यूहान हार्शटा क्लोरीन अनुवाद - तेजी ग्रोवर मुझे नाप-तौल लिया गया है और कमी पायी गयी है। लगभग दो बज गये हैं और दिन का आख़िरी पाठ है, और ...
यूहान हार्शटा
क्लोरीन
अनुवाद - तेजी ग्रोवर
मुझे नाप-तौल लिया गया है और कमी पायी गयी है। लगभग दो बज गये हैं और दिन का आख़िरी पाठ है, और मैं डाइविंग बोर्ड के पिछले हिस्से में, बिलकुल किनारे पर खड़ा हूँ, मेरे सामने दूसरे हैं, वे दूसरे जो कूदने वाले हैं, और जल्दी ही मेरी बारी भी आने वाली है। पर यह असम्भव है चाहे कुछ भी हो जाये। मैं जानता हूँ।
पर मुझे यह करना ही है। यह आख़िरी डे्रस-रिहर्सल है। अन्तिम मौके से पहले वाला मौका। मुझे डाइविंग बोर्ड के छोर तक चलना है, घुटने झुका, अपनी पूरी ताकत लगा उछलना है और पूल में छलाँग लगा, पानी की सतह बेध लतियाते हुए नीचे जाना है, पूल के तल तक पहुँच, उस बेजान प्लास्टिक की पुतली को ढूँढ़ना है, उसे बचा पानी की सतह तक लाना है, तब उसके साथ तैरते हुए उसे ज़मीन की ओर ले आना है, और तैराकी हॉल की फिसलन भरी टाइल्स पर घसीट उसकी जान बचानी है। तो यह मुझे
करना है। और जब मैं यह सब कर चुकूँगा तो उसकी बगल में बने वॉटर प्रूफ़ खाँचे से काग़ज़ का एक टुकड़ा निकलेगा जिसमें कहा होगा कि वह पुतली जि़न्दा है और उसकी धड़कनों की गति क्या है, कि वह साँस ले रही है, और यद्यपि वह इतने लम्बे समय से डूबी रही है, फिर भी वह बची रहेगी। अब मेरी बारी है।
सीनियर स्कूल के अन्तिम साल में शारीरिक शिक्षा के लिए यह कर गुज़रना ज़रूरी है। वह घड़ी आ चुकी है, यह महत्त्वपूर्ण है और मैं इसी एक पल से ख़ौफ़ खाता रहा हूँ। मुझसे यह नहीं हो सकेगा, फिर भी मुझे उसे बचाना ही है, मुझे उससे काग़ज़ की वह पर्ची चाहिए, नहीं तो मैं हार जाऊँगा और शारीरिक शिक्षा में गुड़क जाऊँगा, और यह मुझे नहीं पोसायेगा। सो मैं कूदता हूँ, मेरी आँखों में क्लोरीन घुस जाती है, मैं उस हवा के लिए छटपटाता हूँ जो नदारद है, मेरा शरीर हठपूर्वक पानी में ख़ुद-ब-ख़ुद मुड़ता है और मैं ऊपर की ओर उठ आता हूँ, सतह बेधते समय पहले मेरा एक पैर निकलता है, तब सिर पूरी साँस खींचता भी नहीं कि मुझे डाइविंग बोर्ड के पास सफ़ेद पतलून और नीली टी-शर्ट पहने खड़ी शिक्षिका नज़र आती हैं, उनके गले में सीटी झूल रही है, जब वे उसे बजायेंगी तो मेरा काम तमाम समझो, मुझे पानी से बाहर निकल आना होगा, पर वह सीटी बजाती नहीं हैं, वे कहती हैं ‘फिर से कोशिश करो'-और मैं सिर पानी में डुबोता हूँ, दूर नीचे कुछ लाल सा दिखायी दे रहा है, यह वही होगी, वही जो डूबी है, और मुझे उस तक पहुँचना है, सो मैं लतियाता हुआ नीचे बढ़ता हूँ, मेरे कान दर्द कर रहे हैं, मैं लात पे लात चलाता हूँ, पर मैं नीचे बढ़ नहीं रहा, मेरे फेफड़े पूरी तरह ख़ाली हैं और मैं तकलीफ़ में हूँ, और मैं नीचे बढ़ रहा हूँ पर तेज़ी से नहीं, मेरा शरीर सही दिशा से भटकता है, मुड़ता है और मैं उठता हुआ सतह पर आ जाता हूँ, वे सीटी बजाती हैं, ‘अगला परीक्षार्थी!'
जब आप अपनी डाइव पूरी कर चुके होते हैं तो चन्द मिनट आपको चैन में छोड़ दिया जाता है, आप खुद को सहज करते हुए बड़ी खिड़की के पास रखी बैंच पर बैठ सकते हैं, उसी खिड़की से सूरज भी आता है और पानी पर चमकता है। मैं बैंच पर बैठता हूँ काँपता और क्लोरीन को सूँघता हुआ और कतार का अगला लड़का छलाँग लगाता है, मैं उसे पूल की ओर ग़ायब होते, डमी थामते और उसे अपने ऊपर डाले वापिस आते देखता हूँ, वह उसे ठुड्डी के ऊपर से पकड़ता है, उसका सिर पानी की सतह के ऊपर किये ज़मीन की ओर लौटता है, पूल के किनारे पहुँच उसे बाहर खींचता है, उसे टाइलों पर लिटाता है, उसकी नब्ज़ जाँचता है, अपने होंठ उसके रबर के होंठों से लगा उसमें प्राण फूँकता है, स्थान चुन उसके हृदय की मालिश करता है, उसे उसकी जान लौटाना है, एक उपहार, टीचर सीटी बजाती हैं, उसके पास जाती हैं, पुतली की कमर से निकली पर्ची जाँचती हैं, वह सही है, उम्दा ग्राफ़, वे प्रिण्ट-आउट फाड़ती हैं, अपनी किताब में उसके नाम के नीचे उसे स्टेपल से लगाती हैं, और उसमें ‘संतोषजनक' या ऐसा ही कोई ग्रेड लिखती हैं, और पुतली को पानी में फेंक देती हैं, वह अनाटकीयता से, धीरज से, फिर से डूब जाती है।
मैं बैंच पर बैठता हूँ, सूरज मेरे पीठ पीछे है और मेरी बाँहों और मेरे बालों में क्लोरीन की गन्ध बसी है, डाइविंग बोर्ड के ऊपर लगी बड़ी घड़ी बता रही है कि केवल पन्द्रह मिनट बचे हैं, और अगर मैं बिलकुल चुपचाप बैठूँ, बिना हलचल के, और यह स्वाँग करूँ कि मेरा वजूद ही नहीं है, तो शायद मुझ पर ग़ौर ही न किया जाये और शायद मुझे दो सप्ताह बाद के अन्तिम प्रयास के पहले आज एक और कोशिश न करनी पड़े। पर मैं यह भी जानता हूँ कि वे इसी के प्रति चौकन्नी रहती हैं, ऐसी ही कमज़ोरियाँ तलाशती हैं, जो बच्चे खुद को छुपाना चाहते हैं, यों ढोंग करते हैं कि वे हैं ही नहीं, उन्हें वे ऊष्मा-संसूचकों से पकड़ लेती हैं, उनके चेहरे चिन्ताग्रस्त निराशा से गरमाये होते हैं, वे डाइव नहीं कर सकते, और वे शारीरिक शिक्षा में पास नहीं होंगे।
