सिन्धी कहानी - वो जहान - ये मन

SHARE:

सिन्धी कहानी - वो जहान - ये मन मूल: ए. जे.उत्तम अनुवाद: देवी नागरानी मुझे बोध नहीं था कि चारों तरफ़ फैले हुए बाहरी जहान के तपोबन का एक ति...

सिन्धी कहानी-

वो जहान - ये मन

clip_image002[4]मूल: ए. जे.उत्तम

अनुवाद: देवी नागरानी

मुझे बोध नहीं था कि चारों तरफ़ फैले हुए बाहरी जहान के तपोबन का एक तिनका भी इतना बलवान है कि अंतर्मन पर सालों की अंधेरी गुफ़ाओं पर जमा हुआ मैल, छुहाव से ही मिटा देगा। इस मार्केट में बैठी भाजी वाली के दो-चार शब्दों में जाने क्या बात थी जो अंदर में हलचल मच गई। जाने क्या सोचकर शिकायत कर बैठी ‘‘मुझे आधे रुपए में सिर्फ़ दो चार पत्ते कोतमीर दिये है, पर उस दूसरे आदमी को तो ढेर सारा कोतमीर दे दिया। मैंने भाजियाँ भी ज़्यादा ली हैं, और मैं तो तुम्हारी रोज़ की ग्राहक भी हूँ। मगर ये आदमी तेरा कौन लगता है?’’

भाजी वाली अल्हड़ जवान थी सो शोखी से कहा - ‘‘ये यार लगता है’’ यह सुनकर और भाजी वालियाँ भी हँसने लगीं और बेचारा वह आदमी हक्का-बक्का-सा होकर चलता रहा।

मैं भी कुछ परेशान हुई, पर फिर भी भाजी वाली को तुच्छता का अहसास दिलाने की खातिर कहा - ‘‘इस यार की बात सुनकर कहीं तेरा पति तुझे न मारे !’’

वह तुनककर बोली - ‘‘क्यों मारेगा ? उसको भी तो मिल में मज़दूर सहेलियाँ ‘यार’ बुलाती हैं।’’

मैंने कहा - ‘‘यह सुनकर तुझे ईर्ष्या नहीं होती उसकी सहेलियों से ?’’

कहने लगी - ‘‘कौन-सी पत्नी को ईर्ष्या नहीं होगी ? पर घर-बार और इस काम के बीच इतनी फ़ुर्सत कहाँ है जो उस ईर्ष्या को ले बैठें ? ये आप जैसे फ़ुर्सत मिजाज लोगों का मर्ज़ है। आपके पति के साथ कोई जवान लड़की मुस्कराकर दो मीठे बोल बोलेगी तो भी हसद और अविश्वास होगा कि कहीं वह उसे आप से छीन न ले।’’

ऐसा कहकर वह मिल मज़दूर की पत्नी भाजी वाली तो हँसने लगी पर साथ में सुर मिलाकर और भाजी वालियाँ भी हँसने लगीं।

मेरे मन ने और ज़्यादा सुनने में अपनी लाचारी दिखाई और मैं भाजी की थैलियाँ लेकर घर की ओर रवाना हुई। पर उस भाजी वाली के सीधे-सादे अल्फ़ाज़ - ‘ये यार लगता है, ये आप जैसे फ़ुर्सत-मिज़ाज लोगों का मर्ज़ है।’ मेरे अंदर में प्रतिध्वनित होकर गूँजने लगे और मेरे पाँव घर पहुँचने को बेताब हो उठे।

घर पहुँची, दरवाज़े पर दस्तक दी तो दरवाज़ा खुलते ही बहू को तैयार होकर सहेली के साथ ऑफिस के लिये निकलते देखा। बेटा तो पहले ही ऑफिस गया हुआ था। मुझे देखकर सहेली ने मेरी बहू से कहा - ‘‘अच्छा यार, चलो जल्दी करो।’’ ये न हो कि बहू मेरे साथ बात करने के लिए रुक जाए। कैसी मशीनी मनोवृत्ति हो गई है ! ज़माना भी कितना बदल गया है। हर किसी को लड़कियों ने ‘यार-दोस्त’ बना लिया है। मुझे इस लफ़्ज से जुड़ा मेरा माज़ी याद आने लगा। मुझे विभाजन के वक़्त की सिंध की याद सताने लगी। जब एक कंवारी ने इस लफ़्ज ‘दोस्त’ से मेरे मन में हसद और अविश्वास का बीज बोया था, जिसने यहाँ आकर मेरे पति को दुख के घेराव में घेर लिया।

