श्याम गुप्त 2 ग़ज़लें तूफानों के साए रहिये .. उनका कहना है कि तूफानों के साए रहिये | हर सितम आँधियों के यूं बचाए रहिये | एक मज़बूत से खूं...
श्याम गुप्त
2 ग़ज़लें
तूफानों के साए रहिये ..
उनका कहना है कि तूफानों के साए रहिये |
हर सितम आँधियों के यूं बचाए रहिये |
एक मज़बूत से खूंटे का सहारा लेलो,
बस कमज़ोर पे जुल्मो-सितम ढाए रहिये |
दोष उनके दिखा रूपकों के आईने में,
होंठ लोगों के बस यूं सिलाए रहिये
आपको भी है इसी शहर में रहना आखिर,
धोंस देकर यूंही सच को दबाये रहिये |
दोष झूठे ही औरों पे उछाले रखकर ,
खुद को हर इलजाम से बचाए रहिये |
हर कायदे-क़ानून से ऊपर हैं आप ,
बस यूहीं सांठ-गाँठ बनाए रहिये |
सब समझते हैं , यह न समझ पाए श्याम,
अपने अंतर से भला कैसे छुपाये रहिये ||
यह शहर है यार
इस शहर में आगये होशियार रहना |
यह शहर है यार, कुछ होशियार रहना |
इस शहर में घूमते हैं हर तरफ ही ,
मौत के साए, खुद होशियार रहना |
घूमते हैं खटखटाते अर्गलायें,
खोलना मत द्वार बस होशियार रहना |
एक दर्ज़न श्वान थे, चार चौकीदार,,
होगया है क़त्ल अब होशियार रहना |
अब न बागों में चहल कदमी को जाना,
होरहा व्यभिचार तुम होशियार रहना |
सज संवर के अब न जाना साथ उनके,
खींच लेते हार ,सच होशियार रहना |
चोर की करने शिकायत आप थाने जा रहे,
पी चुके सब चाय ,चुप होशियार रहना |
क्षत विक्षत जो लाश चौराहे पर मिली,
कौन आदमखोर यह होशियार रहना |
वह नहीं था बाघ आदमखोर यारो,
आदमी था श्याम ' तुम होशियार रहना ||
--------डॉ. श्याम गुप्त,
के-३४८, आशियाना, लखनऊ
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जय प्रकाश भाटिया
यदा यदा हि धर्मस्य
यदा यदा हि धर्मस्य ,फिर चिरतार्थ होना चाहिए,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
पाप अत्याचार से फिर भरने लगें है घड़े ,
भ्रष्टाचारी दानव ने खोखलीं कर दी जड़ें ,
पापियों का अब फिर यहाँ संहार होना चाहिए
यदा यदा हि धर्मस्य ,फिर चिरतार्थ होना चाहिए,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
एक कंस ने किया था त्राहि त्राहि जन संहार ,
गली गली में कंस है, विध्वंस होना चाहिए,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
पूतना भी आज फिर जिंदा है इस देश में ,
छोड़ अपना रूप बैठी नागिन के वेश में,
ऐसी पूतनाओं का अब सर कुचलना चाहिए,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
एक नाग कालिया विष का भरा भंडार था,
काले कारनामो से उसके यह जगत बेहाल था,
आस्तीनों में छिपे,कई कालिया इस देश में,
इनका भी मर्दन यहाँ तत्काल होना चाहिए,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
प्यार भी व्यापiर है, अब इस ज़माने में यहाँ,
वो होलियों के रास वो मुरली की तान अब कहाँ ,
राधा और गोपियों के संग आना चाहिए,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
दोस्ती भी रह गई मतलब की अब इस देश में,
जो सुदामा है वो रहता दीन दुखिया वेश में,मित्र बैठे कोठियों में ,मौज मस्ती चाहिए ,
उनको सच्चे मित्र का अहसास होना चाहिए,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
भीष्म पितामह आज का खामोश है मजबूर है,
शकुनि की चाल है, यहाँ दुर्योधन मशहूर है,
शहर क्या और गाँव क्या, हर जगह कुरुक्षेत्र है,
फिर सुदर्शन चक्र से अब वार होना चाहिए ,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