और मैं सोचता हूँऋ किसी बात की तह में जाना हो, तो सोचो वह कहाँ से आयी होगी। जैसे कोई पुराने एलबम को देखता हो, उसके कार्डबोर्ड से बने मोटे पन्ने पलटता हो। शायद यह डर पहले ही कहीं जन्मा हो, बस गया हो। 1982 का वर्ष है और मैं डूब रहा हूँ, एक ग्रीष्मावकाश में, पश्चिमी तट पर कहीं एक नाव में। हम तट पर लौट आये हैं, चिकनी चट्टानों के पास डैड ने बोट बाँध दी है। और मैं ज़मीन पर आ गया हूँ। हम सॉसेज भून रहे हैं। पर सरसों की चटनी बोट पर रह गयी है। हम उसे भूल आये हैं, और सरसों की चटनी ज़रूरी है, मेरी माँ कहती है- ‘क्या तुम उसे बोट से नहीं ला सकते' और बेशक मैं ला सकता था, सो मैं उस भूरी दरी से उठता हूँ जहाँ चट्टान पर हम बैठे थे, मैं बोट तक जाता हूँ, उसे अपनी ओर खींचता हूँ जैसे मुझे सिखाया गया है, रस्सियों पर ज़ोर लगाता हूँ ताकि बोट पास सरक आये, और मैं नाव पर चढ़ता हूँ, सरसों उठाता हूँ, मैं सीढि़यों पर पैर रखने के लिए पैर फैलाता हूँ, पर सीढ़ी फिसलती है, मेरी पकड़ सरकती है और मैं बोट के नीचे ग़ायब हो जाता हूँ।
मैं बोट के नीचे ग़ायब हो जाता हूँ, उसके तल की ओर खिंच जाता हूँ, और खुद को बिलकुल नीचे पाता हूँ, पत्थरों पर, और मेरे बगल में समुद्री खरपतवार है, एक सी-अर्चिन है, एक विशाल सी-अर्चिन और उसके पास एक और, एक केंकड़ा मेरी ओर बढ़ रहा है और मेरे ऊपर, वहाँ ऊपर है बोट।
मैं अपने अगल-बगल हाथ ऊपर नीचे करता हूँ, ख़ुद को ऊपर धकेलने की कोशिश में, कहाँ जाना है यह जानता हूँ, पर वहाँ कैसे पहुँचना है यह नहीं, मैं हाथ फड़फड़ाता हूँ, पर वहीं नीचे अटका हूँ और सतह बहुत ऊपर है, मैं थकने लगा हूँ, मैं फिर बैठता हूँ, ऊपर देखता हूँ बोट की ओर, और एक हाथ नीचे बढ़ता है, बड़ा हाथ जो पानी को चीरता नीचे आता है, और वह हाथ मुझे थाम लेता है, उसके साथ-साथ एक सिर है, वह सिर ठीक मेरी ओर देखता है, डैड मुझे पानी से निकालते हैं, ऊपर तट की ओर, तब बोट से सरसों की चटनी ले आते हैं। मैं तौलियों में लपेट दिया जाता हूँ मुझे चॉकलेट दिया जाता है, गोकि वह शनिवार नहीं है, और लेमोनेड भी। पर यह जल-भय का केवल सतही, आंशिक स्पष्टीकरण ही हो सकता है। यह स्मृति तो अर्जित है, मुझे तो मुश्किल से यह घटना याद है, कम से कम इस तरह तो नहीं। मैं जानता हूँ कि मैं इस बात से भी डरा हुआ हूँ कि मैं आगे नहीं बढ़ सकूँगा, मुझे डर है कि मैं यह नहीं कर सकूँगा, सीधी और साफ़ बात यह है कि मैं मरने से डरता हूँ। पानी में ग़ायब हो जाने से ख़ौफज़दा हूँ।
हम यह कई सप्ताहों से कर रहे हैं। ये प्रशिक्षण सत्र। हम मीलों दौड़े हैं, घोडि़यों से कूदे हैं, सिर के बल खडे़ रहे हैं, जंगल के बीच साइकिल दौड़ा चुके हैं, मैं मय कपड़े और जूतों के दो सौ मीटर से भी ज़्यादा तैर चुका हूँ, यह परीक्षा इसलिए होती है कि कहीं आप दुर्भाग्य से डेनमार्क वाली फ़ैरी से हिर्टस्हाल्स से दो सौ मीटर की दूरी पर ही गिर न जायें। अब केवल डाइव बची है। जीवन रक्षा। और यह मैं कर नहीं पाऊँगा।
डाइव!
डाइव!
डाइव!
यह बेकार है। असम्भव!
फ़र्श को घूरते, बड़ी खिड़की से बाहर घूरते, सीधे सूरज की ओर घूरते, उसकी चकाचौंध से अन्धा हो, ख़ुद को बैंच पर बिलकुल सिकोड़ कर कन्धे झुका, खुद को गुड़ीमुड़ी समेटने पर, मैं जल्दी ही चेंजिंग कक्ष में जा सकूँगा। कुछ जल्दी, सामान्यतः वे इस पर ग़ौर नहीं करतीं, बस यही आिख़री उपाय बचा है मेरे पास। पर मैं बैठा रहता हूँ, आिख़री उपाय बचा रखूँगा, हो सकता है दो सप्ताह बाद मुझे इसकी ज़रूरत पड़े, वही तो अहम् घड़ी होगी, जब परीक्षा पास करने का बिलकुल आिख़री मौका मिलेगा, तब मुझे या तो यह करना होगा या फ़ेल कर दिया जाऊँगा, मेरी ग्रेड छिन जायेगी, सब कुछ खो बैठूँगा, वहाँ जगह नहीं मिलेगी, उसी स्कूल में जहाँ वह होगी, सब छिन्न-भिन्न हो जायेगा, वह हर चीज़ जो बनायी गयी है, रोमन साम्राज्य का ट्ठास और पतन।
सो मैं चेंजिंग कक्ष में नहीं जाता, गोकि डबल स्विमिंग के सिर्फ़ दस ही मिनट बचे हैं, जल्दी ही हम सब कपड़े बदलने के कक्ष में जायेंगे, शावर से हम अपनी आँखों चमड़ी और शिश्नों में जमी क्लोरीन हटायेंगे, ऊपरी चाम के नीचे वह फिर भी चरपरायेगी, पर हम यह जतायेंगे कि हम उस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, हम शैम्पू उधार लेंगे, और अपने बाल धो डालेंगे, पूरी चुप्पी या हड़बड़ाहट में कपड़े पहनेंगे, दो बाल सुखाने के यन्त्रों के नीचे जगह पाने को झगडे़ेंगे जो बेसिन के ऊपर लगे हैं ताकि यथासम्भव अव्यावहारिक रहें, और यान दोनों यन्त्रों पर दावा ठोंकेगा क्योंकि लड़कों में वह अकेला है जिसके लम्बे बाल हैं, और उसे स्विमिंग कैप इस्तेेमाल करनी पड़ती है, वह दोनों ड्रायरों और यों बेसिन पर भी काबिज़ हो जायेगा और वह उनको छोड़ेगा ही नहीं, सो हम चेंजिंग कक्ष से निकल आयेंगे, ठण्डी फ़रवरी में मय गीले बालों के, हमारे हाथ हेयर वैक्स से चिपचिपे होंगे, और हम बाहर, पीछे की ओर, लड़कियों से मिलेंगे, हम एक-दूसरे से सुट्टे उधार लेंगे और इस बीच लड़कियों के बाल ठण्ड में कुछ यों अकड़ कर जम जायेंगे मानो काँटे हों, और बस में सब क्लोरीन से गंधायेंगे, हमारी आँखें नर-पिशाचों सी सुर्ख होंगी, हम आधी बस को अपने जिम-झोलों को गोद में रखे घेर लेंगे और तब इस बात में कोई शंका नहीं रहेगी कि आज मंगलवार है।
स्विमिंग से बचने के असंख्य उपाय हैं। ज़्यादातर का मैं पहले ही इस्तेमाल कर चुका हूँ। मैं अपनी तैराकी की चड्डी भूल आया हूँ, तौलिया भूल आया हूँ, मैंने बीमार होने का नाटक किया है, मितली आने का, मुझे जुकाम हो चुका है, मैं पूल से निकल चेंजिंग कक्ष दौड़ा हूँ, वहाँ अपने कॉनटैक्ट लैन्स उतार टीचर के पास वापिस पहुँचा हूँ, पलक खींच उनसे कहा है, ‘देखिए, मेरा एक कॉन्टैक्ट लैन्स खो गया है, मुझे कुछ नहीं सूझता-'और उन्होंने जवाब में ओके कहा है- और मैं देर से पहुँचा हूँ, अपनी नाक तब तक मरोड़ी है जब तक नक़सीर न फूट जाये, मैंने अपने पेंसिल बॉक्स से कैंची निकाल अपना पैर चीरा है, पूल में ख़ून बहे तो छूत का डर रहता है। पर मैं ये सभी बहाने काम में ले चुका हूँ, सो मैं वहाँ बैठा रहता हूँ।
