कहानी अक्षर मंत्र एक थे गंजू। एक थे टकलू। दोनों में बड़ी मित्रता थी। पढ़ने -लिखने से दोनों को ही चिढ़ थी। एक बार भोलू गाँव वालों को पढ़ने क...
कहानी
अक्षर मंत्र
एक थे गंजू। एक थे टकलू। दोनों में बड़ी मित्रता थी। पढ़ने -लिखने से दोनों को ही चिढ़ थी। एक बार भोलू गाँव वालों को पढ़ने के लिए समझा रहा था, तो इन्हीं दोनों ने ही उसे मारा था। ये दोनों हमेशा साथ-साथ रहते। साथ-साथ शहर जाते। साथ-साथ खेती - बारी का काम करते। दोनों ही गोल-मटोल थे। दोनों के ही सर से बाल दिमाग की तरह गायब थे। इसलिए इन्हें गंजू और टकलू कहा जाता था।
गंजू बचपन से गंजे न थे और टकलू बचपन से टकलू न थे। इनके सिर पर भी हरी-भरी बालों की फसल लहराती थी। काले-काले रेशम जैसे घने और मुलायम बाल थे। जब जैसे चाहते, वैसे खींच लेते। कभी अमिताभ की तरह नक्शा बनाते और कभी मिथुन की तरह। दोनों नक्शेबाजी में नम्बर वन थे। फिल्में देखने में भी ये बहुत शौकीन थे।
बात काफी पुरानी है। लखनऊ के ओडियन हाल से फिल्म देख के लौट रहे थे। उसी परदे पर अमिताभ बच्चन ने जाने कौन से तेल का प्रचार किया था। दोनों ने वहीं सोच लिया था,कि इस तेल को हम जरूर लगाएँगे। सारी चिंता दूर हो जाएगी। ठर्रे की भी जरूरत न रहेगी। यही सब बातें करते हुए दोनों चले आ रहे थे। रास्ते में एक डिब्बा पड़ा हुआ दिखाई दिया। साइकिल में अपने आप ब्रेक लग गयी। डिब्बा उठाया। उसमें एक बोतल थी। बोतल में तेल जैसा कोई तरल पदार्थ था। गंजू ने कहा- ‘‘देखने में ठंडा तेल जैसा ही है।''
वहीं बरगद का पेड़ था। दोनों सुस्ताने लगे। तेल की शीशी खोली। खोपड़ी में दोनों ने लगा ली। खोपड़ी परपराने लगी। टकलू ने कहा-‘‘यार, खोपड़ी परपरा क्यों रही है?''
गंजू बोला-‘‘परपरा नहीं रही है, ठंडा रही है। कुछ देर में देखना सारी गर्मी और थकान दूर हो जाएगी।''
मगर ऐसा न हुआ। खोपड़ी खूब खुजलाने लगी। जब उन्होंने खुजलाना शुरू किया, तो बाल हाथ में आने लगे। थोड़ी देर में सारे बाल उखड़ गए। गुस्से में बोतल झाड़ी में फेंक दी। तभी से दोनों को गंजू और टकलू कहा जाने लगा। दोनों अनपढ़ थे, इसलिए यह भी न जान सके कि उसमें था क्या ?
खैर कुछ भी हो पर गंजू और टकलू की दोस्ती पक्की थी। दोनों ने विवाह भी एक ही मंडप में किया था। इसलिए अक्सर दोनों ससुराल भी साथ-साथ जाते थे।
इस बार भी दोनों ससुराल से लौट रहे थे। साथ में पत्नी भी थी। गर्मी का मौसम था। प्यास लग गयी। रास्ते में एक नल लगा था। सबने पानी पिया। वहीं जागरन काका बैठे थे। उनके पास एक बैल था। वे उठकर पास आए। उनके हाथ में एक पर्चा था। उसे दिखाते हुए कहा-‘‘भैया इसे पढ़ कर जरा इस पर फूँक मार दो।''
‘‘क्यों ? इससे क्या बैल को नजर नहीं लगेगी।''-टकलू ने रौब से पूछा।
वे बोले-‘‘इसे बैल मत कहो। यह मेरा बेटा रामू है।''
टकलू हँसे -‘‘क्या कहा ? बेटा...।''
गंजू ने कहा-‘‘हँसते क्यों हो ? कुछ लोग जानवर को भी बेटे की तरह पालते हैं, इसलिए बेटा ही कहते हैं।''
उसने कहा-‘‘ये जानवर नहीं, सचमुच मेरा ही बेटा है।'' अब सभी हँस पड़े। काका ने कहा-‘‘तुम्हें हँसी सूझती है, यदि तुम्हारे बीवी बच्चे जानवर बने होते तो पता लगता।''
टकलू ने झूठ-मूठ की सहानुभूति दिखाते हुए पूछा-‘‘पर ये ये हुआ कैसे ?''
