31 अगस्त को मैथिलीशरण गुप्त की 125 वीं जयन्ती पर विशेष राष्द्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का अवदान आज भी प्रासंगिक है। यह जान कर आश्चर्य और ...
31 अगस्त को मैथिलीशरण गुप्त की 125वीं जयन्ती पर विशेष
राष्द्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का अवदान आज भी प्रासंगिक है। यह जान कर आश्चर्य और विस्मय होता है कि रामचरितमानस के बाद गुप्तजी द्वारा लिखित ‘भारत भारती' और ‘जयद्रथवध' हिन्दी की ऐसी काव्यकृतियां है जो लाखों की संख्या में आज भी पढ़ी जाती रही है। आज जब लोक मानस राष्द्रीय स्वार्थ से विमुख हो अपने स्वार्थ भोग में लिप्त हैं, गुप्तजी का यह आह्वान ‘चिरकाल तिमरावृत रहे, आलोक का भी स्वाद लो' आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना की यह परतंत्र भारत के लोक मानस के लिए था।
निरंतर क्षीण होती राष्द्रीय प्रेम का न होना आज देश की सबसे बड़ी समस्या है ऐसे माहौल में ‘भारत भारती' के कवि की वाणी की कि ‘हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होगें अभी, आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी' आज की सबसे बड़ी राष्द्रीय आवश्यकता है। आज भारत में मैथिलीशरण गुप्त जैसे देशभक्त कवियों की जरूरत है क्योंकि गुलाम भारत से ज्यादा भयावह स्थिति वर्त्तमान भारत में मौजूद है। गुप्तजी ने भारतीय जीवन की समग्रता में समझने और प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। गुप्तजी का काव्य राम काव्य और प्रबन्ध काव्य है, आपने जहां इस देश की तथा आधुनिककाल की कथा को अपने प्रबन्धों का विषय बनाया, वहीं विदेश संबंधी एवं प्रागैतिहासिक सामग्री को वस्तु-रूप में ग्रहण किया है। अज्ञात एवं अख्यात व्यक्तियों से होकर महामहिम महिप तक इनके काव्यों के पात्र है, जो गप्तजी की कविता को काफी विस्तार देती है। ये विश्व के महान प्रबंन्ध कवियों के समान अमर चरित्रों के स्रष्टा और पुनर्निमाता भी है। उर्मिला, यशोधरा और बिष्णुप्रिया आदि आपकी अपूर्व और अभुतपूर्व चरित्र सृष्टियां हैं। इन पात्रों के चरित्र की परिकल्पना गुप्तजी की सृजन प्रतिभा की परिचायक है।
खड़ी बोली के स्वरूप निर्धारण और विकास में गुप्तजी का योगदान अन्यतम है, खड़ी बोली को उसकी प्रकृति के भीतर सुघड़ रूप देने में गुप्तजी ने भरपूर प्रयास किया तथा यह पहली बार गुप्तजी ने ही यह सिद्ध किया कि खड़ी बोली कविता की भाषा है। ‘जयद्रथवध' तथा ‘भारत भारती' का प्रचार एवं लोकप्रियता मानों खड़ी बोली की विजय दुन्दभी थी। महाकवि निराला ने 1929 में ‘माधुरी' में लिखा था कि ‘खड़ी बोली का सेहरा अगर किसी एक ही कवि को पहनाया जाए तो वह है बाबू मैथिलीशरण जी गुप्त। खड़ी बोली की कविता के उत्कर्ष के लिए इनकी सेवा अमूल्य है।
गुप्तजी की प्रासंगिकता आज इस अर्थ में भी है कि आप मर्यादा को देश की सुव्यवस्था का मेरूदंड मानते थे। आपने मर्यादावादी कवि की तरह सम्मिलित परिवार में आस्था प्रकट की है, नारी के प्रति आपका दृष्टिकोण आदरपूर्ण है, वर्णाश्रम धर्म में विश्वास के बावजूद मध्यकालीन विकार आपको स्वीकार्य नहीं है। अगर गुप्तजी का नारी के प्रति दृष्टिकोण कि ‘नारी विलास की निर्जीव उपकरण मात्र न होकर पुरूष की सहभागी, सहयोगी, अर्द्धांगिनी है, नारी के बिना पुरूष अधूरा है' को हम माने तो नारी उत्पीड़न होना ही बंद हो सकती है।
गुप्तजी अपने युग के प्रतिनिधि कवि थे। आधुनिक काव्य में प्रचलित काव्य की सभी शैलियां और भावनाओं को आयत करने में आप समर्थ रहे है। आपके काव्य में हिन्दी कविता के पांच दशकों का इतिहास सुरक्षित है। कवि की रचना धर्मिता के पीछे विलास और सहित की दो प्रवृतियां विराजमान रहती है। गुप्तजी साहित्य विलास की प्रवृति से प्रेरित होकर अपनी कृतियों की रचना नहीं किए अपितु सामाजिक हित की प्रवृति से प्रेरित होकर काव्य कृतियों की रचना किए हैं। ‘भारत भारती' से भारतीय संस्कृति की ओर पुनःआकृष्ट करने का आपका उद्ेश्य स्पष्ट होता है। सांस्कृतिक परम्पराओं में आस्था रखने के बावजूद आपने युगधर्म की कभी उपेक्षा नहीं की। भारतीय संस्कृति के प्रवक्ता होने के साथ-साथ आप नवीन भारत के राष्द्र कवि थे। राष्द्रीयता के प्रचार-प्रसार में ‘भारत भारती' का योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है। आपने कटाक्ष इस तरह किया हैः-
सब अंग दूषित हो चुके है अब समाज शरीर के
संसार में कहला रहे है हम फकीर लकीर के
क्या बाप-दादों के समय की रीतियां हम तोड़ दें ?
वे रूग्न हों तो क्यों न हम भी स्वस्थ्य रहना छोड़ दें
क्या आज हम भारत की स्थिति देखकर गुप्जी जी की ओर देखने के लिए मजबूर नहीं है जब आप कहते है कि ः-
जिसकी अलौकिक कीर्ति से उज्जवल हुई सारी मही,
था जो जगत का मुकुट, है क्या हाय! यह भारत वही ?
भारत, कहो तो आज तुम क्या हो वही भारत अहो !
है पुण्य भूमि ! कहां गयी है वह तुम्हारी श्री कहां ?
गुप्तजी की कविताओं को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि गुप्तजी आज भी कहीं लिख रहें हैं जब आप कहते है कि ः-
दायें और बायें सदा सहचर हमारे चार हैं,
अविचार, अंधाचार हैं, व्यभिचार अत्याचार है,
हा गाढ़तर तमसावरण से आज हम आच्छन हैं,
ऐसे विपन्न हुए कि अब सब शांति मरणासन्न हैं।
हिन्दी साहित्य का इतिहास इस बात का गवाह है कि गुप्त जी की कविता का प्रभाव समाज, साधारण जनमानस, विद्याार्थियों, कवियों, कविता के रसज्ञों पर समान रूप से पड़ा था और आज के भारत में निरंतर क्षीण पड़ते राष्द्रीयता को पुनः प्रज्वलित करने के लिए गुप्तजी की कविताओं की आवश्यकता है।
राजीव आनंद
मो․ 9471765417
बहुत ही बढ़िया जानकारी मैथिली शरण जी के बारे देने के आपका आभार ।
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