राजीव आनंद की एकांकी - सुकरात का विषपान

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एक एकांकी सुकरात का विषपान ( दर्शन का प्रथम शहीद ) मुख्यपात्र सुकरात -महान यूनानी दार्शनिक अफलातून -सुकरात का शिष्य क्रेटो -सुकरात का शिष...

एक एकांकी सुकरात का विषपान

(दर्शन का प्रथम शहीद)

मुख्यपात्र

सुकरात -महान यूनानी दार्शनिक

अफलातून -सुकरात का शिष्य

क्रेटो -सुकरात का शिष्य

ऑरेकल -सुकरात से प्रभावित डेल्फी का एक युवा

मिलीटस -सुकरात के विरूद्ध अभियोग लाने वाला व्यक्ति

जेल अधिकारी -सुकरात को विष देनेवाला

दृश्य-1

(एथेंस के एक कारा का छोटा काल कोठरी, जिसमें सुकरात अधर्मी होने तथा युवकों को पथभ्रष्ट करने के आरोप में कैद है. सुकरात को विष दिए जाने के एक दिन पहले, सुकरात को कारावास से मुक्त करवाने के लिए क्रेटो का आगमन)

क्रेटो - गुरुदेव यह समय तर्क करने का नहीं, यह समय आपके प्राण रक्षा का है.

सुकरात - क्रेटो मैंने तुम्हें सत्य का पाठ पढ़ाया और तुम मेरे शिष्य होकर मुझे असत्य, भय और अनास्था का पाठ पढ़ा रहे हो ?

क्रेटो - गुरुदेव आपको दिया जाने वाला मृत्युदंड भी तो असत्य है, उसका कोई कारण नहीं है. तीस निंरकुशों की मनमानी है, निंरकुशता है, गुरुदेव.

सुकरात - तो मृत्युदंड देने वालों के असत्य को काटने के लिए मैं भी सत्य का मार्ग छोड़ दूं ? जब मुझे मृत्युदंड सुनाया गया है तो मैं उससे भाग कर सत्य से मुंह कैसे मोड़ लूं.

क्रेटो - गुरुदेव आपके असंख्य शिष्यों के लिए आपके प्राण सत्य से ज्यादा महत्वपूर्ण है, हम आपके सभी शिष्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए आपको जेल से रिश्वत के बल पर ले जाने आया हूँ. कृपया तर्क-वितर्क न करें, गुरुदेव और मेरे साथ यहां से भाग चलें.

सुकरात - क्रेटो, मेरे प्यारे शिष्य व मित्र, मेरे प्राण के मोह में तुम यह भी भूल गए कि सत्य मुझे प्राण से भी ज्यादा प्यारा है. अब मैं उससे भाग कर सत्य से मुंह कैसे मोड़ लूं.

क्रेटो - गुरुदेव, असत्य का सत्य द्वारा सामना करना पागलपन है, जब आप ही नहीं होंगे तो सत्य कहां रहेगा गुरुदेव ?

सुकरात - क्रेटो, तुम्हारे साथ मेरे भाग निकलने पर ईश्वर भले ही मुझे क्षमा कर दें पर इतिहास मुझे कभी क्षमा नहीं करेगा और क्रेटो, इतिहास ही मेरा ईश्वर है इसलिए तुम जाओ.

क्रेटो - आप सिर्फ हम सब के ही गुरु नहीं है अपितु पूरे विश्व के गुरु है आप, आप की प्राण की कीमत तीस निंरकुशों जिसे ग्रुप ऑफ थर्टी कहते है कभी नहीं समझ सकते. विश्व के

सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को हम कैसे मर जाने दें, गुरुदेव ?

सुकरात - क्रेटो, ये तुम्हारा भ्रम है कि मैं विश्व का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति हूँ. दरअसल तुम पागल हो. मैं बुद्धिमान नहीं सत्य हूँ और सत्य कभी मर नहीं सकता.

(क्रेटो अंतत तर्क-वितर्क से थका सा जेल के काल कोठरी से आहिस्ता-आहिस्ता कुछ

सोचता हुआ बाहर चला जाता है.)

दृश्य-2

(एथेंस का एक भव्य राजमहल जैसा आलीशान भवन का एक पुस्तकालय जैसा प्लेटो अर्थात अफलातून का कमरा, जहां एक बड़े से गोल टेबल के बगल में सोफानुमा कुर्सी पर बैठा प्लेटो अध्ययनरत, क्रेटो का आगमन, आगमन के साथ ही प्लेटो से मुखातिब )

क्रेटो - मित्र अफलातून, आज जेल में मेरे लाख तर्क-वितर्क के बावजूद गुरुदेव सुकरात जेल से भागने के लिए तैयार नहीं हुए, अब आप ही चलकर उन्हें समझाएं क्योंकि कल उन्हें जहर दिया जाएगा.

