"मनुष्य सारे असम्भव कार्य कर सकता है लेकिन एक वफादार स्त्री नहीं ढूंढ सकता । " वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी की सामाजिक आर्थ...
"मनुष्य सारे असम्भव कार्य कर सकता है लेकिन एक वफादार स्त्री नहीं ढूंढ सकता।"
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी की सामाजिक आर्थिक स्थिति
श्रीमती रेनूका चौहान
व्याख्याता (हिन्दी विभाग)
नोएड़ा कन्या इन्टर कॉलिज
सारांश
”मातृदेवो भव“ के अनुपम उद्घोष से अनुप्राणित हमारी भारतीय संस्कृति में स्त्रियों का सदा से ही अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान रहा है और यत्र नार्यस्तु रमन्ते तत्र देवताः कहकर मनु ने उसके गौरव को दोगुना कर दिया है। नारी से ही घर का निर्माण होता है इसलिए उसे गृहणी कहा जाता है। नारी के बिना घर की कल्पना नहीं की जा सकती - ”न गृहमित्याहुः गृहिणी गृहम्युच्यते।” प्रसिद्ध लेखक जॉन डन की Go and catch a falling star कविता से मनुष्य सारे अंसम्भव कार्य कर सकता है लेकिन एक वफादार स्त्री नहीं ढूंढ सकता।
२०वीं शताब्दी में विकास के दृष्टिकोण को एक क्रांतिकारी सदी बताया जाता है। परन्तु जहाँ तक सामाजिक ढाँचे का प्रश्न है इसमें कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं आता है। यदि हम महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का प्रश्न लें तो आज भी विश्व के अधिकांश देशों में स्त्री-पुरूष के मध्य भेद भाव बढता जा रहा है। महिलाओं की सामाजिक शारीरिक श्रेष्ठता को भी इसका कारण मान लिया जाता है। फायर स्टोन (१९७३) जैसे विद्वानों ने अपने आनुभाविक अनुसंधान के माध्यम से यह दर्शाने का प्रयास किया है कि महिलाओं की निम्न स्थिति का कारण
उनके पालन-पोषण हेतु आर्थिक दृष्टिकोण से पुरूषों पर निर्भरता है।
अध्ययन का उद्देश्य
v महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करना
v वर्तमान समय में महिलाओं की निम्न स्थिति के लिए उत्तरदायी कारकों की पृष्ठभूमि तैयार करना
v वर्तमान समय में महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक शैक्षिक स्थिति का अवलोकन कर तथ्य प्रस्तुत करना
हमारे देश में नारी की क्षमताएँ और उसकी प्रतिभा उस समय अधिक उजागर हुई जब राजाराम मोहनराय और ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जैसे नेताओं ने अपने सुधार आन्दोलन में नारी शिक्षा व उत्थान को प्रमुख स्थान दिया। इनकी प्रेरणा से 1870.80 के बीच प्रथम महिला डॉक्टरी पढने विदेश गई। 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन के साथ नारी को कहीं ज्यादा अधिकार, शिक्षा, रोजगार एवं राजनीति के क्षेत्रों में अनेक अवसर प्रदान किये गये हैं। किन्तु सामाजिक चिन्तन की रूढ़िवादिता से अभी भी अनेक हाथ बंधे हुये हैं।
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में राजस्थान का प्रथम स्थान हैं वर्तमान में जैसे-जैसे सरकार का चयन हुआ है उसी प्रकार ग्रामीण व नगरीय क्षेत्र में भी विकास क्रान्ति आई है। राजस्थान राज्य हमारे देश में महिलाओं के विकास में सबसे ज्यादा पिछडा हुआ माना जाता रहा है। बाल-विवाह, रूढिवादिता, अन्धविश्वास, अशिक्षा, आदि ऐसी कुरीतियाँ हैं जो अभी भी समाज की विकास की कुण्डली में बैठी हुई हैं।
जितना अधिक भारत का पुराना इतिहास है, उतना ही पुराना है महिला उत्पीड़न का इतिहास। आज आंकडे बताते हैं कि दुनिया भर में औरतों के खिलाफ उत्पीड़न बढ रहा है लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। वास्तव में औरतें सदियों से लगातार उत्पीड़न और अत्याचार का शिकार होती रही हैं। चाहे दुनिया का कोई सा भी महाद्वीप या राष्ट्र हो, हर जगह महिलाओं को पुरूष मानसिकता द्वारा उत्पीड़न झेलना पड़ता है।
