व्यंग्य मिस कॉल डॉ. रामवृक्ष सिंह मोबाइल फोन के आगमन के साथ संवाद और संदेश-संप्रेषण से जुड़ी कई नई-नई अवधारणाएं हमारे समाज में आई हैं। इ...
व्यंग्य
मिस कॉल
डॉ. रामवृक्ष सिंह
मोबाइल फोन के आगमन के साथ संवाद और संदेश-संप्रेषण से जुड़ी कई नई-नई अवधारणाएं हमारे समाज में आई हैं। इनमें मिस कॉल भी एक है। मिल कॉल का आशय है, एक टेलीफोन से दूसरे टेलीफोन पर किया गया फोन, जिसका उद्देश्य यह जताना होता है कि हम आपसे बात करने के इच्छुक हैं, किन्तु उसपर जो भी खर्च आनेवाला है उसकी जुगाड़ हमारे पास न थी, न है और न होगी। हम सब जानते हैं कि मोबाइल फोन में या तो हम पहले धन अदा करके टॉक टाइम डलवाते हैं या पहले बातें कर लेते हैं और जब बिल मिलता है तो अब तक की गई बातों का बिल अदा करते हैं। लेकिन मिस कॉल करनेवाला या वाली, इनमें से किसी भी रूप में धन अदा नहीं करना चाहता। वह चाहता है कि बात तो वह करे, किन्तु उसके लिए जो भी चवन्नी-अठन्नी या रुपय्या खर्च करना है, वह आप करें। इतनी रकम या तो उसके पल्ले है नहीं या वह खर्च करना नहीं चाहता।
खैर...। अब सवाल यह पैदा होता है कि मिस कॉल के जवाब में कोई किसी को फोन क्यों करे? सच्ची बात तो यह है कि हममें से अधिकतर इन्सान बेहद सामाजिक प्राणी होते हैं। सामाजिक होने के साथ-साथ हमारी संवेदनाएं भी बड़ी प्रखर होती हैं। जैसे ही कोई कॉल आती है, और हमारे उठाने से पहले कट जाती है, यानी मिस कॉल में परिणत हो जाती है, हम लपककर फोन उठाते हैं। हमें लगता है कि पता नहीं मिस कॉल करनेवाले पर क्या आफत आई है, जो पैसे न होने के बावज़ूद या पैसे होने पर भी उन्हें खर्च करने की इच्छा न होने के बावजूद हमसे बात करना चाहता है। हम कॉलर का नम्बर देखते हैं और पलटकर फोन करते हैं।
उधर मिस कॉल करनेवाले को यह डर लगा रहता है कि कहीं कॉल मिल न जाए, यानी जिसे कॉल कर रहे हैं वह फोन उठा न ले। यदि फोन उठा लिया गया तो गजब हो जाएगा। कॉल चार्ज हो जाएगी और पैसे लग जाएंगे, यदि प्रीपेड है तो पैसे वहीं के वहीं कट जाएँगे और यदि पोस्ट-पेड़ है तो बिल में जुड़ के आ जाएँगे। यदि ऐसा गज़ब हो गया, यानी इरादा तो मिस कॉल मारने का था, लेकिन कॉल उठ गई तो मिस कॉल का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। तब वह मिस कॉल न रहकर पूरी की पूरी कॉल ही हो जाएगी। इसलिए मिस कॉल करनेवाले जितनी जल्दी हो कॉल को काट देते हैं। कई बार तो जैसे ही दूसरी ओर घंटी बजी, वैसे ही वे कॉल काट देते हैं। इससे वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कॉल किसी भी हाल में उठने न पाए। यानी चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। लेकिन कई बार वे शीघ्रता की अति कर देते हैं और इस कॉल काटने में इतनी तत्परता बरतते हैं कि दूसरी ओर के मोबाइल पर उनका नंबर भी पूरा नहीं आ पाता। अब जब नंबर ही पूरा नहीं आया, तो दूसरी ओर से कोई वापस कॉल कैसे करे? लिहाजा मिस कॉल का सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है। बायोलॉजी में कहें तो मिस कॉल की भ्रूण-हत्या हो जाती है। जिस उद्देश्य के लिए कॉल की गई थी, वह पूरा ही नहीं हो पाता।
