• शेर सिंह उत्तराखंड में त्रासदी उम्र कट गई साधने में फिर भी नाकाम रहे जानने में । ह...
• शेर सिंह
उत्तराखंड में त्रासदी
उम्र कट गई साधने में
फिर भी नाकाम रहे जानने में ।
हर तरह से लगे रहे रिझाने में
पर नहीं सफल हुए मनाने में
हादसों के मंजर रह गए देखते
वर्षों लगेगे अब भुलाने में
ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि, विवेक रह गए धरे
प्रकृति ने मिनट नहीं लगाया मिटाने में ।
अब जुटे रहो जानने में
पत्थर से सिर फोड़ने में ।
डेम, बिजली, उन्नति बह गए पानी
में कहां चूक हुई लगे रहो अब सोचने में ।
सब बरवाद अब व्यस्त मातम मनाने में
अब तो चेतो योजना बनाने में ।
सड़ी लाशों पर व्यस्त राजनीति करने में
विकृत बुद्धि वाले लांछन लगाने में ।
अभागे जनों की कीमत भुनाने में
माहिर राजनैतिक तरकश से तीर चलाने में ।
• शेर सिंह
के. के.- 100, कविनगर,
गाजियाबाद - 201 002 (23.06.2013)
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बलबीर राणा “भैजी”
शरणम द्दामि
निशब्द जुबान
कोरी आँखे
तलाश अभी भी जीवन की ..
अपनों की
सन्नाटे की चीत्कार...रिक्त .....रिक्त
रिक्त ......आशा
सशंकित दिशा
शिव शक्ति मौन
अवशेष त्राहिमाम का तांडव गा रही
भय भागती आस्था
पुकारती
शरण्म द्दामि ..... शरण्म द्दामि…….
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जसबीर चावला
छेड़ छाड़
छेड़ छाड़
चाहे
लड़की से
या
प्रकृति से
भुगतना
पड़ेगा
इस
विकृति से
***
आपदा
सुन
गेहूं के साथ
घुन
***
स्वीकारोक्ति
खण्ड खण्ड
उत्तराखण्ड
नदियों पर निर्माण
हर प्रखण्ड
विनाश तय
लिखा शिलाखण्ड
नहीं चला
पर्यटन पाखंड
क्यों सहती धरती
तय था दंड
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अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव
उत्तराखण्ड का हादसा .....
क्या केवल हादसा था या ....प्रलय ...
भारी बारिश ...फिर तबाही ....
टूट्ती सड़कें .....बहता सैलाब ...
बड़े ..बड़े पत्थर बहुत सारे पानी के साथ ....
लुढ़कते ...टूट्ते भयंकर वेग से ..गिरते ...
पावन पवित्र धर्मस्थल बस्तियाँ ...
पलक झपकते श्मशान में बदल गयीं ...
सड़के टूट गयीं इमारतें ढह गयीं ..बह गयीं ...
पूरा इलाका अँधकार ..चीखपुकार .में डूब गया ...
मौत का ताण्डव जारी था .....बहुत मरे ..बहुत बहे ...
बहुतों का पता नहीं ...समाचार भयानक थे ....
दिल ......दहलाने वाले थे .......
उफनती नदियाँ ...घनघोर बारिश ,,अँधेरा ...
इधर उधर पड़ी लाशें खँडहर हुई ईमारतें ..
नदियों में तैरती लाशें ..बिछड़ ती फैमिलियाँ
अपनों को खोने का गम ......
नया इलाका ...रास्ता पता नहीं ..
कोई राहत नहीं भयंकर ठण्ड में ओढने को कपड़ा नहीं
कैसे जियेंगे ...कुछ पता नहीं ...
आठ से दस दिन तक खुले आसमान के नीचे ..भूखे प्यासे
..ऐसी त्रासदी न कभी देखी थी ..न सुनी थी .............
कह्ते हैं बादल फटा था ..यानी पानी ज्यादा बरसा था ..
ऐसा पहिले कभी नहीं हुआ था ......
ये प्रकृति का इन्सान से बदला था ?
या इन्सानी छेड छाड़ ...भूलों की सज़ा था ..?
कौन जाने ........?इन सब त्रासदियों के बीच ..
केदारनाथ के मन्दिर का ढाँचा ही ...बचा था ..?
क्या ये चमत्कार था ..? .ईश्वर का विधान था ...?
प्रश्न तमाम हैं पर उत्तर नदारद है ......?
