किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण् अधिनियम 2000 एवं मध्य प्रदेश किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) नियम , 2003 में बालक...
किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण् अधिनियम
2000 एवं मध्य प्रदेश किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) नियम ,
2003 में बालकों के कल्याण संबंधी दिये गये विशेष प्रावधान-
उमेश कुमार गुप्ता
प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश
रायसेन म0प्र0।
प्राचीन काल में राजा महाराजा सेठ साहूकार के बालक बचपन से ऋषि मुनियों के
आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। उनके पारिवारिक वातावरण में लाड़ प्यार, उचित देख रेख न
होना स्नेह, के कारण बिगडने और समाज के बुरे तत्वों के सम्पर्क में आ जाने के कारण उनपर बुरा
असर पड़ सकता था। इसलिए उन्हें शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने ऋषि मुनियों के पास भेजा जाता था।
जहां से वह शिक्षा प्राप्त कर महामानव के रूप में समाज में अपना योगदान देते थे।
आज के बदलते पारिवारिक विघटन के दौर में जब संयुक्त परिवार खत्म हो गये है।
एकांकी परिवार ज्यादा है। जिसके कारण बालक बचपन से लाड़ प्यार, ऐश आराम मे पलने के
कारण बिगड़ जाते हैं। परिवार के सदस्यों के पास ई0एम0आई0 चुकाने की चिंता में दिन-रात
कमाने की धुन सवार होने के कारण उनके पास अपने बच्चों की देख रेख के लिए समय नहीं होता
है। बच्चे घोर उपेक्षा के कारण आपराधिक गतिविधियों की ओर अग्रेषित होकर विधि के अधीन संघर्षरत बालक के रूप में समाज के सामने आते हैं।
बालक एक राष्ट्रीय सम्पदा है।इसलिए उसके व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास को
सुनिश्चित करना और उनकी देख रेख करना राज्य का कर्तव्य है। इसी वजह से बालकों के साथ
संव्यवहार करने वाले सभी कानून ये उपबन्ध करते है कि बालकों को अपराध बोध न कराया जाये।
इसके लिए उन्हें विशेष उपचार दिया जाये। उन्हें गरीबी बेकारी, भुखमरी, अशिक्षा, कुपोषण, नशा,
शोषण से दूर रखा जाये। जिसके कारण वह अपराध की ओर अग्रसर होते हैं।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 15-3, 39 ड, 39च, 45, 47, में भी बालकों के कल्याण
के लिए विशेष उपबंध बनाने के निर्देश दिये गये हैं। उन्हें निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा, पोषाहार प्रदान
किये जाने विशेष निर्देश राज्य को दिये गये है। जिन्हें राष्ट्रीय बाल नीति में स्थान दिया गया है।
बाल नीति का मुख्य उद्देश्य बालकों को मानसिक और नैतिक तौर पर स्वस्थ, मजबूत नागरिकों में
परिवर्तित करना है। बालकों को मानव अधिकार प्राप्त हों। उनकी बुनियादी आवश्यकता पोषण
स्वास्थ, शिक्षा, आदि अर्थात जीने का अधिकार, विकास का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार और
सहभागिता का अधिकार उन्हें प्राप्त हों। इसके प्रयास कियें जा रहे हैं। लेकिन व्यवहारिक तौर पर
उनका दैहिक, लैंगिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक, शोषण होता है। जिसके कारण बालकों
के द्वारा किये जा रहे अपराधों में और उनके प्रति किये जा रहे अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है।
आधुनिक समाज दण्ड के सुधारात्मक सिद्धांत पर आधारित है। प्रत्येक व्यक्ति का
