एहसानमन्द होना चाहिये कि तुम्हारे जैसे आदमी को संस्थान में नौकरी मिल गयी। अच्छे परिवार और पढ़े लिखे लोगों को नौकरी नही मिल रही है।
मनेरिया-ये तो श्रम और सेवा के दुश्मनों की कुभाषा है।
लोकरत्न-हमें तो रोज ऐसी कुभाषाओं का सामना करना पड़ता है। अगर जबाब दे दिये तो नीचे से उपर तक हलच लमच जाती है।
मनेरिया-रूढि़वादी व्यवस्था ने आदमी को बिखण्डित कर दिया है,तथाकथित छोटी जाति की प्रतिभाओं को गुलामी के चक्रव्यूह में फंसाने के स्थायी फरेब रच दिये है।छोटीजाति का व्यक्ति योग्यता का शिखर हासिल कर ले पर ये रूढि़वादी लोग उसकी राह में अड़ंगे डालते रहते हैं।कभी जातीय गुट बनाकर,कभी क्षेत्रीय गुट बनाकर,कभी उच्च वर्णिक गुट बनाकर यानि रूढि़वादी भारतीय व्यवस्था में चौथे दर्जे के लोगों को चैन से जीने तक नहीं दिया जा रहा है।
लोकरत्न-मेरे मां-बाप बड़ी उम्मीद से पेट मेें भूख और आंखें में सपने लेकर मुझे बी․ए․तक पढ़ाये जबकि उनकी माली हालत बद्तर थी,जमींदार प्रथा ने ऐसे मोढ़ पर ला कर खड़ाकर दिया था कि बंधुवा मजदूर बने रहे या भीख मांगे।ऐसी स्थिति में मेरे मां बाप ने मुझे तालिम दी। पहली बार जब मैं गांव से दिल्ली नौकरी की तलाश में निकला था तो मां बाप का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था पर उनको एक खुशी भी थी कि मैं गांव के नारकीय जीवन में तो नहीं फंसा रहूंगा ।नौकरी की तलाश में कई साल बेरोजगारी में बित गये पर हिम्मत नही हारा,पढाई जारी रखा,जो भी काम मिला किया। सरकारी नौकरी तो नही मिल सकी क्योंकि न तो मेरे पास कोई पहुंच थी और नही घुस देने को रकम।अखबार की खबरें पढ़कर परीक्षा देता,इण्टरव्यू के लिये जहां जाता वहां जातीय अयोग्यता आड़े आ जाती और नौकरी दूर हो जाती। शहर की मण्डी में झल्ली ढोने तक का काम किया।मेहनत मजदूरी की कमाई से अपनी खुराकी चलाता जो कुछ बच जाता था मां बाप को मनिआर्डर करता था ।आखिरकार सात आठ साल की बेरोजगारी के बाद सरकारी नौकरी तो नहीं निगम में नौकरी मिल तो गयी पर यहां भी जातीय निम्नता से कई बार नौकरी पर खतरा भी आ गया। एक बार तो बाहर का दरवाजा भी दिखा दिया गया।रईस चपरासी मुझे अपने से वरिष्ठ समझता,चाय पानी देने में उसे एतराज होता था। दफतर के कुछ लोग उसे चढ़ाते रहते थे ताकि वह मेरे साथ खुलेआम भेदभाव करता रहे खैर जब तक था तब तक किया भी। आठवीं फेस चपरासी पी․जी․कर्मचारी को छोटी जाती का कहता था।लोगों को खिलाफत के लिये उसकाता भी रहता था। कम्पनी में उसके गाड फादर वी․पी․जलौका थे,चपरासी की नौकरी करने में उसे शर्म आती थी इसलिये वी․पी․जलौका ने कम्पनी के सूरत दफतर में चौकीदार बनवा दिया। वी․पी․जलौका ने कई अयोग्य पर उनका जूता सिर पर लेकर चलने वाले लोगों को मनचाही तरक्की दिलवा दिये।
मनेरिया-यही है जातिवाद,एक उच्च शिक्षित की तरक्की नही हुई,स्वजातीय अपने लोगों को उच्च पदों की बन्दरबांट की गयी।नौकरी तो सेवा का पवित्र स्थान और जीवन के मधुमास को और अधिक दूर तक फलाने का जरिया भी है। नौकरीं से आदमी राष्ट्र और जन सेवा करते हुए तरक्की पाता है पर तुम्हारी नौकरी का जीवन तो जातिवाद और छूआछूत के पोषकों ने नारकीय बना दिया।
लोकरत्न-नौकरी के सान्ध्यकाल में बड़ी मुश्किल से अफसर बनने का मौका भी आया तो विभाग के सारे रूढि़वादी इक्ट्ठा हो गये और मेरे जीवन की आस लूट लिये।सब एक स्वर में बोले चौथे वर्ण के आदमी को अफसर नहीं बनने देंगे। मेरे अफसर बनने का ऐसे विरोध होने लगा था जैसे स्वामी विवेकानन्द का सन्यास ग्रहण करने का विरोध पोंगापंथियों ने किया था।वही स्वामीजी दुनिया को दिखा दिये अपनी विद्वता। आज दुनिया उनके एक-एक वाक्य का अनुसरण कर रही है।रविदास का भी विरोध पोंगापंथियों ने किया था आखिरकार पोंगापंथियों को सन्तशिरोमणि रविदास जी को कंधे पर बिठाकर बनारस की परिक्रमा करवायें थे।सदियों बाद भी मनुवाद के समर्थकों ने वास्तविकता से ना जाने क्यों दूरी बनाये हुए है। सब नर एक समान है,समान सहित सबको जीने और तरक्की का मौंका मिलना चाहिये पर नही यहां तो लूट मची हुई है वर्णव्यवस्था के नाम पर।
