( लघुकथाएँ ) ट्रांजक्शन पीरियड दोपहर से रात आठ बजे तक की कोचिंग के बाद मीरां ड्राइव कर थकी मांदी घर पहुंचती। पहुंचते-पहुंचते नौ पर घड...
( लघुकथाएँ )
ट्रांजक्शन पीरियड
दोपहर से रात आठ बजे तक की कोचिंग के बाद मीरां ड्राइव कर थकी मांदी घर पहुंचती। पहुंचते-पहुंचते नौ पर घड़ी का कांटा आ जाता। थोड़ा फ्रैश होकर खाना खा, वो पढ़ने बैठ जाती। तरह-तरह के कोर्स, फार्म, एक्ज़ाम के भंवर से निकलने का एक ही रास्ता था-मेहनत। उसकी मेहनत हर दिन नया रूप लाती। इधर मम्मी थीं कि सामाजिक चक्रव्यूह में जकड़ी हर वक्त शादी करने के लिए ही कहती रहतीं। यूं तो मीरां व उसकी मम्मी में काफी दोस्ताना था, मगर आज जेनरेशन गैप की बेड़ियों से दोनों का दम घुटने लगा था। इकलौती संतान को सदा ये परवरिश दी गई कि लड़का औरलड़की क्या होता है, सब बराबर हैं। आजकल सब अधिकार एक है। खैर! मीरां के लिए पांव पर खड़े रहने के लिए कॅरियर की मारामारी और बदलती दिनचर्या से,उलझती जिन्दगी सुबह शाम कोहराम का सबब बनी थी। मीरां को रात के सन्नाटे में पढ़ना अधिक भाता। रात को तीन बजे सोती और सुबह नौ बजे उठती। सुबह-सुबह कामवाली, दूधवाला, कचरेवाला सभी का आना और यही समय उसकी मम्मी के टॉयलेट का होता। मम्मी चाहतीं मीरां इस समय उठकर एक फर्माबदार बेटी का फर्ज़ निभाए , इन व्यवस्थाओं में मम्मी का हाथ बंटाए।मन के किसी कोने में बेटी होने का डर भी तो है, आखिर दूसरे घर जाना है। घर का काम सीखना सिखाना भी इसी उम्र में होता है। मगर स्वास्थ्य की दृष्टि से उसके सोने के आठ घण्टे पूरे नहीं होते। मम्मी क्यों उसमें लड़की, लड़के दोनों का रूप देखना चाहतीं हैं। पापा भी रात को जल्दी सोने के पीछे लगे रहते हैं। जल्दी सो जाओ, सुबह जल्दी उठ के पढ़ना। मीरां एक दिन शीशे के सामने खड़ी थी काफी देर के बाद मम्मी ने पूछा-‘‘मीरां क्या देख रही है?'' ठण्डी सांस भरकर बोली- ‘‘कुछ नहीं अपने आप को पहचान रही हूं। मैं क्या करूं अच्छी बेटी बन घर के कामों को देखूं या लड़कों की तरह अपनी पोजिशन व पॉवर का ख्याल करूं। सोचती हूं, आज मैं क्या हूं? एक अच्छी बेटी, एक अच्छा बेटा या गृहकलह का कारण।'' बाहरी जीवन पाने के लिए कुछ समय तक हर लड़की को घरेलू जीवन त्यागना पड़ता है, यह मेरे पेरेन्ट्स क्यों नहीं समझते। कब खत्म होगा ये ट्रांजक्शन पीरियड।
गंगाजल