राहत और बचाव वे भी आधे अधूरे हैं .....
दुर्गम इलाका उफनती नदियाँ टूटी सड़कें ..
धसकती चट्टानें ....रोड ब्लाक लगातार बारिश ..
राहत के काम को और मुश्किल बनाती है ...
फिर भी हमारे सेना पैरा मिलिट्री और पुलिस के ...जवान
दिन रात अथक घनघोर प्रयास कर रहें हैं ....
कि ज्यादा से ज्यादा जिन्दिगियाँ बच सकें ..
एक मात्र साधन हेलीकॉप्टर है ..उसकी सीमित छमता है…
हजारों की भीड़ ..जीवन मौत से जूझती ..ख़राब मौसम ..
हेलिकॉप्टरों से उन्हें निकालना ...थोड़ी थोड़ी संख्या में ...
बाकियों की निराशा ....हताशा ....
क्या ऐसी आपदाओं से निपटने का कोई इन्तजाम था ...?
क्या एक रोड टूट जाये तो दूसरा रास्ता था ....?
हमारी तय्यारी आधी अधूरी थी ...
अब तक तो सभी जिन्दा लोग ही नहीं निकल पाये हैं ...
पीछे पूरी तबाही है गिरी इमारतें ..मल्बा ..दबी लाशें ...
सडती लाशें ..भरा ..पानी कीचड़ महामारी का खतरा ...
जो गायब हो गये उन्हें ढूँढना ...
जिनके लोग गायब हो गये वे अब भी उम्मीद में टकटकी लगायें हैं ..
शायद खबर आयेगी ...शायद वे आयेंगे ...
अब जब कि हजारों लाशें सड रहीं हैं ..
महामारी का खतरा बढ़ रहा है ...
उन लाशों का अन्तिम संस्कार भी ..
अत्यन्त असाध्य ..तथा कठिन है ...
समय से नहीं किया तो भयंकर परिणाम भुगतने होंगें ..
कुछ कहते हैं ये ईश्वर का ...प्रकोप है ..
कुछ कहते हैं ये मानवीय भूल है…
कुछ इसे किस्मत का खेल कहते हैं ..
पर मैं एक साधारण नागरिक .
..किसी को दोष न देकर इसे
प्राकृतिक आपदा मानता हूँ
राष्ट्रीय विपदा मानता हूँ ....
आगे भविष्य में ऐसी घटनाएँ न घटे ..
इसलिये उचित प्रबन्ध होना ..
जरूरी मानता हूँ ...प्रकृति के सामने ..
इन्सान को बहुत छोटा ........
बहुत कमज़ोर और निरीह मानता हूँ
खोयी जिन्दगियों के लिये हमारी ..
दुखी मन से बहुत बहुत श्रद्धांजलि ..
अपने भरे हृदय से उन्हें अश्रुपूर्ण विदाई देता हूँ
उनके जिनके लोग मारे गये उन्हें इस दुःख से
निपटने की शक्ति विधाता दें ये कामना करता हूँ
जिनके लोग गायब हैं उन्हें उम्मीद की किरण देता हूँ
कि भगवान में विश्वास रखें आशा न छोड़ें बिछड़े ..
अवश्य मिलेंगे ऐसी उम्मीद देता हूँ ........
उपरवाले से इन दुखियों की पुकार सुनने की प्रार्थना करता हूँ
जो अपने न थे ..फिर भी अपने थे .
हमारे देशवासी थे ..इसी माटी के पुतले थे
श्रद्धांजलि ,,,श्रद्धांजलि ...श्रद्धांजलि ..
परमपिता दिवंगत आत्माओं को चिर शांति प्रदान करें
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एक तरफ़ उत्तराखण्ड की त्रासदी .......
भयानक तबाही से ....बर्बाद ...
यहाँ ..वहाँ ..सब जगह फँसे ...
तीर्थयात्री ...आम नागरिक ...
मरे ..अधमरे ..मलबे .
.लाशों के बीच ....घिरे .
सड्ती दुर्गन्ध छोड़ती ...लाशें
महामारी का ख़तरा ...
अपनों को खोने ..उनसे ...
बिछुड़ने का दर्द ..
ठण्ड भूख प्यास बीमारी से ..
पल पल लड़ते मरते .....
बचने की उम्मीद छोड़ते लोग ...
दूसरी ओर सेना ..वायुसेना ..
पैरामिलिटरी पुलिस के जवान ..
तमाम सरकारी गैर सरकारी लोग ..
