ईश्वर की अदालत का एक मुकदमा स्वर्ग-नरक इसी दुनिया में है और सभी को अपने जीवनकाल में ही इसे भोगना पड़ता है․ राजू बड़े शिद्दत से यह सोच रहा...
ईश्वर की अदालत का एक मुकदमा
स्वर्ग-नरक इसी दुनिया में है और सभी को अपने जीवनकाल में ही इसे भोगना पड़ता है․ राजू बड़े शिद्दत से यह सोच रहा था․ उसने अपने पिता को बतौर वकील बहुत नजदीक से देखा था․ पूरे शहर में राजू के पिता के ईमानदारी के चर्चे आम थे परंतु अपने पिता के बिस्तर पकड़ने के बाद मानसिक तौर पर राजू बेचैन रहा करता था․ उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि जब उसके पिता एक ईमानदार व्यक्ति रहे तो फिर वो बिस्तर पर क्यों है ?
राजू के पिता का हाल यह था कि उनके दिमाग में खलल पड़ चुका था, उन्हें अपने दु,ख-तकलीफ का एहसास तक नहीं था․ अगर राजू के पिता को अपने दुख-तकलीफ का एहसास होता तो यह माना जा सकता था कि उन्हें दंड़ मिला है परंतु जब उन्हें अपने दुख-तकलीफ का एहसास ही नहीं था तो फिर राजू के पिता के साथ ऐसा क्यों हो रहा था ?
राजू इन्हीं सब प्रश्नों के उतर ढूंढ़ता रहता था․ उसने अपने चचरे दादा के संबंध में सोचना शुरू किया, वो भी वकील थे तथा उन्हें भी बिस्तर पकड़ना पड़ा था․ राजू को सोचते-सोचते अपने नाना की भी याद हो आयी, वो भी सरकारी वकील रहे थे और उन्हें भी बिस्तर पकड़ना पड़ा था․ राजू जिस शहर में रहता था, उस शहर के एक वरीय वकील का हाल ही में मृत्यु हुई थी, जो कई वर्षों से बिस्तर पर थे․ ऐसा सोचते हुए राजू का दिमाग घूमने लगा था․ उसे लग रहा था कि कहीं इन वकीलों का मुकदमा सबसे बड़ी अदालत में तो नहीं चल रहा था जिसका निर्णय इन लोगों के विरूद्ध हुआ․
रात हो चुकी थी अपने पिता के क्रंदन से उसके कान फट रहे थे․ किसी तरह वह सो सका था․ सपने में राजू ने देखा कि उसके पिता पर ईश्वर के यहां मुकदमा चल रहा है․ वह दर्शकों के कतार में बैठा है․ ईश्वर जज की कुर्सी पर विराजमान है और राजू के पिता से कह रहे है कि उन्हें इस अदालत में कोई वकील नहीं दिया जाएगा, अपने मुकदमें की पैरवी उन्हें खूद करनी होगी․ राजू के पिता कटघरे में खड़े हैं, उन्हें वकालत तो आती ही थी इसलिए उन्होंने कहना शुरू किया, मी लार्ड, मैंने पूरी ईमानदारी से वकालत किया, कभी किसी भी व्यक्ति को ठगा नहीं और न ही झूठा मुकदमा किया․
ईश्वर बतौर जज राजू के पिता को बीच में ही टोके, तुम झूठ बोल रहे हो, तुमने अपने वकालत के शुरूआती दिनों में कई झूठा फौजदारी मुकदमा दायर किया था जिसे तुमने अपनी वाक्पटुता और चतुराई से जीत भी लिया था․ उन मुकदमों में कई बेगुनाहों को तुमने सजा दिलाया था․
राजू के पिता थोड़ी देर चुप हो गए, ऐसा प्रतीत होता था जैसे वो अपनी याददाश्त पर जोर डाल कर कुछ याद करने की कोशिश कर रहे थे․ चंद मिनट सोचने के बाद राजू के पिता ने कहा, परंतु, मी लार्ड, वो तो मेरा फर्ज था․ मेरे मोवक्किल ने मुझे कहा था कि उसका मुकदमा सत्य पर आधारित है इसलिए मैंने अपने मोवक्किल के कहने पर मुकदमा किया था․
ईश्वर ने बतौर जज कहा परंतु तुमने इस तथ्य की जांच नहीं किया था कि तुम्हारा मोवक्किल सत्य कह रहा है या नहीं․ दरअसल तुमने ऐसे कई मुकदमे किए जो सत्य पर आधारित नहीं थे और चूंकि तुमने अपने वाक्पटुता और चतुराई से उन मुकदमों को जीतकर बेगुनाहों को सलाखों के पीछे भेज दिया इसलिए तुम्हारे ‘स्टार पर स्क्रेच' आ गया․
आगे क्या कहना है ईश्वर ने पूछा ?
