यशवंत की प्रस्तुति - मिथक : परिचर्चा और निष्कर्ष

SHARE:

मिथक - परिचर्चा और निष्‍कर्ष अवसर - साकेत साहित्‍य परिषद सुरगी, जिला - राजनांदगांव का वार्षिक विचारगोष्‍ठी, सुरगी, दिनांक - 16. 06. 2013 वि...

मिथक - परिचर्चा और निष्‍कर्ष

अवसर - साकेत साहित्‍य परिषद सुरगी, जिला - राजनांदगांव का वार्षिक विचारगोष्‍ठी, सुरगी, दिनांक - 16. 06. 2013

विषय - लोक साहित्‍य में मिथक

भाग लेने वाले साहित्‍यकार -

1. कुबेर सिंह साहू, भोढ़िया

2. हीरालाल अग्रवाल, खैरागढ़

3. सरोज द्विवेदी, राजनांदगांव

4. डॉ. पी.सी. लाल यादव, गंडई

5. डॉ. शंकरमुनिराय, दिग्‍विजय कालेज, राजनांदगांव

6. यशवंत, शंकरपुर, राजनांदगांव

7. डॉ. गोरेलाल चंदेल, खैरागढ़

8. डॉ. जीवन यदु 'राही', दाऊ चौरा, खैरागढ़

1. कुबेर सिंह साहू -

परिचर्चा के विषय में लोक, साहित्‍य और मिथक ये तीन शब्‍द हैं। शिष्‍ट साहित्‍य और लोक साहित्‍य में घालमेल होता रहा है। मिथकों का सृजन, मनुष्‍य का प्रकृति के साथ जीवन संघर्ष और प्रकृति की अजेय शक्‍तियों को लेकर उसकी जिज्ञासा से जुड़ा हुआ है। मिथक का निर्माण समाज के जानकारों और चिंतनशील लोगों ने ही किया होगा! किसी भी मिथक की व्‍याख्‍या तर्कों और ज्ञान के द्वारा संभव नहीं है, इसीलिये ये मिथक कहे जाते हैं। परन्‍तु मिथकों के द्वारा बहुत सहजता के साथ मानव समाज के सत्‍य और ज्ञान को समझा-समझाया जा सकता है; और यही मिथकों की रचना का उद्‌देश्‍य भी है। हर समाज-जाति-राष्‍ट्र का अलग-अलग मिथक होता है। शिष्‍ट मिथक असहिष्‍णु होते हैं, आलोचना पर फतवे जारी हो सकते हैं। सुकरात को इसीलिये जहर दिया गया था। ईसा को सूली पर चढ़ाने का कारण यही था। इसके विपरीत लोक मिथक पूरी तरह सहिष्‍णु होते हैं, इन मिथकों पर फतवा जारी नहीं हो सकता।

2. हीरालाल अग्रवाल -

साहित्‍य वह पत्‍थर है जिस पर ऊपर का दबाव बना रहता है, इस पर साहित्‍य खरा उतरता है । जीवनानुभव से निकले शब्‍द को लोककथा लोकगीत आदि का नाम देते हैं । भावार्थ यह कि मिथक का निर्माणकर्ता कोई एक व्‍यक्‍ति नहीं बल्‍कि सामुहिक होता है, प्रश्‍नों (समस्‍या) के समाधान हेतु भी लोक से मिथक का निर्माण होता है, इसमें सत्‍यता है ।

3. आ. सरोज द्विवेदी -

जो लोक जीवन में व्‍याप्‍त है वह लोक साहित्‍य है। जिसे लिखा जाता है वह कागजी साहित्‍य है। मिथक शब्‍द निकला नहीं बना है, जीवन के मंथन से जो संसार अनुभव निकला वह मिथक है। ये ही बन गया मिथक। मिथक को उठाकर देखेंगे तो अंधविश्‍वास भी मिलेगा। जैसे सांप पर धरती टीकी है। जीवन के मंथन से अनुभवसार निकलता है वह उस क्ष्‍ोत्र का मिथक बन जाता है यही मतलब होना चाहिए। हम जो साहित्‍य लिख रहे हैं उसकी प्रमाणिकता हो या न हो, पर मिथक की प्रमाणिकता है। राजमहल (राजनांदगांव का किला) से सुरगी तक (15 कि.मी.) सुरंग थी। यह मिथक है इसे बल्‍देव प्रसाद मिश्र ने भी कहा है। जीवन अनुभव से निकला सार मिथक हो सकता है।