जन्म अच्छा है लेकिन परिस्थितियां उनको एक आपराधी में परिवर्तित कर देती है। इसलिए यह
कहा गया है कि यदि प्रत्येक संत का एक अतीत है तो पापी का एक भविष्य है। सुधारलय सिद्धांत
इसी उक्ति पर आधारित है।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुंए किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख
तथा संरक्षण अधिनियम 2000 की संरचना की गई है। जिसका उद्देशिका से स्पष्ट है
कि कानून के साथ विरोध में किशोरों से और देख-रेख और संरक्षण की आवश्यकता में बालकों से
संबंधित उचित देख रेख, संरक्षण और उपचार के लिए प्रावधान करके उनके आवश्यक विकास के
खान पान का प्रबंध करके और बालक के सर्वोत्तम हित में मामलों के न्याय निर्णयन और व्ययन में
मित्रवत् पहुंच में एक बालक को अंगीकार करके और इस स्थापना के अधीन स्थापित अनेक
संस्थाओं के माध्यम से उनके अंतिम पुनरूद्धार के लिए विधि को समेकित करने के लिए ओर संशोधन करने के लिए इस अधिनियम की स्थापना की गई है।
किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण) अधिनियम 2000 जिसे आगे
अधिनियम से संबोधित किया गया है। उसका उद्देश्य और प्रयोजन विधि का उल्लंघन करने वाले
अपचारी और उपेक्षित किशोरों की देख-रेख संरक्षण, उपचार, विकास, और पुनर्वास करने का है।
इसलिए इसका निर्वाचन उदारतापूर्वक किशोर के हित में किये जाने निर्देशित किया गया है।
अधिनियम की धारा-2 ट के अनुसार किशोर या बालक एक ऐसे व्यक्ति से अभिप्रेत हैं जो 18 वर्ष
की आयु पूरी नहीं की गई है। इस प्रकार उपेक्षित किशोर के मामले में बालक और लड़की दोनो
की आयु एक समान रखी गई है।
अधिनियम की धारा-68 के अंतर्गत राज्य सरकार को राजपत्र में अधिसूचना द्वारा
इस अधिनियम के प्रयोजनों का अनुपालन करने के लिए नियम बनाने के शक्ति दी गई है। इसी
शक्ति का प्रयोग करते हुए मध्य प्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश किशोर न्याय (बालकों की
देखरेख और संरक्षण) नियम, 2003 की रचना की गई है, जिसे आगे नियम से सम्बोधित
किया गया है।
अधिनियम की धारा-4 के अंतर्गत अधीन किशोर न्यायबोर्ड की स्थापना की गई है
और सर्व प्रथम विधि के साथ संघर्ष में बालक को बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा। राज्य
सरकार प्रत्येक जिले या जिलो के वर्ग के लिए राज पत्र में अधिसूचना द्वारा इस संबंध में ऐसे बोर्ड
को सौंपे प्रदत्त या अधिरोपित की गई शक्तियों का प्रयोग करने और कर्तव्यों का निर्वहन करने के
लिए एक या अधिक किशोर बोर्ड, का गठन करेगा। नियम 3 किशोर न्याय बोर्ड की स्थापना के
संबंध में है।
मध्य प्रदेश में सभी जिलों में किशोर न्यायबोर्ड की स्थापना की गई है। दो दिन
किशोर न्याय बोर्ड बैठक बुधवार और शुक्रवार को होती है। लेकिन बहुत ज्यादा मामले नहीं
निपटाये जाते हैं। बालकों को विशेषकर गम्भीर मामलों में अधिनियम का लाभ नहीं दिया जाता है।
विचारण अवधि के दौरान ही 18 वर्ष से अधिक की उम्र वे लोग पार कर लेते हैं। किशोर न्याय बोर्ड
के द्वारा उनके साथ सामान्य और आदतन अपराधियों की तरह अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत
व्यवहार कियाजाता है। जो उचित नहीं है।
बालकों के प्रति नरम दृष्टिकोण अपनाते हुए सुधारात्मक रवैया रखते हुए उनके साथ
व्यवहार करना चाहिए। अधिनियम बालकों को अपराध के प्रति विरक्ति जागृत करता है और उनके
