व्यंग्य आसुरी शक्तियों के निवारणार्थ कुबेर अक्सर जैसे होता है, हमारे मुहल्ले वाले भी बड़े आस्तिक और धर्...
व्यंग्य
आसुरी शक्तियों के निवारणार्थ
कुबेर
अक्सर जैसे होता है, हमारे मुहल्ले वाले भी बड़े आस्तिक और धर्मपरायण हैं। वातावरण में व्याप्त आसुरी शक्तियों का नाश करने और नकारात्मक ऊर्जा की जगह सकारात्मक ऊर्जा भरने के लिये नित कोई न कोई धार्मिक आयोजन करते रहते हैं।
मुझे तो आज तक अपने अंदर की ही आसुरी शक्तियों को नष्ट करने में सफलता नहीं मिल पाई है, बाहर वालों से क्या खाक लड़ूँ। नकारात्मक ऊर्जा और सकारात्मक ऊर्जा में भी भेद करना भूल चुका हूँ। इस तरह के किसी कार्य में मैं रूचि नहीं लेता, लिहाजा उनके लिये मैं सर्वथा अस्पृश्य हो गया हूँ।
मुहल्ले वाले मेरे जैसे नहीं हैं। सारे, सकारात्मक ऊर्जा से लबालब भरे हुए हैं। उनके अंदर खालिश दैवीय शक्तियों का वास है। इनमें संस्था के अध्यक्ष अगरवाल जी भी शामिल हैं जिसकी नई नवेली बहू पिछले हफ्ते चाय बनाते-बनाते झुलस कर मर गई थी और पुलिस जिसकी जांच कर रही है। शर्मा जी भी शामिल हैं, जो रिश्वत लेने के आरोप में कई बार सस्पैंड हो चुके हैं।
अभी-अभी मुहल्ले में आसुरी शक्तियों के निवारणार्थ एक प्रोग्राम हुआ। आसुरी शक्तियों का काम तमाम करने और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भरने में उत्तर वाले माहिर होते हैं; अतः उधर से ही बहुत बड़ा संत बुलाया गया था। सप्ताह भर की ध्वनि विस्तार से मैं अवसाद में जाते-जाते बचा। न चाहते हुए भी उनका प्रवचन सुनना पड़ा। वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने वाली उनकी बातों का लोगों ने जमकर रस लिया। मैंने भी खूब रस लिया। कुछ रस आपके लिये भी बचाकर लाया हूँ।
उनके अनुसार, 'कपि श्रेष्ठ हनुमान जी प्रभु राम के भक्तों में सबसे ऊँचे हैं।' इस वाक्य के प्रत्येक शब्द, प्रत्येक अक्षर की विशद् व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा- 'कपि'! क माने कष्ट, प माने पाप और इ माने इति; अर्थात मनुष्य के सारे कष्टों और पापों का नाश करने वाला।'
पंडाल बजरंगबली के जयकारी से गूंज उठा। मुझे लगा, पंडाल का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरने लगा है।
'भक्त' शब्द को अनावृत्त करते हुए उन्होंने कहा -' भ माने भागने वाला, क माने कमर कसकर और त माने पूरी ताकत से। अर्थात भगवान के कामों में कमर कसकर पूरी ताकत से भागने वाला।'
(मैं दाँवे के साथ कह सकता हूँ कि वहाँ एक भी भाषा वैज्ञानिक नहीं रहा होगा। होता तो जरूर उन्हें हार्ट अटैक आया होता।)
पंडाल एक बार फिर बजरंगबली के जयकारे और तालियों की आवाज से गूंज उठा। मुझे लगा, अब की बार तालियों की चोंट से पंडाल के अंदर मौजूद सारी आसुरी शक्तियों का नाश हो गया होगा।
यह उदाहरण तो एक दिन का, एक प्रसंग मात्र का है। सात दिनों में ऐसे कई प्रसंग आए; अनगिनत जयकारी लगे, सैकड़ों बार तालियाँ बजी। मजाल है कि कोई आसुरी शक्ति बच पाई हो।
आज की बात है। बहु को जलाकर मारने के आरोप में अगरवाल जी सपरिवार पकड़ लिये गए हैं। शर्मा जी रिश्वत लेने के आरोप में फिर सस्पैंड हो गये हैं। नाती-पोते वाला साठ साल का एक आदमी जिन्होंने आसुरी शक्तियों का निवारण करने वाले कथा-प्रसंगों का सर्वाधिक रसपान किया था, एक नाबालिग की ईज्जत लूटते मौके पर पकड़ा गया।
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तोता रटंत
कुबेर
कानूनी शिकंजे में बुरी तरह जकड़ा और मुक्ति हेतु छटपटाता संयोगवश वह ऋषि के आश्रम में पहुँचा। उसका तन ही नहीं मन भी बुरी तरह आहत हो चुका था। उसकी दयनीय हालत देखकर ऋषि का मन करुणा से भर उठा। उसने उसका परिचय पूछा - ''वत्स तुम कौन हो?''