4. डॉ. पी.सी. लाल यादव -

लोक व्‍याप्‍त है, अध्‍ययन के लिए कई जनम लेने पडेंगे। व्‍यापकता निःसंदेह वेदों से पहले भी है, अतः व्‍यापक भी है। लोक साहित्‍य की समग्रता है। यह या वह विविध विधाओं में हैं। लोक को करीब से वही जानता है जो उनके बीच रहत है, मिथक किस तरह से आया? है, क्‍या चीज? मानव समाज आज विकसित है। प्राकृतिक घटनाएं होती है - तो जाने-अनजाने भय उत्‍पन्‍न होता है, जबकि हम विकसित हैं, तो भय उत्‍पन्‍न क्‍यों होता है, प्राकृतिक रहस्‍यों को जानने के लिए इच्‍छा उत्‍पन्‍न होती है, भय है, वहीं प्रेम है, भय से प्रीति-प्रेम हो जाने पर पूजा आस्‍था जागृत हेती है। यही भाव बिंबों के माध्‍यम से लोक जीवन में आया। रूपक-बिंबों के माध्‍यम से प्रतीक आया। बिंब-प्रतीक-रूपक ही लोक के मिथक हैं। शेष (नाग) के गुंडरी बदलने से धरती हिलती है, यहां बिंब है। पुराना और नया बिंब अलग है। छत्‍तीसगढ़ी लोकजीवन में मिथक जुड़े हुए हैं। मिथक लेाक की रंगीन कल्‍पना है। परिवेश कल्‍पनाओं को जन्‍म देने का भी काम करता है। लोक की रंगीन कल्‍पनाएं सरल होती है। मिथक की रचनाएं जनजातियों में ज्‍यादातर मिलती है। एक मिथ है ‘‘पहले महिलाओं की दाढ़ी-मूंछे होती थी‘‘ जंगल में शेर ने घोषणा की, किसी एक महिला को बहू बनाऊंगा। बकरी को भी जिज्ञासा हुई कि, उसे शेर की बहू बनना चाहिए। उसने एक महिला से गहने मांगे, महिला ने श्रृंगारिक गहनों के साथ अपनी दाढ़ी-मूंछे भी दे दी। बकरी ने लगा भी लिया और शेर के घर चल दी। शेर ने पसंद भी किया और अपनी बहू बना भी लिया। पर कहा जाता है तब से बकरी शेर के घर से नहीं लौटी। लोक की कथाएं सारगर्भित रही है, जैसे कि जोंक और खटमल का बनना कीचक से शुरू होता है।

5. डॉ. शंकरमुनि राय -

भारत के कोने-कोने में मिथक है। कुत्‍ते खुलेआम यौनाचार करते हैं यह मिथक महाभारत की कथा से जुड़ा है। जो मिथक है, वह एक विचार है, पाप और पुण्‍य का। मिथक वह चीज है जिसमें बड़ी-बड़ी चीजों को समझाने का प्रयास होता है। कौन सा मिथक कब का है, इसकी कहानी या इतिहास है। पारस पत्‍थर के छू लेने से लोहा सोना बन जाता है परंतु पारस पत्‍थर को कोई ढूंढ नहीं पाया। शिष्‍ट साहित्‍य में मिथक की कथाएं समझाने के लिए आती है। जैसे आपके दिमाग में कीड़े क्‍यों काट रहे हैं?

6. यशवंत मेश्राम -

लोक में उपसर्ग लगाने से परलोक बनता है। यह परलोक लोक पर कब्‍जा जमाए रहना चाहता है, विश्‍व का 20 प्रतिशत आबादी 80 प्रतिशत जनता पर आज अपना कब्‍जा (कारपोरेट घराने) जमाए हैं। लोक संघर्ष इस हेतु आदि-अनादि से वर्तमान चल रहा है। लोक साहित्‍य को अलग से डाक टिकट, स्‍पीड पोस्‍ट, ठप्‍पा (मुहर) की आवश्‍कता नहीं होती। छनकर जो आता है वह शिष्‍ट (सभ्‍य) साहित्‍य में बदल जाता है । एक उदाहरण -

ठोठो नांगर ठोठो पार

ठोठो जोते नदिया पार

ठोठो कके डयकी पेज लेगे

कोलिहा धमयाय रे यार

ठोठो - कृषक, डायकी - कृषक पत्‍नि, जोते - कृषि भूमि नदिया या नाले के पार है, कोलिहा - दबंग, पूंजीपति, शोषक, अत्‍याचारी। तो यहां कोलिहा बिंब के माध्‍यम से प्रणय निवेदन को लोक साहित्‍य में सरल ढंग से समझाया गया है। सीधे संघर्ष नहीं तो गीतों के माध्‍यम से विरोध दर्ज हो जाता है।