टीचर फिर से सीटी बजाती हैं, लड़कियों में से एक ने लैर्दाल मेडिकल से आयी प्लास्टिक पुतली को अभी-अभी फिर से जीवनदान दिया है, उसकी पीठ थपथपायी जाती है, वह झुकती है, उसका चेहरा लाल हो चुका है, वह साँसें स्थिर करती हैं, और टीचर अपना रूमाल मीथाइलेटेड स्पिरिट में डुबो कर डूबी हुई लड़की के रबर के होंठ पोंछ कर रोगाणुमुक्त करती हैं, उसे फिर सिर के बल पानी में वापिस फेंकती हैं, वह तेज़ी से डूबती है और अपनी छाती के बल, मुँह नीचे की ओर किये, जा टिकती है और सारा डाइविंग बोर्ड पर आगे बढ़ती है, वह कक्षा की सबसे पतली लड़की है। वह बमुश्किल सीधा खड़े हो पाती है, वह बीमार है, एनोरैक्सिक, उसे भूख नहीं लगती और कोई कुछ कहता नहीं है, पर सब उसे देख रहे हैं, और मुझे वह बेहद पसन्द है, उसकी तैराकी की पोशाक उसके लिए ढीली है। वह कुछ पल बोर्ड पर खड़ी रहती है और तब कूद पड़ती है। पानी की सतह बिना विरोध टूटती है और वह तल की ओर लुप्त हो जाती है। कुछ ही पलों बाद जब वह डमी को हाथ में थामे सतह पर लौटती है तो सब राहत की साँस लेते हैं। पुतली उससे मोटी है, टीचर ताल की सीढि़यों के पास तैयार खड़ी हैं, वे पुतली ले लेती हैं, उसे पानी से निकालती हैं और सारा तेज़ी से सीढि़याँ चढ़ आती है, हैरान सी, मानो पुतली को उसे बचाना हो पर टीचर कहती है, ठीक है सारा, अच्छा प्रदर्शन रहा- और सारा को समझ नहीं आता कि उसे आगे क्या करना है। वह टीचर की ओर ताकती है। और तब पुतली पर झुकती है। नब्ज़ जाँचती है। अपने होंठ डमी के होंठों से लगाती है और उसकी छाती पर अपना हाथ धरती है, और टीचर कहती हैं, ‘ठीक है सारा' -और सीटी बजा देती हैं, सारा को जबरन उठकर हट जाना पड़ता है, और टीचर मुझे पुकारती हैं, ‘फिर से कोशिश करते हैं, करें क्या?' - और सूरज डूब जाता है, बड़ी खिड़की के सामने परदे लस्टम-पस्टम नीचे गिरते हैं। तरण ताल में तूफान आता है। वहाँ से उठी लहरें किनारे बढ़ आने वाली हैं। बच्चों को पानी में ले जाने वाली हैं। नीचे भँवर में घसीटने ही वाली हैं। मैं तेज़ हवा में बैंच को मज़बूती से पकड़े बैठे से उठता हूँ, मैं डाइविंग बोर्ड की ओर बढ़ता हूँ, टीचर पुतली को उठाती हैं, और मेरे दिमाग में यह ख़्याल उठता है कि उन्हें उसके होंठ पोंछ कर संक्रमण मुक्त नहीं करने चाहिए, उन्हें वह भूल जाना चाहिए। तब ऐसा ही होगा मानो मैंने सारा को ही चूमा हो, और टीचर सच में भूल जाती हैं, मैं डाइविंग बोर्ड पर खड़ा होता हूँ और टीचर कहती हैं, ‘बाकी सब जाकर कपड़े बदल सकते हैं-' और तब मैं छलाँग लगाता हूँ, पर मैं नीचे जा बढ़ ही नहीं पाता, और तल पर वह पुतली है, जिसे सारा ने प्रायः चूमा था, अपने होंठ उस पर लगाये थे, और कामना करता हूँ कि मैं भी वही कर पाता और मुझे सारा की उसके अपने होंठों को चूमने की इच्छा होती, सिफ़र् इस प्लास्टिक की पुतली को नहीं, और मैं उससे कहना चाहता हूँ कि मैं उसके लिए हमेशा हूँ गोकि मैं डाइव नहीं कर सकता फिर भी उसके लिए रहूँगा, और मैं जानता हूँ कि तुम बीमार हो, यह मुझे पता है, पर इससे कोई फ़क़र् नहीं पड़ता, क्योंकि तुम एक ख़ूबसूरत इन्सान हो और मैं हमेशा तुम्हारे लिए पूरी तरह हाजि़र रहूँगा और मुझे तुम्हारी बनायी तस्वीरें पसन्द हैं, मैंने तुम्हारी स्केचबुक में उन्हें देखा है और मुझे तुम्हारी आवाज़ पसन्द है सारा, और तुम्हारे बारे में गीत लिखे जाने चाहिए और मेरी टीचर पूल के किनारे से चीखती हैं कि मुझे फिर से कोशिश करनी चाहिए और मैं साँस खींचता हूँ, लतियाता हूँ और नीचे की ओर तैरने की कोशिश करता हूँ, पानी को पंजों से नोचते नीचे पहुँचना चाहता हूँ, पर मुझसे नहीं होता, कानों में दबाव बढ़ता है, नीचे बढ़ते हर सेंटिमीटर के साथ मेरा डर गहराता है। मुझे भय है कि मैं कभी सतह पर नहीं लौटूँगा, पर पुतली अब भी कई मीटर दूर है, टीचर सीटी बजा अपना सिर हिलाती हैं, कहती हैं, मुझे अभ्यास की ज़रूरत है- ‘अगले बुधवार को तुम्हारा आिख़री मौका होगा, इस बीच तुम्हें अभ्यास करना होगा, सभी यह कर सकते हैं,' वे कहती हैं, ‘पानी से तुम कैसे डर सकते हो भला'-और तब मुझे दूसरों के पीछे शावर में जाने दिया जाता है।
बैठक! सब बाहर फिर से इकट्ठे होते हैं। मानो जो कुछ घटा उसका लेखा-जोखा कर रहे हों, मैं सोचता हूँ कि यह एस․ए․ समूह है, यानि सर्वाइवर एनोनिमस, हमें तो नहान घर के बाहर कन्धों पर सलेटी कम्बल लपेटे, हाथों में धुआँती गर्म कॉफ़ी की प्यालियाँ थामे खड़े होना चाहिए था और दया भरी आवाज़ों को हमें आश्वासन देना चाहिए था कि सब कुछ ठीक हो जायेगा और उन्हें पत्रकारों को भगाना चाहिए था, पर ऐसा नहीं होता, हम अपनी टी-शर्टों में धुआँते पाले में गीले और अकड़े बालों के साथ उँगलियों पर लगे वैक्स के साथ खड़े हैं और सुट्टे मार रहे हैं, मैं जुगत से सारा के पास जा खड़ा होता हूँ, यों जताते मानो बस यों ही जा खड़ा हुआ हूँ, ऐसा करना अस्वाभाविक लगे तो भी, मुझे उसकी सहेलियों के बीच घुसना पड़ता है क्योंकि मैं उसे अच्छे से नहीं जानता, हमारे बीच स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं का अभाव है, वे हमेशा जबरन और कृत्रिम लगती हैं, यद्यपि हम सालों से एक कक्षा में रहे हैं, वह ख़ुद में इतनी बन्द सिमटी सी है, उसी दिन से जब वह चार साल पहले यहाँ आयी थी, और वह जानती है, उसे पता ही होना चाहिए कि मैं उसे कितना पसन्द