उस वक़्त सिंध में मैट्रिक ही पास की थी कि मुल्क का विभाजन हुआ। कॉलेज में पढ़ने की कितनी खुशी और ख़्वाहिश थी, लेकिन इस विभाजन ने हमारी हर ख़ुशी और ख़्वाहिश का अंत कर दिया। हमारे लिये चारों ओर डर, दहशत और बेसलामती वाली हालत पैदा हो गई, बावजूद इसके सिन्ध में बाहर से आए लोग बसने लगे तो वहाँ रहना और ही संकटमय हो गया।

अंग्रेजों द्वारा विभाजन के ऐलान से रातों-रात हम सिंध धरती के मालिक, ग़ैर से हो गए और आए हुए ग़ैर धाकड़ महमान मालिक बन गए, क्योंकि वे मुसलमान थे और हम हिन्दू। यह मतभेद का ज़हर, प्यार-मुहब्बत में रहने वाले हिन्दुओं में नए सिरे से फैल गया, हालाँकि जिस जिन्ना साहब ने हिंदू-मुसलमान को जुदा क़ौम कहकर बँटवारा कराया, उसने पाकिस्तान को गवर्नर-जेनरल होने पर पहले दिन कहा कि अब पाकिस्तान में न कोई मुसलमान और न कोई हिन्दू बुलाया जाएगा, पर मुल्क का एक जैसा शहरवासी बराबर और हक़दार रहेगा, मगर इस ऐलानों पर अमल नहीं किया गया।

इसलिये जवान पीढ़ी को जैसे मौक़ा मिला वैसे ही अपना घर, उसमें सजाई हुई हर शै को कौड़ियों के दाम बेचकर जाना पड़ा। कुछ तो अपने कच्ची उम्र की कन्याओं की शादी कराने में लग गए। रातो-रात मंगनी और ब्याह होने लगे। कहीं पर न पूरी तरह से शादी की रस्में निभाई गईं, न खुशी के साथ नाचना-गाना ही हुआ। बस ख़ामोशी की घुटन में ही बंधन बाँधे गए और सात फेरे लगवाए गए। न जात का पता लगवाया, न सूरत और सीरत, न इल्म, न ही अक़्ल, न प्यार व पसंदी, न स्वभाव और विचारों को ही देखा गया। मैं भी इसी तरह बंधन में बाँध दी गई, ख़ुद से सात-आठ साल बड़ी उम्र वाले कॉलेज पढ़े हुए एक मास्टर के साथ, माँ-बाप की अनेकों मिन्नतें की कि मैं अभी नाबालिग बालिका हूँ, कॉलेज में पढ़ने दो, छोटी उम्र में ही शादी के जंजाल में न फँसाओ पर उन्होंने मुझे मेरी उम्र की औरतों को दिखाते हुए कहा कि वे उसकी उम्र में दो-तीन बच्चों की माएँ बन चुकी है। इस तरह मुझे शादी करवाकर मेरी माँ, छोटा भाई और बहन सिंध से चले गए। हैदराबाद स्टेशन पर, ट्रेन में चढ़ते समय उन्हें भेड़-बकरियों की तरह जूझने का नज़ारा याद करके आज भी मेरी छाती में धड़कन तेज़ हो जाती है।

मैके की रवानगी के बाद हम घर लौटे तो मेरा पति मुझे भीतर छोड़कर, ख़ुद पड़ोस में मुस्लिम दोस्तों के पास चला गया। मैंने भीतर आकर कुछ साँस ली ही थी कि सास ने कोई किताब मुझे देते हुए नाटकीय ढंग से कहा - ‘‘अरी बहुरिया, ये देख, वो पड़ोस वाली कॉलेजी छोरी है न, उसने यह किताब तेरे पति के लिये दिया है। जब पूछा कि तू उसकी कौन लगती हो, तो खुशी से हँसते हुए कहा – वह मेरा दोस्त है।’’