मनेरिया-वर्णव्यवस्था तो धोखा है इंसानियत के साथ अन्याय का विरोध विश्व स्तर पर होना चाहिये।
लोकरत्न-कैसे विरोध हो,गला ही दबा दिया जाता है।मैंने भी अपने भविष्य के कत्ल के विरोध में प्रबन्ध निदेशक और निदेशक तक अपनी बात पहुंचाया पर क्या हुआ, दमन पर मुहर के अलावा कुछ नहीं।
लक्ष्मी-क्या लेकर बैठ गये ।
मनेरिया-भाभी लोकरत्न बाबू सही कह रहे है।जातिवाद का जहर अपने देश में ना होता तो सचमुच हमारा देश महान होता परन्तु जातिवाद ने देश को बदनाम कर दिया है।कैसे देश को महान कहें-आदमी अछूत है।शोषित के कुएं का पानी अपवित्र है।आदमी की परछाई से आदमी अपवित्रहो जाता है।जाति के नाम पर शोषण बलात्कार,हक की लूट,भविष्य का कत्ल हो रहा है,कैसा धर्म कैसी जाति ये तो पापकर्म है।ऐसे पापकर्माें के रहते देश को महान कहना किसी गाली से कम नहीं।
लक्ष्मी-भाई साहब जलपान कीजिये। ये पापकर्म तो सदियों से चला आ रहा है।कमर में झाड़ू बांधकर चलने और कान में पिझाला शीशा डालने तक की श्रुति रूढि़वादी व्यवस्था में दबी जुबान आज भी सुनी जाती है।धर्मग्रन्थ तक में लिखा है शूद्र गंवार ढोल पशु नारी ये ताड़न के अधिकारी,रूढि़वादी व्यवस्था ने शोषितों को दर्द के दरिया में ऐसे ढ़केल दिया है कि निकलने के सारे उद्यम फेल हो जा रहे है।नौकरी में भी तो इसी रूढि़वाद व्यवस्था का दबदबा है। कहने को आजादी है अपना संविधान है पर पालन कहा हो रहा है।इनको ही देखिये तीस साल से प्रमोशन नही हो पाया। इनकी गलती क्या है बस यही ना कि उच्चशिक्षित है और शोषित वर्ग के है।इनके साथ के जिन लोगों का कैडर चेन्ज कर अफसर बना दिया गया है।वे शैक्षणिक योग्यता,अनुभव,कर्तव्यपरायणता,समर्पण के तुला पर कहीं नही टिकते। उनके पास एक उच्चवर्णिक योग्यता और पहुंच है आज वे उच्च पदों पर हैं ये जनबा खाक छान रहे है योग्य होकर भी।
मनेरिया-भाभी ये इण्डिया है यहां बहुत सी बातों का फर्क पड़ता है।
लक्ष्मी-जी․․․․․․पड़ा है ना। इनका ही देखियें नौकरी का जीवन पतझड़ बना दिया गया है,जबकि नौकरी का जीवन तो जीवन का बसन्त होता है और यही पतझड़ बना दिया गया।
लोकरत्न-भागवान संघर्ष ही जीवन है। देखना इसी संघर्ष से चमक उठेगी।
लक्ष्मी-नौकरी से तो नही उठ सकी।
मनेरिया-भाभी जरूर उठती पर गला घोंट दिया गया ना पर लोकरत्न भईया कर्म को धर्म से श्रेष्ठ मानकर डटे हुए है।देखना इस सदकर्म को बड़ी उम्र मिलेगी।कहते है ना मुदई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है,वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है।
लक्ष्मी-मैं इससे सहमत नही हूं क्योंकि खुदा चौथे वर्ण के हिस्से सारा दुख नही झोंक सकता,आदमी को अछूत नही बना सकता। ये सारे दुख तो स्वार्थी आदमी का दिया हुआ है सिर्फ छाती पर नाग की तरह बैठकर फुफकारने के लिये। इसी फुफकार ने देश के अधिकतर लोगों को भूमिहीन,गरीब,अछूत बना रखा है। इसका प्रभाव नौकरी में भी देखा जा रहा है।नौकरी में भी दबे कुचले वर्ग के लोग आज भी नफरत की दृष्टि से देखे जा रहे है।उनकी हक छिने जा रहे है,तरक्की से वंचित रखने के चक्रव्यूह रचे जा रहे है। इसका उदाहरण आपके सामने ये जनाब है।
लोकरत्न-भागवान,चुप भी करो।नौकरी की जरूरत है कर रहे है,बच्चों को पालना है,शिक्षित करना है,उन्हीं के लिये तो सारे दर्द सह रहे है वरना कब का रिजाइन कर दिया होता।
मनेरिया-नही यार नौकरी से रिजाइन नही करना।देश को जातिवाद ने बर्बाद कर दिया,नक्सवाद और आतंकवाद की भेट चढ़ा दिया है।मन को स्थिर कर नौकरी करो,कोई विरोध में बोलता है तो सुन कर भी अनसुना कर दो। यार हाथी चलती है तो श्वान भूंकते है कि नहीें। यही मानकर जिस वफादारी से नौकरी कर रहे हो करते रहो।मान लिया तुम्हें नौकरी में तरक्की नही मिली,तुम्हारे साथ अन्याय हुआ सिर्फ जातीय भेद के कारण। बच्चों को शिक्षित करो उन्हें मंजिल मिल गयी तो तुम्हारा सबसे बड़ा प्रमोशन होगा। जातिवाद तो देश को सदियों से खा रहा है पर जातिवाद के समर्थकों पर कोई असर नही पड़ा है क्या ?