आम स्थानीय जनता उन्हें ..
जीवित रखने सकुशल निकलने ...
उन्हें सुरक्षित उनके घर .....
पहुचाने के काम में प्राणपण से ..
दिनरात हर तरीके आजमा कर
जीवन का भी जोखिम उठा कर ..
किसी भी कीमत पर हो ..
अपने उद्देश्य में लगे हुये है ..
अपने प्राणों की आहुति दे रहे है
तीसरी तरफ इस देश और
दुनिया के लोग .......
चिंतित और परेशान हैं ..
हर संभव मदद कर रहें है
प्रार्थनाएँ कर रहें है ..
पूजा हवन दुवाएँ कर रहे ..हैं
इस देश को विपदा से बचाने के
हर प्रयास कर रहे हैं ..
वहीँ कुछ ऐसे भी हैं ........सम्वेदनहीन
जो लोगों की मुसीबतों की अनदेखी कर
राजनीति कर रहें हैं अपना व् पार्टी हित ..
देश हित जन हित के ऊपर रख ..
कीचड़ का खेल ...खेल रहें हैं ..
जम कर एक दूसरे पर कीचड उछाल रहें हैं
बहुत कुछ किया जा रहा है
बहुत कुछ की तैय्यारी है ..
पर त्रासदी के आकार प्रकार के
सामने ये कम और नाकाफी है ..
अतः ज़रुरत इस बात की है कि ..
केवल सरकार उसके संसाधानों पर ..
.ही आश्रित न हो ................
समग्र बड़े पयमाने में कोशिश की जाये
दुखियों को ..पीड़ितों को हर संभव मदद ..
बिना भेद भाव बिना राजनीति पहुंचाया जाये
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
नदियाँ
नदियाँ सहजता से,
युगयुगान्तरों से मनुष्य को जीवनदायी रही है।
समय का सच स्वप्न नहीं
प्रारब्ध बनकर जब जमीन पर उतरता है
तो हम उसकी टोह तक
लेने की हिमाकत नहीं कर पाते।
नदी एक तिनके की तरह
सब कुछ अपने आगोश में लेकर
सांसों का संगीत समाप्त करते
मौन नीरवता ला देती है।
यह दृश्य अनजाना सा नहीं
पहचाना सा है।
हतप्रभ है हम
खुद ही अपने हाथों
अपनी सॉसों को खतरे में लाने
अपने कर्म से खुद ही भूल गये,
निर्मल जल की निर्मलता को
केनकूल का कर्मठ पानी
तोड़ता है पत्थर चट्टानी,
उसी तरह सब कुछ टूट गया।
बस में नहीं था हमारे
कश्मकश कैसी!
एक मौन के बिखर जाने,
एक डोर के टूट जाने,
खाली हाथ लौट आने का जिम्मेदार कौन ?
-सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305 ओ.सी.आर. बिल्डिंग
विधानसभा मार्ग, लखनऊ
मो0ः 9415508695
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सुरेश रघुनाथ पित्रे
|| प्रकृति देती है एक ही धचका ||
कुदरत जभी तक उदार है |
मानव को सृष्टि का आधार है |
मानव तू कितना लूटेगा |
कितने पेड़ तू काटेगा ? ||१||
साँस तुम ही तो लेता है |
पेड़ हम प्राणवायु देता है |
क्या तुम पेड़ को तोड़ोगे ?
क्या खुद ही को मारोगे ? ||२||
सीमट का जंगल बहुत है |
ज़हरीला धुआं भूत है |
पेड़ तोडने का भूत सवार है |
धरती का पूत मानव गँवार है ||३||
प्रदूषण चारों और फैला है |
धरती का आँचल मैला है |
मदमस्त विकास हो रहा है |
अलमस्त मानव जी रहा है ||४||
सुनामी का एक ही झटका |
भूकंप का एक ही धक्का |
जललय का एक ही हचका |
प्रकृति देती ही एक ही दचका ||५||
कवि - © सुरेश रघुनाथ पित्रे.
पता - " वैद्य सदन ", राघोबा शंकर रोड,
चेंदणी, ठाणे (पश्चिम), पिन कोड -४००६०१
मोबाईल फोन - ९००४२३०४०९
Email ID - enquiryhindi@gmail.com
bahut achhi aur sachi rachnaye likhi hai ...badhai ho
जवाब देंहटाएंbahut achhi aur sachi rachnaye likhi hai ...badhai ho
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