सामाजिक, आर्थिक सुधार की भी व्यवस्था करता है। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ, सुविधाएं प्रदान करने के
लिए उत्प्रेरित करता है। न्यायिक अधिकारी के अलावा नियुक्त बोर्ड में नियुक्त सामाजिक कार्य
कर्ता रूचि नहीं रखते हैं। औपचारिकतावश बोर्ड का कार्य निपटाते हैं।
अधिनियम की धारा-8 के अंतर्गत राज्य सरकार प्रत्येक जिले या जिले के एक वर्ग में
अधिनियम के आधीन जांच के लंबित रहने के दौरान विधि के साथ संघर्षरत किशोर के अस्थाई रूप
से रहने की व्यवस्था हेतु सम्प्रेषण गृह की स्थापना करेगा जिसमें 7 से 12 वर्ष, 12 से 16 वर्ष,
16 से 18 वर्ष के बालकों का वर्गीकरण कर स्त्री और पुरूष को अलग अलग रखा जायेगा। उन्हे
रहने खाने, शिक्षा, आदि की पूर्ण सुविधाएं प्रदान की जाएगी।
नियम 21 के अंतर्गत सम्प्रेषण गृह में विधि का उल्लंघन करने वाले बालक का
जांच लंबित रहने के दौरान अस्थाई रूप से रखा जायेगा। सम्प्रेषण गृह का उद्देश्य बालकों को
शिक्षा, परामर्श, तथा उनके समय का सृजनात्मक उपयोग करने के अवसर प्रदान करना है। इसमें
बालक को रात दिन किसी भी समय प्रवेश दिया जायेगा। जिसके संबंध में किशोर न्याय बोर्ड द्वारा
आदेश जारी किये जायेगें।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक जिले में नियमानुसार सम्प्रेषण गृह की स्थापना नहीं की गई है।
इसकी जानकारी इंटरनेट समाचारपत्र, पर सार्वजनिक भी नहीं की गई है और न ही इनके मोबाइल
नंबर प्रकाशित किये गये हैं। जो नियमानुसार किया जाना चाहिए।
इनमें अधिनियम के अनुसार मनोरंजन, एवं खेल कूद की व्यवस्था नहीं है। बीमार
बालकों के उपचार हेतु डॉक्टर की व्यवस्था नहीं है। छुआछूत की बीमारी से ग्रस्त बालकों को
अलग रखने की व्यवस्था नहीं है। पर्यवेक्षण अधिकारी, सुरक्षा अधिकारी, की नियुक्ति नहीं की गई
है। उम्र के अनुसार बालक बालिकाओं को अलग रखने की व्यवस्था नहीं की गई है। केवल
नाममात्र के छोटे आकार के बिना सुख सुविधाओं वाले रिमांड होम बनाये गये है जिनमें संख्या से
अधिक बच्चे रखे जाते हैं।
कई जिलों में सम्प्रेषण गृह न होने के कारण लम्बी यात्रा करके एक जिले से दूसरे
जिले में बालकों को लाया जाता है। जिसके कारण आवागमन में असुविधा होती है।
अधिनियम की धारा-9 में राज्य सरकार प्रत्येक जिले या जिले के एक वर्ग में
अधिनियम के आधीन विशेष घर की स्थापना करेगी। जिसमें अपराध की प्रकृति तथा आयु और
उनकी मानसिक और शारीरिक स्तर के आधार पर विधि के साथ संघर्ष में वर्गीकरण और पृथक्करण
के आधार पर उन्हें रखा जाएगा।
नियम 27 के अंतर्गत विशेष गृह में विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों को रखने
उनकी देख रेख,उपचार, पुनर्वास प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा। लड़के लड़कियों के लिए
अलग-अलग संस्थान स्थापित किये जायेंगे जिसमें आयु समूह के अनुसार रखा जायेगा।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक जिले में नियम 27 के अनुसार विशेष गृह की स्थापना नहीं की
गई है। जिसके कारण सभी उम्र के किशोर एक साथ रहते हैं और एक दूसरे की संगत का असर
उन पर पड़ता है जिसके कारण उनकी उचित देख रेख, उपचार, पुनर्वास, प्रशिक्षण उन्हें प्राप्त नहीं
होता है।
अधिनियम की धारा-29 के अंतर्गत राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक
जिले या जिले के वर्ग के लिए इस अधिनियम के अधीन बालक की देखरेख और संरक्षण की
आवश्यकता के सबंध में बाल कल्याण समिति की स्थापना करेगी। समिति एक मुख्य व्यक्ति
और चार दूसरे सदस्यों जिन्हें राज्य सरकार नियुक्त करना ठीक समझे जिनमें से कम से कम एक
स्त्री और एक दूसरा बालकों से संबंधित मामलों पर विशेषज्ञ होगा से मिलकर बनेगी।
जरूरतमंद बालक के देखरेख तथा संरक्षण के लिए नियम 12ं के अनुसार बाल
कल्याण समिति का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा।समिति के समक्ष किसी संगठक को बालक प्राप्त
होने पर उसकी जानकारी प्रारूप 13 में दी जायेगी। समिति के द्वारा बालक को उचित देख रेख में
संस्था में रखा जायेगा। समिति को न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त होंगी। जो बालकों की
जांच करेगी। जिसकी जांच रिपोर्ट के बाद ही बालक योग्य व्यक्ति को प्रदान किया जायेगा।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक जिले में बाल कल्याण समिति की स्थापना की गई है। लेकिन
समिति अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कार्य कर रही है यह बात लोगों के सामने प्रकट नहीं
हो पाई है। जिसकी समय पर बैठक, नहीं होती है और रिपोर्ट से अवगत नहीं कराया जाता है।
अधिनियम की धारा-34 के अंतर्गत राज्य सरकार प्रत्येक जिले या जिले के वर्ग में
किसी जांच के लंबित रहने के दौरान देख रेख और संरक्षण की आवश्यकता में बालक की प्राप्ति के
लिए तथा पश्चातवर्ती उनकी देख रेख उपचार शिक्षा, प्रशिक्षण, विकास और पुनरूद्धार के लिए,
यथास्थिति, प्रत्येक जिले या जिलो के वर्ग में स्वैच्छिक संगठन बालगृह के रूप में स्थापित कर
सकेगा। जिनके मानीटर और मूल्यांकन के लिए अधिनियम की धारा-36 के अंतर्गत सामाजिक
लेखा परीक्षा करना तथा ऐसे व्यक्तियों और संस्थाओं की स्थापना सरकार द्वारा की जायेगी।
नियम 29 के अंतर्गत राज्य सरकार के द्वारा स्थापित बाल गृह का उद्देश्य उपेक्षित
बालकों की देख रेख सरं क्षण शैक्षणिक व्यवसायिक प्रशिक्षण, उनका व्यवहार परिवर्तन कर परिवार क े
प्रति सकारात्मक रूख विकसित करना है। इसमें बाल कल्याण समिति के आदेशानुसार प्रवेश दिया
जायेगा। किसी भी दशा में इसमें विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों को प्रवेश नहीं दिया जायेगा
। प्रत्येक बाल गृह में अभिग्राही इकाई जो बाल कल्याण समिति द्वारा जांच के लंबित रहने के दौरान
बालकों की देख रेख करेगी। बाल कल्याण समिति के आदेशानुसार बालकों को छोडेंगे।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक जिले में नियम 29 के अनुसार बाल गृह की स्थापना नहीं की
गई है। केवल महा नगरों में बाल गृह की स्थापना की गई है। जिसके कारण छोटे छोटे जिले के
बालक उपेक्षित दशा में होते है और उनकी देख रेख न होने के कारण वह अपराधियों के समपर्क में
आकर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होते हैं। जिसके कारण समाज में विधि का उल्लंघन करने
वाले बालकों की संख्या बढ़ रही है। राज्य शासन को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
अधिनियम की धारा-37 के अंतर्गत उपेक्षित बालकों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार
आश्रय गृह की स्थापना करेगी। जिसके लिए राज्य सरकार, स्वैच्छिक संगठनों को मान्यता प्रदान
