माँ की पाती पंद्रह अगस्त की तैयारी कैसे हो ?यही सोच रहे थे की माँ की पाती मिली. ...... कुछ इस तरह लिखा था................ प्रिय बच्चों ! स...
माँ की पाती
पंद्रह अगस्त की तैयारी कैसे हो ?यही सोच रहे थे की माँ की पाती मिली. ...... कुछ इस तरह लिखा था................
प्रिय बच्चों !
सब लोग कितने खुश हैं ?बाज़ारों में रंग बिरंगी रौशनी जग मगा रही है. पतंगों की छटा मन मोह रही है. मॉल और दुकानों के विज्ञापन धूम मचा रहे हैं. मुफ्त में मिलने वाली चीज़ों के लालच में लोगों को खरीदारी के लिए कितना उकसाया जा रहा है. सबलोग इस शुभ अवसर की प्रतीक्षा में हैं. आज़ादी की साल गिरह है. राष्ट्रीय त्योहार है पंद्रह अगस्त का शुभदिन. कई दिन तक देशप्रेम के गाने बजेंगे. कही -कहीं नृत्य नाटिकाओं का आयोजन भी होगा. गोष्ठियों. भाषणों और नारे बाज़ी कि धूम मचेगी.
स्कूल कॉलेज में पहले दिन ही मनाया जाता है क्योंकि उस दिन अवकाश होता है. राज्यों की राजधानियों, बड़े संस्थानों में प्रातः झंडा रोहण होगा, सलामी होगी, मिठाई वितरित होगी. बाद में लोग आपस में खुशियाँ मनाएंगे. छुट्टी का आनंद लेंगे. फिर एक साल तक विश्राम. माँ यह देख सुनकर खुश भी है. बच्चों कि ख़ुशी में पर मन बहुत क्षुब्ध है. माँ बहुत प्राचीन समय से ही अपनी संतानों के भरण -पोषण में स्वयं को भूल ही जाती है. वह निःस्वार्थ भाव से यह सब अपना फ़र्ज़ समझती है. बदले में चाहती है केवल प्यार. और यह कि उसके बच्चे भी मुश्किल के समय उसकी रक्षा करें और उसका सम्मान भी करें. माँ इतनी समृद्धिशाली और गौरवशाली रही है की जो भी उसे देख लेता दंग रह जाता. उसे लूटना खसोटना चाहता. कई -कई बार यहाँ विदेशी लोग आये या तो उन्होंने उसकी सारी धन- दौलत, हीरे- ज़वाहरात हासिल कर लिए, या उसको अपनी दासता के बंधन में बाँध लिया. जिसने भी विरोध करना चाहा, उसे हमेशा दण्डित होना पड़ा. कारागार, कोड़े, कालापानी की सजा और फांसी के फंदों से से उनकी जीवन लीला ख़त्म होती रही.
उसे सोने की चिड़िया नाम दिया गया और हर तरह से इसको क्षत-विक्षत होना पड़ा. कुछ लालची और लोभी लोग भी थे जो आज़ादी चाहते ही नहीं थे. पर माँ की कुछ संतानें अपने प्राणों की बाज़ी लगाकर भी बेड़ियों से मुक्ति चाहते थे. कुछ क्रांति का रास्ता अपनाना चाहते तो कुछ अहिंसा और सत्याग्रह का. अपने -अपने मार्ग में चलते हुए कुछ सफल भी हुए तो कुछ शहीद हुए. बड़ी कठिनाइयों और संघर्ष के बाद माँ आज़ाद हो तो गयी पर देह खंडित होने के बाद. वह इस दुःख और आघात को भी सहती गई. उसे लगा था चलो घर अलग हो गए तो क्या ?संतानें खुश तो रह पाएंगी. गुलामी के बंधन तो नहीं रहेंगे. पर ऐसा भी संभव नहीं हुआ. जाते जाते भाइयों के बीच धर्म की दीवारें बन गई. लक्ष्मण - रेखाएं खिंच गयीं. बँटवारा हो गया ज़मीन का,भावनाओं का भाईचारे का. एक दूसरे को दुश्मन ही समझने लगे.
गुलामी में लोगों ने जितने कष्ट सहे थे उन्हें लगा कि अब सब ठीक हो जायेगा. आज़ादी से पहले की विभिन्न रियासतों, राज्यों का एकीकरण किया जाने लगा ताकि सब संतानें एक जुट होकर रह सकें. सभी को समान अवसर मिल पाएंगे. कर्तव्य और अधिकार भी सम होंगें. लेकिन ये सपने पूरे नहीं हो पाए क्योंकि अब माँ की अपनी ही कुछ संतानें माँ पर अपना एकछत्र अधिकार समझने लगीं. वंशवाद भाई - भतीजावादऔर जातिवाद भी ख़त्म नहीं हुए. धर्म की परिभाषा ही बदल गई आपसी प्रेम और सौहार्द तो कम होता जा रहा है. माँ की अच्छी देख रेख, उन्नति और प्रतिष्ठा का जिम्मा जिन लोगों ने लिया अब वे ही उसके शोषक भी बन गए. बचे हुए धन दौलत, प्राकृतिक सम्पदा, जंगल -ज़मीन- जल पर उनका ही अधिकार. काटें- बाँटें या बाँधें.