करता हूँ, और मैं उसके पास जमकर खड़ा रहता हूँ। कहने को कुछ सोचने की कोशिश करता हूँ, पर क्लोरीन मेरे दिमाग में भर गयी है और मैं खड़ा रहता हूँ, कंकड़ों को अपने जूते से कुरेदता हूँ, दूसरों को सुनता हूँ, सप्ताहान्त पर क्या होने वाला है, वे क्या करेंगे, पर सारा बातचीत को सुन नहीं रही है, वह अपने बस्ते के नीचे अपने पेंसिल केस में छान रही है, लाइटर तलाश रही है, और मुझे अपनी जेब में एक मिल जाता है, मैं उसे लाइटर देता हूँ, वह मेरा शुक्रिया अदा करती है, मैं उसी जेब में सिगरेट ढूँढ़ता हूँ गोकि मैं जानता हूँ कि मेरे पास सिगरेट है नहीं, ख़त्म हो चुकी है, सो मैं खाली पैक निकालता हूँ, दिखाते-जताते उसे मरोड़ता हूँ और हमारे पीछे रखे कूड़ेदान में फेंकता हूँ, अपने हाथ जेबों में ठूँस लेता हूँ, उसकी ओर देख कहता हूःँ ‘वह पक्की गाय है, वह टीचर।'
‘हाँ', सारा कहती है।
मुझे�बस यही सूझता है, अकेली बात जो कहने को मिलती है, पर यह काम कर जाती है, हमेशा असरदार रहती है, मैं कुछ भी कह सकता था, क्योंकि वह जानती है, मुझे पक्का भरोसा है, वह जानती है कि मैं जानता हूँ और वह मुझे एक सिगरेट देती है और मैं उसके साथ होना चाहता हूँ, उसे खाना खिलाना शुरू करना चाहता हूँ, मैं उसके साथ उसके घर में उसके कमरे में बैठना चाहता हूँ, उसे चित्र बनाते, गिटार बजाते, देखना चाहता हूँ, और मैं उसका कमरा देखना चाहता हूँ, वह कमरा जिसे मैंने अपनी कल्पना में कितनी ही बार देखा है, वह कैसा लगता होगा उसकी कल्पना की है, मैं उसके घर के सामने से कई-कई बार गुज़रा हूँ, दूसरी मंजि़ल की खिड़की की ओर देखा किया हूँ, जिस पर नीले परदे हैं, और मुझे पता रहा है कि वह उसी का कमरा है, अपने दिमाग में मैं उस कमरे में सैकड़ों बार घुसा हूँ, उसके बिस्तर पर उस वक़्त बैठा हूँ जब वह इधर-उधर खदोड़ती रही है, चीज़ों से कुछ करती रही है, मुझसे बतियाती रही है, मैं उसके बिस्तर के किनारे बैठा हूँ, उसकी मेज़ के पास रखी दफ़्तरी कुर्सी जिस पर वह अपनी किताबें, सीडी और कपड़े रखती है, मुझे अच्छी तरह पता है कि कमरा कितना अस्त-व्यस्त है, फ़र्श पर बिछे कालीन के कोने कैसे गोल मुड़ चुके हैं, वहाँ बिस्तर के पास जिसे वह सुबह अपने पैरों से खींचती है, क्योंकि जब वह उठती है तो फ़र्श ठण्डा लगता है, मैंने वे परदे भी खींचे हैं, जिन पर चाँद-तारों का बचकाना डिज़ाइन बना है, मैं उसके बिस्तर पर लेटा हूँ, उसके मुँह को चूमा है, उसे बताया है कि मैं उसे प्यार करता हूँ, कि सब, सब ठीक हो जायेगा, वहाँ कितनी ही बार गया हूँ, अक़्सर।
वह अपने पैक से मुझे सिगरेट देती है, और मैं कहता हूँ शुक्रिया- और उसकी ओर देखता हूँ और वह मुड़कर अपनी दोस्त से कुछ कहती है, और कोई, मुझे लगता है शायद माट कहता है कि मुझे आज न्यूटन को ग़लत सिद्ध करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए था, पर मैं जवाब नहीं देता। मैं सारा को देखता हूँ। वह बेहद दुबली-पतली है, मैं उसे साथ ले जाना चाहता हूँ, अपनी जेब में, वह अब इतनी पतली है, और वह हर बीतते दिन के साथ कुछ और ग़ायब होती जाती है, उसका चेहरा ख़ुद को मिटा देने की प्रक्रिया में है, उसका चेहरा हमारे सामने ही ग़ायब हुआ जा रहा है और वह वहाँ ठिठुरती खड़ी है, उसे बेहद ठण्ड लग रही है, मैं उसके लिए सिगरेट जलाता हूँ और वह शुक्रिया कहती है- और पूछती है कि क्या मैं बाद में कैफ़े आने वाला हूँ, उसे बेहद ठण्ड लग रही है, मैं यांत्रिक सा जवाब देता हूःँ ‘बिलकुल आऊँगा।' आज मंगलवार है और सप्ताहान्त में युगों देर है। मंगलवार सप्ताह का वह दिन जो इतना उजाड़ दिन हुआ करता है।
तुम बीमार हो। तुम इतनी दुबली-पतली हो, मुझे तुम्हें खो देने का डर सताता है, क्या तुम यह देख नहीं सकतीं, क्या तुम्हें नज़र नहीं आता कि मैं तुम्हारे पास यहाँ बैठा हूँ? मैं लगभग अदृश्य हूँ। पर मैं सिर्फ़ इतना कहता हूँ क्या तुम ठीक हो?
वह गर्दन हिलाती है, मेरी ओर देखती है, खिड़की से बाहर देखती है, ‘नहीं', वह कहती है, ‘मुझे कल दाखिल किया जायेगा, पर ठीक है, मुझे परवाह नहीं।', वह कहती है, ‘उन्हें मुझे दाखिल करना ही होगा, यह भी एक दशा है। है कि नहीं, वैसी ही जैसे तुम्हारा पानी से डरना-' और मैं सोचता हूँ कि वह अपने प्रति कितनी कठोर है, वह ऐसी क्यों है, और मैं उसके कॉफ़ी के प्याले को देखता हूँ, उसने उसे दोनों हाथों से पकड़ा है। वह प्याले से अपने हाथ गरमा रही है, और कैफ़े में शोर-शराबा है, वह जो कह रही है उसे सुनने के लिए मुझे ज़ोर लगाना पड़ रहा है, लाउडस्पीकर पर दिन की ख़ास पेशकश और परिवार से बिछड़ गये बच्चों की जानकारी दी जा रही है, वह मुझे चीनीदान देने को कहती है, अपनी कॉफ़ी में शक्कर के तीन चौखटे डालती है, मैं उन्हें प्याले के तल को छूते सुनता हूँ, और अपनी दिमागी आँखों से उन्हें प्याले के पार देखता हूँ, गहरी कॉफ़ी में चीनी के कण विलग होते हैं, और घुलते हैं, और जब प्याले से उसे पीती है तो उसके पेट में फिर से मिल जाते हैं, सभी, केवल उन्हें छोड़कर जो प्याले में, प्याले के किनार और उसके होंठों पर चिपके रह जाते हैं, जिन्हें वह बाद में नैपकिन से पोंछ डालेगी, या जो उसकी तश्तरी में रह गये हैं, जब तक सहायक आकर टेबल ख़ाली नहीं करता, और अपने साथ कप, तश्तरी, नैपकिन और बची हुई चीनी, सभी कणों को नहीं ले जाता और उन्हें रद्दी काग़ज़ के साथ फेंक नहीं देता, वे अपना चौरस आकर फिर कभी नहीं पायेंगे, फिर नहीं जुड़ेंगे।
‘तुम्हें डर है कि तुम डूब सकते हो, है ना?'