उन्होंने कहा-हम दोनों बाप-बेटे खेत से निराई करके लौट रहे थे। रास्ते में एक साधु मिल गए। वे भूखे थे। मेरे पास कुछ खीरे और ककड़ियाँ थीं। मैंने उन्हें दे दिया। मुझसे बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा-‘मैं तुमसे बहुत खुश हूँ , जो माँगना हो माँग लो।'
मैंने कहा-‘कोई ऐसा मंत्र दीजिए जिससे मेरा आदर सम्मान बढ़े और कोई मुझे निम्न न समझे।'
साधु ने मुझे एक मंत्र बताया। कहा-‘इस मंत्र का उच्चारण करके किसी पर भी फूँक मार दो और गाय , गधा , बैल बकरी आदि चाहे जो कह दो , वह वही बन जाएगा।'
‘पर महाराज यदि पुनः इंसान बनाना हो तो क्या करना पड़ेगा? साधु ने दूसरा मंत्र बताया। कहा-‘इस मंत्र को पढ़कर फूँक मार दो। वह अपने रूप में आज जायेगा, लेकिन मंत्र को अच्छी तरह रट लेना। कहीं भूल न जाना। उन्होंने कागज पर लिखकर भी दे दिया। कहा-‘इसे सम्भाल कर रखना यदि मंत्र भूल जाना तो इसमें पढ़ लेना।'
साधु चले गए। मैंने सोचा-‘लाओ मंत्र का प्रयोग करके देखूँ। उस समय रामू के सिवा मेरे पास कोई न था। मैंने रामू को ही बैल बना दिया , लेकिन दुर्भाग्य। थोड़ी देर बाद जब इंसान बनाने वाला मंत्र पढ़ने लगा तो भूल गया।''
‘‘तो पर्चे से देख कर पढ़ लो।''- गंजू की बीवी ने कहा।
‘‘अरे भाई..मैं अनपढ़-गँवार , पढ़ना-लिखना क्या जानूँ? मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है। आप ही पढ़ कर...।''
टकलू ने कहा-‘‘पढ़ना-लिखना तो हम भी नहीं जानते। चाहते तो पढ़ लेते मगर टाइम बर्बाद करने का समय नहीं था।''
गंजू बोले-‘‘अरे यार यह आदमी झूठ बोल रहा है। इंसान को भी कोई जानवर बना सकता है।''
जागरन बोले -‘‘भैया ये सच है।''
‘‘सरासर झूठ है।''-टकलू की बीवी ने कहा।
‘‘सोलह आने सच है।''
‘‘अगर ऐसा है तो हम लोगों को बैल बना कर दिखाओ।''-टकलू ने अकड़ कर कहा।
‘‘मगर मैं इंसान बनाने वाला मंत्र भूल गया हूँ।''
‘‘बैल बनाने वाला तो याद है न।''
‘‘पर''
‘‘पर-वर क्या ? अगर ये सच है तो हम पर मारो मंत्र। हमें मूर्ख बनाते हो।''
उन्हें भी जोश आ गया। मंत्र पढ़ कर दोनों पर फूँक दिया , कहा-‘‘बैल बन जा।''
वे दोनों तुरन्त बैल बन गए। दोनों की बीवियाँ रो पड़ीं। ‘‘हाय रे ये क्या ? अरे मोरे टकलू।''
इसी तरह गंजू की बीवी भी चीखी-‘‘अई दइया , मोरे गंजू। का बन गए रे दइया।''
‘‘अरे भैया इनका नीक करो।''-टकलू की बीवी ने कहा।
जागरन ने कहा-‘‘मैं कैसे नीक करूँ ? अगर पढ़ना आता हो , तो लो मंत्र , पढ़ कर फूँक मारो।''
‘‘हे भगवान। अब का होगा ? पढ़ा-लिखा आदमी कहाँ मिली।''
उस रास्ते से कई लोग गुजरे पर पढ़ा-लिखा कोई नहीं था। गाँव में भी सब अनपढ़ थे। अंत में दोनों बैल कुड़लाते हुए घर की ओर भाग गए। पीछे-पीछे उनकी बीवियाँ भी दौड़ती हुई गईं। बैलों को देख कर चम्पा ने पूछा-‘‘कहो भौजी , इस बार तुम्हारे पिता ने क्या बैल दान में दिए हैं? भैया कहाँ हैं ?''