वही ‘दोस्त’ लफ़्ज, ‘यार’ के रूप में आज उस भाजी वाली के मुँह से सुनकर तीस साल पहले की सिंध की कहानी आँखों के आगे फिर उभर आई। उस ज़माने में दोस्त लफ़्ज पर मेरी सास को तो अजब लगा था, पर मेरी भी सोच झुंझला गई। फिर उस किताब में अंग्रेजी शायर बायरन का ‘‘डान जान’’ का इश्की किस्सा व रोमांस वाले फोटो देखे तो ख़ून कुछ जमने-सा लगा। वे तस्वीरें सास को दिखाते हुए कहा - ‘‘देखो अपने लाड़ले के करतूत, कैसी किताबें पढ़ाता है कँवारी लड़कियों को ?’’

यह सुनते ही सास ने जो सुनाया वह आज तक नहीं भूली हूँ मैं, कहा - ‘‘बेड़ा ग़रक़ हो ज़माने का, देखो ना कंवारी छोरी को क्या ज़रूरत थी जो तेरे पति को दोस्त बनाने चली है।’’

मुझे सास का यह सच दिल से लगा जो आज भी नहीं बिसरा। हक़ीक़त में मेरी स्वर्गवासी सास सीधी-सादी, साफ़ गोयाई व सच कहने की पक्षधर थी। कभी उसका बेटा उसके खिलाफ़ की हुई मेरी शिकायत मानकर उसे कुछ कहता तो वह बेधड़क कहती थी - ‘‘पगला गया है। दर्द पीकर तुझे जनम दिया है। माँ का अदब-लिहाज़ कर, बीवी का ग़ुलाम न बन।’’

यह सुनकर सारे घर में एक खिलखिलाहट का स्वर सुनाई देता, पर मैंने उस वायुमंडल को पार करते जब पति को गुस्से से कहा - ‘‘यह देखो ‘डान’ जान की रोमांस का किताब आपकी सहेली दे गई है।’’

उसने माँ की तरह सीधे-सादे अंदाज़ में कहा, ‘‘तुमने कॉलेज नहीं पढ़ा है, नहीं तो इस किताब पर इस क़दर गुस्सा व हसद न होता। यह आज़ादी के पैगंबर कवि बाइरन और शैली वगैरह कॉलेजी कोर्स में पढ़ने पड़ते हैं। ख़ुद हमारे टैगोर, जवाहरलाल के भी ये प्रिय कवि थे। यह ‘डान जान’ किताब पड़ोसन मिस भारवानी ने ख़ुद पढ़ने के लिये कॉलेज की लाइब्रेरी से लिया है, वही मुझे भी पढ़ने को दे रही है। सच मानो किताब ही हमारी सब से दुर्लभ दोस्त है।’’

मैंने तन्ज़ी रवैये से पूछा - ‘‘उस सहेली मिस भारवानी से भी ?’’

और पति ने उस तन्ज़ का जवाब बेहद सादगी से दिया, ‘‘अरे हाँ, और नहीं तो क्या?’’

उन्हें बराबर किताबों से बेहद प्यार था, वे बेहद चाव के साथ पढ़ा करते थे, जो कुछ उन्हें अहम लगता था उसके नीचे लकींरे खींचते थे। कितने ही आदमी उनके पास किताब देने-लेने और सलाह करने आया करते थे। पर भूल से भी वही सहेली उनके पास आई थी तो बहुत जलन और हसद हुआ करता था और उसके कहे लफ़्ज ‘वो मेरा दोस्त’ है, दिमाग़ पर हथौड़े की तरह चोट करते।

मैं इसलिये ही सिंध से तब्दीली के लिये पति को बरबस कहती रही, पर वे ऐसा करने को तैयार न थे। इस क़दर कि उसके सब रिश्तेदार भी वहाँ से चले गये, पर फिर भी कहने लगे - ‘‘ये जननी जन्म भूमि कैसे छोडूँ ? श्री रामचन्द्र जी ने भी अपनी जन्मभूमि अयोध्या को सोने की लंका के आगे तुच्छ समझा था। हमारी सिंधड़ी हमारे लिये ऐसी ही अहम पवित्र भूमि है।’’