कर सकेगी और समर्थ बना सकेगी और किशोरों या बालकों के लिए उतने अधिक आश्रय गृहो को
स्थापित करने के लिए उनकी सहायता प्रदान कर सकेगा जो उस सरकार द्वारा विहीत किया जाये
। जिनके पास ऐसी प्रसुविधाएं होगी जो नियम द्वारा विहित किया जाये।
नियम 37 में निराश्रित आवारा, भागे हुए बालक, आदि की जिन्हें तत्काल देख रेख
और संरक्षण की आवश्यकता है उनके लिए प्रत्येक जिले में आश्रय गृह बनाया जायेगा। जिसका
मुख्य उद्देश्य रेल्वे स्टेशन, सडक, आदि जगह प्राप्त होने वाले संकट ग्रस्त बालकों को आश्रय प्रदान
कराना, होगा। जिसमें भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य शिक्षा, आदि बुनयादी आवश्यकताएं प्रदान की जायेगी।
आश्रय गृह को पुलिस थाने तथा चाइल्ड हेल्प लाइन से संबंध किया जायेगा।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक जिले में आश्रय गृह की स्थापना नहीं की गई है। जिसके
कारण संकट ग्रस्त बालकों की उचित देख-रेख और उन्हें रोटी,कपडा, मकान जैसे बुनियादी
सुविधाएं प्राप्त नहीं हो पाती है और वह अपराधियों की संगत में आकर अपराध को बढावा देते हैं।
चाइल्ड हेल्प लाइन भी महानगरों को छोडकर प्रत्येक जिले में स्थापित नहीं हैं।
अधिनियम की धारा-44 के अतं र्गत पश्चात्वर्ती देख रेख सगं ठन के रूप में
राज्य सरकार विशेष गृहों या बाल गृहों को छोडने के पश्चात किशोरो या बालकों की देख रेख
करने के प्रयोजनार्थ तथा एक ईमानदार परिश्रमी और उपयोगी जीवन जीने के लिए उन्हे समर्थ
बनाने के प्रयोजनार्थ ऐसे पश्चातवर्ती देख रेख संगठन की स्थापना करेगी। जिसके लिए एक स्कीम
बनाई जाएगी। इसके लिए एक विशेष गृह बालक गृह की स्थापना करेगी।
नियम 36 के अंतर्गत पश्चातवर्ती देखरेख गृह में 18 से 20 वर्ष की आयु के
बीच समस्त बालकों/युवकों को सशक्त बनाने और संस्थागत जीवन से सामुदायिक जीवन मेंउनके
सहज परिवर्तन को सुकर बनाने के लिए शिक्षा और व्यवस्था की जाएगी। इसमें बालकों को
रोजगार का प्रशिक्षण , ऋण सुविधा, शिक्षा, प्रदान की जायेगी। ताकि वह अपने पैरो पर खडे होकर
रोजगार कर अपना जीवन यापन कर सके।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक जिले में पश्चातवर्ती देखरेख के रूप में एक विशेष गृह बालक
गृह की स्थापना नहीं की गई है। जिसके कारण सम्प्रेषण गृह से आने के बाद अथवा कार्यवाही
समाप्त होने के बाद बालकों को पुनः वहीं विधि के साथ संघर्षरत, किशोर के रूप मे पुराना जीवन
गरीबी, भुखमरी, बेकारी के बीच में बिताना पड़ता है। जिसके कारण वह अपचारी बने थे।
अधिनियम की धारा-43 के अंतर्गतराज्य सरकार व्यक्तिगत प्रायोजन, सामूहिक
प्रायोजन या सामुदायिक प्रायोजन को व्यक्तिगत रूप से ऐसे प्रायोजन की विभिन्न स्कीम का
अनुपालन करने के प्रयोनार्थ नियम बना सकेगा। प्रायोजन कार्यक्रम जीवन की उनकी योग्यता का
सुधार करने की दृष्टिकोण से बालकों की चिकित्सीय, पोषण संबंधी और शैक्षणिक आवश्यकता को
पूरा करने के लिए बालगृहों को ओर विशेष घरों को, कुटुम्बों की पूरक आश्रयप्रदान कर सकेगा।
अधिनियम की धारा-45 के अंतर्गत राज्य सरकार बालक के पुनरूद्धार और सामाजिक
एकीकरण और सुगम बनाने हेतु विभिन्न सरकारी, निगम और अन्य अभिकरणों के बीच प्रभावकारी
जोड़ को सुनिश्चित करने के लिए नियम बना सकेगी।