दोनों रो पड़ीं। अपनी सारी कथा कह सुनाई ‘‘कुछ समय पहले भोलू भैया प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र खोलने आए थे। उन्हें धकिया कर भगा दिया गया था। गंजू और टकलू ही पढ़ाई से ज्यादा बिचक रहे थे। कितना गरियाया था। कहते थे फालतू में समय बर्बाद करने का टाइम नहीं है।''
‘‘पर अब का होगा? इनका कैसे ठीक किया जाए।''
चम्पा ने कहा-‘‘हफ्ते भर बाद भोलू दिल्ली से लौटेगा। तब ही कुछ होगा।''
अब हो भी क्या सकता था ? टकलू और गंजू को खूँटे से बाँध दिया गया। नाद में चारा लगा दिया। खाने का मन नहीं हो रहा था , पर मजबूरी में खाना पड़ा। रम्भाने के सिवा कुछ कह भी न सकते थे।
एक दिन गरजू दादा के बैल बीमार पड़ गए।उन्होंने इन्हीं को हल में नाध दिया। जब दोनों ने चलने से मना किया तो सड़ासड़ चार-पाँच चाबुक जमाया। तुरन्त चलने लगे। पूरा खेत जोत डाला। जब शाम को वापस आए तो टकलू और गंजू की पत्नी खूब गुस्साईं। गरजू ने भी क्षमा माँगी। कहा-‘‘भौजी हमका कुछ मालूम न था। हम तो जाने भैया नवा बैल लाए हैं।''
दोनों बैल दरवाजे पर बँधे रहते थे। गाँव के कुछ लोग जब उधर से गुजरते तो दोनों को दो -चार लाठियाँ जमा देते। कहते-‘‘बहुत सताते थे। अब बोलो , सारी अकड़ निकल गई न।''
टकलू और गंजू मन ही मन कहें भगवान हमें इंसान बनाओ। अब हम जरूर पढ़ेंगे। अपने बुरे कामों का प्रायश्चित करेंगे।'' पर सुनने वाला कोई न था। किसी तरह हफ्ता बीत गया। भोलू वापस आ रहे थे। दोनों बैलों ने देख लिया। तुरन्त रस्सी तुड़ा कर उसके पास पहुँच गए। वह डर गया। उसे लगा , ये हमला करने आए हैं। उसने लट्ठ उठा लिया। दोनों के मुँह पर भचाभचा मारा। दोनों उल्टे पाँव लौट पड़े। घर जाकर रम्भाने लगे। दोनों की बीवियों ने पूछा-‘‘क्या हुआ ?'' पर बैलों की भाषा कहाँ समझ आती है। वे गुस्साईं-‘‘तुम दोनों वाकई में बैल हो। नई रस्सी लेकर आए थे। उसे तोड़ दिया। ज्यादा परेशान करोगे तो गरजू दादा से कह के बैलगाड़ी में जुतवा दूँगी।'' लेकिन बैल कहाँ सुनने वाले थे? उन्होंने अपनी -अपनी बीवी का पल्लू पकड़ लिया और भोलू के घर की ओर खींच कर ले जाने लगे। वे दोनों बड़बड़ा रही थीं-‘‘न तो चार अक्षर खुद पढ़े और न हमको पढ़ने दिए। वरना आज इस मुसीबत से छुटकारा मिल जाता।'' तभी रास्ते में चम्पा मिल गई-‘‘कहो भौजी , भैया के साथ सैर करने जा रही हो।''
‘‘अब तुमहू ठुसिया लेव। ई तौ अकक्ष करें ही हैं। जाने कौने जहन्नुम मा खींचें लिए जा रहे है।''
चम्पा हँस पड़ी , कहा-‘‘भोलू आया है , शायद इन्होंने उसे देख लिया है।'' दोनों बैल मुंडी हिला कर रम्भाए। दोनों दौड़ते हुए भोलू के दरवाजे पर पहुँच गए। भोलू ने उन्हें देखकर फिर लट्ठ उठा लिया। बैल पुनः भागे तब तक चम्पा और गंजू-टकलू की बीवी पहुँच गईं। भोलू ने कहा-‘‘ ये दोनों बैल जाने क्यों मेरे पीछे पड़ गए हैं। आते समय रास्ते में भी मुझे घेर लिया था और अब फिर ....। जाने क्या दुश्मनी है इनकी।''
चम्पा ने भोलू को सारी कहानी सुना दी। धीरे-धीरे पूरा गाँव भोलू के दरवाजे पर इकट्ठा हो गया था। जागरन काका भी अपने बेटे को लेकर आ गए। कागज का पन्ना भोलू को दे दिया पर भोलू ने मंत्र पढ़ने से मना कर दिया-‘‘मैं मंत्र-पंत्र नहीं पढ़ सकता।''
‘‘क्यों।''
‘‘मैने मंत्र पढ़ने के लिए पढ़ाई नहीं की।''
‘‘क्यों भाई ? आखिर क्या बात है ? तुम्हारे चार अक्षर पढ़ने से यदि किसी को जिन्दगी मिल जाती है , तो इसमें बुरा क्या है ?''