लक्ष्मी-अगर पड़ा होता तो अपने ही लोग अपने को अछूत बनाते,हक लूटते।देखो न इनके साथ आज के जमाने में क्या हो रहा है। बेचारे बिच्छुओं के झुण्ड में रहकर नौकरी कर रहे हैं।नौकरी का समय तो स्वयं की उन्नति के साथ जन और राष्ट्र की सेवा का सुन्हरा अवसर होता है। इनकी उन्नति तो नौकरी में नही हुई पर हां खुशी इस बात की है पूरी ईमानदारी और वफा के साथ नौकरी कर रहे है मुश्किलों का सामना करते हुए भी।
मनेरिया-सन्तोष के साथ किये जा रहे परिश्रम का प्रतिफल लोकरत्न को जरूर मिलेगा चाहे जितना भी इंसानियत के दुश्मन जाल बिछा ले।
लक्ष्मी-इसी उम्मीद पर तो टिके हुए है,अपना फर्ज पूरा कर रहे है,भले ही कम्पनी के प्रबन्धन ने मधुमास को पतझड़ बना दिया है।
लोकरत्न-पच्चास के उपर का हो गया हूं,नौकरी भी ज्यादा बरसों की नही बची है।अभी तक तो बचता चला आया हूं पर अब गुजाइश कम लगती है। कभी भी आरोप लगाकर बदनाम किया जा सकता है। जातीय प्रवाह में बह रहा प्रबन्धन कुछ भी कर सकता है। हारकर रिजाइन तो करना पड़ेगा वरना नौकरी के आखिरी समय में चरित्र पर कालिख पुत सकती है।
मनेरिया-क्या सोच रहे हो ?
लोकरत्न-प्रबन्ध निदेशक,निदेशक तक को अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ अर्जी दे चुका हूं पर कोई सकारात्मक कार्रवाई नही हो सकी ।उल्टे कई उच्च अधिकारियों अपने जातीय प्रभाव की वजह से मेरा प्रमोशन तक रूकवा दिया। मेरी चरित्रावली तक खराब कर दी गयी है। मेरा प्रमोशन नही हो सकता ऐसा सुनने में आया है । मेरी चरित्रावली कभी अच्छी लिखी ही नही गयी। शायद इसीलिये की मैं छोटी का कर्मचारी हूं ।
मनेरिया-चिन्ता वाली बात तो है,जब प्रबन्ध निदेशक,निदेशक तक के कान पर जू नही रेंगा तो दूसरो को तो और सह मिल गयी,शोषण,उत्पीड़न,अत्याचार,हक लूटनेे के लिये उन्मुक्त हो गये।
लोकरत्न-हमारे आफीस में कम्पनी के प्रचार के लिये हजारों घडि़यां आयी है।साल भर कोई ना कोई आइटम गा्रहकों को बांटने के लिये आता रहता है पर वहां तक कहां पहुंच पाता है। महीनों बाद मुझे एक घड़ी मिली,घर लेकर आया तो छोटा बेटा रख लिया।बीटिया बोली पापा एक मेरे लिये भी ले आना। मैं कहां से लाता,मैने बीटिया से बोला बेटी एक घड़ा खरीद लेना। अब मुझे नही मिल सकेगी जबकि दूसरे लोग पेटी भर-भर ले गये।ये घडि़या ग्राहको तक तो पहुंचने से रही लोग अपने नात हितों को देगें,मुझे एक घड़ी मिली क्योकि मैं छोटे लोगों की श्रेणी का हो गया हूं। हर कम्पलीमेन्टरी पर तो उच्च लोगों का ही कब्जा है,हमसे तो ऐसे छिपाया जाता है जैसे मैं दफतर का कर्मचारी नहीं अनजान शक करने लायक चोर किस्म का आदमी मान लिया गया हूं क्योंकि मैं छोटी जाति को कर्मचारी हूं। यहां छोटी जाति का होना अपराधी से कम नही है।यही कारण है कि मेरा कैरिअर जातिवाद के समर्थक प्रबन्धन ने चौपट कर दिया है।
मनेरिया-ऐसे तो भ्रष्ट्राचार पनपता है,ऐसे ही लोगों की तो देन है भ्रष्टा्रचार आज जो देश और जनता के लिये नासूर बन चूका है।जाति के नाम पर हक से वंचित करना तो खुली लूट है। दुर्भागयवश देश इसी की बलि चढ़ रहा है।कमा श्रमिक वर्ग के लोग रहे है चेहरा बदलने वाले दीमक की तरह चट कर रहे है।इसके बाद भी उन्हीं के उपर इल्जाम मढ़ रहे है। भारतीय समाज में जब तक जातिवाद का खेल चलता रहेगा तब तक ना तो आम आदमी और नही देश की तरक्की हो पायेगी। बेचारे शोषित वर्ग के लोगों का हक दिलाने के लिये कोई आगे नही आयेगा ।राजनैतिक पार्टियां तो वोट का खेल खेलती है,धार्मिक पार्टियां भी अपनी सत्ता गंवाना नही चाहती है।इसीलिये जातिवाद खत्म नही हो पा रहा है,जबकि जातिवाद समाज और राष्ट्र के लिये नासूर जैसा ही है।