अधिनियम की धारा-61 के अंतर्गत राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरण किशोर या
बालक के कल्याण और पुनरूद्धार के लिए ऐसे नाम के अधीन एक निधि का सृजन करेगी
। जिसमें ऐसे स्वेच्छिक दानो, अशंदानो, या अभिदानों को निधि में जमा किया जायेगा जो किसी
व्यक्ति के कल्याण और पुनरूद्धार के लिए ठीक समझे। सृजित निधि ऐसी रीति से तथा ऐसे
प्रयोजनार्थ खर्च की जायेगी। जो राज्य सलाहकार बोर्ड द्वारा विहित हो।
नियम 90 में अधिनियम के उपबंधों के अधीन बालकों के कल्याण तथा पुनर्वास के
लिए निर्मित किशोर न्याय निधि का उपयोग बालकों के अधिकारों और बालकों के कल्याण का
पुनर्वास में किया जाएगा। वह संस्था डाटा बेस तैयार करेगी। संस्था, बाल कल्याण समिति, तथा
किशोर न्याय बोर्ड के संधारित समस्त प्रकरणों का कम्प्यूटरों के माध्यम से डाटा बेस तैयार करेगा।
लापता बालकों की जानकारी फोटो सहित प्रकाशित की जाएगी।
अधिनियम की धारा-62 के अंतर्गत केन्द्र या राज्य सरकार राज्य सलाहकार बोर्ड
का गठन करेगी। जिसका कार्य गृहों के स्थापना और अनुरक्षण, स्त्रोतों के चलन, विधि के साथ संघर्ष में किशोर तथा देख-रेख और संरक्षण की आवश्यकता में बालक की शिक्षा प्रशिक्षण और
पुनरूद्धार के लिए प्रसुविधाओं तथा संबधित विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी अभिकरणों के बीच
समन्वय के लिए उपबन्ध से संबंधित मामलों पर उस सरकार को सलाह देना है।
इसी प्रकार जिला सलाहकार बोर्ड का गठन राज्य सरकार के द्वारा किया
जाएगा जो अधिनियम के प्रभावी रूप से क्रियान्वन हेतु कार्यक्रमों तथा गतिविधियों के निरीक्षण के
कर्तव्य का भी पालन करेगा
अधिनियम की धारा- 63 के अंतर्गत विशेष किशोर पुलिस बोर्ड की स्थापना की
जायेगी। जिसका कार्य उन पुलिस अधिकारियों को समर्थ बनाने के लिए जिन्होंने बारम्बार या
अपवर्जित रूप से किशोर के साथ संव्यवहार किया जिन्हें किशोर या बालकों को हेण्डिल करने या
किशोर अपराध को रोकने में प्रारंभिक तोर पर नियोजित किया जाता है। इस अधिनियम के अधीन
अपने कृत्यों का और प्रभावशाली ढंग से सम्पादन करने के लिए उन्हें विशेष तौर पर अनुदेशित और
प्रशिक्षित किया जायेगा।
मध्य प्रदेश किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) नियम, 2003 के अध्याय 5
के नियम 41 में राज्य सरकार प्रत्येक जिले में कम से कम एक विशेष किशोर पुलिस इकाई
की स्थापना करेगी। जो अधिनियम के आधीन बालकों के लिए व्यापक, प्रथम सम्पर्क देखरेख केन्द्र
के रूप में कार्य करेंगी। जिसका उद्देश्य जोखिम मे रह रहे बालकों की पहचानकर उनकी
सहायता करना है। 1098 के माध्यम से चाइल्ड हेल्प लाइन और आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध
कराना है। एक चलित विशेष किशोर पुलिस इकाई की व्यवस्था की जाएगी। ताकि बालक को
बुलाया जा सके। विशेष किशोर पुलिस इकाई थाने की सीमा में नहीं होगी किसी लोक शिक्षण
संस्था या स्वैच्छिक सामाजिक संगठन के परिसर में इसकी स्थापना की जायेगी।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक जिले में विशेष किशोर पुलिस इकाई की स्थापना की गई है।
परन्तु पुलिस का रवैया बालकों के प्रति बदला नहीं है। उन्हें वयस्क एंव आदतन अपराधियों की
तरह पुलि स द्वारा व्यवहार किया जाता है। जिसके कारण बालक पुलिस संरक्षण में भी अपने आप
में सुरक्षित महसूस न हीं करते हैं। प्रायः देखा गया है कि पुलिस वाले बालकों को 18 वर्ष से अधिक