‘हाँ,' मैं कहता हूँ।
हम वहाँ कैफ़े में शॉपिंग सेण्टर में बैठे रहते हैं, और दीवार पर लगा लाउडस्पीकर अनचेण्ड मेलोडी की धुन घड़घड़ाता है, और मैं बेहद थक चुका हूँ, डरने से आजि़ज़ आ चुका हूँ। मैं उस सारे पानी और जिस सबमें मैं नाकाम रहा हूँ उससे आजि़ज़ आ चुका हूँ, और मैं इतना डरा हुआ हूँ कि सब कुछ ठीक-ठीक नहीं सलटेगा और मेरा कोई भविष्य ही नहीं होगा, और रेडियो अनचेण्ड मेलोडी उलीच रहा है और वह फिर से ज़ोर से घड़घड़ाता है, दूसरे लाउडस्पीकर पर एक आवाज़ सर्दियों के स्पोर्ट्स विभाग की ख़ास पेशकश की घोषणा करती है जहाँ सस्ते स्लेज की कीमतें बिलकुल कम हैं, और आयातित अंगूरों, सेबों और टमाटरों, जिन पर सरसों गैस से मिलते-जुलते मिश्रण का छिड़काव किया गया है और जिन्हें आनुवांशिक छेड़छाड़ द्वारा डरावनी फ़िल्मों के आकार में बड़ा बना डाला गया है और जिन्हें अकल्पनीय कम दरों में बेचा जा रहा है, सभी ग्राहक अपनी कटलरी खड़काते हैं, उनकी छुरियाँ और काँटे प्लेटों पर रगड़ खाती हैं, और वे अपनी कुर्सियाँ मेज़ से दूर और पास खींचते समय घसीटते हैं, वे उठते हैं, कॉफ़ी लाते हैं, और वापिस लौटते हैं, और सब एक-दूसरे को उपदेश देते हैं, और लाउडस्पीकर व्यञ्जन विभाग की एक पेशकश की घोषणा करता है और रेडियो अनचेण्ड मेलोडी से घरघराता है पेशतर इसके कि एक आवाज़ उसमें बाधा डाल घोषणा करती है कि चार बज चुके हैं और समाचार शुरू होने वाले हैं, और मैं टेबल पर उसकी ओर झुकता हूँ और कहता हूँ ‘आज शाम तुम क्या कर रही हो-' और वह मुझे चूमती है।
पर फिर से कहूँ, वह नहीं चूमती, पर मेरी इच्छा सच में यही होती है कि काश वह मुझे चूमती। इसके बजाय वह कहती है, ‘ठीक, तो अब मुझे सच में जाना चाहिए, पर हम बात करेंगे। दो-एक रोज़ में, शायद अगले सप्ताह, ओके?-ओके।' तब वह उठती है और मेज़ का चक्कर लगा मुझे जल्दी से गले लगाती है और मैं भी पलट कर भेंटता हूँ, दोस्तों की तरह, वह इतनी पतली है और मैं उसे छोड़ना ही नहीं चाहता, पर मुझे इस बात से बड़ा डर लगता है कि मैं उसे तोड़ दूँगा, सो मैं अपनी गिरिफ़्त ढीली करता हूँ और वह कसमसा कर छूटती है, मेरी बाँहों से निकल जाती है और मैं साँस खींचता हूँ, और कहता हूँ ‘मैं तुम्हें सच में पसन्द करता हूँ, सारा' और वह कहती है, ‘मैं जानती हूँ। मत करो'-वह कहती है, ‘प्लीज़'-और तब बाय-वह मुड़ती है और कैफ़े से बाहर निकल जाती है, और लाउडस्पीकर घोषणा करता है कि बाल विभाग, बॉल रूम और वीडियो कक्ष बीस मिनट में बन्द होने वाले हैं और जिस किसी का बच्चा गुम हो गया है वह पाँच बजे से पहले तीसरी मंजि़ल पर स्थित कार्यालय से उन्हें ले ले, अन्यथा उन्हें गुज़र रही कारवाँ टे्रन को बेच दिया जायेगा, पर वे बात का आिख़री भाग नहीं बोलते, यह तो मैं ही सोचता हूँ, और मैं उठ कर उसी दिशा में जाता हूँ जहाँ से सारा गयी है, दूसरी मंजि़ल पर जहाँ रिकार्ड की दुकान है, और बेतरतीब चुनी रैकों में उन्हें देखता हूँ, पर कुछ अच्छा नहीं मिलता, सब बकवास है और वैसे भी मुझे सच में पता ही नहीं है कि मैं दरअसल क्या सोच रहा हूँ, सो मैं फिर निकलता हूँ, घर की बस पकड़ता हूँ, आज मंगलवार है और कल सारा एक अनिश्चित अवधि के लिए दाखिल कर दी जाने वाली है, सारा विलीन हो जाने वाली है।
‘रोमन साम्राज्य का ट्ठास व पतन।
इस भावना को पछाड़ा नहीं जा सकता।'
मुझे नाप-तोल लिया गया है और कमी पायी गयी है। मुझे और सारा को। हमें सिक्के के वज़न चाहिए ताकि हम धरती से उड़ न जायें। मैं अपने कमरे में बैठता हूँ और टीवी देखता हूँ, रात तक, सारे सिटकॉम्स जो उन सारे दोस्तों दम्पतियों और लोगों के बारे में हैं जो हमेशा एक-दूसरे के लिए हाजि़र रहते हैं, मैं समाचार देखता हूँ, जो कुछ भी आ रहा है, मैं पुनः प्रसारण के भी पुनः प्रसारण देखता हूँ और सोचता हूँ कि समय धीमे नहीं गुज़रता, घडि़याँ ही उसके साथ नहीं चल पातीं, और दो सप्ताह बाद मुझे डाइव कर पाना होगाऋ अगर नहीं कर पाता तो सब कुछ खो बैठूँगा, अगर नहीं करता तो शारीरिक शिक्षा पास करने का कोई रास्ता नहीं है, और तब मैं उस स्कूल में नहीं जा पाऊँगा जहाँ वह जाने वाली है, मैं अब तक कूद नहीं लगा पाता गोकि सब यह कर पाते हैं, और प्रेरणा के एक पल में मैं उठता हूँ, बाथरूम की ओर दबे पाँव जाता हूँ और अपनी तैरने की पोशाक, एक साफ़ तौलिया ले आता हूँ, अपने कमरे में लौट तैयार होता हूँ, और घर मौन है, मेरी बहन के अलावा वह जगी है। अपने कमरे में बैठी है। संगीत सुन रही है। उसके ईयर-फ़ोन की तीखी ध्वनि बाहर गलियारे में सुनायी दे रही है। मैं उसे डेस्क पर पेन्सिल से ताल देते सुन पाता हूँ, पर उसे तालबोध नहीं है और मैं माता-पिता के शयनकक्ष के खुले दरवाजे़ पर जाता हूँ। मैं डैड को खुर्राटे भरते सुनता हूँ, कमरे से उठती नींद की महक और चादरों की ध्वनि गलियारे में नीचे तक जाती है। मैं जूते पहनता हूँ और बाहर बर्फ़ में निकल, अपने पीछे दरवाज़ा बन्द करता हूँ।