बन के पार्थसारथी उपदेश गीता का दिया ,
कौरवों का नाश कर पांडवों को हक दिया,
आज कौरव देश में फिर उठा रहे हैं सर ,
अर्जुन को आज फिर काटने हैं इनके पर,
धर्म की रणनीति का विस्तार होना चाहिए ,
इस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,
काश कि दुनिया ऐसी हो
काश की दुनिया ऐसी हो
इंसानों की बस्ती हो,
हर आँगन खुशियाँ बसती हो,
हर हृदय विशाल उपकारी हो ,
हर जन प्रभु का आभारी हो ,
यारों की महफ़िल सजती हो,
काश कि दुनिया ऐसी हो
सोने की चिड़ियाँ उडती हों ,
दूध दही की नदियाँ बहती हों,
हर तरफ छाई हरियाली हो ,
हर डाल पे कोयल काली हो ,
सुख चैन की बंसी बजती हो,
काश की दुनिया ऐसी हो
हर नेता सच का प्रेरक हो ,
जनता का सच्चा सेवक हो ,
भ्रष्ट का कोई स्थान न हो ,
किसी सभा में उसका मान न हो ,
झूठे की ऐसी तैसी हो ,
काश कि दुनिया ऐसी हो
हर आँगन महके खुशबू से,
हर उपवन सदा बहार रहे,
हर चेहरे पे मुस्कान सजे ,
हर दिल में सच्च्चा प्यार पले,
स्वाभिमान से गर्दन ऊंचीं हो ,
काश की दुनिया ऐसी हो
बच्च्चो को सच्चा ज्ञान मिले,
हर गुरु जन को सम्मान मिले,
घर मात-पिता का आदर हो,
मन प्रेम प्यार का सागर हो,
स्वर्ग से सुंदर धरती हो ,
काश कि दुनिया ऐसी हो
कभी भूखे पेट कोई सोये न,
कोई ममता की मारी रोये ना,
हर और छाई खुशहाली हो,
हर रात यहाँ दीवाली हो,
दीपों की माला जलती हो,
काश कि दुनिया ऐसी हो
ईश्वर भक्ति में हर श्वास रहे,
प्रभु में सबका विश्वास रहे,
संस्कार भरा हर जीवन हो,
प्रभु नाम यहाँ संजीवन हो,
दिव्य ज्ञान की ज्योति जलती हो ,
" काश कि दुनिया ऐसी हो "----
वक़्त की आंधी
वक़्त की आंधी में तूफ़ान बदल जाते हैं,
ज़िन्दगी की राहों में मुकाम बदल जाते हैं,
बदलता नहीं है तो 'सच्ची दोस्ती' का रिश्ता ,
बस दोस्ती निभाने वाले इंसान बदल जाते हैं,
चमन में मौसम के साथ फूल बदल जाते हैं ,
अभिनय के साथ किरदार के रूप बदल जाते हैं,
नहीं बदलता है कभी तो उस 'परोपकारी' का दिल.
चाहे मुसीबत में उसके सारे दोस्त बदल जाते हैं,
ज़िन्दगी के सफर में चलते ,हमराही बदल जाते हैं,
राज दरबार वही रहता है, ,दरबारी बदल जाते हैं,
बदलता नहीं है तो वह हैं यहाँ कुदरत का कानून,
वरना यहाँ सरकार के साथ ही कानून बदल जाते हैं,
जीते जी जीने के सामान बदल जाते हैं,
तीर चलते है मगर कमान बदल जाते हैं,
नहीं बदलता है तो कभी भगवान् का इन्साफ,
वरना दौलत के आगे तो ईमान बदल जाते हैं,
बदलाव में सुख भी निहित है और दुःख भी,
यह सब तो वक़्त और अपने कर्म का तकाजा है,
लेकिन ज़िन्दगी में वही जन हर हाल में सुख पाता है ,
जो आदर्शो पर चल कर, सच्चे मन से प्रभु को अपनाता है,
जय प्रकाश भाटिया
J. P. BHATIA (CELL No.98550 22670)
KOHINOOR WOOLLEN MILLS
238, INDUSTRIAL AREA - A
LUDHIANA - PUNJAB - INDIA-141003------------------------------------------
मोतीलालवजूदमेरे ठीकरे की
बाती की तरह
मैं ढूंढता रहा
जलती हुई बाती
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में
कभी मंच पर
तो कभी गलियारे में ।
मुझे हर जगह
हर वो कोना
धुँआ उठता दिखा
पर नहीं दिखा
मेरे ठीकरे की तरह की बाती
जो आज भी मेरी देहरी में
उजाला करती है
और जिसकी रोशनी
सामने गली में फैलती है
ताकि कोई राहगीर
गिर न पड़े
और मिट न जाए
उसका अपना वजूद ।
* मोतीलाल/राउरकेला
