1 सरकार सलामत, इकबाल नदारत पी एम ने कह दिया, सपा जब चाहे समर्थन वापस ले सकती है । सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। आर्थिक मोर्चे पर जो सुध...
1 सरकार सलामत, इकबाल नदारत
पी एम ने कह दिया, सपा जब चाहे समर्थन वापस ले सकती है। सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। आर्थिक मोर्चे पर जो सुधार करने हैं, वे भी किए जाते रहेंगे। सरकार बहुमत में है। हमारे पास पर्याप्त नंबर है। सरकार को कोई खतरा नहीं है।
अजीब बात है, पी एम को और दूसरे-तीसरे मंत्री को रोज यह बयान क्यों देना पड़ रहा है कि सरकार सही सलामत है। वह अपना कार्यकाल पूरा करेगी। उसे कोई खतरा नहीं है। उसके पास पर्याप्त नंबर है। सदन में किसी भी वक्त बहुमत परीक्षा के लिए तैयार है। जब कोई बात बारंबार दोहराई जाए तो समझ लो, कहीं कुछ गड़बड़ है। आत्मविश्वास की कमी है। सरकार को लग रहा है कि देश भर में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। लोग सरकार के बारंबार विश्वास दिलाने पर भी सरकार की बात पर विश्वास नहीं कर रहे। अजब अविश्वास का माहौल बना हुआ है। सरकार भले तकनीकी रूप से चल रही हो, पर वास्तविकता यह है कि सरकार का इकबाल, सरकार की धमक, सरकार का हौसला, सरकार का आत्मविश्वास बेहद डिगा हुआ और गिरा हुआ है। सरकार कुछ भी कहती रहे, जनता यू पी ए सरकार पर हंस रही है! एक नाटक हर वक्त मंच पर खेला जा रहा है। किरदार बदलते रहते हैं। लगता रहता है, सरकार अब गई कि अब गई और सरकार की नाक में लगी आक्सीजन की नलकी उसकी सांसें चलाती रहती है और लोगों को भ्रम बना रहता है कि सरकार अभी जिंदा है। मरी नहीं है। सांसें ले रही है। भले ही वे अंतिम सांसें हों! एक भी किरदार ने अपना पार्ट मंच पर सरकार के संग निभाने से मना किया कि सरकार की सांसें बंद! पर पी एम दावे से कह रहे हैं जिसे समर्थन वापस लेना हो , ले ले। सरकार को कोई खतरा नहीं है। सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी!
मुझे अमरीकी महान कहानीकार ओ हेनरी की लिखी कहानी--अंतिम पत्ती याद आ रही है। एक लड़की निमोनियाग्रस्त हो कर जीवन के अंतिम क्षण गिन रही है। डाक्टरों ने मना कर दिया है । साफ कह दिया है कि अब वह जिंदा नहीं बचाई जा सकती। कोई दवा उस पर काम नहीं कर रही। वह किसी भी वक्त मर सकती है। लड़की बिस्तर पर पड़ी देखती है कि खिड़की से सामने वाले मकान की ईंटों की दीवार पर लगभग सूख चुकी और बर्फीले तूफानों और बरसते पानी से उसकी पत्तियों एक-एक कर टूट-टूट कर गिरती जा रही हैं। लड़की को पक्का विश्वास हो गया है कि जिस दिन उस दीवार पर पौंड़ी सूख रही बेल की अंतिम पत्ती गिर जाएगी, बस उसी दिन वह भी जरूर मर जाएगी! उसकी बीमारी में देखरेख करने वाली महिला उसके इस भ्रम को दूर करने की कोशिश करती है पर वह अपने विश्वास से नहीं डिगती। बारंबार कहती है, बस आज की रात ओले-पानी और बरफ से यह अंतिम पत्ती भी जरूर गिर जाएगी और इसके गिरते ही सुबह मैं भी मर जाऊंगी। उसकी देखरेख करने वाली महिला मकान की निचली मंजिल में एक कमरे में रहने वाले बूढ़े, खबीस, बेरोजगार,मरियल, बीमार रहने वाले चित्रकार के पास अपनी तसल्ली के लिए जाती है। और उस लड़की के भ्रम के बारे में बताती है। चित्रकार सुनता है पर कुछ कहता नहीं है।