लोकरत्न-मेरा तो कैरिअर खत्म हो गया। सोचा था बच्चों का कैरिअर बन जायेगा पर जातिवाद की आंच उन तक भी पहुंचने लगी है।शैक्षणिक संस्थानों में जातिवाद फलफूल रहा है, कितने होनहार शोषित वर्ग के बच्चों ने परेशान होकर सुसाइड तक कर लिया है।एडमिशन के लिये बीस लाख घूस मांगा जा रहा है,शोषित वर्ग का आदमी इतना रूपया कहां से लायेगा। कितना भी हाथ -पांव पटक ले जो व्यवस्था चालू है,वह वही ले जाकर पटकने की साजिश है जहां शोषित वर्ग के लोग सौ साल पहले थे। यही चिन्ता खाये जा रही है।नौकर में रहकर भी मैं अपने बाप जैसा ही महसूस कर रहा हूं। कुछ ज्यादा फर्क नही लग रहा है। बाप की दुश्मन जातिवाद था मेरा भी। बाप का छुआ पानी अपवित्र हो जाता था आज भी बहुत बड़ा अन्तर तो नही आया है।सामने कुछ और होता है पीछे वही षणयन्त्र नतीजा कह की लूट। नौकरी को जीवन का मधुमास समझा था पर पतझड़ बना दिया जातीय भेदभाव ने यह मलाल अन्तिम दिन तक खलता रहेगा।
मनेरिया-नौकरी हो या यों कहे श्रम की मण्डी हो या रूढि़वाद समाज के लोग रहेंगे वहां शोषित वर्ग के लोगों का दमन हो ही रहा है ना जाने कब तक संविधान को सामन्तवाद कुचलता रहेगा। शोषित समाज जातिवाद,उत्पीड़न,शोषण का जहर पीता रहेगा।क्या आजादी है,शोषित समाज के क्या शिक्षित क्या अशिक्षि,क्या मजदूर क्या सरकारी या अर्ध सरकारी मुलाजिम हर व्यक्ति किसी ना किसी रूप में जातिवाद का शिकार है।
लोकरत्न-ठीक कह रहे है,मैंने कितनी गरीबी में पढ़ाई किया है।सोचा था नौकरी मिल जायेगी तो मां की आंखों के सपने पूरे हो जायेगे,परिवार तरक्की की राह पर चलने लगेगा पर क्या मां बाप की आंखे पथरा गयी। पथरायी आंखे लिये मां सदा के लिये बिछुड़ गयी। भरपूर श्ैाक्षणिक एवं व्यावसायिक योग्यता होने के बाद भी नौकरी जिसे जीवन का मधुमास माना था संविधान को कुचलने वाले सामन्तावाद और जातिवाद ने पतझर बना दिया।
मनेरिया-़मित्र तुम्हारे साथ जुल्म,अन्याय,अपमान,मानसिक,शारीरिक,आर्थिक हानि हुई है। तुम कई जानलेवा बीमारियों की गिरफत में आ गये।शोषित समाज का होने के नाते तुम्हारे साथ भरपूर चरित्रहनन,शोषण,उत्पीड़न अन्याय किया गया पर तुमने हार नही माना। इस अमानवीय अत्याचार को लोकतन्त्र के पुजारियों के समझ तुम्ने अक्षर माला के रूप में प्रस्तुत किया है। इससे सभ्य समाज पढ़े लिखे लोग समझ जायेगे कि कल्याणकारी लोकतन्त्र को किस प्रकार रियासतकालीन,सामन्तशाही आज भी अपनी जागीर समझ रहे है।तुम्हारा लेखन शोषित समाज के ही नही उच्च एवं सभ्य समाज के युवकों को अन्याय के पहाड़ों से जूझने की शक्ति देकर उनका मार्ग प्रशस्त करेगा। मित्र तुम्हारे नौकरी के जीवन को संविधान के कुचलने वालों,जातिवाद के समर्थकों ने भले ही पतझर बना दिया हो पर तुमने एक मिशाल कायम किया है दर्द में सकून ढूढने की हिम्मत और परिस्थितियों का मुकाबला करने का सामर्थ्य युवकों को दिया है। कई शोषित समाज के युवक जातिवाद के समर्थकों के बुने जाल में इस तरह फंस जाते है कि उनको आत्महत्या के सिवाय दूसरा रास्ता ही नही दिखता। तुमने युवको राह सुझायी है।
लोकरत्न-नौकरी के बदले पतझर बना मेरा जीवन शोषित समाज ही नहीं उच्च एवं सभ्य समाज के युवकों को संविधान को कुचलने वालों,जातिवाद के समर्थकों,जुल्म करने वालों के खिलाफ ललकार करने की शक्ति प्रदान कर उन्हें आगे बढ़ने का मार्ग दिखा सके,यही मेरी नौकरी का मकसद हो गया है।
मनेरिया-़मित्र तुम्हारा नेक मकसद अवश्य पूरा होगा, तुम्हारी पतझर बनी नौकरी तुम्हें मुबारक।
17․08․2013
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आरक्षण /कहानी
विधना के पापा आजकल इतनी नफरत क्यों बढ़ रही है,अपनी जहां के लोग चांद तक पहुंच चुके है नित नई-नई उचााईयां छू रहे है।इसके बाद भी आरक्षण को लेकर दंगा-फंसाद औरर सड़क पर उतरकर विरोण करने लगे है।ना जाने क्यों सफलता की शिखर छू रहे लोग शाषितो-वंचितो का उद्धार नही होने दे रहे है जबकि आरक्षण तो राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रिया है।
दीनानाथ-लाजवन्ती आररक्षण की व्यवस्था कमजोर और दबे कुचले लोगों का जीवन स्तर उठाने के लिये की गयी है।आरक्षण कोई खैरात नही है,आरक्षण हक है। लाजवन्ती-कैसे․․․․․?
