शरद कुमार श्रीवास्तव की कहानी - भगवत शरणम गच्छामि

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भगवत शरणम गच्छामि डाक्टर लाल को कौन नहीं जानता है इस शहर में?  काफी समय से इलाज के मामले में इनके नाम का डन्का बजता रहा है. जिस मरीज को इन...

भगवत शरणम गच्छामि

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डाक्टर लाल को कौन नहीं जानता है इस शहर में?  काफी समय से इलाज के मामले में इनके नाम का डन्का बजता रहा है. जिस मरीज को इन्होंने छू भर लिया उसका स्वस्थ होना लगभग निश्चित था. घर तथा चैम्बर के बाहर मरीजों की लम्बी कतारें नजर आती थी. इफरात पैसे तथा शोहरत  से भरा उनका व्यक्तित्व था.

मृदुभाषी,शान्त स्वभाव दूसरों की सहायता में सदा तत्पर रहना उनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देता था.  लोगों की दुआओं के भी वह धनी थे. एक सुन्दर सहचरी तथा सुशील बच्चॉ से भरे -पूरे परिवार के स्वामी थे डाक्टर लाल.  श्रीमती लाल पूरी तौर पर धार्मिक महिला थी अपने पति के विरोध के बावजूद सारे तीज त्योहार पूरी भक्ति एवम श्रद्धा से करती थी  चार बच्चों में  बडा  और तीसरे नम्बर का बेटा अमेरिका में हैं तथा बाकी दो पुत्रियाँ दिल्ली और बंगलोर में हैं  सभी सम्पन्न हैं.  श्रीमती मेघा लाल का पिछले वर्ष देहान्त हो गया था तब से वह घर में अकेले रह गये थे इन सब बातों के अलावा उनके इस व्यक्तित्व से बाहर की भी उनकी एक और दुनिया थी.  वे काम को ही सर्वोपरि मानते थे. सर्वविदित था कि वे भगवान के अस्तित्व को नकारते थे. न तो  वह कभी मन्दिर जाते और ना घर के लोगों को जाने देते थे. यहाँ तक कि उन्होंने घर में तथा चैम्बर में बडा-बडा लिखवा रखा था ” भगवान  कहीं नहीं है” अंग्रेजी में भी कुछ इस प्रकार लिखवा रखा था ” God is no where”. मैं उनके निकट्स्थ होते हुए भी इस विषय में उनसे कुछ कह्ता तो वे उद्वेलित हो जाते थे.

एक बार की बात है कि एक विद्वान धर्मगुरु उनके पास इलाज के लिये आये. स्वभाव वश भगवान और उनकी भक्ति तथा अस्तित्व पर चरचा कर् रहे थे. भगवान की महिमा बखान रहे थे. डाक्टर लाल से रहा नहीं गया. वे बोल उठे, कि आपका भगवान महिमामई है तो आप मेरे पास क्यों आये हैं? स्वामी जी मुस्कराये, बोले हाँ भगवान सर्वशक्ति-मान है सब वही करता है हम आप तो उसके निमित्त मात्र हैं, माध्यम हैं, मैं धर्म प्रचार-प्रसार करता हूँ और आप लोगों की स्वास्थ सेवा! यह धरती, यह ब्रम्हान्ड, सब उसके निर्देशों पर चलते हैं. सब कछ उसका दिया हुआ जगत में है. हम इस दुनिया में ना तो एक साँस भी लेकर आये थे ना तो एक साँस भी वापस ले कर जाएंगे. डाक्टर साहब हँसने लगे. उन्होंने चुटकी ली और कहा कि यह तो सब कारबन आक्सीजन नाइट्रोजन इत्यादि तत्व,तथा डी एन ए आदि प्रकृति प्रद्दत्त वस्तुओं का कमाल है इसमे भगवान कहाँ से आ गया. अच्छा बताइये, कि यदि आपका भगवान सर्व शक्तिमान है तो क्या वह किसी ऐसे पत्थर को बना सकता है जिसे वह खुद नहीं उठा सकता है? स्वामी जी मुस्कराये बोले कि प्रेम, भगवतभक्ति तर्क पर आधारित नहीं हैं. यह आत्म ज्ञान और आत्म अनुभव की वस्तुएँ हैं.आस्था एवम विश्वास की चीजें हैं. आप उस परमेश्वर की ही सेवा कर रहे हैं. मेरा विश्वास है कि उसकी कृपा आपपर अवश्य होगी आपको भी उसकी उपस्थिती का अनुभव होगा और उसपर आपका भी विश्वास जाग्रत होगा तथा आपकी भी आस्था भगवान में अवश्य हो् जाएगी.स्वामी जी चले गए और बात आई-गई हो गयी.