7. गोरेलाल चंदेल -

मिथक अंगरेजी शब्‍द है, मिथक के साथ-साथ अन्‍य चीजें जुड़ी है। लोककथाओं को अलग-अलग करना बहुत मुश्‍किल काम है। केवल मिथक कह देने से लोककथा नहीं होती। लोककथा के सामने मोची के घर के खाल की बदबू भी खुशबू में बदल जाती है। लोककथाओं में जीवन संघर्ष है। समाज के अंतरविरोध, विसंगतियों, शोषण के रूप लोककथा लोकगीत में उतर जाते हैं। कथा का अंत नैतिक मूल्‍यों से होता है। हमारी पंरपरा में लेाककथा आती है। निश्‍चित ही समाज की हर धड़कन को समझने वाले ने उसकी शुरूआत की। कथाएं वैदिक काल से पूर्व की है, जब से मनुष्‍य ने वाक शक्‍ति का प्रयोग किया, प्रकृतिपूजा, आदिम मनुष्‍य के पूजन में लाया। आर्यों के आगमन के साथ लोकमिथकीय धारा बदलीं। आर्यों की शिष्‍ट धारा अलग रहीं। जैसे सत्‍यनारायण की कथा, हलषष्‍ठी पूजा की कहानियां, लोक की धारा के भीतर से अलग कथा फूटती है। इतिहास में जिस चालाकी से शोषण का स्‍वरूप है वह प्रतीक रूप में कोलिहा ही है। जैसे महादेव के भाई सहादेव (लोककथा) महादेव पार्वती सामाजिक चेतना प्रदान करती है। फिर से जीवित चेतना को छलने में शोषक समाज कमी नहीं करता। चालाकियों से ऐसा लागता है कि इससे भला करने वाला और कोई नहीं है। समाज की पीड़ा का कारण कोलिहा है। चेतना के कारण एक-एक कूटेला मारा जाय, जागृति लाती है। मिथ के भीतर इतिहास-समाज शास्‍त्र दोनों रहते हैं। इतिहास समाज शास्‍त्र मिथ से, उससे टकराने से, राज खुलता है। मिथ के मूल में ईश्‍वर की कल्‍पना ही जाती है - तो साफ है कि ईश्‍वर ने रचनाएं नहीं की। मनुष्‍य ने ईश्‍वर की स्‍थापना की मिथकों के भीतर से समाज को तलाशने की जरूरत है। लोककथा-गाथा को समाज की दृष्‍टि से पढ़िए, मनोरंजन की दृष्‍टि से नहीं। चमत्‍कारिक घटनाओं के रूप में न देखें! मुझे खुशी है अपने रचनाकारों के बीच मैंने अपने हिस्‍से रखे।

8. डॉ. जीवन यदु 'राही' -

डॉ. जीवन यदु ने परिचर्चा में भाग लेते हुए अध्‍यक्षीय रूप में निष्‍कर्ष स्‍वरूप निम्‍न बिंदु रखे -

(1) मिथ की अलग-अलग बातें हैं। अलग-अलग क्ष्‍ोत्र हो सकते हैं।

(2) लोकसाहित्‍य का जन्‍म लोक से होता है। बहुत पढ़े-लिखे लोगों से नहीं होता। लोक की चीजें लोक से पैदा होती हैं।

(3) मनुष्‍य के अनुभव से साहित्‍य पैदा होता है।

(4) लोकसाहित्‍य का अनुभव अलग-अलग होता है। मिथक की बात करते हैं तो बारीक सा फर्क है। मिथक - लोकाधारित रहा है।

वेदाधारित समाज जो भी लिख रहा है वह लोकाधारित मिथक को वेदाधारित मिथक से कहीं न कहीं काट रहा है।

(5) पुराने शब्‍द कोश में मिथ शब्‍द नहीं मिलता। हिन्‍दी में मिथ शब्‍द सार्थक होकर आया। अनुवाद से नहीं आया। मिथ के आसपास का शब्‍द मिथ्‍या है। किसी ज्ञान को मिथ में लपेट कर कहें तो वह सुनेगा और गुनेगा, यह मिथक है। मिथक तार्किक ज्ञान नहीं है बल्‍कि ज्ञान का एक साधन है। मिथ के गुदे को हटाया जाय तो सारा ज्ञान प्राप्‍त हो जाएगा। आज जीते जी मिथक बनने लग गए लोग। आखिर ऐसा क्‍यों? मिथ्‍या गढ़ने से मिथक नहीं बन जाता।

(6) मिथक की रंगीन कल्‍पना है, संदर्भित है, प्रासंगिक हो जाती है। आधुनिक परिवेश जुड़ जाता है। पाषाण युग, पशुपालक युग में अलग-अलग मिथ रहे हैं।

(7) लोक के संघर्ष से मिथ की रचना होती है ।

निष्‍कर्षतः उपरोक्‍त परिचर्चा से कह सकते हैं - मिथक जीवनानुभव और शोषक विरूद्ध संघर्षों की अमर दास्‍तान हैं - जो अनवरत चालू और सामाजिक विसंगतियों के चलते वर्तमान रहेगा ही।

संकलन, लेखन एवं निष्‍कर्ष की प्रस्‍तुति -

यशवंत

शंकरपुर वार्ड नं. 7

गली नं. 4

राजनांदगांव 491441

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: यशवंत की प्रस्तुति - मिथक : परिचर्चा और निष्कर्ष
यशवंत की प्रस्तुति - मिथक : परिचर्चा और निष्कर्ष
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/07/blog-post_6070.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/07/blog-post_6070.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content