सिनेमा का जादूगर राजेश खन्ना राम नरेश‘उज्ज्वल' उप सम्पादक ‘पैदावार' मासिक ई-मेल- ujjwal...
सिनेमा का जादूगर राजेश खन्ना
राम नरेश‘उज्ज्वल'
उप सम्पादक ‘पैदावार' मासिक
ई-मेल-ujjwal226009@gmail.com
‘टाइम पूरा हुआ...पैक-अप' इन्हीं शब्दों के साथ एक सूरज डूब गया। पहला सुपर स्टार पंचतत्व में विलीन हो गया।
‘वक्त की इस धुंध में सारे सिकंदर खो गये,
ये जमीं बाकी रहा , ये आसमां बाकी रहा।'
राजगोपाल सिंह का यह शेर इस घटना के लिए समीचीन है। राजेश खन्ना 18 जुलाई 2012 को वक्त की धुंध में जाने कहाँ खो गए? अब सिर्फ उनकी यादें ही हमारे बीच रह गयी हैं। उनके आखिरी लम्हों में वर्षों से बिछड़ा परिवार भी साथ आ गया-
‘खुदा न खास्ता कैसे ये वारदात हो गयी।
हो के मुर्दा मेरी जिन्दादिली चुपचाप सो गयी॥
दो कदम चलने को भी कोई न था राजी,
मैयत मेरी शहजादे की बारात हो गयी।'-(उज्ज्वल)
‘आशीर्वाद' में अकेले रहने वाले मुसाफिर के साथ आज सारे हमदर्द मौजूद ह,ैं किंतु पहले सबने उन्हें दरकिनार कर दिया था। आखिर क्यों ? क्या गुनाह किया था उन्होंने ? बालीवुड के ये सम्मानितजन उस समय कहाँ थे आखिर? कुछ वर्षों से उनकी मित्र अनीता अडवाणी का साथ उन्हें मयस्सर था, लेकिन काका यानि राजेश का उनसे मोहभंग बीते दिनों नजर आया। वैसे राजेश खन्ना ने आर्शीवाद को म्यूजियम मेें तब्दील करने की इच्छा जाहिर की थी। अनीता भी यही चाहती हैं, कि राजेश की ये इच्छा पूर्ण हो। काका को जनता ने सुपरस्टार बनाया था, इसलिए वे उन्हें ही ये बँगला समर्पित करना चाहते थे।
राजेश खन्ना का जन्म 29 दिसम्बर 1942 को हुआ था। इनका असली नाम जतिन अरोरा था, किन्तु जब लीलावती और चुन्नीलाल खन्ना ने इन्हें गोद ले लिया तो ये जतिन अरोरा से जतिन खन्ना कहलाने लगे, लेकिन उनके चाचा उन्हें राजेश खन्ना के नाम से पुकारते थे, इसलिए अभिनय के क्षेत्र में राजेश खन्ना ने इसी नाम को अपनाया। इनके माता-पिता भारत-पाकिस्तान के विभाजन पर अमृतसर चले आए थे। हाई स्कूल की परीक्षा इन्होंने ‘सेण्ट सेबेस्टियन' से पास की थी। यह विद्यालय मुम्बई के चिरगाँव में स्थित है। इनकी मित्रता रवि कुमार से थी। यही रवि कुमार आगे चलकर फिल्म अभिनेता जितेन्द्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। मुम्बई के के0के0सी0 कालेज में भी ये लोग साथ-साथ पढ़ते थे। जितेंद्र के कहते हैं, कि काका कालेज में जब शरारत करते थे, तो सजा मुझे मिलती थी,क्योकि वे शर्मीले थे। पहली फिल्म में आडिशन देने के लिए कैमरे के सामने उन्हें बोलना राजेश खन्ना ने ही सिखाया था। स्कूल की पढ़ाई के समय ही काका की रूचि थियेटर में थी, इसलिए इन्होंने नाटक खेले और नाटक प्रतियोगिता में कई पुरस्कार भी जीते। 