हमारा भविष्य रामस्वरूप बाबू का मानना था कि अपने बच्चे से तो सभी प्यार करते है लेकिन अनाथ बच्चे को देखकर मुंह कोई कैसे मोड़ लेता ह...
हमारा भविष्य
रामस्वरूप बाबू का मानना था कि अपने बच्चे से तो सभी प्यार करते है लेकिन अनाथ बच्चे को देखकर मुंह कोई कैसे मोड़ लेता है ? एक दिन रामस्वरूप बाबू अपने रेलवे कार्यालय से लौट रहे थे कि उन्हें रास्ते में तीन-चार साल के दो बच्चे को जेल परिसर के सामने रोते-बिलखते देख. रामस्वरूप बाबू ने उन बच्चों से पूछा कि वे यहां जेल के बाहर क्यों है और क्यों रो रहे है ? बड़े बच्चे ने कहा कि वे अपने पिता का इंतजार कर रहे है. रामस्वरूप बाबू जेल अधिकारियों से बातचीत किया तो पता चला कि उन बच्चों के पिता को आजीवन कारावास हुआ है. बच्चों की उम्र इतनी नहीं थी कि वे समझ सके कि उनके पिता जेल से कई वर्षों तक बाहर नहीं आ सकेंगे क्योंकि उन बच्चों के पिता ने उन बच्चों की माँ यानी अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी.
रामस्वरूप बाबू अपने विचार पर अडिग रहने वाले एक दयालु व्यक्ति थे. उन्होंने बच्चों को अपने साथ घर ले जाने के लिए जब पुलिस अधिकारियों से पूछा तो वे तुरंत ही तैयार हो गए. वैसे भी जेल के बाहर लगातार रोते जा रहे बच्चों से त्रस्त पुलिस ने जब देखा कि आगन्तुक बच्चों को ले जाना चाहता है तो सोचा चलो अच्छा हुआ बला टल रही है. रामस्वरूप बाबू के साथ दो-दो बच्चों को देख कर उनकी पत्नी और सयानी हो चली बेटी स्तब्ध रह गयी. पत्नी ने पूछा कहां आपको ये बच्चे मिल गए ? उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी स्वाति को संक्षेप में सारी बातें बताया. पत्नी और बेटी भी बच्चों को सहस्र स्वीकार किया और खुश हो गयी. रामस्वरूप बाबू की पत्नी तुरंत दोनों बच्चों को खाना खिलाया, नये कपड़े ला कर दी और बाद में दोनों बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाया और दोनों बच्चों को अपने बच्चों की तरह पालने लगे.
रामस्वरूप बाबू जब रेलवे की नौकरी से रिटायर हुए तो उन्हें रिटायरमेंट के समय जो रूपए मिले उससे उन्होंने अपने घर में कुछ और कमरे बनवाए जिससे कि वे ऐसे ही दूसरे अन्य बच्चों की मदद कर सके. रामस्वरूप बाबू ने अनाथ बच्चों के लिए एक संस्था की स्थापना भी किया जिसका नाम रखा ‘हमारा भविष्य'. रामस्वरूप बाबू का मानना था कि ये अनाथ बच्चे हमारा भविष्य है, इन्हें देख-भाल की जरूरत है अगर हम इन बच्चों को अच्छे नागरिक बना सके तो हमारा भविष्य उज्जवल होगा. अपराध के दोषियों के उपेक्षित बच्चों, नाजायज कह कर छोड़ दिए बच्चों, कूड़ों में फेंक दिए गए बच्चों, सौतेली माँ द्वारा प्रताड़ित बच्चों को रामस्वरूप बाबू चून-चून कर अपनी संस्था ‘हमारा भविष्य' में लाते रहे तथा उनका लालन-पालन अपनी पत्नी और पुत्री की सहायता से करते रहे.
एक दिन अचानक रामस्वरूप बाबू और उनकी पत्नी को दिल का दौरा पड़ा और दोनों एक साथ चल बसे. बेटी स्वाति को अपने माता-पिता के चले जाने का गम तो बहुत हुआ परंतु स्वाति को विरासत में एक भरा-पूरा बच्चों का परिवार मिला जिसे उसने बड़ी गंभीरता और खुशी से चलाती रही. स्वाति के गंभीर प्रयास से संस्था ‘हमारा भविष्य' का आकार अब काफी बड़ा हो चुका था. स्वाति भी अपने पिता की तरह ही यह मानती थी कि अगर उसके प्रयास से इन अनाथ बच्चों को एक सुनहरा भविष्य मिलता हो तो इस संसार में इससे बेहतरीन कार्य कोई दूसरा नहीं.
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कालिन्दी
जब कोई जीवन के उस मोड़ पर पहुंच जाता हो जहां जीवन उसके लिए न कोई महत्व रखता हो और न दूसरों के लिए जिज्ञासा. सांस लेना मजबूरी हो क्योंकि सांसें चाहने पर भी नहीं रूकती हो. कालिन्दी जीवन के उसी मोड़ पर पहुंच गयी थी. घुटने से थोड़ी नीची साड़ी, बिखरे बाल, किसी तरह का ऋंगार नहीं, अविवाहित एक विरासत में मिली बड़े घर में अकेली रहती आ रही थी.