अफलातून - (अपने अध्ययन की तंद्रा से जागता हुआ, मानो क्षोभ से भरा हो ) क्रेटो गुरुदेव सुकरात को सजा नहीं दी गयी है अपितू एक षड़यंत्र के तहत उनकी हत्या की साजिश की गई है.

तुम जानते हो क्रेटो गुरुदेव पर ईश्वर का आदर नहीं करने यानी अधर्मी, पापी,  दुष्ट होने तथा युवकों को पथभ्रष्ट करने का आरोप लगा कर मृत्युदंड दिया गया है. मैंने तो वर्तमान एथेंस के तीस निंरकुशों से किनारा कर लिया है क्योंकि गुरुदेव उन तीस निंरकुशों द्वारा दिए गए प्रलोभन को ठुकराते हुए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है. मुझे नफरत सी हो गयी है इस तीस निंरकुशों से, मैं इन लोगों से कोई संबंध नहीं रखना चाहता क्रेटो, ये लोग जो कर रहे है, इसे पाप कहा जाएगा और न तो ईश्वर और न ही इतिहास इन्हें कभी माफ करेगा.

क्रेटो - परंतु मित्र, गुरुदेव को बचाना हमलोगों का नैतिक कर्तव्य है.

अफलातून - नैतिकता का ही तो पाठ हम सब गुरुदेव से पढ़े हैं. तुम्हें तो मालूम है क्रेटो, गुरुदेव सुकरात ने कभी लिखा कुछ नहीं परंतु आज का समय और आने वाला समय गुरुदेव का ऋणी रहेगा.

( डेलफी के ऑरेकल का कमरे में आगमन )

ऑरेकल - ( ऑरेकल का संवाद बोलने का तरीका विश्व इतिहास में प्रसिद्ध है. ) इसमें कोई शक नहीं क्रेटो की विश्व का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति सुकरात है जिसे मारने का षड़यंत्र सत्ता के लोभियों ने किया है क्योंकि सुकरात के भाषण से उनकी सत्ता की कुर्सी हिलती नजर आ रही है. देश के सभी बुद्धिजीवी वर्ग सुकरात को दिए मृत्युदंड के खिलाफ है.

अफलातून - ऑरेकल, मेरे मित्र तुम जानते हो कि गुरुदेव के एक इशारे पर विद्रोह हो सकता है परंतु ऐसा करना क्या उचित होगा, जबकि गुरुदेव का कहना है कि विद्रोह करवाना या जेल से भागना नैतिक रूप से गलत होगा और ऐसा करने पर इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा.

ऑरेकल - आप ठीक कहते है महाशय अफलातून.

क्रेटो - तो क्या हम सब गुरुदेव सुकरात के मौत के मूक दर्शक बने रहे और उनके लिए कुछ भी न करें ?

अफलातून - ऐसा मैंने तो नहीं कहा !

( अफलातून कहता है कल हम सब गुरुदेव द्वारा विषपान करने के पहले उनसे मिलने जाएगें. सभा स्थगित कर दी जाती है. क्रेटो और ऑरेकल कमरे से बाहर जाते हुए. )

दृश्य-3

( क्रेटो, अफलातून और ऑरेकल सभी कोई 24-25 वर्षों के युवक, सभी सुकरात को बहुत ही आदर और सम्मान से देखते है. सभी के जाने के बाद अफलातून अपने शयनकक्ष  जाता है. उसे बहुत बेचैनी सी महसूस हो रही है. अफलातून सॉलिलॅक्वि अर्थात स्वगत बातें खुद से करता है. )

अफलातून - मुझे इतनी बेचैनी क्यों हो रही है, क्या यह अवश्यंभावी है ? गुरुदेव सुकरात जैसे महान व्यक्ति के शब्दों एवं कृत्यों का विभिन्न व्यक्तियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ा है.

गुरुदेव सुकरात का जीवन महत्वपूर्ण क्यों है ? निश्चित रूप से गुरुदेव के दर्शनशास्त्र पर उनके विचारों के कारण. गुरुदेव सुकरात के दर्शन या फिलॉसफी के क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदान तो यह है कि गुरुदेव ने दर्शन को परम्परागत आधार यानी विश्वास से अलग कर उसे तार्किक बनाया. उन्होंने कहा था कि जो समाज अनैतिक एवं अन्याय की राह में चला गया है, उस समाज को तर्क आधारित दर्शन या फिलॉसफी की आवश्यकता है.

