नागपंचमी महोत्सव. ---------------------- --------------- “ अनन्तं वासुकि शेषं पद्मनाभं च कम्बलम शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ...
नागपंचमी महोत्सव.
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“अनन्तं वासुकि शेषं पद्मनाभं च कम्बलम
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत”
देवी भागवत में –नौ नागों के होने का उल्लेख मिलता है. उनके नाम इस प्रकार है. (१) अनन्तनाग (२)वासुकि (३) शेषनाग (४)पद्मनाभ. (५) कम्बलं (६) शंखमाल (७)धार्तराष्ट्र ( ८)तक्षक तथा (९) कालियानाग. इन नौ नागों के बारे में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति शाम के समय, विशेषकर प्रातःकाल इनका स्मरण करता है, उसे विषबाधा नहीं होती और वह सर्वत्र विजयी होता है. उत्सवप्रियता भारतीय जीवन की प्रमुख विशेषता है. देश में समय-समय पर अनेक पर्वों एवं त्योहारों का भव्य आयोजनों का होना, इस बात का प्रमाण है. श्रावनमास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार नागों को समर्पित है. इस त्योहार पर व्रतपूर्वक नागों का अर्चन-पूजन किया जाता है. इस दिन नागों का चित्रांकन किया जाता है अथवा मृत्तिका से नाग बनाकर पुष्प, गन्ध, घूप-दीप एवं विविध नैवेद्दों से नागों का पूजन करने का विधान है. पूजन करते समय निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करते हुए उन्हें प्रणाम किया जाता है.
सर्वे नागाः प्रीयन्तां में ये केचित पृथ्वीतले
ये च देलिमरीचिस्था येSन्तरे दिवि संस्थिताः
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः
अर्थात;- जो नाग पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणॊं, सरोवरों, वापी, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं, वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार प्रणाम करते हैं
नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना गया है. नागों का मूलस्थान “पाताललोक” प्रसिद्ध है. पुराणॊं में नागलोक की राजधानी “भोगवतीपुरी” विख्यात है. संस्कृत कथा -साहित्य में विशेषरुप से “कथासरित्सागर” नागलोक और वहाँ के निवासियों की कथाओं से ओतप्रोत है. गरुडपुराण, भविष्यपुराण, चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में नाग संबंधी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है. पुराणॊं में यक्ष, किन्नर और गंधर्वों के वर्णण के साथ नागों का भी वर्णन मिलता है. भगवान विष्णु की शय्या शोभा नागराज शेष करते हैं. भगवान शिव और गणेश के अलंकरण में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है. योगराज सिद्धि के लिए कुण्डली शक्ति जाग्रत की जाती है, उसको सर्पिणी कहा जाता है. पुराणॊं में भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमशः प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहक बनते हैं. इस प्रकार अन्य देवताओं ने भी नागों को धारण किया है. नागदेवता भारतीय संस्कृति में देवरुप में स्वीकार किए गए हैं.
कश्मीर के जाने-माने कवि कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “ राजतरंगिणी” में कश्मीर की सम्पूर्ण भूमि को नागों का अवदान माना है. वहाँ के प्रसिद्ध नगर “अनन्तनाग “का नामकरण इसका ऎतिहासिक प्रमाण है. देश के पर्वतीय प्रदेशों में नागपूजा बहुतायत से होती है. यहाँ नागदेवता अत्यन्त पूज्य माने गए हैं. हमारे देश के प्रत्येक ग्राम-नगर में ग्रामदेवता और लोकदेवता के रुप में नागदेवताओं के पूजास्थल हैं,.
देवी भागवत में प्रमुख नागों का नित्य स्मरण किया गया है. हमारे ऋषि-मुनियों ने नागोपासना में व्रत-पूजन का विधान किया है. श्रावणमास की शुक्ल पक्ष की पंचमी, नागों को अत्यंत आनन्द देने वाली” नागानामानन्दकरी” भी कहा जाता है. नागपूजा में उनको गो-दुग्ध से स्नान कराने का विधान है. कहा जाता है कि एक बार मातृ-शाप से नागलोक जलने लगा. इस दाह-पीडा की निवृत्ति के लिए गाय का दूध उन्हें शीतलता प्रदान करता है, वहीं भक्तों को सर्पभय से मुक्ति भी देता है. इनकी कथा श्रवण करने का बडा महत्व बतलाया गया है. इस कथा के प्रवक्ता सुमन्त मुनि थे तथा श्रोता पाण्डवंश के राजा शतानीक थे. कथा इस प्रकार से है;- एक बार देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मंथन द्वारा चौदह रत्नों में उच्चैःश्रवा नामक अश्व-रत्न प्राप्त हुआ. यह अश्व अत्यंत श्वेतवर्णी था. उसे देखकर कद्रू नागमाता तथा विमाता विनता में अश्व के रंग के संबंध में वाद-विवाद हुआ. कद्रू ने कहा कि अश्व के केश श्यामवर्ण के हैं. यदि मैं अपने कथन में असत्य सिद्ध होऊँ तो तुम्हारी दासी बनूँगी अन्यथा तुम मेरी दासी बनोगी. कद्रू ने नागों को बालों के समान सूक्ष्म बनाकर अश्व के शरीर में आवेष्ठित होने का निर्देश दिया, किंतु नागों ने अपनी असमर्थता प्रकट की. इस पर क्रुद्ध होती हुई कद्रु ने नागों को शाप दिया कि पाण्डववंश के राजा जनमेजय नागयज्ञ करेंगे, उस यज्ञ में तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे. नागमाता के शाप से भयभीत, नागों ने वासुकि के नेतृत्व में ब्रह्माजी से शापनिवृत्ति का उपाय पूछा तो उन्होंने निर्देश दिया कि यायावरवंश में उत्पन्न तपस्वी जर्तकारु तुम्हारे बहनोई होंगे. उनके पुत्र आस्तीक तुम्हारी रक्षा करेगा. ब्रह्माजी ने पंचमी तिथि को नागों को वरदान दिया तथा इसी तिथि पर आस्तीकमुनि ने नागों की रक्षा की. अतः नागपंचमी का यह व्रत ऎतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. नागों की अनेक जातियाँ और प्रजातियाँ हैं. भविष्यपुराण में नागों के लक्षण, नाम, स्वरुप एवं जातियों का विस्तार से वर्णण मिलता है. मणिधारी तथा इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख इसमें मिलता है.
सभी प्राणियों में भगवान का वास होता है. यही दृष्टि जीवमात्र- मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट-पतंगों आदि सभी में ईश्वर के दर्शन कराती है. जीवों के प्रति आत्मीयता और दयाभाव को विकसित करती है. अतः नाग हमारे लिए पूज्यनीय और संरक्षणीय हैं. प्राणिशास्त्र के अनुसार नागों की असंख्य प्रजातियाँ हैं, जिसमें विषभरे नागो की संख्या बहुत कम है. ये नाग हमारी कृषि-सम्पदा की, कृषिनाशक जीवों से रक्षा करते हैं. पर्यावरणरक्षा तथा वनसंपदा में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है.नागपंचमी का यह पर्व नागों के साथ जीवों के प्रति सम्मान, उनके संवर्धन एवं संरक्षण की प्रेरणा देता है. यह पर्व प्राचीन समय के अनुरुप आज भी प्रांसगिक है. आवश्यक्ता है हमारी अन्तर्दृष्टि की.
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