बच्चे बहुत बुला रहे थे. नातिन का जन्म दिन भी पड्ने वाला था अतः डाक्टर लाल बंगलोर चले गए. नातिन के साथ समय व्यतीत करने लगे. पाँच वर्ष की नातिन, पूरी पुर्खिन थी. नहाने के बाद पूजा करती. दिया- अगरबत्ती डाक्टर साहब से ही जलवाती थी नानू भी यही सोच के जला भी देते थे कि कहीं नातिन अपने को जला न ले.एक महीना बीतने के बाद चलने को हुए तो नातिन बीमार पड गई उनको छोड़ नहीं रही थी अतः दो सप्ताह और रुकना पड गया. नई एवम आधुनिक शिक्षा पाए कई डाक्टर शहर में पहले से आ चुके थे. बीमार व्यक्ति तो इन्तजार नहीं कर सकता. ड़ेढ महीना बाहर रहने से डाक्टर लाल की प्रैक्टिस पर बुरा असर पडा. डाक्टर लाल के यहाँ मरीज कम आने लगे.चिकित्सा जगत में बड़े-बड़े प्राइवेट अस्पताल इस शहर में खुल चुके थे अब चिकित्सा की दुनिया में दलालों का भी अस्तित्व भी दिख रहा था.


वैसे,पैसे की कोइ चिन्ता नहीं थी परन्तु अब समय का खालीपन परेशान करता था. अपने काम में माहिर, हमेशा व्यस्त रहने वाले डाक्टर लाल, क्लब सोसाइटी से हमेशा दूर रहे. घर में अकेलापन और अब जब वे समाज से अपने को जोड नहीं पा रहे थे बीमार पड गये. बच्चों को फोन से सूचित किया. बच्चों की अपनी विवशतायें थी लम्बे समय के लिये रुक नहीं सकते थे. बच्चों ने बहुत प्रयास किया कि वे उनके साथ चलें परन्तु वह अपने द्वारा रचित मोह-माया में ऐसा फँसे थे कि कहीं जा नहीं सकते थे कहीं इनकम टैक्स तो कही मेडिको लीगल केसेस. कहीं प्रोपेर्टी के मसले तो कही बिना बात के फौजदारी के झूठे मुकदमे. पूरी तरह उलझ गयी थी जीवन व्यवस्था. पैसों की कमी नहीं, उपादानों की कमी नहीं, परन्तु बीमार शरीर होने से दैहिक क्षमताओं में लगातार ह्रास होने लगा वैसे तो नौकर चाकर भी थे परन्तु उनकी भी अपनी सीमायें थीं उनका भी अपना घर परिवार था सबके जाने के बाद एकान्त में ताका करते थे. एक रात सोते-सोते वे अचानक उठ गये उन्हें आभास हुआ कि नातिन के यहाँ वाले भगवान के रूप में, दोनों हाथ में मुरली धारन किये स्वयम भगवान कृष्ण उन्हें अभयदान दे रहे हैं. वहीं उनकी नजर जब दरवाजे पर गई तो लगा कि वहाँ पर No where का W सरक कर no को अब now कर दिया है किसी ने और इस प्रकार God is now here हो गया लग रहा है इसी तरह  भगवान  कहीं नहीं है में नहीं का न बदल कर य हो गया है और भगवान  कहीं यहीं है का आभास दे रहा है.श्रद्धा से डाक्टर लाल नत मस्तक हो गये. उनके दोनों हाथ हवा में उठ गये और वे बोल उठे भगवत शरणम गच्छामि

शरद कुमार श्रीवास्तव

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