रात को भयंकर बर्फीला तूफान आया। पानी बरसा । रात को उस चित्रकार ने लालटेन की रोशनी में निकल कर देखा कि सचमुच अंतिम पत्ती गिर चुकी है। रात भर चित्रकार ने उस पत्ती जैसी पत्ती अपने रंग और ब्रश से बना कर तैयार की। और बरसते पानी व गिरती बर्फ में सीढ़ी लगा कर उस पत्ती को उसी अंतिम पत्ती की जगह मजबूती से लगा दिया जिससे वह तूफान और बर्फ में गिरे नहीं। इससे वह बूढ़ा चित्रकार पूरी तरह भींग गया। ठंड से कांपने लगा। उसके पास बदलने को दूसरे कपड़े भी नहीं थे। पर वह खुश था कि उसने किसी लड़की को जिंदा रहने की वजह दे दी है। सुबह डाक्टर उस लड़की को देखने आया तो वह खुश थी। अंतिम पत्ती गिरी नहीं थी। उसका आत्मविश्वास लौट आया था। डाक्टर से बोली--अब मैं नहीं मरूंगी। देखो वह अंतिम पत्ती गिरी नहीं है! देखरेख करने वाली महिला से डाक्टर ने कहा--आपके मकान के नीचे वाले कमरे में रहने वाला चित्रकार रात को पता नहीं कैसे भींग गया। ठंड खा गया और भींगे कपड़ों में ही बेहोश कमरे में पड़ा रहा, इसलिए सुबह मर गया। महिला उसे देखने उसके कमरे में आई तो उसने देखा लालटेन जल रही थी। भींगी हुई सीढ़ी उसके कमरे में एक तरफ खड़ी थी और उस बूढ़े चित्रकार की भींगी हुई लाश नंगे फर्श पर पड़ी थी। रंग और ब्रश उसके पास पड़े थे। अपनी जान की कीमत पर कौन लोग इस सरकार को बचा रहे है! पाठक सोचें
--डॉ दिनेश पालीवाल
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2 एक बलात्कारी की आत्महत्या पर बवाल!
दिल्ली गैंग रेप के मुख्य अरोपी ने तिहाड़ की बौरक नंबर तीन में ग्रिल से लटक कर आत्महत्या कर ली। टीवी में इस पर खूब ले-दे मची है। बाल की खाल निकाली जा रही है। आरोपी का पिता कह रहा है कि बेटे की किसी ने हत्या की है। वकील भी अपनी वकालत चमकाने के लिए यही स्वर अलाप रहे हैं। जांच के लिए एक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर दिए गए हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री ने अपना पल्ला घटना से झाड़ते हुए कहा कि तिहाड़ जाने, तिहाड़ के अधिकारी जानें! केन्द्र सरकार का गृहमंत्रालय जाने। उनका इससे कुछ लेना-देना नहीं है। जांच की जा रही है। वे जांच से पहले इस बावत कुछ नहीं कहेंगी। जनता का कहना है कि जब कोई व्यक्ति जेल की, और वह भी तिहाड़ जैसी हाई प्रोफाइल जेल की सलाखों के पीछे सुरक्षित नहीं है तो बाहर सड़क पर महिलाओं और आम जनों की सुरक्षा यह व्यवस्था कैसे कर सकती है? बात सही है।
टीवी पर, फेस बुक पर, ट्वीट पर तरह-तरह के बयान आ रहे हैं। अजीब लगता है कि एक आदमी जिंदा रहते गैंगरेप कांड के आरोप में पकड़ा जा कर देश भर में रंगा-बिल्ला की तरह कुख्यात हो गया और आत्महत्या करके भी चर्चित होने से बाज नहीं आया! कहावत है, बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा? नामा तो उसने नहीं कमाया पर नाम तो चर्चित करवा ही लिया!
