आग छोटू चाय की केतली और प्लास्टिक का गिलास लिए लाज की पहली मंजिल के कमरा नंबर 102 का दरवाज़ा खटखटाता है। दरवाज़ा खटखटाने के समय वो अपने दुसरे...
आग
छोटू चाय की केतली और प्लास्टिक का गिलास लिए लाज की पहली मंजिल के कमरा नंबर 102 का दरवाज़ा खटखटाता है। दरवाज़ा खटखटाने के समय वो अपने दुसरे हाथ की छोटी सी बाल्टी को लाज के कोरिडोर के सीमेंट उखड़ते फर्श पर रख देता है। बाल्टी में कोयले की आग के सात-आठ पीस दहक रहे है।
दो-तीन बार दरवाज़ा खटखटाने पर नवेद आँखे मलते हुए चिटखनी खोलता है। उसका साथी बाबर अब तक बिस्तर में दुबका है। छोटू के सर पर एक हल्की सी चपत लगा कर नवेद कहता है, क्या रे छोटू तू रोज़ सुबह की नींद खराब कर देता है।
कमरे के अंदर आ कर छोटे प्लास्टिक के गिलास में चाय उंड़ेल देता है और बाल्टी से कोयले की आग टूटी फर्श पर पांच-छह ईंट रखकर बनाई गयी दोहरे फर्श पर उंड़ेलते हुए बोलता है- कितना सोते है आप लोग एक मैं हूँ जो सवेरे पांच बजे हाजिरी लगता हूँ गुप्ता की दूकान पर।
गुप्ता की दुकान लाज के नीचे सड़क की दूसरी तरफ है, और वहीं से दुकान के दोनों तरफ एक-एक फालिंग की दूरी पर्ची की सप्लाई होती है। नाश्ते के लिए जलेबी और समोसे भी उपलब्ध रहते है।
हाथ में चाय का गिलास लिए हुए नवेद कोयले की आग के पास बैठते हुए बाबर को आवाज़ देता है, बाबर कुनमुना कर वापस करवट लेकर शांत हो जाता है।
छोटू कमरे से निकलते हुए कहता है बहुत ठंड है बाहर मन करता है की आग के पास ही बैठे रहे।
- आग
- अरे हम तो आग से खेलते है।
- एक युवक कमरे में घुसते हुए बोलता है। दरवाज़े पर उसकी टक्कर से छोटू थोडा लड़खड़ा जाता है
- 'एक तो जाड़े से बचने का जुगाड़ करो उपर से ध्क्केबाज़ी खाओ' बुदबुदाते हुए छोटू चला जाता है।
- आओ इरफ़ान हमें तुम्हारा ही इंतज़ार था। युवक को देख कर नवेद कहता है।
- 'इरफ़ान' नाम सुन कर बाबर बिस्तर से उठ कर बैठ जाता है।
क्या कह रहा है इरफ़ान- बाबर उसके नज़दीक आकर बोल हमें वापस बुलाया है। पर क्यूँ हम क्या इतने दिन से यहाँ उबट रहे थे। बाबर का लहजा थोडा तंज हो गया था।
- उसे शांत करते हुए नवेद बोल- इरफ़ान देख जेहादी हम भी हैं और जिसकी रेकी इतने दिन से हम कर रहे थे उसे करने का हक हमारा ही है।
- देखो भाईजान का हुक्म है तुम दोनों फ़ौरन से पेश्तर सब इतेल्ला मुझे देकर कुछ दिनों के लिए अंडरग्राउंड हो जाओ। तुम लोगों ने जो यहाँ मेलजोल बढ़ा कर रखा है उसकी सब खबर उस्ताद भाईजान के पास है।
- क्या मेल्जिल बढाया है हमने, अरे आम बाशिंदों की तरह रहने की कोशिश की है हमने। बाबर का लहजा अभी भी तंज था।
- हाँ ये तो मै देख ही रहा हूँ, कैसे एक चाय देने वाला लड़का कमरे में खाला के लड़के की तरह आता है, और वो नवेद जो तुम गुप्ता टी-स्टाल पर लौंडिया से जी खोल के गुफ्तगू करते हो जानते भी हो वो लोकल न्यूज़ पेपर से बावस्ता है। अब इरफ़ान ने तंजिया लहजे में बात मुक्कमल की।
नवेद ने कुछ कहने के लिए मुहं खोल ही था की इरफ़ान ने दांये हाथ की ऊँगली दिखाते हुए कहा बस भाईजान का हुक्म तामील करो। वैसे भी तुम सब अभी आग से खेलने के काबिल नहीं ही।
- उसके बाद कमरे में तीनो शांत हो जाते है।
दोपहर से ही तीनों आज मार्केट की चहलकदमी कर रहे है नवेद और बाबर ने अपने लिए कुछ कपड़े ख़रीदे है। इरफ़ान ने यह कह कर लेने से मना कर दिया, वो टारगेट को हिट करने के बाद ही लेगा। नवेद और बाबर ने तो दुकान से खरीदने के बाद ही जैकेट पहन लिया है जैकेट तो इरफ़ान ने भी पहना है लेकिन वो पुराना दीखता है। इरफ़ान बोलता है उस काम के बाद उसे इतनी दौलत मिलने वाली है जिससे वो पूरे गाँव को जैकेट खरीदकर पहना सकता है।
तीनों टहलते हुए गुप्ता टी-स्टाल तक आ जाते है। बाबर तीन चाय बनाने को बोल देता है। छोटू आकर नवेद से कहता है क्यूँ भाई आज पारे वाली मैडम से नहीं मिले?