* 9931346271-----------------------------
-- मनोज 'आजिज़'
वो गंगा है
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करती जो धरती को पाक वो गंगा है
जुड़ी है हिन्दोस्तां की जज़्बात वो गंगा है
निकले जो गंगोत्री से छोटी लगे
समंदर में लाये सैलाब वो गंगा है
सींचती रही है जो हिन्दोस्तां की जमीं
पानी हो जिसका आबेहयात* वो गंगा है
बसे हों किनारे जिसके शहरें, कस्बें
होती है जिससे संस्कृति आबाद वो गंगा है
लफ़्ज़ों से खुबियाँ जिसकी बयां न हो
जो जन्नत की हो सौगात वो गंगा है
* अमृत
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ग़ज़ल
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दिल में नफ़रत लिए अमन की बात करते हैं
हाथों में कटार लिए चमन की बात करते हैं
वो खफ़ा हैं मुझसे पूरे होश ओ हवास में
बात उस पर हो तो वहम की बात करते हैं
दिन-रात लगे हैं लोग ख़ुद की ख़िदमत में
मुश्किल से दो दिन वतन की बात करते हैंख़ुद की ज़िंदगी में कोई खास लहज़ा नहीं
लोगों से महफ़िलों में जतन की बात करते हैं
आज ज़िंदगी में ज़िन्दगी की तिश्नगी है यार
जीते जी अक्सर हम कफ़न की बात करते हैं
( शायर बहु भाषीय साहित्यसेवी हैं, अंग्रेजी शोध-पत्रिका ''द चैलेन्ज'' का संपादक हैं और अंग्रेजी भाषा-साहित्य के अध्यापक हैं ।
इनके ७ कविता-ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुका है )
पता -- इच्छापुर, ग्वालापाड़ा , पोस्ट- आर आई टी
जमशेदपुर-१४
झारखण्ड
फोन- 09973680146
mail- mkp4ujsr@gmail.com
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राजीव आनंद
फादर्स डे-16जून पर
पिता
तिल-तिल मरते देख पिता को
हाय न मैं कुछ कर पाया
सका न उतार पृत ऋण को
व्यर्थ ही मैंने जीवन पाया
पिता के कंधे पर चढ़कर
उंचाई कुछ खास मैंने पाया
दिल हिल जाता है यह सोचकर
क्यों पिता को विस्तर से उठा न पाया
पिता के साथ गरीबी का न था एहसास
खाते-पीते दिन बिता दिया बदहवास
एक दिन भी न कोई पूछने आया
खोने लगे थे जब पिता होशोहवास
किस ब्रदरहुड़ की बात करते रहे पिता
आज तक तो समझ मैं नहीं पाया
क्या मदद करेगा ये आपका ब्रदरहुड
गर्मी में भी आज तक कोट जो उतार नहीं पाया
व्यर्थ गंवाया पिता ने
कचहरी में अपने पचास साल
कुछ और किया होता तो
न होता आज हाल बेहाल
कुलीन बन कर कमाते रहे
मोवक्किलों ने जो दिया खाते रहे
घर पर फूटी कौड़ी न रही
विस्तर क्या पकड़ा मोवक्किल जाते रहे
ह्दय कांप उठता है पिता की हालत देखकर
किस भूल की उन्हें ऐसी मिली सजा
ईमानदारी का क्या यही मिलता है सिला
कजा के पहले क्यों मिली मौत से बदतर सजा
मुझे भगवन एक प्रश्न आपसे है पूछना
मरने के पहले मारने की ये कैसी सजा
क्यों ईमानदारों को इतना कष्ट देते हो
बेईमानों को तो मिलती नहीं कोई सजा
घर पूरा अशंत हो गया
सांस बेगार सी लगती है
सभी के ह्दय में दुख समाया
कोई भी हंसने से डरती है
पिता जब करते है क्रंदन
दिल थामे हम सब सुनते है
ह्दय फटता जाता है
फिर चाक ह्दय को बुनते है
और कई दुखों ने आकर
बनाया हमारे ह्दय में बसेरा
घनीभूत होता दुख अंधियारा
इंतजार रहता हो जाए सबेरा
हंसू तो लगता जुल्म कर रहा
खाउं तो लगता हक नहीं है
रूआंसा हो हम सब ने निर्णय लिया
अब हंसना हमलोगों का ठीक नहीं है
रो-रो कर माँ अधमरी हो रही
क्रंदन माँ का मिल जाता जब पिता के क्रंदन में
जीवन व्यर्थ सा लगने लगता है