कालिन्दी को देखकर यह समझना घनघोर कल्पना का विषय था कि इस मानव से भरे विश्व में कभी उसका भी कोई अपना था. ज्यादातर के समझ में कालिन्दी को हमेशा तन्हा ही देखा गया था परंतु कालिन्दी कभी युवती भी थी, उसके भी आंखों में कभी अमृत और विष था. कभी वो भी जन्म ली थी, अकेले रह रही उस विशाल घर में बंसत में दौड़ लगाती थी और हेमंत में कोयल सी कुकती थी परंतु ऐसा प्रतीत होता था कि यह सब वह स्वंय भूल गयी थी.
अगर वह नहीं भूली थी तो गौतम को, अपनी बहन का पुत्र. अभी भी जब बौराई सी शाम को सूरज ढ़लने के बाद इधर-उधर भटक कर घर लौटती और अंधेरे या उजाले में बैठती, गौतम की तस्वीर उसकी आंखों में उतर आती. गौतम की माँ का स्वर्गवास उसके जन्म लेते ही हो गया था. गौतम का पिता एक दिन अचानक आंखों में आग्रह और हाथों में गौतम को लिए कालिन्दी के सामने प्रकट हो गया था. इससे आगे की बात कालिन्दी सोचना भी नहीं चाहती थी. गौतम का पिता कुछ दिन कालिन्दी के साथ रह गया था लेकिन आखिरकार वह एक दिन चला गया और घर पर सिर्फ कालिन्दी और गौतम ही रह गये थे. गौतम का पिता इस संसार में वैसे लोगों में से था
जिसे ठहरना ही नहीं आता, एक जगह वह रह नहीं सकता इसलिए वह चला गया था.
कालिन्दी ने गौतम को बड़े जतन से पाला परंतु अपने रक्त में पिता से पाए बेचैनी के कारण वह भी बड़ा हुआ और कही चला गया और कालिन्दी फिर अकेले ही रह गयी. कुछ वर्ष पहले गौतम कुछ तांती साड़ियां और सीपों की चूड़ियां लेकर अपने विवाह का निमंत्रण देने कालिन्दी के यहां आया था. कालिन्दी खैर कहां जाती, उसने तो सूख और दुख के अंतर को ही मानो मिटा दिया था. एक दिन कालिन्दी अपने घर के बरामदे में बैठी पथराई आंखों में गौतम का ही तस्वीर लिए बैठी थी कि अचानक गौतम को एक दो वर्ष के बच्चे के साथ सामने खड़ा पाया. कालिन्दी की आंखें झपकी ली उसने अपने हाथों से आंखों को पोंछा यह जानने के लिए कि कहीं वह स्वप्न तो नहीं देख रही.
गौतम ने आग्रह किया कि इस बच्चे को वह रख ले क्योंकि इसकी माँ अब नहीं रही. कालिन्दी ने गौतम को जाने को कहा और बच्चे को रखने से इंकार करती रही परंतु गौतम था कि लगातार बच्चे को रखने की बात करता रहा. एक महीने बाद कालिन्दी ने गौतम को जाने को कहा और बच्चा जिसे वह सुबरो कहने लगी थी, को अपने छाती से चिपका कर सिसकने लगी, गौतम चला गया. बच्चे की परवरिश के लिए गौतम हजार रूपए महीने कालिन्दी को भेज दिया करता था.
कालिन्दी सुबरो को छाती से चिपकाए फिर से युवती बन गयी थी. बगीचे के आम, बैर, अमरूद जो पहले पेड़ से गिर कर सड़ जाया करते थे, अब महाजनों को बुलवाकर बेच देती थी. पैसे जो मिलते उसे सुबरो की खुशियाँ खरीदने में लगाती. सुबरो बड़ा हो रहा था और कालिन्दी को ही माँ कहता था. एक दिन गौतम फिर वापस किसी औरत को साथ लेकर आया, गौतम के साथ औरत को देखकर कालिन्दी समझ गयी कि गौतम ने दूसरा ब्याह कर लिया है. बगीचे में खेल रहे सुबरो को गौतम ने बुलाया और कहा देखो ये तुम्हारी नयी माँ है पर सुबरो दौड़ कर कालिन्दी से चिपट गया. गौतम बच्चे को अपने साथ ले जाने का आग्रह कालिन्दी से करने लगा पर कालिन्दी सुबरो को छाती से चिपकाए उस लोक में पहुंच गयी थी जहां इस लोक की आवाज नहीं पहुंचती है. कालिन्दी जैसे ही उस लोक से लौटी और गौतम के आग्रह को सुना उसने सुबरो के खुशियों का सामान तुरंत बांध दिया और सुबरो को समझायी कि उसके पिता उसे नयी-नयी जगहों की सैर कराने ले जा रहे है. सुबरो खुश हो गया और दौड़ कर अपने पिता के हाथों को पकड़ लिया. गौतम जाते-जाते कहा कि हम कभी आपके ऋण से मुक्त नहीं हो सकेंगे. कालिन्दी इस बार अपने छाती में एक शून्यता को महसूस किया जो असहनीय सा उसे लग रहा था.
सुबरो की नयी माँ बच्चे को पाकर खुश नहीं हो सकी और कुछ ही दिनों बाद गौतम सुबरो को लेकर कालिन्दी के यहां पहुंच गया. लोगों ने गौतम को बताया कि सप्ताह भर हुए कालिन्दी इस दुनिया में नहीं रही.
नीरा सिन्हा
सेल फोन - 9931584588
Dono hi laghukathayen achchi hai
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