कर्म विकर्म और दुष्कर्म..... . ( डा श्याम गुप्त ) कर्म मानव की नियति है, ‘कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समां”.... कर्म ये होते हैं.....
कर्म विकर्म और दुष्कर्म......
( डा श्याम गुप्त )
कर्म मानव की नियति है, ‘कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समां”....कर्म ये होते हैं....१. सत्कर्म –जिन्हें सभी जानते हैं शास्त्र, आधुनिक शास्त्र, पुस्तकें साहित्य भरा पडा है यदि मनुष्य उन पर चले तो। २. कर्म –जो प्राकृतिक सहज कर्म हैं, उन्हें किये बिना ‘नान्यथातोपन्था..’ अन्य मार्ग नहीं है।३—अकर्म...जिनका प्रत्यक्ष में कोई लाभ या हानि नहीं प्रतीत होती ...बस यूंही...क्या बात है!...अच्छा लगा, मज़ा आया।4—विकर्म ..अर्थात विकृत कर्म ...जो वस्तुतः अकर्मों में लिप्तता के परिणामी स्वरुप हैं जो विकृतियों में परिवर्तित होजाते हैं |विकृत मानासिकता युक्त मन द्वारा भी एवं सामान्य सहज मानव मन के परिस्थितियों ,उत्कंठाओं,बिना रोक-टोक, चिंतन रहित श्रव्य-दृश्य माध्यमों, संगति के फलस्वरूप भी।ये ही तदुपरांत दुष्कर्मों में परिणत हो जाते हैं। और ५—दुष्कर्म ..जिन्हें सभी जानते हैं, तमाम इतिहास व साहित्य भरा पडा है इनके वर्णन से यदि मानव समझ पाए तो |
इस आलेख का मूल ध्येय अकर्मों का वर्णन है जो विकर्म तदुपरांत दुष्कर्मों में परिणत होजाते हैं| जिनका प्रत्यक्षतः लाभ या हानि दृष्टिगत नहीं होते परन्तु दूरगामी दुष्परिणामों के जनक हैं और ऐसे कार्य समाज में खूब किये, देखे सुने व हंसकर टाले जाते हैं और समाज के दुष्कर्म रूपी नासूर बनते हैं| अति-भौतिकता एकाकी-परिवार, स्त्री-पुरुष के बिगडते रिश्ते व बढ़ाते हुए दुष्कर्म इन्हीं अकर्मों की देन हैं और इन्हीं की देन हैं ये अकर्म |
सर्वाधिक तो सिनेमा... धूम, रक्षक, तारे जमीं पर आदि रोज़-रोज़ बनती निरर्थक फ़िल्में जो काल्पनिक ही हैं| जलेबी बाई, चिपकाले सैयां फेवीकोल से...जैसे गीत-संगीत , गीतकार व गायिकाएं-नायिकाएं, हर चेनल पर आते सीरियल..मास्टर-शेफ ,कम्पटीशन,डांस-डांस सभी इसी कोटि के अकर्म हैं| मनोरंजन आर्थिक दृष्टि आदि जैसे तमाम बेतुके तर्क दिये जा सकते हैं इनके पक्ष में, जिनका कोई वजूद नहीं है।विदेशी चेनलों की एक्शन फ़िल्में, स्टंट फ़िल्में, एडल्ट फ़िल्में, पोर्न फ़िल्में किस प्रकार से कर्म मानी जा सकती हैं।स्कूलों में सेक्स एज्यूकेशन जैसे मूर्खतापूर्ण विचार... प्रत्येक काम, वस्तु अपने समयानुसार ही उचित होती है ..जो प्रकृति का नियम है।समय से पहले बच्चों को युवा..युवाओं को प्रौढ़ बनाने की क्या आवश्यकता है जो असमय ही व्यक्ति की मानसिकता को कुत्सित विचार से परिपूर्ण करती है एवं बलात्कार जैसे दुष्कर्मों को प्रेरित करती है ||
दिन-रात खेल, मनोरंजन...सामान्य जीवन में ...वाटर स्पोर्ट, कयाकिंग, रेसिंग, घुड़दौड़ आदि जूए के समकक्ष खेल, शेयर बाज़ार ...जिसमें आज सभी युवा, कार्यरत प्रौढ़ व सेवानिवृत्त जन लिप्त रहने लगे हैं....जो मस्तिष्क उच्च विचारों, सामाजिक चिंतन, सामजिक कर्तव्यों, ईश्वर-धर्म-आचरण-दर्शन आदि में लगना चाहिए वह सिर्फ माया-मोह, अधिकाधिक अनावश्यक धन के मोह में लिप्त है |
अति-भौतिकता, एकाकी परिवार व इन अकर्मों में अत्यधिक रत रहने के कारण ही हमें सत्कर्मों की ओर देखने का समय नहीं मिलता| बड़ों का सम्मान, पत्नी का मान, निस्वार्थ सेवा, परमार्थ, घरका काम स्वयं करने का सुख-आनंद भूल, इन अकर्मों में व्यस्त हम मीठे रिश्तों को भूल चले हैं, पारिवारिक सम्बंध, भावनाएँ एकाकी परिवार में समाप्त प्राय: हैं जो दुष्कर्मों की जड़ हैं| आज अकर्मों के समाचार हर प्रकार के मीडिया में भरे पड़े हैं....फलतः हर क्षेत्र में, हर प्रोफेशन में, हर स्तर पर भ्रष्टाचार, यौनहिंसा, बलात्कार, अनाचरण आदि दुष्कर्मों के भी ...| कुछ वास्तविक घटनाओं के उदाहरण प्रस्तुत है.....