मैं साइकिल से शहर की ओर बढ़ता हूँ, बर्फ़ गिरनी बन्द हो चुकी है और बाहर जो इकलौता हिमहल है उसे कोई काम नहीं है, क्योंकि वह बर्फ़ हटाने के लिए है और हटाने को बर्फ़ ही नहीं है, बस हल्की-सी हिमी भर है, और मैं स्कूल की ओर साइकिल चलाता हूँ, फ़ुटबॉल के मैदान के पार और नहान घरों के पास अपनी साइकिल पर ताला लगाता हूँ।
मैं पिछवाड़े की ओर जाता हूँ, पिछले दरवाज़े को, पास की फूलों की क्यारी की किनार बनाने को जो पत्थर रखे हैं उनमें से एक मैं उठाता हूँ। खिड़की के काँच पर अपना तौलिया लगा मैं पत्थर से उसे तोड़ देता हूँ। अपना हाथ अन्दर घुसा मैं दरवाज़ा खोलता हूँ। कॉरिडार में चलता हुआ, चेंजिंग कक्ष की ओर बढ़ता हूँ, यद्यपि आधी रात का समय है अन्दर प्रकाश है। सब कुछ प्रतिबिम्बित हो रहा है, सफ़ेद दीवारें, नीला फ़र्श, विशाल खिड़कियाँ।
कपड़े बदलने के कमरों में अन्धकार है। मैं बत्त्ाियों का खटका टटोलता हूँ, सिंक के ऊपर एक मिलता है, तैरने के सामान वाला बैग मैं लकड़ी के बैंच पर रख, कपड़े उतारता हूँ। अपना जैकेट हुक पर टाँगता हूँ, पतलून और स्वेटर को तह करता हूँ, उन्हें एक-दूसरे पर रखता हूँ, अपने जूते बैंच के नीचे रखता हूँ, मोजे़ उनके अन्दर घुसे हैं और मैं अपनी तैरने की चड्डी पहनता हूँ और पूल के पास आ जाता हूँ, क्लोरीन की तेज़ गन्ध मुझे मिलती है, पानी पूरी तरह स्थिर है और कमरा नीला है, स्थिर और नीला, हवा ठण्डी है, शरीर के बाल खड़े हो जाते हैं और मैं ठिरे फ़र्श पर पैर की उँगलियाँ सिकोड़ लेता हूँ। पूल अटेण्डेण्ट के दफ़्तर का दरवाज़ा जो पीछे, डाइविंग बोर्ड के पिछवाड़े है, बन्द है, पर उसे खोलना आसान है, उस पर पुराना सा ताला जड़ा है जो कुछ भी घुसेड़ उमेठने पर खुल जाता है। सो मैं अपने घर की चाबी ही इस्तेमाल करता हूँ, और वहाँ अन्दर, टेबल पर चीर-फाड़ की प्रतीक्षा में रखी लाश की तरह, वह फ़र्स्ट एड डमी पड़ी है। फिर से डूबने को तैयार, मुझे इस बार उसे बचा ही लेना है। अन्यथा वह वहीं पड़ी रहेगी।
मैं उसे काँख में लेता हूँ, उसने जो टै्रकसूट पहना है उसके सहारे उठाता हूँ, बत्त्ाी गुल कर अपने पीछे दरवाज़ा बन्द करता हूँ, गर्दन पर लगे बटन को दबा मैं उसे चालू करता हूँऋ पूल के पास जाता हूँ और लहरें चारों ओर दीवार पर चढ़ते साँपों सी प्रतिबिम्बित होती है। वह मदद के लिए चीख सकती थी, पर वह ऐसा करती नहीं है। वह कर्तव्य-परायणता के साथ, पूर्व अभ्यास के अनुरूप डूब जाती है।
और मैं वहाँ खड़ा हूँ, डाइविंग बोर्ड पर, पानी एक मीटर नीचे है, सब कुछ फिर से शान्त है, और उसके नीचे साढ़े चार मीटर की दूरी और है, वह वहाँ पड़ी है, मेरे द्वारा बचाये जाने के इन्तज़ार में, कोई आये और उसे उठा कर प्रकाश में लाये, फिर से हवा में लाये, और पानी साफ़ है, क्लोरीन पानी को तल्ख़्ा और साफ़ बनाता है, और वह नीचे धीरज से अपने लाल टै्रकसूट में पीठ के बल पड़ी है, उसकी बाँहें बगल में हैं, सफ़ेद स्नीकरों के तस्मे सफ़ाई से बँधे हैं।
अगर पानी के घटक को आप नज़र अन्दाज़ कर दें तो सारा के होंठों ने ही पुतली को आिख़री बार स्पर्श किया है, उन नरम रबर के होंठों को छुआ है जो वहाँ पानी में पड़ी है, और अगर मैं उतना नीचे जा सका तो यह उसे चूमने जैसा होगा, ठीक वैसा नहीं, पर तकनीकी रूप से देखें तो जहाँ तक मैं पहुँच सकता हूँ उसके लगभग पास। उसका थूक अब भी वहाँ नीचे हो सकता है, और पल भर के लिए ऐसा लगता है कि पुतली नीचे पानी में मुस्कुरा रही है, पफर मछली की तरह होंठ सिकोड़ रही है।
और मैं वहाँ डाइविंग बोर्ड पर, अब सिर्फ़ मैं ही उसे बचा सकता हूँ, और मैं एक गहरी साँस खींचता हूँ, छोड़ता हूँ, और कूद जाता हूँ, मैं बिलकुल सही तरह से पानी में घुसता हूँ, लतियाना शुरू करता हूँ, पर भय पल भर में उपस्थित हो जाता है, एक गुब्बारे की तरह, और यद्यपि मैं पूरे ज़ोर से पैर चला रहा हूँ, मैं कहीं नहीं पहुँचता। मैं पाता हूँ कि मेरा शरीर मुड़ रहा है, मुझे ऊपर-नीचे का भान नहीं रहता, भय जकड़ता है, मैं सहज ही साँस खींचता हूँ और पानी निगलता हूँ, मेरा शरीर झटका खाता है। मुझे वह नज़र आती है, उसका हाथ बढ़ता है और वह समुद्री खरपतवार और जन्तुओं को हटा देती है, वह मुझे पुकारती है, पर उसकी आवाज़ पानी में मुझ तक नहीं पहुँचती। उसके मुँह से निकले बुलबुले मेरे चेहरे से मिलते हैं, और मैं पैर चलाता हूँ, मैं अपने हाथ फेंकता हूँ और पानी की सतह फोड़ता हूँ, बाहर हवा में आता हूँ, साँस खींचने की कोशिश में हाँफता हूँ और वापिस ज़मीन की ओर तैर जाता हूँ, टाइलों पर बाँह टिका सुस्ताता हूँ, उसे नीचे धीरज, नाराजगी और भय से पड़ा देखता हूँ। तब मुझे बाहर के पत्थरों की याद आती है। मुझे भार की ज़रूरत है।
कूदो!
कूदो!
कूदो!