‘‘मैं कुछ नहीं जानता। इन्हीं दोनों ने कितनी बार मुझे अपमानित किया है। गाँव में प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र नहीं खुलने दिया। पूरे गाँव ने मुझे दुत्कारा है। बिरादरी से बाहर करके हुक्का पानी बन्द कर दिया है। मुझे किसी से कोई मतलब नहीं। जाओ यहाँ से। मुझे क्षमा करो।'' भोलू ने हाथ जोड़ दिए। गाँव के लोगों ने भोलू को खूब समझाया। चम्पा ने समझया। टकलू और गंजू भी रम्भा-रम्भा कर भोलू के पैरों पर गिर रहे थे। लोट-लोट कर क्षमा माँग रहे थे। भोलू ने कहा-‘‘ तुम दोनों तो पहले भी बैल थे। फर्क केवल इतना है,कि तब इंसान के रूप में थे , अब जानवर के रूप में हो। तुम्हारे लिए यही ठीक है।'' टकलू की बीवी ने हाथ जोड़ कर कहा-‘‘भैया इन्हें ठीक कर दो। अब से हम सब पढ़ेगे।'' गाँव वाले भी पढ़ने का वायदा करने लगे। भोलू कुछ न बोला।
गंजू की बीवी भी रो पड़ी-‘‘भैया जो कहोगे सो करेंगे। मगर इनको...।'' वह उसके पैरों पर गिर गई। चम्पा ने कहा-‘‘अब माफ भी कर दो।'' फिर बैलों की ओर मुँह करके पूछा-तुम लोग पढ़ोगे या नहीं।'' बैलों ने भी झट से ‘हाँ' मे सिर हिला दिया।
भोलू ने जागरन काका से पर्चा लेकर मंत्र पढ़ा और तीनों पर फूँक मार दी। तीनों तुरन्त ही अपने असली रूप में आ गए। भोलू ने पर्चा फाड़ कर फेंक दिया इसकी क्या जरूरत है ? अक्षर सीखो , अक्षर पढ़ो। अक्षर अपने आप में मंत्र हैं। पढ़ने-लिखने से ही जीवन सँवारेगा।''
चम्पा ने कहा-‘‘ काका आपको बैल बनाने वाला मंत्र तो याद है न।''
जागरन बोले-‘‘न बिटिया। ई ,हापा-धापी मा सब भूल गए। और अगर याद होता तो भी कभी न पढ़ता।''
टकलू और गंजू ने इंसान बनकर भोलू से अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी। कुछ समय बाद पूरा गाँव साक्षर हो गया।
जीवन-वृत्त
नाम������������ ः राम नरेश ‘उज्ज्वल‘��
�����
पिता का नाम� ः श्री राम नरायन��
विधा��� ः कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि।
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अनुभव�� ः विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ रचनाओं का प्रकाशन।,
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प्रकाशित पुस्तके ः 1. चोट्टा (राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा�पुरस्कृत)��
2. अपाहिज (भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार�से पुरस्कृत)�
3. घुँघरू बोला (राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)��
��� 4. लम्बरदार���������������
5. ठिगनू की मूँछ���������������
6. बिरजू की मुस्कान���������������
7. बिश्वास के बंधन���������������
8. जनसंख्या एवं पर्यावरण�
सम्प्रति����� ः ‘पैदावार' मासिक में उप सम्पादक के पद पर कार्यरत।
सम्पर्क����� ः उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई अड्डा,
लखनऊ-226009
मोबाइल��� ः 09616586495
ई-मेल���� ः नररूंस226009/हउंपसण्बवउ �
दिनांक ः
स्थान ः
(राम नरेश ‘उज्ज्वल')
Ram naresh ujjwal ji ki kahani bahut sundar marmik evm prerna dayak hai sach much anpadh aadmi janvar ke saman hi hota hai use akshar mantra hi insaan bana sakta hai itni sunder dhang se saksharat a ka mahatv samjhane ke liye badhaiee
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