हरिद्वार में हरकी पेड़ी पर संध्या समय गंगा आरती के लिए काफी भीड़ जमा होती है। असंख्य श्रद्धालुओं और पण्डों से दृश्य काफी मनोरम था। गंगा तट पर थड़ियों का बाज़ार , गंगाजल ले जाने के लिए हर साइज़ की प्लास्टिक केनें वहां उपलब्ध थीं। बहती गंगा में लोग अपने पाप धोने आए थे। गंगा जी की आरती के वक्त चारों ओर आध्यात्मिक माहौल और उसपर असंख्यों जलते हुए दीपों की छवि गंगा में इस दिव्य वातावरण की शोभा बढ़ा रही थी। भीड़ अधिक होने के कारण सबने एक दूसरे का हाथ पकड़ा था कि खो नहीं जाएं। मगर वहां पलक झपकते ही कब जेब कट गई पता ही नहीं चला। यह तभी हुआ होगा जब हाथ ऊंचे कर-करके ताली बजा रहे थे। अब जेब में एक भी पैसा नहीं था। अम्मां ने गंगाजल मंगवाया था। बिना पैसे, बिना केन किसमें भरते। मन को अपने जैसे तैसे समझा लिया कि शायद गंगा का असर अब कम हो गया है। गंगा मैली हो गई है। यहां ही लोग पाप धोने के बदले जब अपने पाप बढ़ा रहे हैं तो गंगा बोतल में बंद हो दूसरे शहर पहुंच क्या कर पाएगी। गेट से निकलते वक्त तक्ष्ती पर निगाह पड़ी, जिसपर लिखा था-‘‘जेब कतरों से सावधान।''
लंगड़ी आस्था
मेरे दादू इतिहास विषय पढ़ा रहे थे। पुराने समय में मंदिर, मस्जिद, कुंए व बावड़ी के निर्माण को काफी महत्व दिया जाता था। दो दिन पूर्व ही घर आए लोगों से पुष्पा ने मंदिर निर्माण व सामाजिक दायित्व की बातें सुनी थीं। मन पवित्र भावना से पुलक उठा। योजनाएं, कार्य और प्रयास में सभी व्यस्त थे। मॉर्निगं वॉक पर एक दिन मिसेज़ जोशी से कविता बोली-‘‘और सुनाइये ,क्या चल रहा है। क्या बात है, आज तो सैकेट्री और अध्यक्ष साथ-साथ घूम रहे हैं।''
हमारे घूमने की कम्पनी तो बहुत पहले से बनी हुई थी। खैर!
मिसेज़ जोशी-‘‘क्या कहें पैसे लेते वक्त तो सबसे मांगने चले आए अब कोई हाथ नहीं डाल रहा। मंदिर में गेट लगा दिए मगर कोई बंद नहीं करता। निर्माण कार्य के बाद बची रेत व मलबा सब नालियों में पड़ा है इसमें लोगों को परेशानी हो रही है।''
‘‘देखिए, कमेटी इसमें क्या करे? लोगों को सिविक सेंस ही नहीं है।''
गरमागरमी बढ़ती गई, दोषारोपण लगते रहे। भगवान तो वही थे अंदर भी और बाहर भी। बदली थी तो भावनाएं जो आस्था जोड़ने आईं थीं मगर खण्ड-खण्ड हो गई। इतने में किसी के मुंह से निकला-‘‘भगवान के लिए अब बंद करो ये सब।''
हां भगवान के लिए ही तो शुरू किया था ये, अब उसके लिए ही बंद करो। बेचारा भगवान क्या करे, क्या न करे ?
परिचय
नाम ः श्रीमती रचना गौड़ ‘भारती'
जन्म ः 16 मई 1968 राजस्थान की औद्यागिक व श्ौक्षणिक नगरी कोटा में ।
शिक्षा ः एम. ए. (राज. शास्त्र), एम.जे.एम.सी (मास्टर अॉफ जर्नलिज़्म एण्ड मास कम्यूनिकेशन)
पता ः 304 , रिद्धि सिद्धि नगर प्रथम , कुन्हाड़ी , कोटा (राज.) 324008
सम्पर्क ः मो. 94147-46668 , फो. 0744-2370001 ई मेल- racchu68@yahoo.com
संप्रति ः (1) कार्यकारी संपादक -जिन्दगी लाईव (हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका कोटा)
(2) अध्यक्ष ‘ नारी प्रकोष्ठ' अखिल भारतीय साहित्य परिषद,राजस्थान
(3) सचिव ,कोटा महिला साहित्य क्लब
(4) फीचर संपादक ‘यंग एचीवर' साप्ताहिक समाचार पत्र, कोटा (राज.)