मैं तो यह सोचता हूँ कि अगर समाज नैतिकता और न्याय पर चल रहा हो तो क्या उस समाज को दर्शन या फिलॉसफी की आवश्यकता होगी ?

(दरअसल अफलातून द्वारा किया गया स्वगत कथन तथा अपने गुरुदेव सुकरात से पूर्व में किए गए वार्तालाप के आधार पर प्लेटो अर्थात अफलातून ने चार पुस्तकें यथा 'यूथाएपरो', ऑपोलोजी, क्रेटो तथा फेड़ो लिखा जिसमें सुकरात के मुकदमे की कार्रवाई, सजा-ए-मौत और सजा के क्रियान्वयन का मौलिक वर्णन किया गया है.)

अफलातून आगे स्वगत कथन अर्थात सॉलिलॅक्वि करता है कि गुरुदेव सुकरात शायद र्शन अर्थात फिलॉसफी के प्रथम शहीद होने जा रहे है, उन्होंने अपने विवेक और विश्वास को राजनीति से उपर रखा. गुरुदेव सुकरात ने यह सिद्ध करने की कोशिश या कि एथेंस के तीस निंरकुश शासकों से दार्शनिक प्रश्नों को पूछना कितना खतरनाक हो सकता है ? गुरुदेव ही एकमात्र ऐसे दार्शनिक है जिन्होंने निरंतर प्रत्येक मनुष्य और प्रत्येक मत पर प्रश्न किए और यह विड़म्बना ही है कि एथेंस के लोकतांत्रिकों ने गुरुदेव को अन्यायपूर्ण तरीके से अपने मतों को मानने को विवश किया और जब गुरुदेव ऐसा करने से इंकार किए तो उन्हें विषपान की सजा सुना दी गयी. यह भविष्य के लिए एक चेतावनी है.

दरअसल गुरुदेव सुकरात से संबंधित न्यायिक प्रक्रिया और उनको दिए गए प्राणदंड इसतथ्य को साबित करते है कि सत्य को लोकतंत्र में भी कुछ लोग बर्दाश्त नहीं कर सकते.

दृश्य-4

( अफलातून, क्रेटो और ऑरेकल कई अन्य युवाओं के साथ सुकरात से मिलने जेल जाते है जहां सुकरात को आज विषपान करना है. सभी के चेहरे में उदासी और क्षोभ का भाव व्याप्त है.)

अफलातून - गुरुदेव हम सब आपसे जानना चाहते है कि आप विषपान के लिए क्यों तैयार है जबकि आप भी जानते है कि यह दंड आपको कुतर्क के आधार पर तीस निंरकुशों ने दिया है.

सुकरात - मेरे शिष्यों व मित्रों, मैं नहीं समझता कि चूंकि मैं खतरे में हूँ इसलिए मुझे तीस निंरकुशों की दासता स्वीकार कर लेनी चाहिए.

मृत्यु या तो आत्मा का पूर्ण विनाश है या प्रवासन है मित्रों.

मेरा तो यह विश्वास है कि मृत्यु के सम्मुख व्यक्ति को आनंदित रहना चाहिए तथा ऐसा व्यक्ति तभी कर सकता है जब उसे शरीर से नहीं ज्ञान से प्रेम हो. आत्मा ईश्वर के सदृश्य है जबकि शरीर मरणशीलता के अनुरूप है.

मित्रों, जो आत्मा दर्शन का अभ्यस्त नहीं वो आत्मा ईश्वरीय प्रकृति अर्थात स्वभाव कोहासिल नहीं कर सकता.

अफलातून, तुम्हें जानकर आश्चर्य होगा कि कल भी क्रेटो मेरे पास आया था और रिश्वत देकर मुझे जेल से भगा ले जाना चाहता था. मुझे क्रेटो के रिश्वत वाले प्रस्ताव से दुख हुआ है

अफलातून !

क्या मेरे नैतिक शिक्षा का यही प्रभाव है ?

( अफलातून कुछ नहीं बोलता है सिर्फ सुनता है. )

मित्रों, तुम लोगों को याद रखना चाहिए कि जो करना अनुचित है उसे बोलना भी अनुचित है. दुनिया में अच्छा सिर्फ ज्ञान है और बुरी चीज अज्ञानता है. इस दुनिया में प्रतिष्ठा के साथ जीने का संक्षिप्त एवं निश्चित रास्ता यह है कि अपनी वास्तविकता में रहो. इसलिए मित्रों अपनी वास्तविकता में रहा करो.