महिलाएं स्वभाव से अपेक्षाकृत कोमल होती हैं और वे ज्यादा प्रतिरोध नहीं करती हैं और शायद उन्हें विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न और अत्याचार को सहन करना पड़ता है। यह उत्पीड़न कई प्रकार का होता है। महिलाओं को यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है तो कई बार बलात्कार के रूप में वे मानसिक उत्पीड़न का शिकार हो जाती हैं। यौन उत्पीड़न अब शहरों में ही नहीं गावों और छोटे कस्बों में भी देखने को मिल रहा है। यही हाल बलात्कार का है बलात्कार कितना घृणित अपराध है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि बलात्कार के एक मामले की सुनवाई करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक बार कहा था कि हत्यारा तो केवल किसी को जान से मारता है जबकि बलात्कारी तो पीड़िता की आत्मा को मार देता है। उत्पीड़न का शिकार महिलाओं को घर से बाहर तो होना ही पड़ता है साथ ही घर के भीतर भी अपनों के हाथों भी उन्हें उत्पीडित होना पड़ता है। वैवाहिक हिंसा के रूप में महिलाएं अपने घरों में पिटती हैं, यह एक शर्मनाक तथ्य है।
समाज को एक नई दिशा देने का दावा करने वाला मीडिया भी महिला उत्पीड़न के किसी मौके को छोड़ता नहीं है। चाहे टी0 वी0 हो या सिनेमा, पत्र पत्रिकाएं हों या अन्य समाचार माध्यम, हर जगह दर्शकों को नग्न महिला शरीर की अश्लीलता परोसी जाती है। इस अश्लीलता के कारण किसी भी महिला का सिर शर्म से झुक जाता है और वो उत्पीड़ित अनुभव करती है। विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है लेकिन आजकल दहेज के नाम पर नवविवाहितों को विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न और अत्याचार झेलने पड़ते हैं।
अगर हम अपने देष की बात करें तो लगभग हर राज्य में महिला उत्पीड़न की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रहीं हैं। कोई भी क्षेत्र, राज्य, वर्ग, समुदाय, धर्म हो, हर जगह महिलाओं को भीषण उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।
दुर्भाग्य की बात तो यह है की महिलाओं के विरूद्व उत्पीड़न, माँ की कोख से पुरूष हो जाता है। जन्म लेने से पहले ही बालिकाएं, भ्रूण-हत्या के वंश से मिट्टी में मिल जाती हैं। जन्म लेने के बाद उन्हें लिंगीय भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। जब वे स्कूल जाती हैं तो उन्हें सहपाठियों और शिक्षकों द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। कई बार स्कूल परिसर में ही बलात्कार का भी शिकार हो जाती हैं। किशोर होने पर भी उनकी मुसीबतें कम नहीं होती हैं।
युवतियों को अगर स्कूल-कॉलेजों में यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है तो कार्यस्थल पर भी ऐसा होता है। महिला यौन उत्पीड़न के संदर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय सख्त निर्देश दे चुका है लेकिन कार्यस्थल पर उत्पीड़न रूकने का नाम नहीं ले रहा है। महिलाओं के खिलाफ होले वाले उत्पीड़न से संबंधित आंकड़े, भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा ‘क्राइम इन इंड़िया‘ में संकलित किए जाते हैं। आंकडे बताते हैं कि महिलाओं के उत्पीड़न से संबंधित यौन उत्पीड़न, छेडछाड़, बलात्कार, दहेज प्रताड़ना, वैवाहिक तथा पारिवारिक हिंसा, वेश्यावृत्ति आदि के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
