नास्तिकों की बढ़ती संख्या प्रमोद भार्गव भगवान को मानने और न मानने वालों का भी एक विश्वस्तरीय सर्वे हुआ है। इस सूचकांक के अनुसार विश्व ...
नास्तिकों की बढ़ती संख्या
प्रमोद भार्गव
भगवान को मानने और न मानने वालों का भी एक विश्वस्तरीय सर्वे हुआ है। इस सूचकांक के अनुसार विश्व में नास्तिकों का औसत 13 प्रतिशत है। 57 देशों के 51 हजार लोगों से की गई बातचीत के आधार पर नास्तिकों की सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत संख्या चीन में है। प्रत्येक देश में लगभग 1000 स्त्री-पुरुषों से बात की गई है। भारत में भी नास्तिकों की संख्या बढ़ी है। इसके उलट पाकिस्तान में आस्तिकों की संख्या 6 प्रतिशत बढ़ी है। लेकिन अरबों की आबादी वाले देशों में महज एक हजार लोगों की बातचीत के आधार पर एकाएक यह कैसे मान लिया जाए कि इन देशों में नास्तिकों अथवा आस्तिकों की संख्या परिवर्तित हो रही है ?
आस्तिक और नास्तिकवाद के ताजा सूचकांक के मुताबिक इस तरह के 2005 में हुए सर्वे में 87 प्रतिशत भारतीयों ने बताया था कि वे धार्मिक हैं और ईश्वर में विश्वास रखते हैं। किंतु 2013 में यह संख्या 6 प्रतिशत घट कर 81 प्रतिशत रह गई। मसलन 19 प्रतिशत लोगों का भगवान से भरोसा उठ गया है। दुनिया में नास्तिकों का औसत आंकड़ा 2005 में चार फीसदी था, जो गिरकर अब तीन प्रतिशत पर आ गया है। पोप फ्रांसिस के देश अर्जेंटीना में खुद को धार्मिक कहने वालों की संख्या आठ प्रतिशत कम हुई है। इसी तरह खुद को धार्मिक बताने वालों की संख्या में दक्षिण अफ्रीका में 19, अमेरिका में 13 स्विटजरलैंड और फं्रास में 21 तथा वियतनाम में 23 प्रतिशत की गिरावट आई है।
नास्तिक अथवा आस्तिकों की संख्या घटने-बढ़ने से देशों की सांस्कृतिक अस्मिताओं पर कोई ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है। क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में दुनिया की हकीकत यह है कि सहिष्णु शिक्षा के विस्तार और आधुनिकता के बावजूद धार्मिक कट्टरपन बढ़ रहा है। धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं। यह कट्टरता इस्लामिक देशों में कुछ ज्यादा ही देखने में आ रही हैं। कट्टरपंथी ताकतें अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर भिन्न धर्मावलंबियों को दबाकर धर्म परिवर्तन तक के लिए मजबूर करती रही हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ यही हो रहा है। कश्मीर क्षेत्र में मुस्लिमों का जनसंख्यात्मक घनत्व बढ़ जाने से करीब साढे़-चार लाख कश्मीरी हिंदुओं को अपने पुश्तैनी घरों से खदेड़ दिया गया। पाकिस्तान में हालात इतने बद्तर हैं कि वहां उदारता, सहिष्णुता और असहमतियों की आवाजों को कट्टरपंथ ताकतें हमेशा के लिए बंद कर देती हैं। यहां के महजबी कट्टरपंथियों ने कुछ साल पहले अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री शहबाज भट्टी को पाकिस्तान के विवादास्पद ईशनिंदा कानून में बदलाव की मांग करने पर मौत के घाट उतार दिया था। शहबाज भट्टी कैथोलिक ईसाई थे। यह सीधे-सीधे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला था। जनरल जिया उल हक की हुकूमत के समय बने इस अमानवीय कानून के तहत कुरआन शरीफ, मजहब-ए-इस्लाम और