- पारे वाली मैडम? इरफ़ान सवाल करता है।
- अरे वो नन्दिनी की बात कर रहा है। पिछले एक हफ्ते से नन्दिनी बोलती रहती है न देखो पारा गिर रहा है। बस ये छोटू उसे पारे वाली मैडम कहने लगा है।
- नन्दिनी ! अच्छा वही न्यूज़ पेपर वाली। इरफ़ान सोचपूर्ण मुद्रा में बोलता है।
- तभी छोटू नारा सा लगाता है लो आ गयी पारे वाली मैडम।
- तीनों एक साथ पलट कर देखते है। नन्दिनी स्कूटी दुकान के सामने रोकती है। और उतेर कर नवेद से बात करने लगती है वो बाबर से भी हाय-हैल्लो करती है पर अनजान होने की वजह से इरफ़ान पर कोई तवज्जो नहीं देती है। इरफ़ान ने भी ताकीद करके रखी है, उसका किसी से भी परिचय न कराया जाये।
इरफ़ान- वो चाय पीते हुए नन्दिनी की तरफ बार-बार देख लेता है। अक्सर उसके मन में नवेद के लिए ईर्ष्या पैदा हो जाती है। उसके मन में ख़याल आता है, अगेर उसको दीन के काम के लिए हम तीनों में अव्वल करार दिया गया तो ये लड़की भी उसी को मिलनी चाहिए। आखिर भाईजान ने कहा था, जेहादियों के क़दमों में ज़मीन पर खूबसूरत दोशीजाएँ और जन्नत में हरें बिछी रहती है। फिर नन्दिनी उसकी है। इरफ़ान मन ही मन सोचता है टारगेट हिट होने के बाद वो नंदिनी को प्रपोज करेगा और अगर उसने इनकार किया तो उस सूरत में वो नन्दिनी को अगुआ कर लेगा और जबरन निकाह करेगा। उसका जेहादी मजहब उसे इसकी इजाज़त देता है, फिर वो ऐसा क्यूँ न करे।
- उस वक़्त इरफ़ान के होंठों पर धूर्त हंसीं तैर गयी। और जब नन्दिनी जा रही थी तब भी वो उसे एक्स-रे वाली नज़रों से घूर रहा था।
सच में पारा बहुत तेज़ी से लुढ़क चला था। पर इरफ़ान को तो एक ही जूनून था जेहाद। नवेद और बाबर से मार्केट का पूरा नक्शा समझने के बाद इरफ़ान उन दोनों को वहां से रुखसत होने की हिदायत देता है। साथ ही ताकीद करता है फिर वो मुड कर इस शहर न आयें।
जाते हुए बाबर और नवेद को पीछे से आवाज़ देता है- नवेद- हाँ कभी मेरे गाँव आना वहां तुझे नन्दिनी मिलेगी, नादिरा के नाम से मेरी बीवी के रूप में। ऐसी चार्मिंग और सेक्सी लड़की एक जेहादी की तकदीर में ही होगी।
- नवेद कुछ बोल नहीं पाता है, बस घूर कर रह जाता है, जनता है ये तो जेहादी का वसूल है काफ़िर लड़कियों को उठा कर अपने हरम में डालना। सो इरफ़ान की इस बात की खिलाफत का अर्थ है सरे मैदान सर में गोली मारकर मौत की भयानक सजा।
पहले मकसद में इरफ़ान कामयाब हो चुका है, शहर के मेन मार्केट में उसने बारूद वाली आग का इंतज़ाम कर दिया है। अब उसे यहाँ से पच्चीस किमी दूर कस्बे के सबसे भीड़ वाले इलाके में यही इंतज़ाम दोहराना है। एक ही वक़्त दो भीड़ भरी जगह और एक साथ तबाही का मंजर। यक़ीनन इस तबाही के आलम में वो नन्दिनी को अगुआ कर सकता है इसके लिए उसने अपने जेहादी कजिन को बुलवा लिया है। इधर तड़पते, चीखते लोग और उधर वो नन्दिनी के गुदाज बदन के हर पेंच को टाईट और ढीला करता हुआ। सोच कर इरफ़ान के चेहरे पर वासना की मुस्कान हावी हो जाती है और वो अपनी अगली मंजिल पर पहुँचने के लिए बाइक स्टार्ट कर देता है।
