खतरनाक है बोतलबंद पानी पर बढ़ती निर्भरता प्रमोद भार्गव अब तक बोतलबंद पानी को पेयजल स्त्रोतों से सीधे पीने की तुलना में सेहत के लिए ज्यादा...
खतरनाक है बोतलबंद पानी पर बढ़ती निर्भरता
प्रमोद भार्गव
अब तक बोतलबंद पानी को पेयजल स्त्रोतों से सीधे पीने की तुलना में सेहत के लिए ज्यादा सुरक्षात्मक विकल्प माना जाता रहा था, किंतु नए अध्ययनों से पता चला है कि राजधानी दिल्ली में विभिन्न ब्राण्डों का जो बोतलबंद पानी बेचा जा रहा है, वह शरीर के लिए हानिकारक है। इसकी गुणवत्ता इसे शुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे रसायनों से हो रही है। भारतीय अध्ययनों के अलावा अंतरराष्टीय संस्थाओं ने इस सिलसिले में जो अध्ययन किए हैं, उनसे भी साफ हुआ है कि नल के मुकाबले बोतलबंद पानी ज्यादा प्रदूषित और नुकसानदेह है। इस पानी में खतरनाक बैक्टीरिया इसलिए पनपे हैं, क्योंकि नदी और भूजल ही दूषित हो गये है। इन स्त्रोतों को प्रदूषणमुक्त करने के कोई ठोस उपाय नहीं हो रहे हैं, बावजूद बोतलबंद पानी का कारोबार सालाना 10 हजार करोड़ से भी ज्यादा का हो गया है।
ऐसी पुख्ता जानकारियां कई अध्ययनों से आ चुकी हैं कि देश के कई हिस्सों में धरती के नीचे का पानी पीने लायक नहीं रह गया है, इससे छुटकारे के लिए ही बोतलबंद पानी चलन में आया था। इसकी गुणवत्ता के खूब दावे किए गए, पर अब बताया जा रहा है कि यह भी मानव शरीर के लिए मुफीद नहीं है। ताजा रिपोटोंर् के आधार पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्रााधिकरण को दिल्ली में बोतलबंद पानी के संयंत्रों में शुद्धिकरण की स्थिति और उनके जलस्त्रोतों की जांच करने के लिए चिट्ठी लिखी है। साथ ही चिट्ठी में यह भी हवाला दिया है कि वह दिल्ली और राष्टीय राजधानी क्षेत्र में बेचे जा रहे बोतलबंद पानी में उपलब्ध रासयनिक तत्वों, जीवाणुओं और वीषाणुओं की जांच कर रिपोर्ट दे, यह पानी पीने के लायक है भी या नहीं ?
हालांकि अब इस तरह के इतने अध्ययन आ चुके है कि नई जांच की जरुरत ही नहीं है। पंजाब के भंटिडा जिले में हुए एक अध्ययन से जानकारी सामने आई थी कि भूजल और मिट्टी में बड़ी मात्रा में जहरीले रसायन घुले हुए हैं। इसी पानी को पेयजल के रुप में इस्तेमाल करने की वजह से इस जिले के लोग दिल और फेफड़ों से संबंधित गंभीर बीमारियों की गिरफ्त में आ रहे हैं। इसके पहले उत्तर प्रदेश और बिहार के गंगा के तटवर्ती इलाकों में भूजल के विषाक्त होने के प्रमाण सामने आए थे। नरौरा परमाणु संयंत्र के अवशेष इसी गंगा में डाले जाकर इसके जल को जहरीला बनाया जा रहा है। कानपुर के 400 से भी ज्यादा कारखानों का मल गंगा में बहुत पहले से प्रवाहित किया जा रहा है। गंगा से भी बद्दतर हाल में यमुना है। इसीलिए इसे एक मरी हुई नदी कहा जाने लगा है। यमुनोत्री से लेकर प्रयाग के संगम स्थल तक यह नदी करीब 1400 किमी का रास्ता नापती है। इस धार्मिक नदी की यह लंबी यात्रा एक गंदे नाले में बदल चुकी है। इसे प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए इस पर अभी तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुकें हैं, लेकिन बद्हाली जस की तस है। गंदे नालों के परनाले और कचरों डंफर इसमें बहाने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। यमुना में 70 फीसदी कचरा दिल्लीवासियों का होता है, रही-सही कसर हरियाणा और उत्तरप्रदेश पूरी कर देते हैं। गंदे पानी को शुद्ध करने के लगाए गए संयंत्र अपनी क्षमता का 50 प्रतिशत भी काम नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि मथुरा के आसपास के इलाकों में यमुना के दूषित पानी के कारण चर्मरोग, त्वचा कैंसर जैसी बीमारियां लोगों के जीवन में पैठ बना रही हैं। पशु और फसलें भी अछूते नहीं रह गए हैं। जांचों से पता चला है कि इस इलाके में उपजने वाली फसलें और पशुचारा जहरीले हैं।