पैंगबर हजरत मोहम्मद व अन्य धार्मिक शक्तियों के बारे में कोई भी विपरीत टिप्पणी करने पर मौत की सजा सुनाई जा सकती है। पांच बच्चों की 45 वर्षीय मां असिमा बीबी को इस कठोर कानून के तहत मौत की सजा हुई भी थी। मलाला यूसुफ पर तो महज इसलिए आतंकवादी हमला हुआ था, क्योंकि वह स्त्री शिक्षा की मुहिम चला रही थी। ईशनिंदा कानून का सबसे ज्यादा शिकार अल्पसंख्यक ईसाई होते हैं। दरअसल, धर्मांध ताकतों ने ईशनिंदा कानून को उदारवादियों को निपटाने का हथियार बना लिया है। ऐसी वजहों के चलते यहां अहमदिया और शिया - सुन्नी मुसलमानों के बीच विवाद चलता रहता है। अफगानिस्तान के कबाइली इलाकों में कट्टरपंथी तालिबान अल्पसंख्यक सिखों को भयभीत करता रहता है। तालिबानियों ने तोपों से बामियान की चट्टनों पर उकेरी गईं बौद्ध प्रतिमाओं को उड़ा दिया था। यहां शियाओं की मस्जिदों और पीर-फकीरों की मजारों पर भी हमले होते रहते हैं। जाहिर है, यदि पाकिस्तान में आस्तिकों की संख्या बढ़ रही है तो उसकी एक वजह ईशनिंदा कानून का मनौवैज्ञानिक प्रभाव भी है।
चीन में 50 प्रतिशत नागरिकों का नास्तिक होना इस बात की तसदीक है कि नास्तिकाता कोई गुनाह नहीं है। क्योंकि चीन लगातार प्रगति कर रहा है। वहां की आर्थिक और औद्योगिक विकास दरें उंचाइयों पर हैं। अमेरिका के बाद अब चीन ही दुनिया की बड़ी महाशक्ति है। जाहिर है यदि नास्तिक होने के बावजूद किसी देश के नागरिक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हैं तो यह नास्तिकता देश के राष्टीय हितों के लिए लाभकारी ही है। बावजूद चीन में नस्लभेद चरम पर है। तिब्बतियों के साथ अमानवीय अत्याचारों का सिलसिला जारी है। चीन तिब्बती इलाकों में बड़ी संख्या में सेना भेजकर नस्ल बदलने के उपायों में लगा है।
यदि विकसित देशों की बात करें तो वहां केवल आर्थिक और भौतिक संपन्नता को ही विकास का मूल आधार माना जा रहा है। जबकि विकास का आधार चहुंमुखी होना चाहिए। सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक स्तर पर भी व्यक्ति की मानसिकता विकसित होनी चाहिए। पश्चिमी देशों में अमेरिका, ब्रिटेन और आस्टेलिया विकसित देश हैं, किंतु नास्तिकों की संख्या बढ़ने के बावजूद, यहां रंगभेद और धर्मभेद के आधार पर वैमन्स्यता बढ़ रही है। अमेरिका और ब्रिटेन में भारतीय सिखों पर हमले हो रहे हैं, जबकि आस्टेलिया में उच्च शिक्षा लेने गए भारतीय और पाकिस्तानी छात्रों में हमलों की घटनाएं सामने आई हैं। धर्म और नस्ल के ऐसे सवाल हैं, जो जन्मजात संस्कारों और भावनाओं से जुड़े होते हैं। इन मसलों पर सभी धर्माें के लोगों की भावनाओं का सम्मान होना ही चाहिए।
कुछ समय पहले धार्मिेक स्वतंत्रता पर निगरानी रखने वाली अंतरराष्टीय समिति के एक अध्ययन की रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में माना गया था कि धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में अपेक्षाकृत भारत अब्बल है। क्योंकि यहां के लोग उदार हैं। सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लोग बिना किसी भय के अपने धर्म का पालन कर सकते हैं। उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी भी किश्म की कानूनी पाबंदी नहीं है। हालांकि अपवादस्वरुप धर्म के नाम पर दंगे हो जाते हैं, लेकिन इनकी पृष्ठभूमि में धार्मिक स्वतंत्रता को दबाने का उद्देश्य नहीं होता। भारत की धर्मनिरपेक्षता से दुनिया सीख ले सकती है, जहां बहुधर्मी, बहुसंस्कृति और बहु जातीय समाज अपनी-अपनी सांस्कृतिक विरासतों को साझा करते हुए साथ रह रहे हैं।