राष्ट्रीय सामाजिक प्रतिरक्षा संस्थान, राष्ट्रीय महिला आयोग, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो आदि के आंकडे महिलाओं के उत्पीड़न की कहानी ही कहते आ रहे हैं। भारत के हर राज्य में महिला उत्पीड़न के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। चाहे देश के सबसे निर्धन राज्य उडी़सा और बिहार हों या फिर आबादी के मामले देश का सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश हो या देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की, हर ओर महिला उत्पीड़न अपने चरम पर है।
आर्थिक विकास के नये परिवेश में ग्रामीण महिलायें -
रोजगार चाहने वाली महिलायें मुख्यतः गरीब कृषक परिवारों की होती है, इन ग्रामीण महिलाओं के लिए वाँछित कुशलताओं और सुविधाओं की दृष्टि से इनकी आवश्यकताओं की पृथक-पृथक समीक्षा किया जाना आवश्यक है।
1. घरेलू भूमिका - लालन-पालन, भोजन पकाना, पानी लाना, घर की सफाई करना और रखरखाव अधिकतर महिलाओं द्वारा ही किया जाता है।
2. ग्रामीण एवं कुटीर उद्योगो में भूमिका - भारत में ग्रामीण और कुटीर उद्योगों का संचालन पारिवारिक इकाई के स्तर पर होता आया है। ऐसी स्थिति में इनके संचालन में ग्रामीण महिलाओं का व्यापक योगदान रहा है।
3. पंचायती राज में महिला नेतृत्व की स्थिति - अप्रैल 1993 में 73वाँ एवं 74वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित करके महिलाओं को पंचायतों एवं नगर निकायों में एक तिहाई स्थान आरक्षित करके मूल स्तर पर राजनैतिक सत्ता में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
4. कृषि के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान - ‘‘खाद्य एवं कृषि संगठन में हुए अध्ययन के अनुसार यदि महिलाओं को पुरूषों के बराबर परिस्थितियाँ, कच्चा माल और सेवाओं जैसे संसाधन मिलते तो समस्त विकासशील देशों में कृषि उत्पाद 2.5 से 4 फीसदी तक बढ़ सकता है। कृषि के क्षेत्र में महिलाओं के बहुत से कार्य होते है जैसे - खेत तैयार करना, बीज बोना, खाद दुलाई, निराई, गुणाई, फसल कटाई, चारा पत्ती संग्रह, पशुचरण, खेतों की सिंचाई इत्यादि।
5. भारतीय राजनीति में महिलाओं का योगदान - रामायण, महाभारत काल में साहित्य में कई स्त्री राज्यों का वर्णन है। मोहम्मद गौरी के आक्रमण के समय पाटन पर राजमाता नायकी देवी का शासन था। अंग्रेजों से लोहा लेने वाली किस्तूर की रानी चेनम्मा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चाँद बीवी, अहिल्या बाई होल्कर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। ब्रह्म समाज के संस्थापक राजाराम मोहनराय, प्रार्थना समाज क संस्थापक गोविन्द रानाडे, आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द ने सामाजिक पुनर्निमाण में नारी उत्थान के कार्यों को प्रमुख स्थान दिया।
6. कामकाजी महिलायें दोहरी भूमिका - पढ़ी-लिखी कामकाजी महिलाओं को आज दोहरी भूमिका निभानी पड़ रही है, एक परिवार की तथा दूसरी नौकरी की। घर और नौकरी दोनों की दोहरी भागो व तनावों के कारण उन्हें समझौते के संकट का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ नारी होने के नाते उन्हें संस्कृति द्वारा निरूपित भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है तो दूसरी तरफ नौकरी से संबद्ध दायित्वों का व कर्तव्यों का भी सामना करना पड़ता है।
उपसंहार -
जीवन के हर क्षेत्र में महिलायें अपनी योग्यता और क्षमता का परिचय दे रही है। कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही है। अगर पुरूष महिलाओं के साथ प्रत्येक मार्ग पर कंधे से कंधा मिलाकर चले और उनको अपना पूरा सहयोग दें तो महिलाओं के विकास की धारा अनवरत चलती रहेगी तभी एक स्वस्थ समाज और सुखी परिवार का सपना साकार हो सकेगा। समाज अपनी मानसिकता को बदले तभी महिलाओं के कार्यक्षेत्र में आने वाली सभी बाधाएँ दूर हो सकेगी।
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