राम नरेश ‘उज्ज्वल' की दस बाल कविताएँ .एक. आज गाँव का मेला है! भीड़ -भड़क्का रेला है, आज गांव का मेला है। नीचे झूला ऊपर झूला, झूल...
राम नरेश ‘उज्ज्वल' की दस बाल कविताएँ
.एक.
आज गाँव का मेला है!
भीड़ -भड़क्का रेला है,
आज गांव का मेला है।
नीचे झूला ऊपर झूला,
झूले ऊपर झूला है,
कहीं है सरकस, कहीं सिनेमा,
कहीं कान का झाला है,
कहीं आम अमरूद बिक रहे,
कहीं बिक रहा केला है,
आज गांव का मेला है।
काका-काकी घूम रहे है,
मतवाले से झूम रहे है,
गरम जलेबी देख देखकर,
काका बटुआ खोल रहे है,
काकी बोली जरा संभलकर,
यहाँ ठगों का हेला है,
आज गांव का मेला है।
खेल बिलौने सजे हुए हैं,
प्यारे गुड्डे-गुड़ियां हैं,
चोर सिपाही हाथी-घोड़े,
कुत्ता-बिल्ली, चिड़ियां हैं,
कुल्फी आइसक्रीम बिक रही,
कहीं चाट का हेला है,
आज गांव का मेला है।
.दो.
छोटे-छोटे प्यारे-प्यारे
!
छोटे-छोटे प्यारे-प्यारे।
आसमान में कितने तारे॥
दम-दम-दम-दम दमक रहे हैं,
मोती जैसे चमक रहे हैं,
उल्टी लटकी फुलवारी में ,
फूलों जैसे लटक रहे हैं,
जैसे जड़े हुए सोने के,
सुन्दर सलमा और सितारे।
छोटे-छोटे प्यारे-प्यारे ।ं
जादू मन्तर सा है इनमें ,
एक गिनूँ दूजा भूलू मैं,
मन करता है ऊॅचे उड़कर,
दौड़-दौड़ इनकों छू लूॅ मैंं,
कोई गिनकर यह बतला दे,
आसमान में कितने तारे,
छोटे-छोटे प्यारे-प्यारे॥
.तीन.
भोली चिड़ियाँ
भोली चिड़ियाँ बोल रही हैं।
कानों में रस घोल रही हैं॥
फुदक-फुदक कर दाना चुगती,
खेल-खेल में लड़ जाती हैं
दूर-दूर तक आसमान में,
झुण्ड़ बनाकर उड़ जाती हैं,
पेडों को अपना घर समझें,
चीं-चीं करके डोल रही हैं।
कानों में रस घोल रही हैं॥
ढूॅढ़-ढूंढ कर तिनके लाती,
अपनें घर को खूब सजाती,
उसमें रहतीं चिड़ियां रानी,
अपने बच्चों को दुलराती,
पास हमारे आकर बैठी,
जाने क्या-क्या बोल रही है।
कानों में रस घोल रही हैं॥
चार
ललचाया, पर खा न पाया
आज रात सपने में देखा,
पंख लगाकर उड़ता हूँ,
टिमटिम चाँद-सितारों को मैं,
छूता और पकड़ता हूँ।
तभी निकलकर एक परी ने,
मुझको अपने पास बुलाया,
फूलों के झिलमिल झूले पर,
मुझको काफी देर झुलाया।
उड़न खटोले पर बैठाकर,
परी लोक में सैर कराया,
फिर वह अपने महल ले गई,
पकवानों का थाल सजाया।
लेकिन तभी आ गई मम्मी,
हाथ पकड़कर मुझे जगाया,
पकवानों का थाल खो गया,
ललचाया पर खा न पाया॥
..........