''स्वामी मैं इस देश का महामंत्री हूँ।'' उसने अपना परिचय दिया।
''तुम्हारी ऐसी हालत किसने की?''
''स्वामी, इस देश की न्याय व्यवस्था हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ी हुई है। कानूनी जाल में मैं बुरी तरह फँसा हुआ हूँ। मुझे जेल की सींखचों से बचाइये।''
''वत्स, तुम चिंता न करो। तुम भ्रष्ट आचरण के बंधन से बंधे हुए हो। यहाँ कुछ दिन रहकर चित्त शुद्ध करो। ज्ञान रूपी प्रकाश से अज्ञान रूपी अँधकार दूर हो जाता है।''
वह आश्रम में रहकर अपना चित्त शुद्ध करने लगा। ऋषि उसे रोज उपदेश देता - ''भ्रष्ट लोग आते हैं। धन का लालच देते हैं। भ्रष्टाचार का जाल फैलाते हैं। लालच में आकर भ्रष्टाचार के जाल में नहीं फँसना चाहिये।''
ऋषि का उपदेश उसने कुछ ही दिनों में कंठस्थ कर लिया। उसके इस कौशल पर ऋषि बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि इसका हृदय अब परिवर्तित हो चुका है; इसे इसके साथियों के पास भेज देना चाहिये। उसने उसे बुलाकर अंतिम उपदेश दिया - ''वत्स, अब तुम अवगुण मुक्त हो चुके हो। अपने साथियों के पास राजधानी जाओ। अपने आप को कानून के हवाले करो। कानून जो भी सजा दे उसे स्वीकार करो क्योंकि अपराधी को सजा देने का अधिकार केवल राजा को होता है। अपने साथियों को भी यह मंत्र सिखाओ और अपने पापों का प्रायश्चित करो।''
ऋषि को आत्मिक प्रसन्नता हूई कि उसने इस देश के मंत्रियों का आचरण शुद्ध करके इस देश को भ्रष्टाचार के दलदल में डूबने से बचा लिया है।
कुछ दिनों बाद उसे अपने उपदेशों का सुपरिणाम जानने की इच्छा हुई। वह राजधानी गया। राजधानी की हालत देखकर उसे घोर निराशा हुई। उसकी प्रसन्नता जाती रही। उसने देखा, वह मंत्री और उसके सभी साथी भ्रष्ट लोगों के द्वारा फैलाये जाल में फंसकर फड़फड़ा रहे हैं और उसके द्वारा सिखाये उसी मंत्र का सामूहिक जाप किये जा रहे हैं - 'भ्रष्ट लोग आते हैं, धन का लालच देते हैं, भ्रष्टाचार का जाल फैलाते हैं, लालच में आकर भ्रष्टाचार के जाल में नहीं फंसना चाहिये।'
ऋषि दुखी मन आश्रम लौट आये।
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बेरोजगारवाद का घोषणा-पत्र
कुबेर
(बेरोजगारवाद का यह घोषणा-पत्र दुनिया के समस्त बेरोजगारों को समर्पित है।)
आकुले जी की अकुलाहट आखिर सफल हुई। बेरोजगारी और बेरोजगारों की समस्या उसे दिन-रात खाए जा रही थी। वर्षों की मेहनत के बाद अंततः उन्हें इसका हल सूझ ही गया। आखिर उन्होंने 'बेरोजगारवाद का घोषणा-पत्र' लिख ही लिया। उनके बेरोजगारवाद के इसी घोषणा-पत्र को बेरोजगारों की दुनिया में तहलका मचाने के लिये प्रस्तुत किया जा रहा है। बेरोजगारवाद के इस घोषणा-पत्र से दुनिया भर के बेरोजगारों को न सिर्फ जीने का नया मंत्र मिलेगा बल्कि कुछ करने के लिये नया मंच भी मिलेगा। रोजगार के नये-नये अवसरों की तलाश और पहचान भी हो सकेगी। बेरोजगारों के लिये यह अत्यंत हर्ष का विषय है परंतु सरकार और पूंजीपतियों सहित उन सभी लोगों के लिये चेतावनी है जो बेरोजगारों का शोषण करते हैं।
'बेरोजगारवाद का घोषणा-पत्र' की शुरुआत इस प्रकार होती है - 'दुनिया के बेरोजगारों, एक हो जाओ। तुम्हारे पास खोने के लिये कुछ भी नहीं ह,ै सिवाय तुम्हारी आलस्यता, निकम्मापन और आवारागर्दी के; और पाने के लिये है नया जोश, नई उमंग, नया मकसद और दुनिया के समस्त देशों की सरकारें। निराशा, हताशा और कुंठाओं को छोड़कर उद्देश्य प्राप्ति के प्रयासों में जुट जाओ। वह दिन अवश्य आयेगा, जब दुनिया के तमाम देशों में बेरोजगारों की ही सरकारें होगी।
