महावीर सरन जैन का आलेख - मध्य भारतीय आर्य-भाषाओं का प्रथम विकास-कालः अभिधान एवं काल-सीमा

SHARE:

मध्य भारतीय आर्य-भाषाओं का प्रथम विकास-कालः अभिधान एवं काल-सीमा प्रोफेसर महावीर सरन जैन [ भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भारतीय आर...

मध्य भारतीय आर्य-भाषाओं का प्रथम विकास-कालः अभिधान एवं काल-सीमा

प्रोफेसर महावीर सरन जैन

[भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भारतीय आर्य भाषाओं के जो ऐतिहासिक अथवा विकासात्मक अध्ययन-कार्य सम्पन्न हुए हैं, उनमें मध्य भारतीय आर्य भाषा के प्रथम विकास-काल को केवल पालि के नाम से पुकारा गया है तथा इसकी काल-सीमा 500 ईस्वी पूर्व से ईस्वी सन् के आरम्भ तक मानी गई है। लेखक ने प्रस्तुत लेख में इन दोनों मान्यताओं पर प्रश्न चिह्न लगाया है तथा इसका अभिधान केवल पालि न कर, गौतम बुद्ध के उपदेशों की भाषा पालि, जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर के उपदेशों की भाषा एवं अशोक के अभिलेखों की भाषाएँ करने का प्रस्ताव किया है और इसकी काल-सीमा 500 ईस्वी पूर्व से न मानकर 600 ईस्वी पूर्व से मानने का प्रस्ताव किया है। ]

विद्वानों ने मध्य भारतीय आर्य भाषाओं के तीन विकास-काल माने हैं :

(अ)प्रथम काल ( 500 ई0 पूर्व से ई0 सन् के आरम्भ तक)-

पालि

(आ) द्वितीय काल (ई0 सन् के आरम्भ से 500 ई0 तक)-

साहित्यिक प्राकृत

(इ) तृतीय काल ( 500 ई0 से 1000 ई0 तक )-

अपभ्रंश

लेखक की मान्यता है कि संस्कृत से भेद दिखाने के लिए हम मध्य भारतीय आर्य भाषाओं के काल को सामान्य नाम भी दे सकते हैं और इसे प्राकृत कह सकते हैं। उस स्थिति में प्रथम विकास काल का विवरण निम्न प्रकार से कर सकते हैं :

प्रथम प्राकृत (500 ई0 पूर्व से ई0 सन् के आरम्भ तक)-

गौतम बुद्ध के उपदेशों की भाषा पालि, जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर

महावीर के उपदेशों की भाषा एवं अशोक के अभिलेखों की भाषाएँ :

कुछ विद्वान संस्कृत से पालि-प्राकृत की उत्पत्ति मानते हैं।

(प्रकृतिः संस्कृतम्। तत्र भवं तत् आगतं वा प्राकृतम् – सिद्धहेमशब्दानुशासन, 8/1/1)

यह प्रतिपादित किया जा चुका है कि प्रा0भा0आ0भा0 काल में संस्कृत संस्कारित भाषा थी। समाज के शिक्षित वर्ग की भाषा थी। उसी के समानान्तर विविध जनभाषाओं/ लोकभाषाओं की भी स्थिति थी। प्राकृत का अर्थ ही है – प्रकृत।

(प्रकृत्या स्वभावेन सिद्धं प्राकृतम्)। ( - - - प्रकृतीनां साधारणजनानामिदं प्राकृतं)। इनके परिप्रेक्ष्य में अधिक तर्कसंगत यह मानना है कि संस्कृत के समानान्तर जो जन-भाषाएँ थीं, उन्हीं के विकसित रूप प्राकृत हैं।

(क) गौतम बुद्ध के उपदेशों की भाषा पालि-

पालि भाषा की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। पालि शब्द का अर्थ क्या है और वह कहाँ की भाषा थी। इन दोनेां प्रश्नों को लेकर भी विद्वानों में मतभेद हैं। पालि शब्द की निरुक्ति को लेकर अनेक कल्पनाएँ की गई हैं।