पुरुस्कार/सम्मान/उपाधि (1) अखिल भारतीय साहित्य परिषद् राज. द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता -08 में पुरुस्कृत ।
(2) चरित्र विकास समिती कोटा द्वारा साहित्य क्षेत्र में सक्रिय भूमिका हेतु सारस्वत अभिनन्दन (30 जनवरी 2009)
(3) समग्रता शिक्षा, साहित्य एवं कला परिषद ,कटनी म.प्र. द्वारा ‘‘भारत गौरव'' की मानद उपाधि से अलंकृत ।
(4) ऋचा रचनाकार परिषद ,सावरकर वार्ड ,कटनी म.प्र. द्वारा ‘‘ साहित्य श्री'' की मानद उपाधि से अलंकृत ।
कृतित्व ः अब तक लगभग 250 कविताएं , 150 श्ोर, 50 लघुकथाएं, 20 गज़ल, 25 हाइकु , 15 कहानियां, एंव 50 विभिन्न विषयों पर लेख रचित । 1996 में राजस्थान पत्रिका के अपना शहर कॉलम में नियमित लेखों का प्रकाशन । विगत 20 वर्षों से देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में गजल, कविताएं, मुक्तक, कहानियां, हाइकू एवं लेखों का प्रकाशन । कई वर्षों तक आकाशवाणी कोटा में आकस्मिक कम्पीयर एवं उद्घोषक का कार्य, टी.वी. सिटी चेनल कोटा में समाचार वाचन का कार्य किया। विभिन्न सरकारी एंव गैर सरकारी कार्यक्रमों में मंच संचालन का कार्य ।
प्रकाशित पुस्तकः ‘ ‘नई सुबह' काव्य संग्रह
‘आपकी रसोई' ( निरोगी दुनिया पब्लिकेशन जयपुर के माध्यम से )
अन्तरजाल पर ः इंटरनेट पर साहित्यिक ब्लॉग ‘रचना गौड़ ‘भारती' की रचनाएं' जिसे 47 देशों मे पढ़ा जा चुका है
ब्लॉग का पता -http://www.rachanabharti.blogspot.com ,ao
http://www.swapnil98.blogspot.com साहित्यकुन्ज, स्वर्गविभा, वांड्मय, रचनाकार, एंव सृजनगाथा ई पत्रिकाओं पर, कविताएं ,लधुकथा, मुक्तक, श्ोर ,हाइकू व कहानी प्रकाशित
दादा ः स्व. डा0 आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव (देश के प्रसिद्ध इतिहासकार)
इनके द्वारा रचित कई इतिहास की पुस्तकें आज भी विश्वविद्यालय पाठ्यक्रमों में शामिल ।
पिता ः स्व. श्री सत्यभानु श्रीवास्तव (सेवानिवृत्त प्रधानाचार्यर् रा.महाविद्यालय कोटा)
ससुर ः विश्व ज्योतिष सम्राट स्व. श्री रघुनन्दन प्रसाद गौड ़(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्यर् )
इनके द्वारा रचित कई ज्योतिष की पुस्तकें विश्वविद्यालय पाठ्यक्रमों में शामिल ।
पति ः श्री भारत रत्न गौड़ (जल संसाधन विभाग राजस्थान में सहायक अभियन्ता)
पुत्र का नाम ः चि. स्वप्निल गौड़ (कक्षा 10 में अध्ययनरत)
पुत्री का नाम ः कु. यामिनी गौड़ , रेखांकनकार एंव चित्रकार , (आर्किटेक्ट में अध्ययनरत)
देश की जानी मानी साहित्यिक पत्रिकाओं साहित्य अमृत, मधुमती, सरस्वती सुमन आदि का रेखांकन
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