मैं अपने पैर सुखाता हूँ। चेंजिंग कक्ष से बाहर चला आता हूँ, बाहर कॉरिडॉर में और घुसने के टूटे दरवाज़े तक, और मैं तीन सबसे बड़े पत्थर अपने साथ पूल तक लाता हूँ, उन्हें ऑफिस में बॉल की खाली जाली में डाल अपने साथ डाइविंग बोर्ड तक घसीट लाता हूँ, जाली का सिरा मज़बूती से हाथ के इर्दगिर्द बाँधता हूँ, एक साँस खींचता हूँ, उसे बाहर छोड़ता हूँ, देर तक साँस रोके रहने का अभ्यास करता हूँ, फिर छोड़ता हूँ और फिर से साँस खींचता हूँ, अपने फेफड़े भर लेता हूँ, और तब ख़ुद को जाने देता हूँ, नीचे की ओर धँसता हूँ।
मैं सतह को अपने ऊपर ग़ायब होते देखता हूँ, मेरा दिल छाती में ज़ोरों से धड़कता है, मेरे कानों में धमाधम होती है और मैं देख पाता हूँ कि मैं नीचे पड़ी पुतली के पास जा रहा हूँ,वह इतनी शान्ति से पड़ी है, ऊपर से आने वाले फ़रिश्ते की राह देखती, और पत्थर मुझे हौले-हौले नीचे खींचते हैं, मैं पैर से लात लगा नीचे को बढ़ता हूँ, और मेरे चारों ओर शान्ति है, सारे कोने वृत्त्ााकार हो गये हैं, मैं दूसरी ओर पूल का छोर देख पाता हूँ, जो सबसे छिछला है, अब से पहले अधिकतर समय मैंने वहीं गुज़ारा है, जहाँ मैं सुरक्षित महसूस करता हूँ, मैं नीचे पुतली की ओर तैरता हूँ, पत्थरों से खिंचता हुआ, इतनी गहरे मैं पहले कभी नहीं आया हूँ, और जब मैं उसके पास पहुँचता हूँ तो मेरे फेफड़े हवा से भरे हैं, जब मैं तल को छूता हूँ तो मुझे विश्वास ही नहीं होता, सफ़ेद और काली टाइलें, बुलबुले, ऑक्सीजन सब मेरे ऊपर उठ रहे हैं, और पुतली अपने लाल सूट में स्थिर मेरे पास पड़ी है, मानो कुछ हुआ ही न हो, मानो वह हमेशा की तरह शोकातुर हो, बचाये जाना ही उसकी नियति है।
पर अब जब मैं नीचे आ चुका हूँ, मुझे क्या करना है यह अचानक मुझे पता ही नहीं पड़ता। सो मैं उसके पास बैठता हूँ, उसका हाथ अपने हाथ में ले, ढाढ़स बँधाता हूँ, हथेली मुलायम, रबरनुमा है, उसका हाथ, कोहनी, शरीर कठोर प्लास्टिक का, उसकी आँखें बन्द हैं, पलकें दायें-बायें नाचती हैं। मैं अपने पैर, अपनी टाँगें देखता हूँ, उसकी ओर देखता हूँ, सब कुछ असाधारण रूप से स्पष्ट है, मानो रेखांकित यथार्थ, मानो डिजिटल कैमरे से फ़िल्माया गया हो, नीले-हरित रंगों में, और मैं उसके मुँह को देखता हूँ, मुँह जिसे सारा ने आज कुछ पहले अपने होंठों से छुआ था, और मैं झुकता हूँ, अपने होंठ उसके होंठों पर रखता हूँ, अपनी आँखें बन्द कर कल्पना करने की कोशिश करता हूँ कि मुझे सारा का स्वाद पता चल रहा है, कि मैं जानता हूँ कि उसका स्वाद कैसा है, उसे चूमने पर वह कैसी लगती होगी। और उसका स्वाद क्लोरीन का है।
मुझे जल्दी ही ऊपर जाना चाहिए, मैं यह जानता हूँ, मुझे बाँह पर बँधे पत्थर खोलने चाहिए, पुतली को साथ ले जाना चाहिए, उसे पुनर्जीवन देना चाहिए, पर मैं करता नहीं हूँ। मैं पूल के तल पर बैठा रहता हूँ और मैं डर नहीं रहा हूँ। जिस हाथ पर पत्थर नहीं बँधे उससे मैं पुतली को उठता हूँ सो वह भी पूल में सीधी बैठी है, और मैं उसके पास बैठ जाता हूँ, इस तरह कि हम दोनों ताल के दूसरे छोर को देख रहे हों, सबसे छिछले भाग को, जहाँ मैं समय गुज़ारा करता था और मेरे फेफड़े दुखने लगे हैं, मुझे कुछ हवा छोड़नी होगी। थोड़ी-सी हवा, और बुलबुले उठते हैं और सतह पर फूट जाते हैं, मुझे भी ऊपर उठ जाना है, और पुतली मेरी ओर मुड़ कर कहती हैः ‘अच्छा हुआ कि तुम अब आ गये।'
‘हाँ,' मैं कहता हूँ, बेशक मुझे देर-सबेर आना ही था।
वह आँखें खोलती है, सूनी निगाहों से पानी को घूरती है और कहती है ‘मुझे हमेशा अजनबियों के रहम पर निर्भर रहना पड़ा है।' तब वह हँसती है, खिलखिलाहट भरी हँसी जो उसके आसपास के पानी को पूरी तरह सफ़ेद बना डालती है।
मैं ऊपर सतह की ओर देखता हूँ, कि हमारी नाव वहाँ ऊपर है, नौका का तल पानी को काट रहा है, मैं डैडी के हाथ को तलाशता हूँ, पर मुझे वह मिलता ही नहीं, नाव का तला इधर से उधर हिल-डुल रहा है, मैं उस तरफ़ से ऊपर न जा सकूँगा, सो मैं हाथ पुतली के गिर्द डालता हूँ, पानी में खड़ा होता हूँ, और मेरी छाती में दर्द है, मैं फेफड़ों की बची-खुची आिख़री हवा निकालता हूँ, मेरी आँखों के पीछे अँधेरा गहराता है, दृष्टिपटल पर लाल कौंधता है, मानो सिर फट जाने वाला हो, मैं उसे अपने पीछे घसीटता ऊपर ले चलता हूँ, वह अपनी आँखें बन्द कर बेहोश हो जाती है, अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाती सो मैं उसे उठा कर चलना शुरू करता हूँ।
मैं ताल के दूसरे छोर की ओर चलता हूँ, हल्के उठान पर चढ़ता हूँ, उस निशान की ओर जो बताता है- ‘आकस्मिक गहरा पानी', मैं अपने पीछे तल से छूते पत्थरों को घसीट रहा हूँ, छिछले पानी की ओर बढ़ रहा हूँ, धीमे-धीमे, और प्रकाश का रंग बदल जाता है, मुझे आवाजे़ं सुनायी देने लगती हैं, बाहर की, मैं सतह फोड़ता हूँ, ऊपर आ जाता हूँ, मेरा सिर पानी के बाहर है और मैं पहली बार साँस लेता हूँ, और मैंने एक जान बचा ली है।
विशाल खिड़कियों से नीली बत्त्ाियाँ मेरी ओर कौंध रही हैं, और मैं पुतली को सीढि़यों के ऊपर खींचता हूँ। जल्दी से, उसे फ़र्श पर लिटाता हूँ, और सोचता हूँ, कि वे मेरे लिए आ गये हैं, उन्होंने टूटे दरवाजे़ को देख लिया और अब मुझे ले जाया जायेगा और मुझे पूरी रात अपनी तैरने की चड्डी में ही सवाल-जवाब के दौर से गुज़रना होगा और मेरी कुर्सी पर पानी टपकता रहेगा। पूछताछ कक्ष की काली चमड़े वाली कुर्सी पर, और हर बार जब बूँद काले चमड़े पर टपकेगी तो छपाक की आवाज़ होगी, और वे मुझसे पूछेंगे कि मैंने ऐसा क्यों किया तब तक जब तक मैं जवाब न दूँगा और वे मुझे जाने न देंगे, और मैं उन विशाल खिड़कियों के पास खड़ा हूँ, पुतली मेरे पीछे है और मैं बत्त्ाियों को देखता हूँ। नीली बत्त्ाियाँ बड़ी होती जा रही हैं और मैं लिवा लिये जाने को तैयार हूँ, मैं सब कुछ स्वीकार लेता हूँ, हाँ, मैं ही, अन्दर घुस आया हूँ, हाँ, मैंने ही पुतली चुरायी है, हाँ, हाँ, और अब मैं डरता नहीं हूँ, मैंने एक जि़न्दगी बचायी है। पर बत्त्ाियाँ दिशा बदलती हैं, और साइरन बजने शुरू हो जाते हैं। एम्बुलेन्स सड़क पर गुज़रती है। मैं उसे रफ़्तार पकड़ते सुनता हूँ। गति पकड़ वह मेरे कानों और दृष्टि से ओझल हो जाती है, और मेरे पीछे, पुतली लेटी है, आँखें मूँदे, टाइलों पर सुरक्षित, अपने गीले टै्रकसूट में। मैं उसे यथास्थान वापिस रखता हूँ, कपड़े बदलने के कक्ष में जाता हूँ, कपड़े बदलता हूँ, पत्थरों को बाहर रखता हूँ, साइकिल से घर जाता हूँ, गुपचुप अपने कमरे में घुसता हूँ, बिस्तर में घुसता हूँ, गीले बालों में ही सो जाता हूँ।
