एक व्यंग्य रचना कालजयी पुस्तक ‘ अफीम धर्म ' का लोकार्पण समारोह धर्म पर एक चलताउ पुस्तक लिखकर नये-नये लेखक बने एक जमीन के दलाल उमा श...
एक व्यंग्य रचना कालजयी पुस्तक ‘अफीम धर्म' का लोकार्पण समारोह
धर्म पर एक चलताउ पुस्तक लिखकर नये-नये लेखक बने एक जमीन के दलाल उमा शंकर बाबू ने जब अपनी पुस्तक ‘अफीम धर्म' का लोकार्पण कराने के लिए साहित्यिक बाजार में पहुंचे तो बाजार में उन्हें कई प्रोफेशनल लोकार्पणकर्ता मिल तो गए परंतु उमा शंकर बाबू को यह जानकर आश्चर्य हो रहा था कि जमीन की दलाली से भी कठिन है इन लोकार्पणकर्ताओं से पुस्तक का लोकार्पण करवाना. जैसे हर जमीन की कीमत होती है वैसे ही कतिपय श्रेणियों के लोकार्पणकर्ताओं की भी कीमत होती है.
प्रथम श्रेणी में वैसे लोकार्पणकर्ता आते है जो आलोचक या संपादक हों, कहने का तात्पर्य यह है कि जो बड़े पदों पर आसीन प्रभावशाली साहित्यकार हों, इस श्रेणी के किसी भी लोकार्पणकर्ता की कीमत बहुत हाइ होती है.
दूसरे श्रेणी में वैसे लोकार्पणकर्ता आते है जो राजनीति से है यानी कोई मंत्री, पूर्व मंत्री, राज्यपाल या पूर्व राज्यपाल, सांसद या पूर्व सांसद या विधायक. इस श्रेणी के लोकार्पणकर्ता के लिए सभागारों में रसरंजन और भोजन का प्रबंध करना पड़ता है.
तीसरे श्रेणी में शहर के जाने माने उद्योगपति, उद्यमी, बैंक मैनेजर, आयुक्त और पुलिस अधीक्षक आते है परंतु इस श्रेणी के लोकार्पणकर्ता अपने ही किसी सगे-संबंधी को मदद करते है.
उमा शंकर बाबू समझ गए कि साहित्य में भी बाजारवादी प्रवृत्ति आ चुकी है तथा साहित्य का क्षेत्र भी स्वयं बाजार के नियमों से ही संचालित हो रहा है. उन्होंने तय किया कि जब लोकार्पणकर्ता की कीमत उन्हें चुकानी ही है तो नरमा लोकार्पणकर्ता क्यों, प्रथम श्रेणी के लोकार्पणकर्ता की ही कीमत देंगे और अपनी पुस्तक ‘अफीम धर्म' का भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित करेंगे जैसा कि डा. भोलाराम भंडारी की पुस्तक ‘भंडारानामा' का किया गया था. लिहाजा उमा शंकर बाबू ने शहर का सबसे महंगा होटल ‘ब्लैक डेन' के सभागार को बुक करवाया जहां ‘धर्मचक्र' नामक प्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक ह्दय बैचेन, उपसंपादक विष्णुभक्त ‘बेकार' तथा एक प्रसिद्ध आलोचक कुतर्क शास्त्री जी के ठहरने की भी व्यवस्था की गयी थी. समारोह शुरू होने से पहले ह्दय बैचेन, बिष्णुभक्त ‘बेकार' तथा कुतर्क शास्त्री जी होटल के भव्य कमरे में मदिरापान कर रहे थे, हालांकि उमा शंकर बाबू इन प्रभावशाली साहित्यकारों के लिए अन्य रसों का रंजन की भी व्यवस्था गुप्त रूप से कर दिया था, जिसकी जानकारी मीडिया वालों को नहीं थी.
लोकार्पण समारोह की शुरूआत शाम के 6 बजे शुरू हुई, मदिरापान के बाद कंठ तक भोजन करने के बाद तीनों महानुभाव, साहित्य के पुरोधाओं ने गधे बेच कर सो गए थे. उमा शंकर बाबू बैकडोर से कमरे में गए और ह्दय बैचेन, विष्णुभक्त ‘बेकार' और कुतर्क शास्त्री जी का पांव दबा-दबा कर नींद से जगाया क्योंकि लोकार्पण समारोह का समय नजदीक आ पहुंचा था. कुतर्क शास्त्री जी की धोती कमोड में ही लटपटा गयी थी, उन्होंने समारोह में भाग लेने में अपनी मजबूरी दर्शाया. उमा शंकर बाबू को पैसे की कमी तो थी नहीं, तुरंत उन्होंने अपने कार-चालक को शांतिपूरी धोती लाने का हुक्म दिया, कार-चालक धोती लाने चला गया, तब तक ह्दय बैचेन नींद से जाग गए थे, उन्होंने पूछा मैं यहां क्यों लाया गया हॅूं, उमा शंकर बाबू को यद्यपि काफी बड़ा सदमा लगा, फिर भी खूद को संभालते हुए उमा शंकर बाबू ने ‘बेचैन' की बेचैनी कम करते हुए बताया कि आप मेरे द्वारा मेरी प्रथम पुस्तक ‘अफीम धर्म' का लोकार्पण करने आए हुए है. ह्दय बेचैन तब तक संभल चुके थे, खूमारी हल्के-हल्के ही थी, बेचैन जी ने फरमाया ठीक है आप ‘लेडी किलर' परफ्यूम ले आइए क्योंकि मैं अपने बैग में परफ्यूम रखना भूल गया था और बिना लेडी किलर परफ्यूम लगाए मैं किसी लोकार्पण समारोह में नहीं बोलता और न ही जाता हॅूं.