दीनानाथ-जिन्हें आरक्षित वर्ग में रखा गया है वे कौन है।
लाजवन्ती-अनुसूचित जाति,अनुजनजाति और पिछड़े वर्ग के लोग।
दीनानाथ-अनुसूचित जाति,अनुजनजाति और पिछड़ा वर्ग के पहले भारत के मूलनिवासी है।शुद्र राजा सुद्रास एवं अन्य वैदिक कालिन राजाओं के राज्य का प्राचीन कालिन भारत अखण्ड था। प्राचीन/वैदिक काल में देश की सत्ता इन्ही के हाथ में थी और तब यह देश सोने की चिडि़या कहा जाता था।देश के वैभव की दास्तान दुनिया के कोने कोन तक पहुंच गयी।चारों ओर से आक्रमाण होने लगे धीरे-धीरे विदेशियों ने देश पर कब्जा कर लिया फिर क्या देश गुलामी के चक्रव्यूह में फंसता चला गया।एक के बाद दूसरे दिेश कबज करते रहे आखिर में देश पर गोरो ने कब्जा कर लिया।आज भी प्राचीन काल में मूलविासी राजा बलि का नाम बड़ी श्रद्धा से मूलनिवासिायें के बीच लिया जाता है। देश के मूलनिवासी गरीब अति गरीब होते चले गये,जंगलों में रहने को मजबूर हो गये। इनके लिये शिक्षा के दरवाजे बन्द कर दिये गये थे,मंदिर प्रवेश बन्द हो गया। जीवनयापन कठिन हो गया था। गुलामों जैसी स्थिति बन गयी थी। बंधुवा मजदूर बना लिया गया था,जल-जमीन और जंगल से बेदखल कर दिया गया था। अंग्रेजो के राज में जमींदारी प्रथा ने जोर पकड़ा बची खुची जमीन से भी अधिकतर मूलनिवासी हाथ धो बैठे।आज शोषित,वंचित,मजदूर,दलित अछूत बना दिये गये है जबकि देश की प्राकृतिक सम्पदा पर इनका अधिकार होना चाहिये था।
लाजवन्ती-बात समझ में आई ।
दीनानाथ-क्या․․․․․․?
लाजवान्ती-आरक्षण बदलते वक्त के साथ धोखा हो गया है।भले ही शुरूआती दौर में दबे कुचलों के लिये कल्याणकारी माना गया हो परन्तु अब छल तो हो गया है।इस राजनैतिक आरक्षण की आड़ में दबंग लोग अधिकर से दूर रखने का खेल खेल रहे है।आरक्षण की व्यवस्था तो कुछ बरसों के लिये थी। बार-बार इसीलिये बढ़ाया जा रहा है कि दबे कुचले वर्ग का सामाजिक आर्थिक समानता और पूर्ण शैक्षणिक अधिकार न मिल सके।आरक्षण शोषित वर्ग कहां मांग रहा है,उसे तो अपनी जमीन पर अधिकार चाहिये,व्यापार में सहभागिता का हक चाहिये,सामाजिक समानता चाहिये,स्व-धर्मा नातेदारी चाहिये।सच तो ये है कि दबंग राजनैतिक और धार्मिक सत्ताधीश आरक्षण खत्म ही नही होने देना चाहते है क्योकि वे जानते है आरक्षण खत्म करने के पहले उन्हें सामाजिक और आर्थिक समानता लानी होगी।देखो न कितनी बड़ी असमानता है,जिसका जीवन खेतीबारी में बीत रहा है वही भूमिहीन है,जिसका खेतीबारी से दूर-दूर तक कोई नाता नही है वे भूमि के मालिक है। आरक्षण खत्म करने के पहले ये आरक्षण तो खत्म होना चाहिये।
दीनानाथ-तुम तो समताक्रान्ति के पथ पर चलने लगी हो।