सरकार बनाने के लिये बहुमत का होना जरूरी है। इस मामले में हम बड़े सौभाग्यशाली हैं। अगर हम संगठित हो जायें तो हमारे देश में हमें बहुमत प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। दुनिया के कुछ पैसे वाले देशों में थोड़ी-बहुत समस्याएँ आ सकती हैं। वहाँ के बेरोजगार अल्पसंख्यक हो सकते हैं, पर उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है। ऐसे तमाम देशों में बहुमत प्राप्त करने के लिये बड़ी संख्या में विशेषज्ञ बेरोजगारों की टीमें भारत से भेजी जायेगी जो वहाँ के बेरोजगारों को न सिर्फ सरकार बनाने में, अपितु सरकार चलाने में भी मदद करेगी।
दुनिया के हे बेरोजगारों, तुम्हारे पास क्या नहीं है। तुम्हारे पास असीमित मात्रा में बोरोजगार शक्तियाँ हैं जिनकी क्षमताएँ अपार हैं। तुम्हारे पास ढेर सारे (फालतू) समय है। तुम्हारे पास तालियों और नारों की शक्तियाँ हैं जिसके सामने दुनिया की सारी शक्तियाँ फीकी हैं। इस देश में जितनी सरकारें बनी हैं, सब तुम्हारी इन्हीं शक्तियों की बदौलत बनी हैं। अपनी शक्तियों को पहचानों। किसी भी चुनावी सभा में तालियाँ बजाने वालों में सर्वाधिक संख्या तुम्हारी ही होती है। चुनावी रैलियों में नारा लगाने वालों में भी तुम्हारी ही संख्या सर्वाधिक होती है। कवियों-साहित्यकारों के सम्मेलनों में तुम्हारे अलावा भी भला कोई मौजूद रहता है? तुम तो सर्वव्यापी हो। तुम्हारी यही मौजूदगी तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है। अपनी इन बेरोजगार शक्तियों को पहचानों। इनका उचित मूल्य प्राप्त करना सीखो। यह तुम्हारा 'बेरोजगारी का मौलिक अधिकार' है। बेरोजगार एकता जिंदाबाद।
बेरोजगार साथियों, बेरोजगार शक्तियों का उचित मूल्य प्राप्त करने के लिये दो बातों पर ध्यान देना जरूरी है। पहली बात यह कि तुम्हारी बेरोजगार शक्ति संगठित नहीं है। बेरोजगारों का संगठन बनाना निहायत जरूरी है। गाँव-मोहल्ले से लेकर प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुम्हें संगठित होना है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुम्हारा संगठन 'संयुक्त बेरोजगार संघ' के नाम से जाना जयेगा। इस संघ के सभी कार्यालय भारत में ही स्थित होंगे। इसका महासचिव संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव से ज्यादा पावरफूल होगा। सारे राष्ट्राध्यक्ष उनकी चमचागिरी करते नजर आयेंगे। बोलो, बेरोजगार एकता.....( जिंदाबाद )।
दूसरी महत्वपूर्ण बात है, बेरोजगार शक्तियों का मूल्य निर्धारण करना। इसे अच्छी तरह समझ लेना जरूरी है। तुम्हारे पास तीन तरह की दिव्य बेरोजगार शक्तियाँ हैं - तुम्हारी मौजूदगी, तुम्हारी तालियाँ और तुम्हारे नारे।
तुम्हारी मौजूदगी बड़े काम की है। सारे राजनीतिक और अराजनीतिक संगठनों के काम तुम्हारी मौजूदगी से ही बनते हैं। इनकी सभा-रैलियों में बिना उचित पारिश्रमिक के उपस्थित होना तुम्हारे बेरोजगारी के मौलिक अधिकार का घोर हनन है; बेरोजगारों का सबसे बड़ा अपमान है। अतः इन जगहों पर उपस्थित होने के लिये अधिकाधिक पारिश्रमिक लिया जाना जरूरी है। पारिश्रमिक तय करते समय विरोधी दल वालों से सतत संपर्क बनाये रखें। ऐसा करना बड़ा मधुर फलदायी होता है। यदि वे चाहें कि आप वहाँ न जायें तो यह और भी अच्छी बात है। तब तो आप अपनी अनुपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये डबल पारिश्रमिक या ज्यादा के भी हकदार हैं। यह बात तुम अच्छी तरह जान लो कि दुनिया में कोई भी सभा या रैली तुम्हारी उपेक्षा करके आयोजित हो ही नहीं सकती। बोलो, बेरोजगार एकता.......।