पर मेरा शक फिर भी बढ़ता रहा कि ये सब बहाने बना रहे हैं, वो इस सहेली से दूर होना नहीं चाहते। हसद और शक ने मन पर मैल की परतें चढ़ा दीं। उस सहेली के लफ्ज़ याद आया करते थे - ‘वो मेरा दोस्त है।’

वहाँ विभाजन के कारण मुल्क की हालत बदत्तर होने लगी। अख़बारों में हिन्दू-मुस्लिम के बीच में नफ़रत और कुलफ़त बढ़ जाने की खबरें छपने लगी। सिन्ध में जहाँ पहले हिन्दू मुसलमान पास पड़ोस में माई-बाप बनकर बैठे थे, वे अभी एक दूसरे के दोस्त और मददगार भी नहीं बन सके। इसके बावजूद मेरे पति सिन्ध को छोड़ने की मेरी बात से सहमत नहीं हुए। उस वक़्त विभाजन को छः महीने भी नहीं हुए थे कि बाहरी लोग भीतर आए और हैदराबाद में फ़साद को बढ़ावा देने लगे। कुछ वक़्त पहले कराची में भी उन्होंने फसाद करवाया था, जो विभाजन के पहले सिन्ध में नहीं हुए थे।

उन फ़सादों में हमारे सिन्धी मुसलमान दोस्तों का वक़्त के पहले हमें आगाह करना और मदद करना हमारे बचाव का कारण बना, और कई जगहों पर भी सिन्धी मुसलमान हिन्दुओं का बचाव हुआ, जैसे भारत में भी फ़सादों के वक़्त हिन्दुओं ने अपने मुस्लिम पड़ोसियों और दोस्तों का बचाव किया था।

उस मनहूस जनवरी महीने के अंत में देशपिता महात्मा गांधी की शहीदी की ख़बर सुनकर हाहाकार मच गया। मेरे पति ने तो रोकर ख़ुद को बेहाल कर दिया। वे इतने दुखी और उदास हुए कि आख़िर सिन्ध छोड़ने के मेरे प्रस्ताव को मान लिया, हालाँकि उनकी सहेली अभी भी वहाँ से कहीं गई न थी। तब जाकर ख़ुशी हुई और मेरे मन को कुछ चैन मिला। लेकिन अजब तब लगा जब वहाँ से रवाना हो रहे थे, तब वह मेरे पति से मिलने आई तो दिल में दबा हसद फिर जाग उठा। हँसते हुए उसने कहा - ‘‘इस बहन को भी साथ लेकर नहीं जाओगे ?’’ मैंने जब उसको देखा अनदेखा किया तो उसने फिर से अंग्रेजी में अपने दोस्त से कहा - ‘‘मुझको भुला भूला तो न दोगे ?’’ तो मैं जलभुन उठी। हालाँकि इसी अंदाज में मेरे पति के दोस्तों ने भी मेरे साथ अपनाइय से बात की है, पर उनको तो कभी भी हसद नहीं हुआ है। आज भी उस भाजी वाली की गुफ़्तार ने इस नज़ारे को मन के पर्दे पर ज़िन्दा करके खड़ा कर दिया है।

हम मुम्बई की ओर रवाना होने के लिये कराची में आए, वहीं पति के कुछ मुस्लिम दोस्त अलविदा कहने आए और भरे गले से बार-बार कहा - ‘‘माँ सिंधड़ी को न भुलाना।’’ मेरे पति को अलविदा कहने कहा - ‘‘दुआ करना कि यहीं अपनी माँ के पास जल्दी लौट आएँ।’’ मुझे उसकी यह बात बिलकुल भी भली नहीं लगी और मैंने पति से कहा - ‘‘अब यहाँ कौन-सा रिश्तेदार बैठा है, जिसके पास लौट कर आना है ? अभी ताज़ी शादी की है, पत्नी की ओर भी कुछ फ़र्ज पालने का ख़्याल है या नहीं ?’’ जवाब में बड़े स्नेह से कहा, ‘‘यहाँ देखा नहीं कि तेरा ख़्याल इतना रखा कि माँ से जोरू के गुलाम का ख़िताब मिला। उसके जाने के बाद यह ख़बर न रखी कि घर वाले अब कहाँ है ?’’