लाजवन्ती-क्यों न चलूं। कब तक जुल्म ढोते रहेंगे अधिकार से वंचित किये लोग। एक तरफ सदियों पुराने आरक्षण को खत्म करने की कोई बात ही नही कर रहा है जो सारी मुश्किलों का कारण रहा है।जिसने आदम को अछूत बना दिया है। एक आदमी माथे पर रंग लगाकर उंचे चबूतरे पर बैठा रहता है, लोग पांव छूते है,अंधविश्वास का अंधियारा फैलाकर गाढ़ी कमाई ठगने का अधिकार उन्हें प्राप्त है।ये आरक्षण कब खत्म होगा।वर्तमान दौर में तो जातीय व्यवस्था साजिश है।
दीनानाथ-लाजवन्ती की वार्ता बहस का रूप ले चुकी थी,इसी बीच सूर्यमणि आ धमके।तनावपूएार् स्थिति देखकर बोले कुछ गम्भीर चिन्तन चल रहा था मैं गलत समय पर आ धमका।
दीनानाथ-आरक्षण के उपर चर्चा चल रही थी।
सूर्यमणि-घर,सड़क संसद तक यही बात चल रही है।आरक्षण क्यों खत्म होना चाहिये। खत्म ही करना है तो शोषित वर्ग को सामाजिक आर्थिक रूप से सबल बनाओ,उनकी समुचित एवं निः शुल्क उच्च शिक्षा का प्रबन्ध करो जिससे वे विकसित समाज के साथ चल सके।
दीनानाथ-आप भी ऐसा सोच रहे है।
सूर्यमणि-क्यों मैं नही सोच सकता क्योकि मैं उच्च वर्ण का हूं। न्याय-अन्याय में अन्तर तो हम भी समझते है।शोषित वर्ग के साथ सदा अन्याय ही तो हुआ है।रविदास की समानता की जलायी ज्योति अम्बेडकर लेकर चले जिनकी बदौलत आरक्षण के रूप में तरक्की की उम्मीद जागी थी अब उस पर भी ग्रहण लग रहा है।अच्छी बात है पर पुराना सामाजिक आरक्षण खत्म हो इसके बाद राजनैतिक आरक्षण खत्म होना चाहिये।जातिवाद खत्म हो,समाजिक समानता और आर्थिक समानता मिले,स्वधर्मी नातेदारी पर सामाजिक एवं धार्मिक स्वीकृति मिले।शुरूआती दौर में भले ही जातीय व्यवस्था वरदान रही हो पर अब अभिशाप हो गयी है। जातीयस्था का निर्माण करने वाले भारत के असादिवासी मूल के नही थे जो भारत के मूलनिवासियों के उपर दमन का अपनी सत्ता कायम किये हुए थे आज भी कायम है।
लाजवन्ती-ये बाहरी दमनकारी कौन थे।
सूर्यमणि-बाहरी दमनकारियों का साक्ष्य जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक डिस्कवरी आफ इण्डिया और राहुल सांस्कृतायन की पुस्तक वोल्गा से गंगा है।इन पुस्तको में सत्य रूप से परिभाषित किया गया है भारतीय परम्परा कितनी सम्वृद्ध,समरस और रमणिक थी,सम्भ्वतः इसी लिये भारत को सोने की चिडि़या कहा जाता था परन्तु दमनकारियों ने आक्रमाण पर आक्रमण कर सब लूट लिया। देश में घृणा,कटुता,लोभ अंधविश्वास,पाषाण पूजा के चक्रयूह में उलझाकर समाज को ऐसे खण्डित कर दिया कि आज स्वधर्मी जातीय अभिमान में एक दूसरे का जान ले रहे है।बलात्कार कर रहे है,हत्या कर रहे हैं, शोषण,उत्पीड़न,अत्याचार कर रहे है ,जहां जिसको मौका मिल रहे शोषित वर्ग के आदमी का खून पीने को दौड़ पड़ता है।
दीनानाथ-शोषित वर्ग को सत्ता व सम्मान मिल जाये तो आरक्षण की जरूरत ही क्या ?