तुम्हारी दूसरी शक्ति तुम्हारी तालियाँ है। ताली बजाना भी एक कला है। प्रत्येक बेरोजगार को इसे सीखना अति आवश्यक है। इसे सीखने और इसके महत्व को रेखांकित करने के लिये प्रशिक्षण संस्थानों की बड़ी आवश्यकता है। इसके लिये देश भर में जिला स्तर पर 'ताली प्रशिक्षण संस्थान' खोले जायेंगे। ताली बजाना सीखना किसी साधना से कम नहीं है। अच्छी ताली वादक किसी अच्छे संगीतकार से कतई कम नहीं होता। संगीत सभाओं की सफलता भी तो आखिर तुम्हारी तालियों पर ही निर्भर करती हैं। वह दिन दूर नहीं जब दुनिया के श्रेष्ठ कलाकार, संगीतकार, साहित्यकार, नेता, मंत्री, सभी, अपने-अपने साथ प्रशिक्षित ताली वादकों की एक टीम लेकर चला करेंगे। इस प्रकार तालीवादन के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएँ बनने वाली हैं। समाचार पत्रों में जल्द ही प्रशिक्षित तालीवादकों की भर्ती हेतु विज्ञापन निकलने की संभावना है। फिर से बोलो, बेरोजगार एकता .........।
ताली प्रशिक्षण संस्थानों में इसकी बारीकियों यथा, तालियों की आवृत्ति, आवर्तकाल, अंतराल या बारंबारता तथा इसके प्रकार के बारे में समझाया जायेगा। उचित-अनुचित अवसर का ज्ञान कराया जायेगा जिससे सही अवसर पर सही तालियाँ बजाई जा सके। वक्ता महोदय की भावभंगिमाओं, इशारों, और आवश्यकताओं से संबंधित मनोविज्ञान का भी अध्ययन कराया जायेगा। तालियों का रेट तय करते वक्त कई बातों का ध्यान रखा जायेगा। उचित अवसर पर उचित लय-ताल की तालियों की कीमत उचित ही लिये जायेंगे। परंतु उचित अवसर पर तालियाँ न बजाने या अनुचित तालियां बजाने और अनुचित अवसर पर, जैसे- आरंभ में समापन की या समापन से पहले ही समापन की तालियाँ बजाने के लिये डबल कीमत लिये जायेंगे। समर्थन की तालियों की जगह विरोध की तालियों के लिये तीन गुने तथा साथ में सड़े-अंडे और टमाटर फेंकने के लिये पाँच गुने कीमत लिये जायेंगे। इस तरह के अनुबंध करते समय आयोजकों के विरोधी दलों से आपकी मित्रता परम आवश्यक है। एकबार फिर बोलो, बेरोजगार एकता .........।
तुम्हारी तीसरी शक्ति नारे और हूटिंग्स हैं। हूटिंग एक तरह का प्रति-नारा होता है, जैसे मैटर या द्रव्य का एन्टीमैटर या प्रतिद्रव्य होता है और जो द्रव्य से लाखों गुना श्क्तिशाली होता है। नारा समर्थन का वज्रास्त्र है तो हूटिंग विरोध का ब्रह्मास्त्र। नारे और हूटिंग्स आपके विशेष अस्त्र-शस्त्र हैं इसलिये इसके लिये विशेष मूल्य प्राप्त करना आपका विशेष आधिकार है। यह शक्ति सरकार बनाने और गिराने के काम आती है अतः इसका प्रयोग आप संभालकर करें।
प्रथम दो शक्तियों का इस्तेमाल करने में यदि आप दक्ष हो जाते हैं तो तीसरी शक्ति की कलाओं का इस्तेमाल करना आप स्वतः सीख जायेंगे।
आशा है, बेरोजगारवाद के इस घोषणा-पत्र से दुनिया भर के बेरोजगार, एकता के सूत्र में बंधकर, बेरोजगारवाद की जड़ों को मजबूत करेंगे। अंत में एकबार फिर जोर लगाकर बोलिये, बेरोजगार एकता, जिंदाबाद...।'
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achchi rachnayen hai
जवाब देंहटाएंbehararin prastuti
जवाब देंहटाएंACH CHI rachnao ke liye
जवाब देंहटाएंbadhaiee
शायद ध्वनि विस्तारक यंत्र की ध्वनि आशूरीशक्तियों तक नहीं पहुँच पाई एक उच्च श्रेणी का व्यंग
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