राजू के पिता ने कहा मी लार्ड, मैंने बाद में ऐसा मुकदमा करना छोड़ दिया था और
दस्तावेजों के आधार पर होने वाले दीवानी मुकदमा ही करता था․
ईश्वर ने कहा, ये ठीक है कि तुमने बाद के दिनों में झूठे मुकदमें करने छोड़ दिए परंतु जिस दस्तावेजों के आधार पर तुमने बाद में मुकदमा किया उसमें कई दस्तावेज असत्य थे, बनाए गए थे परंतु जिस व्यक्तियों ने तुम्हें मुकदमा करने को कहा, वे तुम्हारे अजीज थे और तुम फिर पाप में फंस गए․
राजू के पिता ने दलील दिया परंतु मी लार्ड, मैंने परोक्ष रूप से झूठ तो नहीं बोला, मुझसे झूठ बोलवाया गया․
वाक्पटुता और चतुराई यहां नहीं चलेगी, जज साहब ने कहा․ तुम झूठ बोलो या तुमसे झूठ बुलवाया गया, दोनों की ही सजा यहां एक है․ जिसके लिए तुम झूठ बोल रहे थे वो तो बच गया क्योंकि उसके बदले तुमने पाप किया, अगर तुम झूठ बोलने वाले की बात नीचे की अदालत में नहीं दोहराते तो वह व्यक्ति झूठा मुकदमा कर ही नहीं सकता था परंतु तुम्हारे झूठ बोलने की प्रवृति के कारण उस व्यक्ति ने झूठा मुकदमा करने की हिमाकत किया इसलिए तुम्हारे ‘स्टार पर दूसरा स्क्रेच' आ गया․ पृथ्वी में लोकमत के अनुसार तुम ईमानदार माने जाते रहे हो और तुम्हारे मन में बहुत छलकपट नहीं रहने के कारण तुम्हें मृत्युदंड़ नहीं दिया गया है․
जज साहब ने राजू के पिता से पूछा और कुछ कहना है तुम्हें अपने बचाव में ?
राजू के पिता ने पूछा, मी लार्ड, दलील की खातिर अगर मैं मान भी लूं कि उपरोक्त कारणों से मेरे ‘स्टार में स्क्रेच' आ गया लेकिन जिसकी सजा मुझे पृथ्वीलोक में अभी मिल रही है
परंतु मेरे बाल-बच्चों को मेरे कारण क्यों परेशान होना पड़ रहा है ?
जज साहब ने कहा, तुमने जो झूठ और फरेब से धन कमाया, उसी का उपभोग किया तुम्हारे बाल-बच्चों ने, तो पाप की कमाई के कुछ अंशों के भागीदार होने के कारण उन्हें तुम्हारे कारण कुछ तो परेशानी एवं कष्ट उठाना ही पड़ेगा․
राजू के पिता ने अपने चाचा और ससुर जो नामी वकील थे, के संबंध में भी जज साहब से पूछा कि क्या वे लोग भी बतौर वकील पाप के भागीदार थे ?
जज साहब ने राजू के पिता को दूसरे कक्ष में आने का संकेत दिया जहां राजू के पिता की भेंट अपने चाचा से हुई, उनपर भी कभी मुकदमा चलाया गया था जिसे जज साहब ने राजू के पिता को मुकदमा चलते हुए दिखलाया․ जज साहब ने राजू के पिता के चाचा को सजा इसलिए दिया था क्योंकि उन्हें धरती पर किसी भी सुख-सुविधा की कमी नहीं थी फिर भी उन्होंने कई झूठे मुकदमें किए थे और कई बेगुनाहों को सजा दिलवाया था․
फिर राजू के पिता को जज साहब द्वारा एक अन्य कक्ष में ले जाया गया जहां उनकी मुलाकात अपने ससुर से हुई जो धरती पर एक नामी सरकारी वकील थे․ जज साहब ने बताया कि तुम्हारे ससुर का दोष यह था कि इन्होंने सरकार द्वारा दायर ज्यादातर झूठे मुकदमें की पैरवी करते रहे और अपनी बुद्धिमानी, वाक्पटुता और चतुराई का नाजायज इस्तेमाल कर सरकार को मुकदमें में विजय हासिल करवाते रहे․ इन्होंने जो अकूत धन कमाया उसके उपभोग से इनके पुत्रों के बीच आपस में कभी बनी नहीं और सभी अलग-अलग हो गए और बतौर सरकारी वकील तुम्हारे ससुर ने जो धन अर्जित किया था उसका दुरुपयोग करते हुए नष्ट कर दिया इसलिए आखिरी समय में तुम्हारे ससुर को काफी कष्टों का सामना करना पड़ा था․
राजू के पिता ने जज साहब से पूछा, मी लार्ड, धरती पर मेरे भोग के और कितने दिन है?
जज साहब ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, ये बात तो मेरे दस्तावेजनवीश ही तुम्हें बता सकते है जो अभी पृथ्वी से सटे इलाकों के दौरे पर हैं․
राजू की नींद खुल गयी थी, सुबह के चार बजा चाहते थे․
राजीव आनंद
सेल फोन - 9471765417
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