घडि़याँ ही समय का साथ नहीं दे पातीं, और दो सप्ताह बाद मैं उसी तरण ताल में वापिस आता हूँ। स्थानीय अख़बारों में सेंध का जि़क्र होता है। ख़ास ग़ौर करने लायक नहीं, किसी को जाँच करने लायक कुछ नहीं लगता, आिख़र कुछ भी तो चोरी नहीं गया है। सब कुछ यथास्थान है, और जिन लोगों ने दो सप्ताह पहले अपनी डाइविंग परीक्षा पास कर ली है उन्हें ताल के छिछले भाग में वॉटर पोलो खेलने की इजाज़त मिल जाती है, जबकि हम तीनों जिन्हें एक और मौका दिया जा रहा है असहाय से डाइविंग बोर्ड पर खड़े हैं, तख़्ते पर बढ़ने को तैयार, सो मैं हूँ, और जुआकिम, जिसे पिछले तीन सप्ताह अपने पिता के साथ बेल्जियम जाने की अनुमति मिली थी, और काथरीना जो कूदने को तैयार है, पर काथरीना हमेशा इससे बच निकलने में सफल रहती है, वह हम सबसे साल भर बड़ी है, और वे कहते हैं कि उसे इस साल फिर से परीक्षा देनी होगी क्योंकि वह इतनी बेवकूफ़ है कि उसे यह तक नहीं पता कि वह कहाँ रहती है, कम से कम हम तो यही अन्दाज़ लगाते हैं क्योंकि उसे हर रोज़ स्कूल तक पहुँचाने और वापिस घर ले जाने के लिए एक टैक्सी आती है, गोकि किसी ने उससे पूछा नहीं है। काथरीना रोकर कूदने से बच जाती है, इस बार भी, उसे वॉटर पोलो खेलने की छूट मिल जाती है, जबकि मुझे और जुआकिम को रुकना पड़ता है। टीचर सीटी बजाती हैं और जुआकिम कूदता है, पानी में ग़ायब होता है वापिस लौटता है, पुतली के साथ ज़मीन पर आता है, उसे कृत्रिम साँस दे जिलाता है, वह रटता रहा है, पढ़ता रहा है, प्रिण्ट आउट निकलता है, उसकी टिप्पणियों के साथ नत्थी किया जाता है और जुआकिम जिसने अपना होमवर्क किया है, फिर चाहे वह बेल्जियम गया हो या नहीं, की पीठ थपथपायी जाती है।
‘तो एक बार फिर हम दोनों बचे हैं'-वे कहती हैं। मुझे देखते हुए।
‘हाँ,' मैं कहता हूँ।
और कूदता हूँ।
और मैं लम्बे समय तक नहीं लौटता।
मैं पैरों के बल शरीर तानता हूँ, फेफड़ों से पूरी हवा निकाल देता हूँ, ख़ुद को बिलकुल सपाट बना लेता हूँ और पैर चलाता हूँ, धीरे, पर अपने अंग-संचालन में मज़बूती के साथ, मैं इतना ध्यानमग्न हूँ और फिर से नीचे बढ़ता हूँ, नीचे तल की ओर उस लाल टै्रकसूट की ओर, और जब मैं उसके पास नीचे बढ़ता हूँ तो वह अपनी आँखें खोलती है, एक बार आँख मारती है, और मैं उसे उठा लेता हूँ, एक पल उसे देखता हूँ और उसके इर्दगिर्द बाँहें डालता हूँ, यह जाँचने के लिए देखता हूँ कि वह मुझे देख रही है या नहीं। वह मुझे कोई प्रतिक्रिया दे रही है या नहीं, मैं उसके होंठ छूता हूँ, और तब ऊपर की ओर देखता हूँ, वहाँ रंगों का ढेर लगा है, बच्चों का एक झुण्ड ताल के किनारे एकत्र है, और ठीक उसी पल मैं सतह पर, पुतली के साथ निकल आता हूँ, कोई भी कुछ नहीं कहता, पूरी शान्ति है, और मैं देखता हूँ की टीचर का चेहरा ज़र्द पड़ गया है, उन्होंने अपनी पतलून और टी-शर्ट उतार दी है, और वे अपने तैरने की पोशाक में खड़ी हैं, अन्दर कूदने को तैयार। मैं अपनी पीछे पुतली को ज़मीन पर घसीटता हूँ अपना पानी निकालने के बाद उसमें जान फूँकता हूँ, उसके होंठ मेरे होंठों से लगे हैं, सही जगह तलाश पाता हूँ, और इस दौरान टीचर मेरे पास हतप्रभ सी खड़ी हैं, पुतली कृतज्ञतावश अपने शरीर के एक हिस्से से प्रिण्ट-आउट निकालती है, और टीचर उसे सायास स्टेपल करती हैं, मुझसे पूछती हैं कि क्या मैं ठीक महसूस कर रहा हूँ, क्या मुझे शेष दिन की छुट्टी चाहिए और मैं कहता हूँ- ‘शुक्रिया', पलटता हूँ और चला जाता हूँ, कपड़े बदलता हूँ, निकल आता हूँ, बर्फ़ गिरने लगी है, और बाहर सारा खड़ी है, नयी पोशाक में, वह बेहतर लग रही है, कहीं बेहतर, उसका चेहरा जीवन में लौट आने की तैयारी में है, एक नया रोमन साम्राज्य, और मैं कहता हूँ, तुम लौट आयीं?- मैं चेहरे पर मुखौटा लगाये रखने की कोशिश करता हूँ, पर कोशिश त्याग देता हूँ, उसे भेंटने की कोशिश करता हूँ, और सब ठीक हो जाता है। ‘बढि़या डाइव थी', वह कहती है। ‘पर तुम कितनी देर ग़ायब रहे। वे तुम्हें बचाने कूदने ही वाले थे। मैं खड़ी चीखी, चिल्लायी।' मैं कुछ कहने को सोचता हूँ, पर कुछ सूझता नहीं, सो मैं रुका रहता हूँ कि वह बोलती जाये, इन्तज़ार करता हूँ कि उसकी आवाज़ सारी जगह घेर ले और वह मुझे बताती है कि वह कल ही लौटी है, कि अब उसे शारीरिक शिक्षा से छुट्टी मिल जायेगी, उसे बदले में कुछ असाइनमेण्ट करने होंगे, और मैं पूछता हूँ कि क्या वह उस स्कूल में दाखिला लेने की कोशिश करेगी जिसकी बात वह पहले कर रही थी, और वह यह करने वाली है। सो मैं गहरी साँस लेता हूँ, उससे पूछता हूँ कि क्या वह कॉफ़ी पीना चाहेगी, अपनी बाइक की ओर बढ़ता हूँ, हौले-हौले, मानो उससे कह रहा हूँ- ‘चलो चलें।'
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एकलव्य
ई-10, शंकरनगर, बीडीए कॉलोनी,
शिवाजी नगर, भोपाल ․ 462016
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(शब्द संगत / रचना समय से साभार)
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(चित्र - नीरज की कलाकृति)
सुन्दर प्रस्तुति! हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
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