घर डूब जाता है आंसूओं के संमदर में
काम लेने के लिए आज भी
मोवक्किल-वकील अधीर है
पर व्यथा कथा पिता की सूनने को
प्राय सभी बघिर है
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राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा, गिरिडीह
झारखंड़, 815301
मोबाइल 9471765417
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शैलेन्द्र नाथ कौल
सपने का न्याय
मैं कल रात सपने में / हाईकोर्ट का जज बन गया /
देखते ही देखते / सातवें आसमान पर पहुँच गया /
उ�ँची कुर्सी, बड़ी सी मेज़, मेज़ पर लैम्प /
पेशकार, अर्दली, वकीलों की बारात/ मुवक्किलों के मायूस चेहरे /
सभी कुछ हक़ीक़त जैसा ही लग रहा था /
हर नज़र मेरी ओर, / मेरी नज़र के इन्तिज़ार में /
मेरे इशारे पर पेशकार ने पहला केस पुकारा /
दो वकील सामने आये / एक वादी दूसरा प्रतिवादी
मामला सरकार के विर�द्ध /
सरकार ने तीन पुलिस कर्मियों को / अपने ही एस0पी0 को
पीटने के जुर्म में बर्ख़ास्त कर दिया था /
पुलिस कर्मियों द्वारा अपने ही एस0पी0 की पिटाई /
मामला संगीन था, मैंने नाक पर चश्मा ठीक करते हुए गरदन हिलाई /
वादी वकील ने अपनी दलील शुर� की / माई लार्ड यह एक कुचर्क है /
दोषी कोई, सज़ा किसी और को / क्या यही सरकारी शासन तन्त्र है ?/
माई लार्ड ज़रा हालात पर ग़ौर करे / अब तो अपना देश स्वतन्त्र है /
यह कोई बरतानिया सरकार नहीं / जब निहथ्थे लाठी कोड़े खाते थे /
यह तो जनता की सरकार है / और माई लार्ड देश में प्रजातन्त्र है /
यह कहां का न्याय है ?/ ग़लती करता है कोई और सज़ा पाता है कोई और /
इन बिचारों का क्या क़सूर है ? / इन जैसे मूर्ख मौन रहने की सज़ा पाते हैं /
सज़ा देनी है तो उन्हे दीजिए / जो ग़लत काम करवा कर सदा बच जाते हैं /
कुछ दिन पहले इलाक़े के एम0पी0 ने / इन तीनों के एस0पी0 पर जूता ताना था /
क्यों कि एस0पी0 ने किसी ग़लत काम के लिये / एम0पी0 का कहना नहीं माना था /
एक डी0आई0जी0 वहीं मौजूद था / जब एम0पी0 का जूता तना था /
पूरा माहौल एम0पी0 की बेहूदा हरकत से दाग़दार /
डी0आई0जी0 के बीच बचाव पर मामला थमा / पर एम0पी0 का ऐसा अपमान /
उनका जूता नहीं चल सका एक एस0पी0 पर / कैसे समझें अपने देश को महान /
इन बिचारों को उभार के / एस0पी0 को पिटवाकर /अपनी शान बढ़ाई /
तब कहीं जाकर कलेजे की आग बुझी /
माई लार्ड यह तीनों तो कठपुतलियां हैं / और डोर न दिखने वाले हाथों में है /
डोर हिलती है / और निर्दोष फंसते जाते हैं /
उन अदृश्य हाथों के मालिक / समाज की फिल्म के हीरो हैं /
जो लोग पिटते हैं, सताये जाते हैं /उन अदृश्य हाथों के सामने पूरे ज़ीरो हैं /
खरोंच नहीं आती उन हाथों को / जो सदा पटकते, पछाड़ते, लड़ाते रहते हैं /
हम मूक कठपुतलियां स्वार्थ के अधीन / गीत गाते रहते हैं बस उन्ही के /
माई लार्ड / प्रजातन्त्र को असली प्रजातन्त्र बनाने के लिए /
डोर हिलाने वाले हाथों को बाहर लाने के लिए /
सफ़ेदपोश ख़ूनी चेहरों से नक़ाब हटाने के लिए /
भूख से मरते किसानों के खेतों में फ़सल उगाने के लिए /
भ्रष्टाचार में लिप्त प्रशासन के अधीन / बन्द होती मिलों के -
बेसहारा, कमज़ोर मज़दूरों को / दो वख़्त की रोटी दिलाने के लिए /
विश्वविद्यालयों से राजनीति का कीचड़ हटाने के लिए /
कमज़ोर, अबला नारियों की इज़्जत बचाने के लिए /
नक़ली दवा से मरते रोगियों की जान बचाने के लिए /