की उम्र का बताकर पुलिस अभिरक्षा में ले लेते हैं। न्यायालय द्वारा भी प्रथम दृष्टि में उनकी उम्र
की जांच न करके न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया जाता है। यहां तक की उनके विरूद्ध अभियोग
पत्र भी प्रस्तुत कर दिया जाता है। यदि किशोर के द्वारा विरोध किया जाता है तो उसे जांच की
लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
पुलिस अथवा न्यायालय दोनों अधिनियम की धारा-7 के अंतर्गत आयु खुद जांच न
करके एक दूसरे पर टालते है जिसके कारण बालकों को एक लंबी अवधि तक व्यस्क अपराधियों की
संगत में जेल में रहना पड़ता है। जिसका उन पर विपरीत असर पडता है।
यदि अधिनियम में यह संशोधन किया जाये कि किसी किशोर को जानबूझक र
वयस्क अपराधी बताकर अभियुक्त जानबूझकर बनाया जाता है। उसे अभिरक्षा में लिया जाता है।
बिना जांच के यदि चालान पेश किया जाता है तो संबंधित पुलिस अधिकारी को दंडित किया जायेगा
। यदि यह सशोधन किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण अधिनियम 2000 में किया
जाता है तो इस संबध में सुधार हो सकता है।
मध्य प्रदेश किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) नियम, 2003 के अध्याय
10 में किशोर न्याय प्रणाली की मानिटरिंग की व्यवस्था की गई है। जिसमें समाज
कल्याण विभाग का आयुक्त /संचालक या इनके द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी ऐसी संस्थाओं
का निरीक्षण करेगा कार्यक्रम विकास मानिटरिंग एंव मूल्यांकन सेल, जिला सलाहकार, समिति
स्थानीय शासन प्रधिकारी, किशोर न्याय प्रशासन का संस्थागत तथा असंस्थागत कार्यक्रमों का
निरीक्षण, मानिटरिंग एंव मूल्यांकन करेगे।
निरीक्षण दोष निकालने की कार्यप्रणाली नहीं होनी चाहिए वस्तुतः इसे रचनात्मक होना
चाहिए, निरीक्षण अधिकारी, प्रतिवेदन आयुक्त/संचालक, समाज कल्याण विभाग को आवश्यक
फालोअप हेतु देगा। दल या तो पूर्व सूचना द्वार या अचानक गृह का निरीक्षण कर सकेगा। निरीक्षण
समाप्त होने के बाद रिपोर्ट दी जायेगी। निरीक्षण के निष्कर्षों तथा बालकों के सुझावों पर विचार
किया जाएगा तथा फालोअप कार्यवाही की जायेगी।
मानिटरिंग तथा मूल्यांकन के साथ ही साथ अधिनियम के अंतर्गत स्थापित स्थापित संस्थाओ
में खुलापन तथ पारदर्शिता रखी जाएगी तथा सामाजिक लेखा किया जाएगा। राज्य सलाहकार बोर्ड
गृहो के स्थापन और अनुरक्षण, स्त्रोतो के चलन, विधि के साथ संघर्ष, में किशोर तथा देख रेख और
संरक्षण की आवश्यकता में बालक की शिक्षा, प्रशिक्षण, और पुनरूद्धार के लिए प्रसुविधाओं तथा
सम्बंधित विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी अभिकरणों के बीच समन्वय रखेगा। वह किशोर न्याय
पद्धति के विस्तार एंव उनके शिक्षा व्यवसाय, पुनर्वास, के लिए राज्य सरकार को सलाह देगी।
अधिनियम के अंतर्गत स्थापित इन सभी सम्प्रेषण गृह विशेष घर, बाल गृह , आश्रय
गृह,पश्चात्वर्ती देख रेख संगठन के रूप में विशेष बालक गृह संस्थाओं में नाजुक बालकों को गम्भीर
बीमारी से ग्रस्त बालकों को संरक्षण प्रदान किया जायेगा और लड़के लड़कियों की उम्र अनुसार
सहायता प्रदान की जायेगी। रजिस्टर रखे जाएगे। केस फाईल बनाई जायेगी। पौष्टिक आहार,
वस्त्र, उपलब्ध कराये जायेंगे।शिक्षा, व्यवसायिक प्रशिक्षण, चिकित्सा सुविधा, आमोद प्रमोद के साधन,