(1)पंक्ति शब्द से निम्नलिखित विकास क्रम में पालि की निष्पत्ति बतायी जाती है-

पंक्ति > पंति > पत्ति > पट्ठि > पल्लि > पालि ।

इस विकास क्रम में ध्वनि-नियम से अधिक अपनी बात प्रमाणित करने का आग्रह है। दंत्य से मूर्द्धन्य तथा फिर मूर्द्धन्य से पार्श्विक के विकास क्रम की प्रवृत्ति संगत नहीं है।

(2) पल्लि (गांव) से पालि को निष्पन्न बताया जाता है। पल्लि-भाषा अर्थात गांव की भाषा । इस व्युत्पत्ति में भी कठिनाइयाँ हैं। एक तो यह कि द्वित्व व्यंजन में एक व्यंजन -ल् का लोप और पूर्व स्वर का दीर्घत्व प्रथम प्राकृत काल की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है दूसरी यह कि सामान्यतः इस स्थिति में शब्द के दूसरे अक्षर के ह्रस्व स्वर का दीर्घीकरण होना चाहिए था। पालि में ह्रस्व स्वर ही है।

(3) प्राकृत > पाकट > पाअड़ > पाअल > पाल > पालि

यह स्वन परिवर्तन भी विकास क्रम की प्रवृत्ति के अनुरूप नहीं है।

(4) एक विद्वान ने पाटलिपुत्र शब्द से पालि को व्युत्पन्न करने का प्रयास किया है । उनका कथन है कि ग्रीक में पाटलिपुत्र को पालिबोथ्र कहते हैं। विदेशियों द्वारा किसी शब्द के उच्चारण को भारतीय भाषा का अभिधान मानना भी संगत नहीं है। इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है ।

(5) एक विद्धान ने पालि का सम्बन्ध पर्याय शब्द से जोड़ा है -

पर्याय > परियाय > पलियाय > पालि

प्राचीन बौद्ध साहित्य में बुद्ध के उपदेश के लिए पर्याय शब्द का प्रयोग होता था इसलिए पर्याय से पालि को निष्पन्न बताया गया है । एक मत यह भी है कि पाल्

धातु से पालि शब्द बना है जिसका अर्थ पालन करना या रक्षा करना है। जिस भाषा के द्वारा बुद्ध के वचनों की रक्षा हुई, वह पालि है। वास्तव में पालि का सम्बन्ध बुद्ध वचनों/ बौद्ध साहित्य से ही है, इस कारण अन्तिम दो मत अपेक्षाकृत अधिक संगत हैं।

पालि किस स्थान की भाषा थी - इस सम्बंध में भी मत भिन्नता है। श्रीलंका के बौद्ध भिक्षुओं ने इसे मगध क्षेत्र की भाषा माना है किन्तु पालि का मागधी प्राकृत से भाषिक संरचनागत सम्बन्ध नहीं है। इस कारण यह मगध क्षेत्र की भाषा नहीं हो सकती। इसी संदर्भ में यह भी दोहराना उपयुक्त होगा कि पाटलिपुत्र शब्द के ग्रीक उच्चारण से पालि की व्युत्पत्ति के मत का भी हमने समर्थन नहीं किया है।

संस्कृत के अघोष संघर्षी व्यंजन ( ऊष्म ) स् , ष् , श् में से मागधी में श् का तथा अर्द्धमागधी एवं शौरसेनी में स् का प्रयोग होता है। पालि में केवल स् का ही प्रयोग होता है। इस कारण पालि का आधार मागधी तो हो ही नहीं सकता। इसका मूल आधार अर्द्धमागधी एवं/अथवा शौरसेनी ही हो सकती है। इस सम्बंध में आगे विचार किया जाएगा।

सम्प्रति, संस्कृत से पालि के भेदक अन्तरों को जानना आवश्यक है। ये निम्न हैं :

(1) संस्कृत तक ए , ओ , ऐ ,औ सन्ध्यक्षर थे अर्थात् अ $ इ > ए / अ $उ > ओ / आ $ इ > ऐ / आ $ उ > औ। ( सन्ध्यक्षर = दो स्वर मिलकर जब एक अक्षर का निर्माण करें )

( दे० डॉ. महावीर सरन जैन: परिनिष्ठित हिन्दी का ध्वनिग्रामिक अध्ययन, पृष्ठ 175-182)