१.खेल खेल में फांसी पर लटका बच्चा .....टीवी से स्टंट सीखकर ..|
२. हिन्दी-संस्थान के .पढी गयी कविता ..”.पैसे से गरीब की शरारत देखी नहीं जाती ..” जैसी भड़काऊ व्यर्थ की एवं चुटुकुलेबाज़ी एवं व्यर्थ की कथनवाजी, अयथार्थ, (जिसमें अतथ्यात्मक कल्पनाओं वाले ब्लॉग अदि के आलेख भी शामिल हैं) आदि असाहित्य लिखना व पत्रों द्वारा प्रकाशन भी अकर्म ही है |
३.शुभ मुहूर्त में प्रसब ......वैज्ञानिकयुग के.पढ़े लिखे लोगों का अंध-विशवास, सिर्फ पैसे की हनक ...जो चिकित्सा जैसे क्षेत्र में ..भ्रष्टाचार व अनाचार की जननी है ....|
४.एतिहासिक भूल और छवि सुधार ...मोदी व अखिलेश का अमरीका दौरा ...अदि व्यर्थ के कर्म एवं व्यर्थ के आलेख भी हैं ...सिर्फ लिखने के लिए ..या आर्थिक दृष्टि से लिखे गए आलेख हैं जो नहीं लिखे जाने चाहिए।राम और कृष्ण की छवि अभी तक एक तबके में नहीं सुधर पाई वेचारे मोदी क्या करें।
५.युवा पीढी को भटका रहा है पूंजीवाद का रास्ता साथ ही चारित्रक संकट भी.........कितनी सांस्कृतिक, सामाजिक, चारित्रिक, नैतिक हानि के पश्चात ..याद आरही है ...कारपोरेट जगत की कारिस्तानियों की .. धंधेवाजी ....मल्टी नॅशनल कंपनियों के कृतित्व की...
६, सेना के अत्याधुनिक हथियारों से खूब खेले बच्चे ......बताइये सेना के हथियार खेलने की वस्तु हैं...क्या करेंगे बच्चे उन्हें देखकर असमय .....पुस्तकों में देश-प्रेम के पाठ की बजाय ...
७.गिनीज़ बुक के रिकार्डधारी के स्टंट के दौरान मृत्यु........स्टंट्स जैसी वेवकूफी के भी गिनीज़ रिकोर्ड रखे जाने लगे, स्टंट को महत्त्व देना क्या मूर्खता नहीं है .. गिनीज़-बुक स्वयं में एक मूर्खतापूर्ण अकर्म है जिसमें नाम के लिए जाने क्या क्या मूर्खता पूर्ण अकर्म किये जाते रहे हैं....|.
----- डा श्याम गुप्त, के-३४८, आशियाना, लखनऊ ,२२६०१२......मो.९४१५१५६४६४..
श्रीमदभागवत गीता मैं श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को कर्म,अकर्म और विकर्म का ज्ञान दिया गया ...जिसे आज भी समाज ने आत्मसात नही किया ...आपने कर्म ,अकर्म और विकर्म के पश्चात सत्कर्म और दुष्कर्म को जोड़कर व्याख्या की है ...जो आज के चेतनाशून्य हो रहे इन्सान के मस्तिष्क के लिए बूटी के समान है ...बशर्ते वह जिस गहरी खुमारी मैं है ....उससे अगर उसका जागना हो जाये !
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आत्माराम जी ...धन्यवाद .....बशर्ते वह जिस गहरी खुमारी मैं है उससे अगर उसका जागना हो जाये !
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जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आत्माराम जी ..धन्यवाद...
.बशर्ते वह जिस गहरी खुमारी मैं है ....उससे अगर उसका जागना हो जाये !
सही महा आत्माराम जी .......बशर्ते वह जिस गहरी खुमारी मैं है ....उससे अगर उसका जागना हो जाये !
जवाब देंहटाएंपूर्णरूपेण सहमत हूँ इस लेखन से,सत्य् ही तो कहा गया है अंधआधूंध नकल कर रही हम आधुनिक पीढ़ी बिना सोचे समझे तथ्य को जाने बस अकरम के पथ पर जा रहे हैं
जवाब देंहटाएंसम्यक जानकारी दी है आपने कर्म,विकर्म और दुष्कर्म के बारे मे. धन्यवाद.
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