उपलब्ध कराये जायेंगे। प्रत्येक संस्था में अनुश्रवण एंव मूल्याकंन समिति का गठन किया जाऐगा
जो बालकों के अधिकारो और सुरक्षा, उनकी देखरेख से संबंधित तथ्यो की जानकारी देगी।
बालगृह, किशोर न्यायबोर्ड, बाल कल्याण समिति, बालकों के पुनर्वास के लिए अनाथ,
परित्यकत, उपेक्षित, बालकों के पुनर्वास तथा सामाजिक रूप से पुनर्मिलन के लिए दत्तकग्रहण में
योगदान प्रदान करेगी।
मध्य प्रदेश के किसी भी जिले में अधिनियम के नियमानुसार सम्प्रेषण गृह विशेष घर,
बाल गृह , आश्रय गृह,पश्चात्वर्ती देख रेख संगठन के रूप में विशेष बालक गृह की स्थापना नहीं
की गई है। जिन जिलों में बाल कल्याण समिति की स्थापना हुई है। वह अधिनियम के अनुसार
साधनों के अभाव में अपना कार्य में असमर्थ है।
मध्य प्रदेश के किसी भी जिले में अधिनियम के अनुसार उपरोक्त सुविधाएं उपलब्ध
नहीं है। केवल नाम मात्र के रिमांण्ड होम बनाये गये है। जिनमें अधिनियम के अनुसार मनोरंजन,
एवं खेल कूद की व्यवस्था नहीं है। बीमार बालकों के उपचार हेतु डॉक्टर की व्यवस्था नहीं है।
छुआछतू की बीमारी से ग्रस्त बालकों को अलग रखने की व्यवस्था नहीं है। दूरभाष प्रकाशित नहीं
किये गये हैं। पर्यवेक्षण अधिकारी, सुरक्षा अधिकारी, की नियुक्ति नहीं की गई है। उम्र के अनुसार
बालक बालिकाओं को अलग रखने की व्यवस्था नहीं की गई है।केवल नाम के लिए छोटे आकार
के बिना सुविधाओं वाले रिमांड होम बनाये गये है जिनमें संख्या से अधिक बच्चे रखे जाते हैं।
मध्य प्रदेश में राज्य सरकार के द्वारा किशोर या बालक के कल्याण और पुनर्वास बाल
निधि की स्थापना की गई है।इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है। राज्य सरकार सलाहकार बोर्ड
जिला सलाहकार बोर्ड सामाजिक संस्थाओं के द्वारा अधिनियम के अनुसार कोई कार्य बालकों के
हित में नहीं किया जा रहा है।
गावं में अधिनियम से संबंधित कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। गांव शहर पर आश्रित है
और शहर मे उपरोक्त सुविधाओं का अभाव है। यदि मूल्याकंन किया जाये तो अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार 25 प्रतिशत काम हुआ है। लगभग 50 प्रतिशत सुविधांए बालकों को उपलब्ध है।
विशेष किशोर पुलिस बोर्ड का रवैया पुलिसिया है। हर जिले में विशेष किशोर पुलिस
इकाई, की व्यवस्था नहीं की गई है।जिला सलाहकार बोर्ड के द्वारा किशोर न्याय प्रणाली की
मानिटरिंग अधिनियम के प्रावधान के अनुसार नहीं की जा रही है। सामाजिक संगठनों के द्वारा भी
बाल कल्याण निधि में कोई बहूमूल्य योगदान नहीं दिया जा रहा है।
जिले में पदस्थ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक 6
माह में नियमानुसार किशोर न्याय बोर्ड का निरीक्षण नहीं करते है जिसके कारण लंबित प्रकरण की
संख्या बढ़ रही है और बालकों के साथ भी न्याय नहीं हो पा रहा है। गम्भीर प्रकरणों में पदस्थ
पीठासीन अधिकारी डर के कारण अधिनियमों के प्रावधानों के अनुसार बालकों को लाभ पहुंचाने में
हिचकते हैं। बोर्ड में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता अपना कर्तव्य निभाने में योग्यता, प्रशिक्षण,
जानकारी के अभाव में असमर्थ है।
उमेश कुमार गुप्ता
प्र थम अपर सत्र न्यायाधीश
रायसेन म0प्र0।
http://madhyastta.blogspot.in/
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