पालि में ऐ एवं औ के स्थान पर ए एवं ओ का प्रयोग होने लगा। अय् एवं अव् के स्थान पर भी ए एवं ओ का प्रयोग होने लगा। व्यंजन गुच्छ के पूर्व ए एवं ओ का ह्रस्व उच्चारण होने लगा। इस प्रकार पालि में ए एवं ओ के ह्रस्व एवं दीर्घ दोनों प्रकार के उच्चारण विकसित हो गए।

(2) प्राचीन भारतीय आर्य भाषाओं में प्रयुक्त ऋ एवं लृ का लोप हो गया।

(3) व्यंजन गुच्छ में एक व्यंजन का लोप तथा अन्य व्यंजन का समीकरण पालि एवं प्राकृत भाषाओं का महत्वपूर्ण भेदक लक्षण है। वैदिक संस्कृत एवं लौकिक संस्कृत के शब्दों में प्रयुक्त पहले व्यंजन का लोप होकर बाद के व्यंजन का समीकरण हो जाता है अथवा बाद के व्यंजन का लोप होकर पूर्व व्यंजन का समीकरण हो जाता है। उदाहरण:

(अ) पहले व्यंजन का लोप तथा बाद के व्यंजन का समीकरणः

सप्त > सत्त / शब्द > सद्द / कर्क > कक्क / सर्व > सब्ब / निम्न > निन्न

(आ) बाद के व्यंजन का लोप तथा पहले व्यंजन का समीकरणः

लग्न > लग्ग / तक्र > तक्क / शुक्ल > सुक्क / शक्य > सक्क / अश्व > अस्स

(4) शब्द-रूपों में व्यंजनान्त रूपों का अभाव हो गया । शब्द सस्वर बन गए।

(5) द्विवचन का लोप हो गया। आगे भी इस वचन का प्रयोग होना बन्द हो गया।

(6) यह प्रतिपादित किया जा चुका है कि वैदिक भाषा में रूप-रचना में अधिक विविधता और जटिलता है। उदाहरणार्थ, प्रथम विभक्ति के बहुवचन में देव शब्द के देवाः और देवासः दोनों रूप मिलते हैं। इसी तरह तृतीया के एकवचन मे देवैः और देवभिः दोनों रूप मिलते हैं। संस्कृत में आकर रूप अधिक व्यवस्थित हो गए और अपवादों तथा भेदों की कमी हो गयी। उदाहरणार्थ, पूर्वोक्त दोनों वैकल्पिक रूप छँट गए और एक-एक रूप (देवाः तथा देवैः) रह गए। पालि में वैदिक भाषा के रूपों का भी प्रयोग मिलता है।

(7) आत्मनेपद लुप्तप्राय है।

पालि का महत्व बौद्धमत की हीनयान शाखा के साहित्य के माध्यम के रूप मे बहुत अधिक है।

 
http://www.rachanakar.org/2013/05/blog-post_8285.html


(ख) जैन धर्म के चैबीसवें तीर्थंकर महावीर के उपदेशों की भाषाः

यह ऐतिहासिक तथ्य है कि 600 ईस्वी पूर्व से लेकर 500 ईस्वी पूर्व की काल अवधि में जैन धर्म के चैबीसवें तीर्थंकर महावीर एवं बौद्ध धर्म के संस्थापक बुद्ध ने मगध, विदेह, वत्सदेश, कुणाल, अंगदेश, काशी, पांचाल, कोशल, शूरसेन, दशार्ण आदि राज्यों एवं जनपदों में चतुर्दिक घूम घूमकर उपदेश/प्रवचन दिए। उपर्युक्त वर्णित राज्यों एवं जनपदों की भौगोलिक स्थिति वर्तमान में नेपाल देश का भूभाग तथा भारत के बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ आदि राज्यों का भूभाग है। राजनैतिक दृष्टि से इस काल में दो प्रकार की शासन व्यवस्थायें थीं। मगध में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था थी। मल्ल, लिच्छिवी, काशी, कोशल आदि 18 गणराज्यों ने मिलकर महासंघ बनाया था जो अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली था तथा इस महासंघ का मुख्यालय वैशाली में स्थित था। इस महासंघ की सम्पर्क भाषा का अंतरराज्यीय व्यवहार के लिए प्रयोग होता होगा तथा भारत के बड़े भूभाग के निवासियों के नागरिक इसे समझते होंगे।