दरअसल इसका मूल कारण यह है कि भारतीय दर्शन के इतिहास में भौतिकवाद और आदर्शवाद दो परस्पर विरोधी विचारधाराएं एक साथ चली हैं। चार्वाक नास्तिक दर्शन का प्रबल प्रणेता था। चार्वाक ने बौद्धिक विकास के नए रास्ते खोले। उसने अनीश्वरवाद बनाम प्रत्यक्षवाद को महत्ता दी। चार्वाक ने ही मुस्तैदी से कहा कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के अद्भुत समन्वय व संयोग से ही मनुष्य व अन्य जीव तथा वनस्पतियां अस्तित्व में आए हैं। जीवों में चेतना इन्हीं मौलिक तत्वों के परस्पर संयोग से प्रतिक्रया स्वरुप उत्पन्न हुई है। विज्ञान भी मानता है कि संपूर्ण सृष्टि और उनके अनेक रुपों से उत्पन्न उर्जा का ही प्रतिफल है। जीवधारियों की रचना में अभौतिक सत्ता की कोई भूमिका नहीं है। चेतनाहीन पदार्थों से ही विचित्र व जटिल प्राणी जगत की रचना संभव हुई।
चार्वाक के सिद्धांत को ही ब्रिटिश वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने मान्यता दी है। हॉकिंग ने कहा है कि ईश्वर ने ब्रहमांड की रचना नहीं की है। इसे समझने के लिए उन्होंने महामशीन ‘बिग-बैंग' में महाविस्फोट भी किया था। इसके जरिए उन्होंने ब्रहम्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में भौतिक विज्ञान के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को मान्यता दी है। इस सिद्धांत के अनुसार लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पहले संपूर्ण ब्रहम्मांड एक परमाणविक इकाई के रुप में था। इससे पहले क्या था, यह कोई नहीं जानता। क्योंकि उस समय मानवीय समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थीं, समस्त भौतिक पदार्थ और उर्जा एक बिंदु में सिमटे थे। फिर इस बिंदु ने फैलाना शुरु किया। नतीजतन आरंभिक ब्रहम्मांड के कण, समूचे अंतरिक्ष में फैल गए और एक-दूसरे दूर भागने लगे। यह उर्जा इतनी अधिक थी कि आज तक ब्रहम्मांड विस्तृत हो रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक घटना से परिभाषित होती हैं, जिसे बिग-बैंग सिद्धांत कहते हैं।
दर्शन के विभिन्न मतों के ही कारण भारत में भगवान को नहीं मानना अपराध नहीं माना गया। इस कारण से किसी को फांसी नहीं दी गई। जैसा कि पाकिस्तान और अन्य इस्लामिक देशों में देखने में आता रहता है। इसलिए भारत या अन्य देशों में नास्तिक बढ़ रहे हैं, तो इस स्थिति को अथवा नास्तिकों को बुरी नजर से देखने की जरुरत नहीं है। क्योंकि नास्तिक दर्शन या नास्तिक व्यक्ति परलोक की अलौकिक शक्तियों से कहीं ज्यादा इसी लोक को महत्व देता है। कर्मकाण्ड से दूर रहता है। लेकिन इस दर्शन में उन्मुक्त भोग की जो परिकल्पना हैं, वह सामाजिक व्यवहार के अनुकूल नहीं है।
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प्रमोद भार्गव
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
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