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेयर ने एक टैलेंट हंंट का आयोेजन किया था। इसमें दस हजार लड़कों ने भाग लिया और मात्र आठ लड़के ही चुने गये थे। राजेश भी उन्हीं में थे। लेकिन अंत में टैलेंट हंट के विजेता राजेश खन्ना ही बने। इसके बाद उनका संघर्ष खत्म हो गया।
‘आखिरी खत' उनकी पहली फिल्म थी, जो 1966 में आई थी। 1969 की ‘आराधना' उनकी पहली सुपरहिट फिल्म थी। उन्होंने फिल्म जगत को लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दीं, जिससे पहले सुपरस्टार का खिताब उनके नाम हो गया। जब वे सुपरस्टार थे, तब एक कहावत बहुत मशहूर थी-‘ऊपर आका, नीचे काका।' पंजाबी में ‘काका' छोटे बच्चे को कहते हैं। राजेश खन्ना का मन बचपन से ही थियेटर एवं अभिनय में लग गया था, इसके अलावा बहुत ही कम उम्र में ही वे तरक्की की बुलंदी के शिखर पर पहुँच गये थे, इसलिए इन्हें ‘काका' के नाम से सम्बोधित किया जाता था।
राजेश खन्ना का भोला-भाला रूप सबके मन को हर लेता था। वे भाव से भरे थे, इसलिए वे सबको भाव-विभोर कर देते। वे अपने किरदार को निभाने में पूरी तरह से डूब जाते थे। उनकी फिल्म देखते समय दर्शक भी अपनी सुध-बुध खो बैठते थे। काका की वजह से ही उस समय कुर्ते-पैजामे एवं धोती कुर्ते का प्रचलन अधिक चल पडा था। नवयुवकों ने भी धोती - कुर्ता पहनना शुरू कर दिया था। जब वे कुर्ता-धोती पहनकर टोपी लगाते तो एकदम नेपाली लगते।
राजेश खन्ना को देखने के लिए काफी भीड़ उमड़ा करती थी। कालेज की लड़कियाँ बंक मार कर उन्हें देखने आती थीं। वे बातें करना चाहती थीं, किंतु राजेश खन्ना बड़ी अदा से हाथ हिला कर आगे निकल जाते थे। राजेश खन्ना ही हर लड़की के सपनों के राज कुमार थे। लड़कियाँ उनके प्यार में खून से खत लिखती थीं। तमाम लड़कियों ने उनकी फोटो से शादी रचाई। ज्यादातर लड़कियाँ उनकी फोटो को तकिये के नीचे रख कर सोती थीं। लोगों ने अपने हाथ व जाँघ उनका नाम गुदवाया।किंतु राजेश जी का दिल डिम्पल पर आ गया था। डिंपल से उनकी पहली मुलाकात हवाई जहाज में तब हुई थी , जब वे अहमदाबाद फिल्म समारोह के लिए जा रही थीं। राजेश खन्ना जब जहाज पर चढ़े, तो उन्हें डिंपल के बगल में एक खाली सीट दिखाई दी। राजेश खन्ना ने पूछा-‘‘क्या मैं इस पर बैठ सकता हूँ?''