महावीर के जीवनवृत्त में देशना के संदर्भ में यह जानकारी मिलती है कि उनके युग में कितनी भाषाएँ एवं उनकी क्षेत्रीय उपभाषाएँ/बोलियाँ बोली जाती थीं तथा किस प्रकार उन्होंने ऐसी भाषा में उपदेश दिया जो सबके लिए बोधगम्य थी। भाषाओं के लिए महाभाषाओं एवं क्षेत्रीय प्रभेदों के लिए भाषाओं/बोलियों अभिधान का प्रयोग हुआ है तथा यह विवरण भी मिलता है कि जब उनकी देशना हुई तो उसका परिणमन अठारह महाभाषाओं एवं सात सौ भाषाओं में होने लगा जिसकी व्याख्या मैंने इस प्रकार की हैः

देशना का विभिन्न भाषाओं में परिणमनः ग्रन्थों में वर्णित है कि भगवान महावीर का उपदेश अर्ध मागधी प्राकृत में हुआ। अर्ध मागधी का श्रवण के समय अठारह भाषाओं में तथा सात सौ भाषाओं में परिणमन होने लगा। इसकी एक व्याख्या इस प्रकार सम्भव है कि भगवान महावीर एवं गौतमबुद्ध के समय मगध और शूरसेन प्रदेश के मध्यवर्ती भूभाग में व्यवहृत जनभाषा (अर्ध मागधी का महावीर युगीन भाषा रूप) का व्यवहार अठारह महाभाषाओं के क्षेत्र में सम्पर्क भाषा के रूप में होता होगा। अर्ध-मागधी सम्पर्क भाषा थी जबकि अन्य भाषाएँ प्रदेशों की भाषाएँ थीं। कुछ ग्रन्थों में मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाटक, गौड़, विदर्भ आदि देशों की भाषाओं को देशी भाषा कहा गया है। कुछ ग्रन्थों में कोल्ल, मगध, कर्णाटक, अन्तर्वेदी, कीर, ढक्क,सिन्धु, मरु, गुर्जर, लाट, मालवा, ताजिक, कोशल, मरहट्ठ (महाराष्ट्र) और आन्ध्र प्रदेश की भाषाओं का देसी भाषा के रूप में उल्लेख मिलता है। अर्धमागधी का जो रूप सम्पूर्ण प्रदेशों में सम्पर्क भाषा के रूप में व्यवहृत था उसमें उन देशी भाषाओं के शब्द आदि का मिश्रण हो गया था। सम्पर्क-भाषा होने के कारण यह सर्वभाषात्मक थी। इसका प्रयोग होने पर सभी प्रदेशों के निवासियों के लिए बोधगम्य थी।

( दे० डॉ० महावीर सरन जैन: भगवान महावीर एवं जैन दर्शन, पृ० 69)

इस कारण विद्वानों एवं शोधकों को इस काल की भाषा का काल 500 ई० पू० से न मानकर 600 ई० पू० से मानना चाहिए। भाषा का अभिधान पालि की अपेक्षा महावीर एवं बुद्ध के उपदेशों की भाषा करना चाहिए। दोनों ने एक ही काल में तथा समान भूभागों में उपदेश/प्रवचन दिए थे। दोनों के उपदेशों की भाषा का गहन अध्ययन करने पर इसी कारण उनकी भाषिक समानता स्पष्ट हो जाती है। दोनों ने एक भाषा का व्यवहार किया था। यहाँ दोनों के उपदेशों की भाषिक समानता को विवेचित एवं विश्लेषित करने का अवकाश नहीं है। अभी तो हम केवल दोनों के उपदेशों के एक-एक वाक्य देकर अपनी बात को स्पष्ट करना चाहेंगे :

(अ)भगवान महावीर की वाणी- अप्पा कत्ता विकत्ता य।

(आ) गौतम बुद्ध की वाणी - अत्ता ही अत्तनो नाथो।

अभी तक इस काल की भाषा का अध्ययन केवल बुद्ध वचनों के आधार पर हुआ है। पालि के आधार पर हुआ है। विद्वानों को दोनों के उपदेशों की भाषा के गहन अध्ययन करते हुए तदनन्तर अशोक के शिलालेखों (260 ई० पू० से 232 ई० पू० ) में प्राप्त भाषिक भिन्नताओं का गहन अध्ययन सम्पन्न करना चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राप्त भाषिक भिन्नताएँ हिन्दी, बंगला, मराठी आदि भिन्न भिन्न-भिन्न भाषाओं की भाँति हैं अथवा हिन्दी के ही कोलकोतिया हिन्दी एवं मुंबइया हिन्दी की भाँति एक ही तद्युगीन सम्पर्क भाषा के प्रादेशिक अथवा क्षेत्रीय भाषाओं से रंजित रूप हैं। मेरा अपना विचार है कि ये अलग अलग भाषाएँ नहीं हैं। एक भाषा के तत्कालीन बोले जाने वाले विभिन्न भाषाओं से रंजित रूप हैं।