उमा शंकर बाबू का कार-चालक तब तक शांतिपूरी धोती लेकर आ चुका था. उमा शंकर बाबू ने धोती कुतर्क शास्त्री जी को दे दिया और पुनः कार-चालक को एक पुर्जा लिखकर थमाया जिसमें ‘लेडी किलर' परफ्यूम लिखा था और लाने का आदेश दिया. कार-चालक चला गया और सारे शहर के बेहतरीन कास्मेटिक दुकानों पर खोजने के बाद भी ‘लेडी किलर' परफ्यूम जब नहीं मिला तो एक रेड लाइट एरिया के कास्मेटिक स्टोर्स में गया वहां उक्त परफ्यूम मिल गया. वह भागा-भागा अपने मालिक को लाकर परफ्यूम दे दिया, उमा शंकर बाबू लेडीकिलर परफ्यूम ह्दय बैचेन को दे आए.
विष्णुभक्त ‘बेकार' यद्यपि सोए हुए थे परंतु उन्होंने उठने के बाद कोई नाज-नखरा नहीं दिखाया और सीधे गुसलखाने चले गए तथा उमा शंकर बाबू को समारोह में उपस्थित होने को कह गए.
तीनों मूर्धन्य साहित्यकार ह्दय बैचेन जी, विष्णुभक्त ‘बेकार' जी तथा कुतर्क शास्त्री जी मंचासीन हुए. बारी-बारी से नये-नये लेखक बने उमा शंकर बाबू की जमकर तारीफ की, उन्हें उभरता हुआ साहित्यिक सितारा बतलाया. कुतर्क शास्त्री जी ने तो उमा शंकर बाबू को अपनी खोज बताते हुए कहानी सम्राट प्रेमचंद द्वारा जैनेन्द्र की खोज का उदाहरण भी दे डाला और साहित्यिक अंबर पर भविष्य में छा जाने की कामना करते हुए उमा शंकर बाबू की प्रथम पुस्तक ‘अफीम धर्म' को एक कालजयी रचना से सुशोभित भी कर दिया.
सबसे ज्यादा नपातुला लोकार्पणकर्ता विष्णुभक्त ‘बेकार' सिद्ध हुए जिन्होंने नशे की खुमारी में उमा शंकर बाबू को भारत का कार्ल मार्क्स कहा और खूद को कार्ल मार्क्स के मित्र एंजेल्स साबित करते नजर आए. बेकार जी ने कहा कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफीम मात्र कहा था परंतु मार्क्स भी उमा शंकर बाबू की तरह ‘अफीम धर्म' जैसी कालजयी रचना करने की सोच भी नहीं सकता था.
ह्दय बैचेन जी ने जब माइक पकड़ा तो लगभग नशे में डोल रहे थे, आंखें लाल थी, उन्होंने उमा शंकर बाबू की पुस्तक ‘अफीम धर्म' को समाज के लिए बहुमूल्य बतलाया तथा साहित्यिक अंबर में उभरते हुए नये-नये लेखक उमा शंकर बाबू को लेखन के प्रति प्रतिबद्ध तथा सामाजिक सरोकार के लेखक कह कर प्रशंसा किया.
समारोह के अंत में एक रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया था. गीत-संगीत से सराबोर रहा पूरा कार्यक्रम, आधी रात तक झूमते रहे थे प्रभावशाली साहित्यकार. सुबह के अखबारों में उमा शंकर बाबू के पुस्तक ‘अफीम धर्म' के लोकार्पण समारोह सुर्खियों में थी. एक अखबार ने अपनी पूरे एक पृष्ठ के साहित्य पन्ने को उमा शंकर बाबू की पुस्तक ‘अफीम धर्म' की समीक्षा में झोंक दिया था क्योंकि उमा शंकर बाबू ने उक्त अखबार को अपने पुस्तक को सजिल्द छापने का विज्ञापन दे डाला था. अब उमा शंकर बाबू जमीन दलाल से रातोंरात प्रबुद्ध साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे तथा जमीन दलाली के साथ-साथ ‘लोकार्पण व्यापार' भी साइड से करने का मन बना लिया था.
राजीव आनंद
मोबाइल 9471765417
Rajivji ne rochak likha hai vastav men likhna. To fir bhi ho jata hai par chapne ka avsar milna vo bhi mill gaya to lokarpan ka jugad marketing adi men bahut paisa aur karate karne padte jo ati kathin hai
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