माँ की सिसकियाँ या मजबूरी उन्हें सुनाई ही नहीं देती. माँ कभी चेतावनी भी देती तो अनसुनी ही रह जाती. कहीं विकास और उन्नति के नाम पर प्रकृति का विनाश हो रहा है. बच्चों की अधिकतर संख्या आज भी भूख -प्यास से पीड़ित है. किसान, मजदूर, बुनकर आए दिन आत्महत्या कर रहे हैं. अन्नदाता किसान के घर में अन्न का दाना नहीं होता और टनों अनाज गोदामों में सड़ता रहता है. भूखों को नहीं मिलता. नारियों की पूजा और शक्ति रूप में मान्यता देने वाले ही कन्या भ्रूण - हत्या, दहेज़ के कारण उत्पीड़न को बढ़ावा दे रहे हैं. बेटियाँ असुरक्षित, बेटे बेरोजगार हैं. बेटियों का घर से बाहर आना-जाना भी खतरों से खाली नहीं है.
आये दिन अपहरण. बलात्कार, हत्या की घटनाएँ घटित हो रही हैं. घरों में भी उत्पीडन होता है. सभी खुश नहीं हैं. यहाँ तक कि कुछ लोग समझते हैं कि माँ की दासता के दिन इससे बेहतर थे. तब राजा दूसरे देश के थे. उन्होंने बँटवारे की नीति अपनाई थी. लोगों को भी उतनी ही शिक्षा देनी चाही जिससे उनका राज-काज चल सकता था. लोगों को अपने अधिकारों की जानकारी न मिले इसलिए उन्हें अशिक्षित रखना ज़रूरी था. हर क्षेत्र में उनका प्रवेश वर्जित भी था. लेकिन यही वस्तु स्थिति अभी भी वैसी ही है. यद्यपि नियम कानून और योजनायें हर तरह की हैं पर उनका सही कार्यान्वयन होता नहीं हैं. न्याय मिलने में इतनी देरी हो जाती है की उसका कोई महत्त्व ही नहीं रह जाता. कई बेक़सूर सालों की सजा भुगतते हैं और दोषी बेफिक्र होकर घूमते हैं. धन-बल पर लोग दूसरों पर दोष थोप देते हैं. सच्चाई को दबा दिया जाता है. सत्य और अहिंसा का उद्घोष करने वाला देश आज विपरीत दिशा को उन्मुख होता जा रहा है. आतंक की घटनाएँ जन जीवन को उजाड़ रही हैं. सीमा के अन्दर और बाहर से हर और खतरा मंडरा रहा है.
समाज के वर्गों में अभी भी भेदभाव कायम है. गरीब और अमीर का वर्ग भी बन गया है. अमीर लोग सुख और ऐश्वर्य भरा जीवन बिता रहे हैं तो गरीब भूखे -प्यासे. रोटी कपडा और मकान की मूल भूत समस्याएं भी ख़त्म नहीं हुई हैं. असंख्य लोग झुग्गी झोंपड़ियों, फुट पाथ और सीमेंट की पाइपों में रहने को मजबूर हैं. जिन्होंने यथार्थ के धरातल पर कदम भी नहीं रखा वे गरीबी की सीमा बताते हैं. गरीब और निर्धन अभी भी दासता में जकड़े हुए हैं तो देश के कर्णधार स्वतंत्र होने का लाभ स्वेच्छाचार से उठा रहे हैं. घोटाले, काला- धन, जमाखोरी और घूस हर क्षेत्र में व्याप्त हो गई है. वे उसे अपना अधिकार समझने लगे हैं. विरोध करने वालों की बात सुनी नहीं जाती बल्कि उन्हें दण्डित किया जाता है.
एक माँ को अपनी सभी संतानें एक समान प्रिय होती हैं. बड़ा या छोटा, अमीर या गरीब. स्वस्थ या विकलांग. एक भी दुखी हो तो उसका मन विचलित हो जाता है. जब तक सब सुखी नीरोग और निर्भय नहीं हो जाते वह ख़ुशी कैसे मना सकती है ?इसलिए माँ चाहती है. .यदि सब सचमुच मेरी आज़ादी का जश्न मनाना ही चाहते हो तो इतना करो. ......कि सब मिलजुल कर आपसी प्रेम और सौहार्द का वातावरण बनाओ. ....भेदभाव की खाइयाँ प्यार से पाट दो. मेरे आँचल को खून से न भरो. छोटे बड़े सभी तो मेरी ही संतानें हो तो आपस में बैर क्यों हो ?
इस दिन हर व्यक्ति. ...नर- नारी, बच्चे- बूढ़े यदि समाज की विषमताओं को मिटाने का प्रण करे और सच्चाई और ईमानदारी को अपना धर्म मानें तो माँ की ख़ुशी अनंत हो जाएगी. फिर कोई भी दुश्मन इधर नज़र डाल न सकेगा. मन की वंदना तभी सार्थक होगी. और आज़ादी का शुभ दिन नई रोशनी में जगमागता रहेगा और माँ की प्रतिष्ठा में दुनिया भी चका चौंध होगी. क्या इस तरह तुम ये दिन मनाने का वादा कर सकते हो ?? ?
प्रतीक्षा में. ...........
सदा तुम्हारी ख़ुशी की चाहत में. ............
माँ
आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 16.08.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंInternet ke zamaane me vistaar se likhi gai pati man ko choo gai thanks
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आदरणीया ज्योतिर्मयी जी ।
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