(ग) अशोक के अभिलेखः

अशोक के अभिलेख पश्चिमोत्तर भारत (अब पाकिस्तान) से लेकर दक्षिण भारत के कर्नाटक तक मिलें हैं। इनका काल 256 ईस्वी पूर्व से लेकर 240 ईस्वी पूर्व माना जाता है। दो अभिलेख (शहबाजगढ़ी और मानसेहरा) खरोष्ठी लिपि में, एक अभिलेख (कंदहार के पास शार-ए-कुना) आरमेई एवं यूनानी में तथा शेष सभी ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। ब्राह्मी लिपि के अभिलेखों में अ , आ , इ , उ , ए एवं ओ इन 6 मूल स्वरों के लिए वर्ण मिले हैं। ब्राह्मी लिपि के अभिलेखों में अ स्वरांत निम्नलिखित व्यंजनों के लिए वर्ण मिले हैं :

(क) स्पर्श व्यंजनः क,ख,ग,घ,च,छ,ज,झ,ट,ठ,ड,ढ,त,थ,द,ध,प,फ,ब,भ

(ख) नासिक्य व्यंजनः ञ,ण,न,म

(ग) संघर्षी व्यंजनः श,ष,स,ह

(घ) पार्श्विक व्यंजनः ल,ळ

(च) लोड़ित व्यंजनः र

(छ) अर्ध स्वर : य,व

इन अभिलेखों की ब्राह्मी लिपि में मिलने वाले वर्णों एवं कुछ व्यंजनों को स्वर मात्राओं सहित तालिका में इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता हैः

(विकिपीडिया से साभार)



अशोक के अभिलेखों के अतिरिक्त कुछ अन्य अभिलेख भी मिले हैं जिनमें कलिंगराज खारवेल का हाथी गुम्फा का अभिलेख एवं यवन राजदूत हिलियोदोरस का बेसनगर का अभिलेख अधिक महत्वपूर्ण हैं। इन अभिलेखों के अध्ययन से स्पष्ट है कि तद् युगीन प्राकृत में स्थान भेद से भेद हो गए थे। ये भेद मुख्य रूप से चार प्रकार के हैं - उत्तर-पश्चिमी, दक्षिण-पश्चिमी, मध्यदेशीय, पूर्वी। विद्वानों द्वारा इनका विस्तृत अध्ययन सुलभ है।

( दे० 1. डॉ० सुकुमार सेन: तुलनात्मक पालि-प्राकृत-अपभ्रंश व्याकरण, पृ० 16-21, लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद, (1969)

2. डॉ० नेमीचन्द्र शास्त्री: अशोक-कालीन भाषाओं का भाषाशास्त्रीय सर्वेक्षण, परिषद्-पत्रिका, वर्ष 8, अंक 3-4)

कुछ विद्वानों ने इस काल के अन्तर्गत मध्य एशिया के निय स्थान से सर औरेल स्टीन द्वारा प्राप्त खरोष्ठी पाण्डुलिपियों की निय प्राकृत का भी अध्ययन किया है किन्तु ये प्रथम प्राकृत की कालसीमा के बाद की हैं। इस कारण निय प्राकृत का प्रथम प्राकृत काल सीमा अर्थात् 500 ईस्वी पूर्व से ईस्वी सन् के आरम्भ तक के अन्तर्गत अध्ययन करना संगत नहीं है।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: महावीर सरन जैन का आलेख - मध्य भारतीय आर्य-भाषाओं का प्रथम विकास-कालः अभिधान एवं काल-सीमा
महावीर सरन जैन का आलेख - मध्य भारतीय आर्य-भाषाओं का प्रथम विकास-कालः अभिधान एवं काल-सीमा
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/06/blog-post_5248.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/06/blog-post_5248.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content