कुछ किमी चलने के बाद ही इरफ़ान को लगता है, सच में पारा बहुत लुढ़क गया है। पानी के बर्फ जमने की हद तक। लेदर के ग्लुब्स में उँगलियाँ कैद होने के बाद भी वो क्लच पकड़ने से इनकार करने लगी है। ठंडी,शीत हवा जैकेट के अस्तर को चीरती हुई सीने की हड्डियों को बर्फ कर देने पर अमादा होने लगी। बाइक चलाते हुए घडी पर नज़र मार के इरफ़ान को लगता है अभी वक़्त है और वो एक चाय पीकर इस शीत लहर से मुकाबला कर सकता है। सड़क के किनारे लगे ढाबे पर उसकी बाइक के पहिये ब्रेक के गिरफ्त में आते है।
नन्दिनी से उसका रिश्ता कुछ ऐसा वैसा तो नहीं है। पर वो मासूम है, हमारी दरिन्दगी से नावाकिफ। नवेद गहरे असमंजस में फंस जाता है। एक तरफ अल्लाह की राह में जेहादी बनने का रुतबा और दूसरी तरफ मासूम नन्दिनी जिसकी अभी पत्रकारिता की पढाई भी पूरी नहीं हुई उसकी जानोअस्मत की रक्षा। नवेद अच्छी तरह से वाकिफ है इरफ़ान जो सोचता है वो करता है। तो फिर क्या नन्दिनी की बाकी उम्र दरिंदो के हवस की दोजख में जलेगा। नहीं, हरगिज नहीं। अचानक नवेद फैसला करता है, अल्लाह की राह वही है जिसमें किसी की जानो अस्मत बचाई जा सके। फिर चाहे उसका सर उसके अपने ही कलम कर दे।
नवेद तेज़ी से गुप्ता टी-स्टाल की तरफ बढ़ता है, नन्दिनी का पता अब उसे छोटू ही दे सकता है। बाबर को वो जाने को बोलता है। बाबर के सवाल पर वो कहता है वो एक घंटे में सच्चा जेहाद कर के आ रहा है।
इरफ़ान ताबड़तोड़ दो चाय पीता है। चाय पीते वक़्त इरफ़ान के हाथ ठण्ड से बार-बार कॉप जाते है। शीशे का गिलास वो पास की लकड़ी की टेबल पर रखता है फिर बाइक की तरफ बढ़ता है।
- तभी ढाबे का बूढा मालिक कहता है- अरे बीटा पाला गिर रहा है जरा आग सेंक कर जाओ।
- ''आग'' ऊंह इरफ़ान मन ही मन कहता है आग तो तुम सब सेंकोगे, जलोगे आग में, मेरी फैलाई आग में। प्रत्यक्षतः बिना कुछ बोले वो बाइक स्टार्ट करके निकल जाता है।
ठंडी हवा का कहर बढ़ चलता है। इरफ़ान की बाइक अब कस्बे जाने वाली शार्टकट रस्ते पर है। कच्चा रास्ता, नहर के किनारे-किनारे। इस रास्ते पर पुलिस की चौकसी का भी कोई खतरा नहीं। ठण्ड का असर अब इरफ़ान पर नज़र आता है। होंठों का रंग नीला होने लगा है। आँखों की पलकों और भओं पर पानी की छोटी-छोटी बूंदे इकठ्ठा हो चली है। शायद ये गिर रहे पाले की है।
नहर पर सिंचाई के लिए बने डैम पर कुछ गाँव वाले मछली पकड़ रहे है। इरफ़ान के जेब में माचिस है, इस उम्मीद से उन लोगों के पास बीडी मिल जाएगी और उससे कुछ न कुछ तो गर्मी मिलेगी। इरफ़ान बाइक रोकता है। बीडी लेने के लिए वो ज्यों ही डैम के बगल में कच्चे रास्ते से गुजरता है, पैर फिसलने से वो कमर तक नहर के पानी में चला जाता है बर्फ को शिकश्त देता ठंडा पानी।
गाँव वाले उसे खींच कर उपर लाते है। एक कहता है, आग जला दो उससे कपड़े सूख जायेंगे, दूसरा कोशिश करता है, पर व्यर्थ पाले से भीगे पत्ते सुलग कर दम तोड़ देते है। इरफ़ान बीडी के चार-पांच कश लेकर बाइक की तरफ बढ़ता है। गाँव वाले रोकते रहते है पर वो कांपते पैरों से बाइक स्टार्ट कर देता है।
नवेद की बात सुन कर नन्दिनी सकते में आ जाती है, शहर के मेन मार्केट में बम प्लांट है। वो तुरंत अपने वरिष्ठ संपादक को फ़ोन करती है। अगले कुछ मिनट बाद नन्दिनी, नवेद, संपादक भारी पुलिस बल और बम निरोधक दस्ते के साथ मार्केट में पहुँच जाते है। मार्केट से भीड़ खली करवाने का काम चालू हो जाता है।