मैंने भी खुनकी के साथ कहा - ‘‘वैसे तो आपसे बंध जाने के बाद मैंने भी तो अपनों को भुला दिया है।’’

हम जब मुंबई जैसे अजगर शहर में पहुँचे तो हमसे पहले आए सिन्धी बड़े दर-बदर थे। जाने कितना अरसा खुले आसमान के नीचे बिताना पड़ा, उसके बाद कल्याण कैम्प की बैरकों में टाट के परदे लगाकर भी रहना पड़ा। कभी टीन की तपती छतों के नीचे तो कभी बारिश में बहती छतों के नीचे भी सोना पड़ा। रोज़गार के लिये अपने कांधों पर भरोसा होने के बावजूद भी मकानों में काम करते मालिकों की बातें सुननी और सहनी पड़ती थी। ऐसी मुसीबत के वक़्त में सिन्ध के कुशादे कमरों और बड़े आँगन वाले हवादार घरों में गुजारे सुख के पल और शांतमय जीवन की बहुत याद आती थी। सच में हाथ से सबकुछ छूट जाने के बाद ही हर शै की क़द्र होती है, जैसे सिन्ध वालों को भी अब हमारी क़द्र हुई है।

हम कैम्प छोड़कर मुम्बई की बसी हुई बस्तियों में आ बसे, दो-तीन सालों में ही हम दो से चार हो गए। मेरा सारा वक़्त घर में ही बेटे और बेटी के लालन-पालन में गुज़र जाता था, इसलिये पति ने भी नौकरी करने के लिये ज़ोर नहीं दिया। ख़ुद ही सारा समय आजीविका के लिये मास्टरी और टयूशन करते रहे, पर कभी कोई जवान छोकरी पति के पास पढ़ने, ट्यूशन लेने या किसी और काम से आती तो उनकी सिन्ध वाली सहेली याद आ जाती। उसका कभी-कभी ख़त आता रहता था। तब मेरे मन में हसद जाग उठता, इसलिये घर में अक्सर खट-पट चलती रहती थी। बेटी बड़ी होते ही बाप की, और बेटा मेरी तरफ़दारी करने लगा।

एक दिन मुम्बई के बाहर बसे सिन्धी घर में बेटी की शादी हो गई, पर वह सुखी न रही। बेटा कॉलेज पढ़ने के साथ-साथ नौकरी भी करने लगा। कॉलेज पूरा करके, सिविल मैरेज करके बहू घर ले आया। न सलाह, न मश्वरा और न कोई शगुन-रस्म। बस शादी कर ली। इसलिये घर में किलकिल और बढ़ गई। बेटा मेरी तरफ़ था, पर बहू ससुर की तरफ़दारी करती रही, तो हसद की आग और भड़क उठी। फिर हसद के साथ स्त्री हठ हमजोली हुआ तो पति के खिलाफ़ मन मैला ही रहा।

आख़िर एक दिन अचानक ही दिल टूटने के कारण वह स्वर्गवासी हुए। तब बहू ने उस घटना के लिए कई दोष मुझपर मड़े, पर हासिद व हठीला मन मानकर भी न मान पाया। मन मसोसे कई दिन पड़ी रही। आख़िर सब्ज़ी-तरकारी के लिये घर से निकलना ही पड़ा और बदले हुए ज़माने से साक्षात्कार हुआ, जिसमें एक मज़दूर की पत्नी भाजीवाली के साफ़, सीधे, सच्चे शब्द मेरे हासिद और हठीले मन को शिक्सत दे गए। (१९८८)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सिन्धी कहानी - वो जहान - ये मन
सिन्धी कहानी - वो जहान - ये मन
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAY6gkmQWxswjIqD1j6xquS5op0Uk61C93PQ_yhnm3Ifto0ElTMjq680ott_nKzFohU0B7duWT-wM3w9hjfa2Xr9fQDxzViibDy5l5swISY7NgNxLbhpKnkipPSWYE25ah5JFK/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAY6gkmQWxswjIqD1j6xquS5op0Uk61C93PQ_yhnm3Ifto0ElTMjq680ott_nKzFohU0B7duWT-wM3w9hjfa2Xr9fQDxzViibDy5l5swISY7NgNxLbhpKnkipPSWYE25ah5JFK/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/08/blog-post_4944.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/08/blog-post_4944.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content