क्रेटो - परंतु गुरुदेव आप के नहीं रहने से हमारे देश को अपूर्णीय क्षति होगी.

सुकरात - गलत क्रेटो, ऐसा सोचना तुम्हारा मिथ्या है. प्रकृति को शून्यता अर्थात वायुरिक्तता से घृणा है, मेरे नहीं रहने से कोई स्थान रिक्त नहीं होगा. कई सुकरात (अफलातून की ओर देखते हुए ) जन्म ले चुके है.

जहां तक देश को अपूर्णीय क्षति की बात है तो मैं न तो एथेंस का और न ही ग्रीस का नागरिक हूँ अपितु मैं विश्व का नागरिक हूँ.

क्रेटो - गुरुदेव आपने अगर अपने उपदेशों को लिखा होता या लिखवा दिया होता तो देश के समक्ष दर्शन का एक नया आयाम रहता परंतु आपने ऐसा नहीं किया.

सुकरात - इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी क्रेटो, अगर मेरे कथन तुमने आत्मसात कर लिए तो लिखना अनावश्यक है और अगर तुमने मेरे कथन को आत्मसात नहीं किया तो भी लिखना अनावश्यक ही है.

मैंने तो पहले ही तुमलोगों को कहा था कि किसी कवि को कविता लिखने के लिए उसका ज्ञान या बुद्धिमता सहायक नहीं होती अपितु सहायक उसकी मूल प्रवृति और प्रेरणा है, जैसा कि तुम ऋषियों और पैगम्बरों के उत्कृष्ट संदेशों में पाओगे कि उन्हें खूद भी अपने दिए गए संदेशों का सही अर्थ पता नहीं है.

मित्रों, मैंने कुछ भी गलत आज तक नहीं किया सिवाए आप सभी युवाओं और बुर्जगों को समान रूप से इस बात के लिए प्रेरित करने के अलावा कि अपने भौतिक संपति की परवाह न कर मुख्यतः अपनी आत्मा के उन्नित की परवाह करें.

मुझे इस बात का भय है मित्रों कि मैं अपनी आंखों द्वारा जिन चीजों का निरीक्षण करता हूँ तथा अपनी अन्य इंद्रियों की सहायता से समझने की कोशिश करता हूँ तो शायद ऐसा करने से मैं अपनी आत्मा को पूर्णतः अंधा कर देता हूँ.

( अफलातून, क्रेटो एवं ऑरेकल को छोड़कर प्राय सभी सुकरात के स्वगत भाषण को बहुत गंभीरता से नहीं सुन रहा, उपस्थित लोगों में यह भावना की कि कुछ ही देर में सुकरात का अंत हो जाएगा, उनलोगों के होश को उड़ा चुका था. )

क्रेटो - इस कथन का अभिप्राय क्या है गुरुदेव, थोड़ा स्पष्ट करें.

सुकरात - इसका अभिप्राय है मित्र कि जो देखने में सत्य प्रतीत हो वह वास्तव में सत्य हो.

मिलेटस ने जो मुझपर अभियोग लगाया है कि मैंने युवाओं को इरादतन भ्रष्ट किया, क्या सत्य प्रतीत होता है ? मिलेटस का यह आरोप क्या कुतर्क पर आधारित नहीं ?

क्रेटो - समझ गया गुरुदेव, आप पर जो आरोप लगाया गया है वह वास्तव में सत्य नहीं है यद्यपि तीस निंरकुशों की अदालत में इस आरोप को सत्य माना गया. सत्य प्रतीत होना और वास्तिवक सत्य का अभिप्राय मैं समझ गया गुरुदेव.

सुकरात - तुमसे यही उम्मीद थी क्रेटो. एक आखरी बात मैं तुम सभी से कहना चाहूंगा, मैं कानून का सम्मान करते हुए मौत को आत्मसात कर रहा हूँ. मृत्यु मेरे नश्वर शरीर की होगी, मेरी आत्मा की नहीं. मैं मृत्यु से भयभीत नहीं हूँ अपितु मैं आगे भी हेडीज अर्थात पाताल के वीरों से दार्शनिक प्रश्नों को पूछता रहूंगा.

तुम लोगों को भी मित्रों, जहां तुम हो वहीं रूकना नहीं चाहिए बल्कि ज्ञान की खोज में निरंतर आगे बढ़ते जाना चाहिए.

अफलातून - ( काफी देर से चुप रहने के बाद मानो मन ही मन अपने गुरुदेव के अंत को मानसिक तौर पर मानते हुए कहता है.) गुरुदेव आपकी अच्छाई का अभाव हम सबआपके बाद भी महसूस करेंगे.