उत्तरी बिहार की फल्गू नदी के बारे में ताजा अध्ययनों से पता चला है कि इस नदी के पानी को पीने मतलब है, मौत को घर बैठे दावत देना। जबकि सनातन हिन्दू धर्म में इस नदी की महत्ता इतनी है कि गया में इसके तट पर मृतकों के पिंडदान करने से उनकी आत्माएं भटकती नहीं है। उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है। भगवान राम ने अपने पिता दशरथ की मुक्ति के लिए यहीं पिंडदान किया था। महाभारत युद्ध में मारे गए अपने वंशजों का पिंडदान युधिष्ठिर ने यहीं किया था। वायु पुराण के अनुसार फल्गू नदी भगवान विष्णु का अवतार है। इस नदीं के साथ यह दंतकथा भी जुड़ी है कि एक समय यह दूध की नदी थी। लेकिन अब यह बीमारियों की नदी है।
मध्यप्रदेश की जीवन रेखा मानी जानी वाली नर्मदा भी प्रदूषित नदियों की श्रेणी में आ गई है। जबकि इस नदी को दुनिया की प्राचीनतम नदी घाटी सभ्यताओं के विकास में प्रमुख माना जाता है। लेकिन औद्योगिक विकास की विडंबना के चलते नर्मदा घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत इस पर तीन हजार से भी ज्यादा छोटे-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं। तय है, पानी का बड़ी मात्रा में दोहन नर्मदा को ही मौत के घाट उतार देगा। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया है, इसके उद्गम स्थल अमरकंटक में भी यह प्रदूषित हो चुकी है। तमाम तटवर्ती शहरों के मानव मल-मूत्र और औद्योगिक कचरा इसी में बहाने के कारण भी यह नदी तिल-तिल मरना शुरु हो गई है। भारतीय प्राणीशास्त्र सर्वेक्षण द्वारा किए एक अध्ययन में बताया गया है कि यदि यही सिलसिला जारी रहा तो इस नदी की जैव विविधता 25 साल के भीतर पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इस नदी को सबसे ज्यादा नुकसान वे कोयला विद्युत संयंत्र पंहुचा रहे हैं जो अमरकंटक से लेकर खंबात की खाड़ी तक लगे हैं।
इन नदियों के पानी की जांच से पता चला है कि इनके जल में कैल्शियम, मैगिन्नीशियम, क्लोराइड, डिजॉल्वड अॉक्सीजन, पीएच, बीओडी, अल्केलिनिटि जैसे तत्वों की मात्रा जरुरत से ज्यादा बढ़ रही है। ऐसा रासयनिक उर्वरकों, कीटनाशकों का खेती में अंधाधुंध इस्तेमाल और कारखानों से निकलने वाले जहरीले पानी व कचरे का उचित निपटान न किए जाने के कारण हो रहा है। बीते कुछ सालों में जीएम बीजों का इस्तेमाल बढ़ने से भी रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की जरुरत बढ़ी है। यही रसायन मिट्टी और पानी में घुलकर बोतलबंद पानी का हिस्सा बन रहा है, जो शुद्धता के बहाने लोगों की सेहत बिगाड़ने का काम कर रहा है। कीटनाशक के रुप में उपयोग किए जाने वाले एंडोसल्फान ने भी बड़ी मात्रा में भूजल को दूषित किया है। केरल के कसारगोड जिले में अब तक एक जहार लोगों की जानें जा चुकी हैं और 10 हजार से ज्यादा लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं।
हमारे यहां जितने भी बोतलबंद पानी के संयंत्र हैं, वे इन्हीं नदियों या दूषित पानी को शुद्ध करने के लिए अनेक रसायनों का उपयोग करते हैं। इस प्रक्रिया में इस प्रदूषित जल में ऐसे रसायन और विलय हो जाते हैं, जो मानव शरीर में पहुंचकर उसे हानि पहुंचाते हैं। इन संयंत्रों में तमाम अनियमितिताएं पाई गई हैं। अनेक बिना लायसेंस के पेयजल बेच रही हैं, तो अनेक पास भारतीय मानक संस्था का प्रमाणीकरण नहीं है। जाहिर है, इनकी गुणवत्ता संदिग्ध है। हमने जिन देशों से औद्योगीकरण का नमूना अपनाया है,उन देशों से यह नहीं सीखा कि उन्होंने अपने प्राकृतिक संसाधनों को कैसे बचाया। यही कारण है कि वहां की नदियां तालाब, बांध हमारी तुलना में ज्यादा शुद्ध और निर्मल हैं। स्वच्छ पेयजल देश के नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है। लेकिन इसे साकार रुप देने की बजाय केंद्र व राज्य सरकारें जल को लाभकारी उत्पाद मानकर चल रही हैं। यह स्थिति देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म․प्र․
मो․ 09425488224
फोन 07492 232007
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
लोग ही नहीं चाहते अन्यथा ऐसा क्यों हो। अवेयरनेस नहीं है लोगों में।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी | चिंताजनक विषय | लोगों को इसके बारे में जागरूक करना होगा | आभार
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आम आदमी के पास, पता नहीं क्या चारा है
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