‘‘स्योर'' डिंपल ने कहा। राजेश जी उनके बगल में बैठ गये और वे फूली नहीं समाईं क्योंकि हर हिरोइन राजेश खन्ना के बगल में बैठने के लिए लालायित थीं, पर ये मौका डिंपल को मिला। उस समय डिंपल ‘बॉबी' फिल्म में काम कर रही थीं। कुछ समय बाद राजेश खन्ना ने डिंपल से शादी करने का ऐलान कर दिया। इस ऐलान के साथ ही राजेंद्र खन्ना को चाहने वाली हजारों लड़कियों दिल टूट गये। और डिंपल को तो जैसे मुँहमागी मुराद मिल गई। 27 मार्च 1973 को राजेश खन्ना ने सोलह वर्षीय डिंपल से विवाह कर लिया। विवाह के बाद डिंपल आशीर्वाद बँगले की महारानी बन गयीं। यह बँगला राजेश खन्ना ने अभिनेता राजेन्द्र कुमार से खरीदा था। उस समय बँगले में बीस से ज्यादा नौकर-चाकर थे। डिंपल के एक इशारे पर वे सब दौड़ पड़ते थे। शादी के छः माह बाद ही ‘बॉबी' फिल्म परदे पर आ गई और कामयाब रही। 1973 में ही राजेश खन्ना की फिल्म ‘दाग' भी रिलीज हुई। इस फिल्म की माँग इतनी ज्यादा थी, कि फिल्म के तीन गुने प्रिंट जारी करने पड़े।
डिंपल राजेश खन्ना से विवाह करके बहुत खुश थीं। हर पार्टी में ये लोग एक-दूसरे के हाथ में हाथ डाले हँसते-मुसकुराते हुए ही दिखाई पड़ते थे। इन दोनों की जोड़ी अनुपम थी। इस जोड़ी को जाने किसकी नजर लग गई। 1984 में दोनों अलग हो गए। दरअसल ‘बॉबी' की लोकप्रियता के बाद डिंपल अभिनय के क्षेत्र में ही और आगे जाना चाहती थीं। शायद राजेश ऐसा नहीं चाहते थे, इसलिए ये दरार पैदा हुई।
राजेश खन्ना और डिंपल की दो बेटियाँ टि्ंवकल और रिंकी हुईं। टि्ंवकल का विवाह अभिनेेता अक्षय कुमार से हुआ। रिंकी का विवाह लंदन के एक बैंकर समीर शरण से हुआ।
मुमताज एवं शर्मिला टैगोर के साथ राजेश खन्ना की जोड़ी बहुत हिट हुई। मुमताज और राजेश ने आठ फिल्मों में साथ-साथ काम किया। ये फिल्में सुपरहिट रहीं। इन दोनों कलाकारों के बँगले पास-पास थे। मुमताज का राजेश के साथ अच्छा तालमेल था। वे राजेश खन्ना से विवाह करना चाहती थीं। लेकिन डिंपल से विवाह के बाद उन्होंने भी अपना रास्ता बदल दिया। मुमताज ने भी 1974 में मशहूर अरबपति मयूर माधवानी से शादी कर ली। शादी के बाद मुमताज ने ‘आपकी कसम', ‘रोटी', और ‘प्रेम कहानी' नामक राजेश खन्ना के साथ अधूरी फिल्मों को पूरा किया और हमेशा- हमेशा के लिए फिल्मों से संन्यास लेकर मुम्बई से अलविदा कहकर विदेश चली गईं। राजेश खन्ना को इस घटना से काफी चोट लगी। 1960-70 के दशक में एक फैशन डिजाइनर एवं अभिनेत्री अंजू महेन्द्रू के साथ भी इनका नाम जोड़ा गया।
राजेश खन्ना की सफलता में आरण्डीण्वर्मन का भी पूर्ण सहयोग रहा। उन्होंने राजेश की 40 फिल्मों में संगीत दिया। गायक किशोर ने भी 91 फिल्मों में अपनी आवाज देकर राजेश को सफल बनाने में योगदान दिया।
राजेश खन्ना को फिल्मों में सर्वश्रेठ अभिनय के लिए तीन बार ‘फिल्म फेयर' पुरस्कार मिला। ‘बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोशिएशन' द्वारा हिन्दी फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी अधिकतम चार बार राजेश खन्ना के ही नाम रहा। 2005 में उन्हें फिल्म फेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया।
राजेश खन्ना की ‘आराधना' फिल्म का ये गाना ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू'...उनके जीवन का सुपरहिट गीत रहा। राजेश खन्ना फिल्म निर्माताओं से काम माँगने अपनी स्पोर्ट कार में जाते थे। थिएटर भी इसी तरह जाते थे। इतनी मँहगी कार उस समय हीरो के पास भी नहीं होती थी।
राजेश खन्ना जब एक बार बीमार पड़े थे, तब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उस समय उनके आस-पास के कमरे फिल्म निर्माताओं ने बुक करा लिए थे, ताकि अपनी फिल्म की कहानी सुना सकें।