सूर्यमणि-यह इतना आसान नही जब तक पुराना जातीय आरक्षण नही खत्म होगा। कमजोर वर्ग को सत्ता व सम्मान नही मिल सकता ।पुराना आरक्षण खत्म करने के लिये जातिप्रथा को आश्रय देने वालों को ही जातिवाद के खिलाफ खड़ा होना होगा,तभी स्वधर्मी समानता का विकास हो सकता है।प्राकृतिक संसधनों को उपयोग हो सकता है।नक्सलवाद,आतंकवाद,भ्रष्ट्राचार का उन्मूलन हो सकता है क्योकि सारी बीमारियों की जड़ तो जातिवाद है।संविधान के अनुरूप ही सत्ता का संचालन सुनिश्चित होगा।जातिविहीन समाज और अन्तरजातीय विवाह को प्रोत्साहन वर्तमान जातीयद्वेष वाले भारतीय समाज में तो सम्भव नहीं हो सकता।वर्तमान में सम्पति व भूमि कुछ लोगों के पास कैद सी हो गयी है।आर्थिक समानता की भी देश को दरकार है। सामाजिक एंव आर्थिक समानता के बिना शोषित वर्ग की तरक्की मुंगेरीलाल के हसीन सपने की भांति होगी।
लाजवन्ती- सामाजिक एंव आर्थिक समानता तो बहुत दूर की बात लगती है।देश में तो मूल जरूरतें पूरी नही हो पा रही है।श्साोषित वर्ग के बच्चें स्कूल नही जा पा रहे है।मां बा पके सामने रोजी रोटी का सवाल है। वे बच्चों का पेट पाले या स्कूल भेजे।अब तो शिक्षा का व्यावसायिककरण हो गया है।शोषित वर्ग की पहुंच से शिक्षा दूर होती जा रही है।मामूली सा आरक्षण है जिसका फायदा अभी कुछ ही लोगों का मिला है। उसको खत्म करने के लिये उपद्रव,नरसंहार तक हो रहा है।आरक्षण तो राष्ट्रीय विकास की एक प्रक्रिया है।
सूर्यमणि-शोषित वर्ग के पिछड़ेपन को देखते हुए आरक्षण तो जारी रखा जाना चाहिये। पदोन्नति में भी आरक्षण जरूरी है।इसके साथ ही सरकार और समाज के ठेकेदारों को चाहिये कि दबे-कुचले वर्ग के विकास के लिये आगे आये उन्हें रोजगार मुहैया कराने,व्यवसाय खड़ा करने में मदद करे।पा्रइवेट संस्थानों में भी कमजोर वर्ग को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार प्रदान कर इनकी गरीबी दूर कर विकास के रास्ते पर ला सकती है पर दुर्भाग्यवश विरोध हो रहा है,जो अन्याय से कम नहीं।
अनोखी-अतीत काल से मूलनिवासियों जो अब शोषित है के साथ अतीत काल से अन्याय हो रहा वामन ने बली के साथ जो छल किया उसके पश्चात सार्वजनिक कुएं,तालाब से पानी लेना और पीना अछूतों के लिये प्रबतिबन्धित था। उसी तालाबों में जानवर लोटपोट करते थे,पानी पीते थे,गिद्ध,कुत्ते मरे जानवरों का भक्षण कर इन्ही तालावों का पानी पीते थे,इसी पानी को शोषित वर्ग अर्थात अनार्यों से दूर था,इस पानी पर पहरा था ।सवर्णाे के घर के अन्दर प्रवेश वर्जित था,जबकि उनकी कमाई का अनाज उच्चवर्ण के गोदामों में भरा होता था आज भी भरा है परन्तु गोदाम में कैद हो जाने पर छूने पर प्रतिबन्ध था।कुछ इलाकों में तो आज आज भी शोषित वर्ग के आदमी को जूता-चप्पल पहनकर चलने पर प्रतिबन्ध है।दूल्हे के घोड़ी पी बैठने बलवा तक हो जाता है।हजारों वर्षो के अपामान के बाद अंगेजी सरकार ने शिक्षा का दरवाजा खोलकर सम्मान का रास्ता दिखाया।आजादी के बाद भारतीय संविधान ने हजारों वषों से शोषण अत्याचार का जहर पीकर गुजर कर रहे मूलनिवासियों अर्थात अनुसूचित जाति,जनजाति को सम्मान से जीने और तरक्की का हक और हिम्मत दिया।आज उसी हक अर्थात आरक्षण का विरोध हो रहा है। अरे विरोध ही करना है तो पहले समाजिक आरक्षण का विरोध करना चाहिये,मंदिरों पर कब्जे का विरोध होना चाहिये,व्यापार पर कब्जे का विरोध होना चाहिये,जमीन पर कब्जे का विरोध होना चाहिये,बिना कर्म किसी श्रम की कमाई का विरोध होना चाहिये पर नही संवैधानिक आरक्षण का विरोध हो रहा है जो राष्ट्रीय विकास की प्रक्रिया है।
कतरप्रसाद-अनोखी ने बली और वामन की जो बात कहा है। वह सही है,वामन के छल के बाद आज तक मूलनिवासियों को लगातार अभाव,दुख,भय-भूख,छुआछूत, अपमान का जीवन जीना पड़ा है आज भी बदसूरत जारी है।शोषित वर्ग के जीवन में कुछ भी नही है,जिसके पास कुछ नही है यकीनन वह अपने इतिहास,भूगोल सहित सब कुछ पाने की इच्छा रखेगा। यही शोषितवर्ग के जीवन संघर्ष की सच्ची दास्तान है।शोषित वर्ग को आज भी ना जाने क्यों शत्रु माना जा रहा है।वर्तमान आजाद भारत में भी प्रति पन्द्रह मिनट में चार अनुसूचित जाति के व्यक्ति पर अत्याचार हो रहा है।प्रति दिन तीन अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है,दो की हत्या और ग्यारह व्यक्तियों को मारा पीटा जाता है।प्रति सप्ताह तेरह की हत्या कर दी जाती है। पांच के घर जला दिये जाते है और आठ का अपहरण किया जाता है। कितने होनहार शोषित वर्ग के छात्रों को भविष्य नष्ट कर दिया जाता है।ना जाने कितने इस वर्ग के छात्र आत्म हत्या कर ले रहे है,पढ़ाई छोड़ दे रहे है,अनेको अनुसूचित जाति जनजाति के कर्मचारी के हक छिने जा रहे है। अनेको के तरक्की के अवसरों पर डकैती हो रही है,कुल मिलाकर अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़ा वर्ग किसी ना किसी रूप में शोषण अत्याचार का शिकार है जिसकी वजह से वह तरक्की से वंचित है,इसके बाद भी आरक्षण का विरोध, मानवता पर अत्याचार ही कहा जाना चाहिये।