राम भारतीय संस्कृति के अमर पात्र हैं। देश में सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व और करोड़ों की आस्था के केन्द्र हैं। रावण खलनायक ही नहीं, सबसे कुख्यात पात्र है। उसने सीता का अपहरण किया। खूब बदनामी ओढ़ी। राम के हाथों युद्ध में मारा भी गया। अपने किए की सजा उसने स्वयं ही नहीं भोगी बल्कि संपूर्ण लंका को उसके किए का अभिशाप भोगना पड़ा। एक आदमी का अपराध कितना भारी पड़ जाता है, स्वयं उसके जीवन पर, उसके परिवार पर, उसके कुल-कुनबे पर, उसके देश-प्रदेश पर और देश की जनता पर, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं। पर हम न इतिहास से कुछ सीखते हैं, न अपने मिथकीय कथानकों से।
क्या वजह रही होगी उसकी आत्महत्या की? अवसाद? बदनामी? हिकारत? अपने लिए जेल में और जेल के बाहर सार्वजनिक घृणा? संपूर्ण देश में थू-थू! विश्व भर में नफरत? आदमी को अपने कृत्यों की इससे बड़ी सजा और क्या होगी कि आदमी न्यायालय व्दारा अपराधी घोषित हो और आजीवन कारावास या मृत्युदंड पाए उससे पहले ही अपना जीवन अपने हाथों समाप्त कर ले! नफरत का बोझ कितना भारी होता है आत्मा पर! आदमी लोगों की निगाहों में गिर कर तो शायद जी भी सकता है पर जो अपनी ही नजरों में गिर जाए, अपने आत्म का ही हिकारत के कारण सामना न कर पाए, वह बहुत दिन कैसे जी सकता है? रोज-रोज वह न्यायालय जा रहा था। लोगों की नफरत और हिकारत का सामना कर रहा था। तिहाड़ की कोठरी में रहते हुंए वह इस सब पर सोचता जरूर रहा होगा। आदमी है तो उसके पास अपना मन भी है। दिल-दिमाग भी है। जुनून में आ कर वह कुछ समय के लिए हैवान जरूर बन जाता है, एक से बढ़ कर एक घिनौने अपराध कर बैठता है पर जब किए अपराध उस पर , उसकी आत्मा पर दबाव डालते हैं तो वह कैसा अनुभव करता होगा? उसने आत्महत्या कर ली। अब पता नहीं चल सकता। पर अगर वह आत्महत्या के प्रयास के बाद असफल हो जाता और जीवित बच जाता, उसके बयान लिए जाते और वह सही-सही बात कबूल कर पाता तब पता चलता, मनुष्य के जीवन और दिल-दिमाग में चल रहे अंधड़ और उठा-पटक के बारे में! चेतन-अचेतन मस्तिष्क के बारे में। किए अपराध के बोझ के बारे में। हिकारत का, नफरत का, घृणा का सामना न कर पाने के बारे में! दुनिया से तू भाग ले पगले, मन से भाग न पाए!
एक अपराधी और बलात्कारी हत्यारे की आत्मकथा जो उसने जेल में रहते लिखी थी, अमरीका की बेहद चर्चित आत्मकथाओं में रही है। उसे पढ़ते हुए मनुष्य-जीवन के अनेक रहस्य-सूत्र हमारे हाथ लगते हैं। वह आत्मकथा हमें बताती है कि दुनिया की नजरों से भले तू छिप जाए, भगवान को भले तू धोखा दे ले, पर अपने मन से कहां भागेगा? अपनी निजी नजरों का तू रोज कैसे सामना करेगा? रात के अंधेरे में जब काल कोठरी में पड़े-पड़े तुझे तेरे कर्म साक्षात हो कर सामने खड़े चीखेंगे उन चीखों का तू कैसे सामना करेगा?
--डॉ दिनेश पालीवाल
सुन्दर भावपूर्ण कुछ सोचने को मजबूर करती रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंडॉ दिनेश पालीवाल, आपके दोनों लघु लेख बहुत ह्रदयस्पर्शी हैं.
जवाब देंहटाएंडॉ पालीवाल, आपके दोनों लघु लेख बड़े ह्रदयस्पर्शी हैं.
जवाब देंहटाएंडॉ दिनेश पालीवाल, आपके दोनों लघु लेख बहुत ह्रदयस्पर्शी हैं.
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