1971 में कटी पतंग ,आनन्द, आन मिलो सजना, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी, अंदाज, आदि फिल्मों के द्वारा उन्होंने सफलता के शिखर को छू लिया था। इसके बाद दुश्मन, दो रास्ते, मेरे जीवन-साथी, जोरू का गुलाम, बावर्ची, दाग, अनुराग, हमशक्ल एवं नमक हराम आदि फिल्मों ने भी राजेश खन्ना को कामयाबी की बुलंदी पर पहुँचाया। उन्होंने 163 फिल्मों में काम किया, 128फिल्मों में मेन रोल निभाया। 22 फिल्मों में दोहरी भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त 17 छोटी फिल्मों में काम किया। 1969 से 1975 तक का दौर राजेश खन्ना के नाम रहा। उस समय पैदा होने वाले ज्यादातर बच्चों के नाम राजेश रखे जाते थे।
1980 के बाद राजेश का यह दौर खत्म होने लगा। उन्होंने राजनीति के गलियारे में भी कदम रखा। 1991 में वे नई दिल्ली से काग्रेस की टिकट पर संसद सदस्य चुने गए। उन्हें राजनीति का यह सफर कुछ अधिक रास न आया। इसलिए 1994 में ‘खुदाई' फिल्म से परदे पर वापसी की कोशिश की, कि यह कोशिश बेकार रही। इसके बाद ‘आ अब लौट चले'ं, ‘क्या दिल ने कहा', ‘वफा', ‘जाना', आदि फिल्मों में अभिनय किया ,लेकिन कोई खास सफलता न मिली। जीवन में कभी भी विज्ञापन न करने वाले राजेश खन्ना एक पंखे के विज्ञापन के लिए काम करते हुए टीण् वीण् स्क्रीन पर दिखाई दिए।
दोनों बेटियों के विवाह एवं डिंपल से तलाक हो जाने के बाद राजेश खन्ना अपने आलीशान बँगले में एकदम अकेले रह गये। इसी अकेलेपन की वजह से वे शराब व सिगरेट में डूब गये। धीरे-धीरे उनका शरीर जर्जर होने लगा और विभिन्न रोगों ने उन्हें अपना शिकार बना लिया। जून 2012 को उनके बीमार होने की खबर मालूम हुई। इलाज के लिए उन्हें लीलावती अस्पताल में भर्ती किया गया। 8 जुलाई 2012 को उन्हें ंस्वस्थ बता कर डिस्चार्ज कर दिया गया। किंतु 14 जुलाई 2012 को फिर लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया। डिंपल ने बताया‘उनका ब्लड प्रेसर लो है,वे कमजोरी महसूस कर रहे हैं।'
उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की गयी, किंतु बचाया न जा सका। अपने सुपरस्टार के निधन की खबर सुनकर उनके प्रशंसक उनके बान्द्रा स्थित आशीर्वाद बँगले पर पहुँच गए। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस व सुरक्षा गार्डों की भी मदद लेनी पड़ी। 19 जुलाई को ‘विले पार्ले'के ‘पवन हंस' शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनकी चिता को अग्नि उनके नाती आरव ने दी। वर्षा व ट्रैफिक के बावजूद प्रशंसक पैदल चल कर श्मशान तक पहुँच गये थे।
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जीवन-वृत्त
नाम ः राम नरेश ‘उज्ज्वल‘
पिता का नाम ः श्री राम नरायन
विधा ः कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि
अनुभव ः विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ
रचनाओं का प्रकाशन
प्रकाशित पुस्तकेः 1-‘चोट्टा‘(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा
पुरस्कृत)
2-‘अपाहिज़‘(भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार
से पुरस्कृत)
3-‘घुँघरू बोला‘(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0
द्वारा पुरस्कृत)
4-‘लम्बरदार‘
5-‘ठिगनू की मूँछ‘
6- ‘बिरजू की मुस्कान‘
7-‘बिश्वास के बंधन‘
8- ‘जनसंख्या एवं पर्यावरण‘
सम्प्रति ः ‘पैदावार‘ मासिक में उप सम्पादक के पद पर
कार्यरत
सम्पर्क ः उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई
अड्डा, लखनऊ-226009
मोबाइल ः 09616586495
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