सूर्यमणि-दीनानाथ भी तो दर्द का जहर पीकर नौकरी कर रहे है। इनके साथ न्याय हुआ होता तो बड़े मैनेजर होते पर शोषितवर्ग की योग्यता के दुश्मन आज भी इनकी योग्यता को भी चौथे दर्जे का ही आंक रहे है।इनके साथ युद्ध में हारे हुए शतु्र जैसा व्यवाहार हो रहा है इसके बाद भी अपने लूटे हुए हक को पाने के लिये संघर्षरत् है।
कतरप्रसाद-कहने को तो हम आजाद देश में रहते है पर कैसी आजादी,वही शोषण,उत्पीड़न, अत्याचार,कैद नसीब तनिक आरक्षण के सहारे कुछ लोग आगे निकल रहे थे उस पर भी गिद्ध नजर। अरे आरक्षण की नही सम्मान,सामाजिक समानता,आर्थिक समानता और शिक्षा गारण्टी का आवश्यकता है।
सूर्यमणि-शोषितों को पूर्ण सामर्थ्य पाने के लिये देश में डायवर्सिटी के सिद्धान्त को लागू करवाने का संकल्प लेना चाहिये क्योंकि इसके बिना शोषित वर्ग की आर्थिक,सांस्कृतिक,सामाजिक और शैक्षणिक जागृत सम्भव नही है।सामाजिक आरक्षण के रहते संवैधानकिन आरक्षण का विरोध तो मानवता पर अत्याचार है।
लाजवन्ती-कालान्तर में शिक्षा का अधिकार छिन लिया गया,धर्म को आदमी को अछूत बनाये रखने का कारण बना दिया गया,अनेको अमानवीय रीतिरिवाजों के कारण आदमी को अछूत बना दिया गया जिसके कारण आजाद देश में भी गुलाम बनाये रखने वाले अमानवीय नियम कायदे चलन में है।यही कारण है कि स्वधर्मी मानवीय समानता,एकता और बन्धुत्वभाव का अभाव है। स्वधर्मी मानवीय समानता स्थापित होने तक आरक्षण सरकारी ही नही अर्धशासकीय,सहकारी और पा्रइवेट संस्थाओं लागू होना चाहिये।यदि संवैधानिक आरक्षण खत्म ही करना है तो उसके पहले सामाजिक आरक्षण अर्थात जातिवाद खत्म होना चाहिये।
दीनानाथ-भारतीय संविधान में समाहित समता,एकता,अखण्डता और बन्धुता किसी उच्च वर्णिक बिरादरी की विचारधारा का परिणाम नही है बल्कि महात्माबुद्ध के सामाजिक,राजनैतिक, धार्मिक विचारों और अप्पो दीपो भवः का समावेश है जिसमें बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय और मानवीय समानता निहित है।
सूर्यमणि-दुखद बात तो ये है कि रूढि़वादी व्यवस्था इस सब को मानती नही है,और कमजोर के हितो पर कुठराघात को उकसाती रहती है।यही कारण है कि आरक्षण का विरोध बिना सोचे समझे हो रहा है।
कतरप्रसाद-आरक्षण धोखा तो है परन्तु इसके खत्म किये जाने पहले पुराना जाति आधारित आरक्षण समाप्त हो जाये। संवैधानिक आरक्षण से शोषित वर्ग को सर उठाकर जीना का भरपूर मौंका नही दे पायेगा।
दीनानाथ-सच शोषित वर्ग को संवैधानिक आरक्षण की आवश्यकता नही है। उसे आवश्यकता है तो सामाजिक समानता,आर्थिक समानता और निःशुल्क प्राइमरी से उच्च तकनीकी शिक्षा गारण्टी की।
सूर्यमणि-देखना है बदलते युग में सामाजिक/धार्मिक और राजनैतिक सत्ताधीश ईमानदारी से शोषितवर्ग को विकास से जोड़ने की शपथ ले पाते है।
लाजवन्ती-ट्रे रखते हुए बोली लीजिये चाय बहुत हो गयी बतकुचन ।
दीनानाथ-सदियों से शोषितवर्ग का भविष्य /धार्मिक और राजनैतिक सत्ताधीश के पाले में है पर उद्धार नही हुआ है,आरक्षण राष्ट्र विकास की प्रक्रिया मानकर लागू किया गया था पर अब राजनैतिक परिवेष में धोखा लगने लगा है शोषित वर्ग का कल्याण समानता,आर्थिक समानता और शिक्षा गारण्टी के बिना सम्भव नहीं।
सूर्यमणि-उच्च वर्णिक आदमी सामाजिक/धार्मिक और राजनैतिक सत्ताधीशों का दायित्व बनता है कि शोषित वर्ग के उत्थान के लिये वे सच्चे मन से शपथ ले तभी समानता,आर्थिक समानता और शिक्षा गारण्टी मिल सकेगी और सदियों से दबा कुचला समाज तरक्की कर पायेगा। वर्तमान दौर में आरक्षण का विरोध और समर्थन दोनो शोषित वर्ग को तरक्की गारण्टी नही दे पायेगा। आओ शोषित वर्ग के उद्धार की ललकार करें।
25․08․2013
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डाँ․नन्दलाल भारती
एम․ए․ ।समाजशास्त्र। एल․एल․बी․ । आनर्स ।
पी․जी․डिप्लोमा-एच․आर․डी․
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