अब इरफ़ान के लिए बाइक चलाना बर्दाश्त से बाहर हो जाता है। एक पेड़ के नीचे आखिर उसे रुकना पड़ता है। बाइक से उतर कर उसे लगता है कमर के नीचे का हिस्सा गायब हो गया है। आँख से देखने पर दिखाई तो पड़ता है पर उसमें शायद अब संवेदना बाकी नहीं रही है। थोड़ी हिम्मत जुटा कर वो कुछ पत्ते इकठ्ठा करता है, पर पाले से भीगे पत्ते आग बनने से इनकार कर देते है।
आखिर नवेद की निशानदेही पर बम मिलता है, और बम निरोधक उसे कामयाबी से निष्क्रिय कर देते है।
जब पुलिस नवेद को लेकर जाने लगती है तो नन्दिनी की आखों में आंसू झिलमिला पड़ते है।
माचिस की आखिरी तीली बची है। इरफ़ान का पूरा शरीर ठण्ड से सुन्न पद गया है, आस-पास कोई आदमी नज़र नहीं आता, इतनी ठण्ड में घर से बाहर कौन निकले।
ठण्ड से जान बचाने के लिए इरफ़ान कोशिश करके बाइक की पेट्रोल टंकी खोलता है। कांपते हाथ से अल्लाह का नाम ले कर माचिस की तीली जलाकर टंकी के मुह पर रखता है, भक से आग जल पड़ती है। इरफ़ान के चेहरे पर ख़ुशी नाचने लगती है। तभी आग बाइक की डिक्की में रखे इरफ़ान के दुसरे मकसद के बम की तरफ बढती है।
ठण्ड का सन्नाटा, बम के धमाके से टूट जाता है। पूरी बाइक आग में तब्दील हो जाती है।
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परिचय
नाम---------------सुधीर मौर्य 'सुधीर'
जन्म---------------०१/११/१९७९, कानपुर
माता - श्रीमती शकुंतला मौर्या
पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्या
पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्या
राज्य---------------उत्तर प्रदेश
तालीम-------------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा.
सम्प्रति------------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन.
कृतियाँ------------१) 'आह' (ग़ज़ल संग्रह),
प्रकाशक- साहित्य रत्नालय, ३७/५०, शिवाला रोड,
कानपुर- २०८००१
२) 'लम्स' (ग़ज़ल और नज़्म संग्रह)
प्रकाशक- शब्द शक्ति प्रकाशन, ७०४ एल.आई.जी.-३,
गंगापुर कालोनी, कानपुर
३) 'हो न हो" (नज़्म संग्रह)
प्रकाशक- मांडवी प्रकाशन, ८८, रोगन ग्रां, डेल्ही गेट,
गाजीयाबाद-२०१००१
४) 'अधूरे पंख" (कहानी संग्रह)
प्रकाशक- उत्कर्ष प्रकशन, शक्यापुरी, कंकरखेडा,
मेरठ-२५००१
५) 'एक गली कानपुर की' (उपन्यास)
6)किस्से संकट प्रसाद के (व्यंग्य उपन्यास)
7)अमलताश के फूल (उपन्यास)
8)बुद्ध से संवाद (काव्य खंड)
(इसके अतरिक्त खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, बुद्ध्भूमि, अविराम, लोकसत्य, गांडीव आदि में प्रकशित)
संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव,
पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश
ईमेल ---------------sudheermaurya1979@rediffmail.com
blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com
सुधीर भाई, कहानी अच्छी लगी !! ईश्वरीय न्याय बुरे का का बुरा नतीजा !!
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