देश में फैले आतंकवाद का मकड़जाल चीर उजाला लाने के लिए /
उन अदृश्य हाथों को बाहर लाना होगा /
लोग कठपुतली न बन सकें उन हाथों की /
मासूम जनता में यह साहस जुटाना होगा /
निर्भय होकर सभी सही काम कर सके /
यह सभी लोगों को विश्वास दिलाना होगा /
माई लार्ड / न्याय की बन्द आंखों वाली प्रतिमा की पट्टी को /
सदा के लिये खोलना होगा /
आदमी से आदमी का डर हटाकर /
परमेश्वर का डर बिठाना होगा /
माई लार्ड / बस मुझे इतना ही कहना है /
जो नहीं कहा है उसे भी समझियेगा /
अगर यह तीनों नौकरी से बाहर हो गये /
तो बच्चों को भूख से बचाने के लिए / और बड़ी कठपुतली बनेंगे /
एक नहीं, कई और एस0पी0 और डी0एम0 पिटेंगे /
चारों ओर आदमी नहीं सिर्फ़ कठपुतलियां ही होंगी /
आप के हाथ में कलम है / आपा दाता हैं, विद्वान हैं, बद्धिमान हैं /
क़लम की मार तलवार से बड़ी होती है /
अब क्या कहूँ मेरी ज्ऱबान सूख रही है /
माई लार्ड / आप से न्याय मिले बस यही दरकार है /
इतना कहकर / वादी वकील सिर झुकाकर चुप हो गया /
पर मेरे तन मन और मस्तिष्क को पूरी तरह हिला गया /
उसकी हर बात में सच था / और सच के सिवा कुछ न था /
कौन सी धारा से सच बचाउ�ँ ?/ यह प्रश्न मेरे सामने खड़ा था /
कुछ सोंच सकूं / यह सोंच कर मैंने प्रतिवादी की ओर इशारा किया /
वह उठा, कुछ घबराया सा / फाइल उठायी और गाउन ठीक किया /
माई लार्ड / यह असली अदालत है / किसी हिन्दी फिल्म का सीन नहीं /
मेरे दोस्त ने जो कुछ कहा / उसका केस से कोई भी सरोकार नहीं /
जुर्म तो सबूतों और गवाहों के आधार पर साबित होते हैं
जिन बातों का कोई आधार नहीं / उन्हे लेकर हम क्यों रोते हैं /
कठपुतली, कठपुतली की डोर / और अदृश्य हाथों का सबूत पेश किया जाए /
वरना क्यों फ़ालतू की बातों में / अदालत का समय बरबाद किया जाए /
मेरे पास / एस0पी0 को लगी चोटों की मेडिकल रिपोर्ट / और चश्मदीद गवाह हैं /
जिसे मैं आपके सामने पेश करना ............................../
प्रतिवादी वकील बोल रहा था / लेकिन मुझे कुछ सुनायी नहीं दे रहा था /
मुझे विधि संकाय में लॉ आफ़ टार्टस पढ़ाने वाले श्री वार्णेय याद आ रहे थे /
उन्होने क्षति की दूरस्थता का यह सिद्धान्त पढ़ाया था /
सदा सत्य की रक्षा के लिए / लड़ने का मार्ग दिखाया था /
बिना प्रतिवादी वकील की बातों की तरफ़ ध्यान दिये /
मैंने वादियों की मैंडेमस याचिका स्वीकार कर ली /
अर्थात उनकी नौकरी बहाल हो गयी /
साथ ही सरकार को यह आदेश पारित किया /
कि एम0पी0 के कार्यकलापों की जांच कराकर /
अदालत को एक माह में सूचित किया जाये /
प्रतिवादी वकील अन्याय, अन्याय चिल्ला रहा था /
और मैं एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाकर
सपने से निकल मीठी नींद सो रहा था ।
00000000000000
अच्छी रचनाएँ ...धन्यवाद रवि जी..
जवाब देंहटाएंइस धरा पर श्री कृषण का अवतार होना चाहिए,--
जवाब देंहटाएं--सुन्दर कविता भाटिया जी ..
...पर अवतार तो कृष्ण का दोबारा हो नहीं सकता ...हाँ हम स्वयं ही क्यों न कृष्ण बन कर दिखाएँ ...कब तक पुकारते ही रहेंगे ..
काश सपना सच् होजाए ..बधाई शेलेन्द्र जी हम कम से कम सपना तो देख ही सकते हैं....
जवाब देंहटाएंRajiv anand aur Kaul ji ki rachanayen vishesh pasand aaiyeen badhaiee
जवाब देंहटाएंsrahna ke liye dhanyavad
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