पाँच
जंगल की होली
जंगल की होली में देखो
तरह तरह के रंग ।
खेल रहे हैं चूहे राजा
फिर मौसी के संग॥
बिल्ली ने भी पिचकारी भर
मारी सर-सर-सर।
चूहों की जब हालत बिगड़ी
बोले हम गये मर॥
मौका देखा जब हाथी ने
भरा सूँड़ में रंग।
जल की बरखा कर दी ऐसी
भीगे सबके अंग॥
सबने मिलकर मजा चखाया
लीपा पोता रंग।
जोर-जोर हाथी चिल्लाया
नहीं करो अब तंग॥
छः
रंग-विरंगी होली
होली आई, होली आई।
रंग-विरंगी होली आई॥
लाल, गुलाबी, नीले, पीले,
हरे, बैंगनी, काले-काले,
रंगे-पुते चेहरों पर देखोे,
कैसे-कैसे लोग निराले,
झूम-झूम कर मस्ती में अब,
सबने मिलकर धूम मचाई,
होली आई, होली आई॥
फागुन के सब गीत गा रहे,
नाच रहे हैं ठुमक-ठुमक कर,
बेफिकरी में बड़े मजे से,
हाथ-पैर सब झटक-झटक कर,
काका-काकी, दीदी-भैया,
अम्मा-बप्पा, बाबा-दाई।
होली आई, होली आई॥
अरे-अरे मुनवा को देखो,
दौड़ाये लेकर पिचकारी,
मुनिया सराबोर है रंग में,
काँप रही थर-थर बेचारी,
फिर भी उछल-उछल कर सबकी,
रंगों से कर रही धुलाई।
होली आई, होली आई॥
सात
गली-गली में रौनक छाई
जगर-मगर दीवाली आई।
खुशियों की सौगातें लाई॥
सबने हैं घर द्वार सजाए ,
झिलझिल-झिलझिल दिये जलाए ,
चूरा , खील , बतासे लाए ,
बड.े प्रेम से मिल कर खाये ,
गली-गली में रौनक छाई
जगर-मगर दीवाली आई॥
खुशियों का त्योहार निराला ,
सबको कर देता मतवाला ,
छूट रहे गाेले,फुल-झडि.याँ ,
गूँज रही हैं , सारी गलियाँ ,
सबके मन में खुशियाँ छाई।
जगर-मगर दीवाली आई॥
आठ
न्यारा मोर
कितना सुन्दर प्यारा मोर।
जंगल का है न्यारा मोर॥
सुन्दर-सुन्दर पंखों वाला,
सर पे ताज धरे मतवाला,
राष्ट्रीय पक्षी है अपना,
इसे मारना सख्त मना,
जंगल में करता है शोर।
कितना सुन्दर प्यारा मोर॥
उसके पंखों में है जादू,
सबको कर देता बेकाबू,
जंगल में ही उड़ता खाता,
कभी-कभी वह नाच दिखाता,
सबको करता भाव-विभोर।
कितना सुन्दर प्यारा मोर॥
नौ
सबको प्रेम सिखाना है
पढ़ना लिखना बहुत जरुरी,
हरदम पढ़ते जाना है।
चाहे जितनी आफत आये,
कभी नहीं घबराना है।
अच्छे काम सदा करना है,
आलस दूर भगाना है।
सही राह पर चलते-चलते,
आगे बढ़ते जाना है ।
सेवा करके दीन-दुखी की,
सबको सुखी बनाना है।
नफरत करना नहीं किसी से,
सबको प्रेम सिखाना है।
दस
सोजा बिटिया रानी
सोजा बिटिया रानी,
तू है बड़ी सयानी।
तेरे पापा आएँगे
खेल-खिलौने लाएँगे॥
मैं भी जब छोटी थी,
अगर नहीं सो पाती थी।
तो मुझको मेरी मम्मी ,
लोरी यही सुनाती थी॥
लोरी सुन सो जाती थी,
सपनों में खो जाती थी।
सपनें में परियाँ आकर,
अपने घर ले जाती थी॥
सो जा मेरी बिटिया ,
तू है प्यारी गुड़िया ।
तेरे पापा आएँगे,
टाफी तुझे खिलाएँगे॥
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राम नरेश ‘उज्ज्वल'
उप सम्पादक-‘पैदावार' मासिक
मुंशी खेड़ा,
अमौसी एयरपोर्ट, लखनऊ-226009
09616586495
जीवन-वृत्त
नाम ः राम नरेश ‘उज्ज्वल‘
पिता का नाम� ः श्री राम नरायन
विधा ः कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि
अनुभव ः विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ
रचनाओं का प्रकाशन �
प्रकाशित पुस्तके ः 1-‘चोट्टा‘(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0
द्वारा�पुरस्कृत)
2-‘अपाहिज़‘(भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार�से पुरस्कृत)
3-‘घुँघरू बोला‘(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)
4-‘लम्बरदार‘
5-‘ठिगनू की मूँछ‘
6- ‘बिरजू की मुस्कान‘
7-‘बिश्वास के बंधन‘
8- ‘जनसंख्या एवं पर्यावरण‘
सम्प्रति ः ‘पैदावार‘ मासिक में उप सम्पादक के पद पर कार्यरत�
सम्पर्क ः उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई अड्डा, लखनऊ-226009
मोबाइल ः 09616586495
ई-मेल ः ujjwal226009@gmail.com
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