सुकरात - मित्र अफलातून, तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो, मैं तुम्हें एक प्रश्न देता हँ जिसका हल ढ़ूंढ़ने में तुम पुस्तक की रचना कर सकते हो. प्रश्न है ''क्या अच्छी चीजें इसलिए अच्छी है क्योंकि ईश्वर उसे पसंद करता है या चूंकि ईश्वर उसे पसंद करता है इसलिए वे अच्छी है ?''

अफलातून - मैं समझ गया गुरुदेव, इसी प्रश्न के उतर और फिर प्रश्न पर मैं पुस्तक की रचना करूंगा.

दृश्य-5

( सुकरात से मिलने उसकी पत्नी और बच्चे का जेल में आगमन. पत्नी भावविह्ल है बच्चे को अपने साथ लिए प्रवेश करती है. उसकी आंखें आंसुओं से डबडबायी हुई. )

सुकरात - (अपनी पत्नी से मुखातिब होते हुए कहता है.) तुम रो रही हो, मेरी पत्नी होकर तुम रो रही हो, तुम्हें शोभा नहीं देता. तुम्हारी आंखों में आंसू अच्छे नहीं लगते. आंसुओं को पोंछ लो, मेरे जाने के राह में बाधक बन रहे हैं.

(बच्चे को सुकरात चूमता है और अपने ज्ञान पिपासा को जैसे बच्चे के अंदर भर देना चाहता है. ) बच्चे को कहता है बेटे तुम मेरे शरीर को आज के बाद नहीं देख सकोगे परंतु अपने अंदर मेरी आत्मा के स्पंदन को महसूस करोगे, आइन्दा वही करना जो तुम्हारी आत्मा कहे, ऐसा करोगे तो समझ लेना कि तुम अपने पिता के बताए मार्ग परचल रहे हो.

(बच्चे को अपनी पत्नी को सौंपते हुए. )

सुकरात अपनी पत्नी को कहता है कि हमलोगों ने जो मुर्गेवाले से उधार लिया था उसका उधार तुम अवश्य चुका देना.

(सभी सुकरात की बातें सुनकर हतप्रभ थे. )

(सुकरात की भाव भंगिमा में मृत्यु का कोई भय नहीं दिख रहा होता है. )

(इतना कह कर सुकरात पास में खड़े जेल अधिकारी से झपट कर विष का प्याला ले लेता है और एक ही सांस में विष का प्याला पीने ही वाला होता है कि जेल अधिकारी उसे रोकता है. )

जेल अधिकारी - विष पीने के बाद तुम्हें अपन कोठरी में चलते रहना है.

(सुकरात सुनकर सहमति से अपना सर हिलाता है. विष में सुकरात को कोनियम नामक विष दिया गया था जिसे पीने के बाद सुकरात ने महसूस किया कि उसके पैरों से होती हुई संज्ञा-शून्यता उपर की ओर बढ़ रही है. पैरों में थकावट ने प्रवेश किया, पैर भारी होती गयी, चलना अब संभव नहीं रहा. )

जेल अधिकारी - अब तुम लेट सकते हो.

(सुकरात अब नीम बेहोशी की हालत में पहुंच चुका था और अंततः पूरा शरीर पांव से सर तक संज्ञा शून्य हो गया और अंत में एक झटके से सुकरात का अंत हो गया.)

दृश्य-6

(अफलातून का पुस्तकालय कक्ष जहां अफलातून क्षोभ और बेचैनी से भरा स्वगत बातें टहलते हुए कर रहा है.)

अफलातून - गुरुदेव सुकरात का अंत जरूर हो गया परंतु दर्शन के लिए अपनी जान देकर दर्शन के प्रथम शहीद बन गए गुरुदेव.

दुनिया के इतिहास में गुरुदेव का नाम सत्य को अपने आचरण में जीने वाले के रूप में दर्ज रहेगा.

( पर्दा गिरता है. )

राजीव आनंद

प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा

गिरिडीह ( झारखंड )़ 815301

सेल फोन - 9471765417

COMMENTS

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  1. राजीव जी नमस्कार, सुकरात पर रेडिओ नाटक में दो साल पहले भाग ले चुका हूँ मैंने सुकरात का ही रोल किया था। इंदौर आकाशवाणी पर डॉ सुरेश यादव के निर्देशन में। आपकी रचना ने याद ताज़ा करा दी - पत्रकार दिनेश सोलंकी ९८२६० १३९४१ महू मध्य प्रदेश

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: राजीव आनंद की एकांकी - सुकरात का विषपान
राजीव आनंद की एकांकी - सुकरात का विषपान
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