वैसे तो पूरी घंटी बजने के बाद भी जब फोन नहीं उठता तो उसे मिस कॉल ही कहा जाता है। लेकिन इस स्थिति में कॉल-कर्ता एक-दो-तीन-चार यानी कई बार फोन करता है और घंटी की मियाद पूरी होने तक फोन होल्ड किए रहता है। तकनीकी रूप से यह भी मिस कॉल ही है, लेकिन व्यवहार्यतः मिस कॉल का वही अर्थ और अभिप्राय है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर आए। कॉल की घंटी बजने की मियाद पूरी होने से पहले ही इस मक़सद से कॉल को काट देना कि दूसरा व्यक्ति कॉलर आईडी देखकर वापस फोन करे और हमसे बात करे।
मिस कॉल करनेवाले कई प्रकार के लोग हो सकते हैं। इनमें प्रधानता गँवई-गाँव के लोगों की होती है, जो या तो गाँवों में रहते हैं, या जो कई दशक से शहर में रहकर भी नागर नहीं हो पाए, गँवार ही रह गए। जिन सौभाग्यशाली पाठकों के रिश्तेदार गाँव में नहीं रहते, या शहर में रहते-रहते ग्राम्य संस्कारों से पूरी तरह बरी हो चुके हैं, उन्हें बधाई। लेकिन उनके लिए अफसोसनाक खबर यह है कि वे शायद ही कभी मिस कॉल जैसी स्थिति का अनुभव कर पाएँ। मिस कॉल तो केवल ऐसे लोगों को मयस्सर है, जिनके जानने वाले, रिश्तेदार और नातेदार धेले-अधेले, पैसे और पाई का मोल जानते हैं। और निरपवाद रूप से ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी तादाद हमारे गाँवों में है, जहाँ के बारे में किसी समझदार कवि ने कहा था कि है अपना हिन्दुस्तान कहाँ, वह बसा हमारे गाँवों में। तो इस ग्राम्य भारत में यदि आपके रिश्तेदार व हित-चिन्तक बसते हैं, तो वे निश्चय ही गाहे-ब-गाहे मिस कॉल का तजुर्बा आपको करवाते होंगे। हमें पक्का यकीन है।
यदि उनकी मिस कॉल पर आपने पलटकर फोन कर लिया, तो फिर जो बात दो मिनट में हो सकती थी, उसके समाप्त होने में बीस मिनट लगने ही लगने हैं। और यदि आपने फोन उठा लिया, यानी वे सफल मनोरथ नहीं हुए तो क्या होगा? कॉल-कर्ता पर अज़ाब तो नाजिल होगा ही, लेकिन वह केवल क्षणजीवी होगा। उधर से तुरन्त मनुहार होगी- ‘हैं-हैं. ऐसा है भइया कि हमारे फोन में टाक टाइम बस दो मिनट का बचा है। लेकिन तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है। तो हम फोन काटते हैं, जरा तुम मिलाओ।‘ कभी-कभी यही बात दूसरे शब्दों में कही जाएगी। यानी सीधे-सीधे अभिधा में नहीं, बल्कि लक्षणा और व्यंजना में- ‘हैं,हैं.. साहब, इस फोन को जाने क्या हो गया है, कुछ आवाज ही समझ में नहीं आ रही हैगी.. अच्छा तो ऐसा करो कि एक बार काट के तुमई मिलाय लेओ, तब शायद आवाज किलियर आए।’ आपने काटकर मिलाया तो समझिए गए काम से। अब अपने सारे काम छोड़कर आप उनकी बातें सुनने के लिए तैयार हो जाइए। उनका खून खून है, आपका खून पानी। उनका पैसा पैसा है आपका पैसा मिट्टी।
मिस कॉल करनेवालों के मन में कभी यह विचार भी नहीं आता कि वह हमारे साथ कितना बड़ा अन्याय कर रहे हैं। बल्कि इसे वह अपना जन्म-सिद्ध अधिकार समझते हैं। यदि मिस कॉल आने के बाद भी आप पलटकर फोन न करें और कुछ समय व्यतीत होने के बाद उसी व्यक्ति से दुबारा बात करने का मौका मिले, तो वह बाकायदा शिकायत करता है- ‘क्या यार, आपको मिस कॉल की थी, आपने तो पलटकर फोन तक नहीं किया!’ हम जानते हैं कि यह हमारा भावनात्मक शोषण है। चूंकि हम भले आदमी हैं, और फोन करनेवाले की भावना का हम खयाल रखते हैं, इसलिए वह गाहे-ब-गाहे हमें चूना लगाने पर उतारू रहता है। गोया चूना लगाना उसका अधिकार है और लगवाना हमारा। है न मज़े की बात।
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