हृदय स्पंदन आज बूढा दीनानाथ बड़ा खुश था। सूखी तपती जमीन पर राहत की कुछ बूंदों का आनंद ही कल्पना से परे होता है । उस पर जमीन से उठती पहली ...
हृदय स्पंदन
आज बूढा दीनानाथ बड़ा खुश था। सूखी तपती जमीन पर राहत की कुछ बूंदों का आनंद ही कल्पना से परे होता है । उस पर जमीन से उठती पहली बारिश की सौंधी खुशबू दूर रह रहे अपनों की स्मृति को समेटे नाक से शरीर और शरीर से आत्मा में प्रवेश करती है तो मन मिलन को तड़प उठता है । उस आनंददायक पीडा ने दीनानाथ को जैसे अपने अतीत में झांकने का मौका दिया हो राहुल जो उसका इकलौता बेटा है बचपन से ही चुलबुला है । उसका जन्म ही सही नक्षत्रों में हुआ तो लोगों ने भविष्यवाणी करना शुरू कर दिया था। कोई कहता दीनानाथ ये तो तुम्हारे सदकर्मों का परिणाम है ये तुम्हारा नाम जरूर रोशन करेगा। दीनानाथ भी लोगों की सकारात्मक टिप्पणीयां सुनकर फूला नहीं समाता है । वर्षों से चला आ रहा ये शाश्वत नियम आज भी कायम था। राजा दशरथ ने भी राम लक्ष्मण जैसे पुत्रों की कामना की । सीता जैसी पुत्री नहीं चाही । यही हमारा सभ्य समाज है जो अच्छी बहू तो चाहता है परन्तु बेटी नहीं ।
जीवन में चिन्तायें और दुख वैसे भी ज्यादा हैं एक शादीशुदा व्यक्ति की समस्यायें और भी ज्यादा होती हैं । उसका उदर भी बढ़ जाता है हृदय भी साथ में चिन्तायें भी । समाधान के रास्ते सीमित हो जाते हैं ।ऐसे में गरीबी कोढ़ में खाज का काम करती है । दीनानाथ को भी अभी से ही राहुल के भविष्य की चिन्ता सताने लगी थी। तेरह वर्ष की उम्र तक पहुंचते पहुँचते राहुल की समझदारी ने दीनानाथ को गर्वित होने का एक पर्याय दिया था। वैसे भी गरीब के पास गर्व करने को केवल हुनर इज्जत और संतान होती है । दीनानाथ को अब बस एक ही चिंता घुन की तरह खायें जा रही थी कि कहीं उसकी गरीबी राहुल की सफलता की राह में रोडा ना बन जायें । कई रातें बस यूं ही सोचते सोचते एक चमकीले तारे को निहारते निहारते बीत गईं । दीनानाथ उस तारे को देखकर यही सोचा करता था । क्या मेरा राहुल इससे भी ज्यादा चमकीला तारा बनेगा।
ऐसा सोचते सोचते एक दिन उसकी नजर काले आसमान पर पडी और सहसा एक विचार ने उसको अंदर तक झंकझोर दिया । यह उस तारे का प्रकाश है या आकाश का अंधेरा जो उस तारे की शोभा बढा रहा है ।आसमान यही सोच कर संतुष्ट हो गया और दीनानाथ भी कि तारा है तो उसी की गोद में है। कहलायेगा तो उसी का। राहुल अब तक उम्र के ऐसे मकाम पर आ पहुँचा था जहां पर कुछ देर सब्र से रूककर परिश्रम करने का मतलब था । उज्जवल भविष्य । राहुल आज के युवाओं से अलग एक अपवाद साबित हुआ । दीनानाथ के द्वारा रोपा गया पौधा अब उस स्थिति में पहुँच गया था जहां पर उसे ना तो जानवरों का डर था ना ही वक्त का । अब तो उसे आगे ही आगे बढना था और एक दिन आसमान को छूना था। दीनानाथ उस पौधे में फल लगने का इंतजार करने लगा और भविष्य के प्रति आशान्वित हो गया। राहुल ने अपनी बारहवी कक्षा सर्वोच्च अंकों से पास की अब उसके सामने सबसे बडी समस्या आगे पढाई जारी रखने की थी।उसको लगा उसका उज्जवल भविष्य का सपना टूट जायेगा ।
मंजिलें उसकी ओर हाथ फैला रहीं थी और गरीबी उसकी विवशता पर हंस रही थी । उसकी धर्मनिष्ठा उसको बार बार ढांढस बंधाती । अंधेरा जरूर छंटेगा सूबह जरूर आएगी । आंखो मेें वो अधूरे सपने लिये वह सबसे मुँह छिपाता खुद से ही भागता रहता । राहुल से ज्यादा महत्तवाकांक्षी उडान उसके पिता ने भर ली थी। इसलियें जमीन कम लगती थीं उनको सपनों के लिये । परन्तु वह आजकल के पिताओं जैसा नहीं था। जो बच्चों को अपने विशालकाय सपनों के नीचे ढंक देते हैं । बच्चा ना सांस ले पाता ना ही बढ़ पाता। उसने अपने बच्चे पर अपने सपनों को कभी हावी नहीं होने दिया। उसने तो माली की तरह सपनों की पौध को पानी देने का काम ही किया था। वह कुछ भी करके अपने बच्चे को आगे पढाना चाहता था। उसने कई साहूकारों से ये कहकर उधार मांगा कि बच्चा कमाने लगेगा तो दोगुना ब्याज भी दे दूंगा। साहूकार यह कहकर उसे झिड़क दिया करते कि यदि पेड ने फल नहीं दिया तो सूद क्या जड़ खोदकर निकालेगा। दीनानाथ बेचारा त्रस्त हो वापस लौट आता। रोज रात को आसमान में उस चमकीले तारे को देखकर उसका दुख और बढ़ जाता।
थक हारकर दीनानाथ सब कुछ उस परमपिता पर छोड़ देता हैं ।और इ्रर्श्वरीय न्याय की प्रतिक्षा करता हैं । एक किसान भी खेत जोतता हैं बीज बोता हैं पानी देता हैं खाद डालता हैं परन्तु फिर भी अच्छी फसल का दावा नहीं कर सकता । क्योंकि फसल का होना या ना होना उस परमपिता की दया पर निर्भर करता हैं। राहुल ने केन्द्र सरकार की उच्चशिक्षा छात्रवृति के बारे में सुना तो उसे लगा कि ईश्वर तक उसकी प्रार्थना पहुंच गई हैं । वह खुश और आशान्वित मन से छात्रवृति का फॉर्म लाया और उसको भरकर भेज दिया। बारहवीं में अच्छे अंकों से पास होने के कारण उसकी छात्रवृत्ति स्वीकृत हो गई । दीनानाथ की खुशी का ठिकाना ना रहा अब उसको लगा कि ईश्वर ने भी अपने दीनानाथ नाम को चरितार्थ किया हैं ।
दीनानाथ की दयालुता पर भावविभोर हो उठा। आंखे बंद कर मन के पट खोले तो वही सांवली मनोहारी मरलीधर की छवि ने जैसे एक ही पल में सब कुछ उसकी झोली में डाल दिया हों ।आंखों से अविरल बहती हुई अश्रुधारा से उसने प्रभु का मानसिक अभिषेक किया । अपनी पीडा शिकायतों को वह चरणोदक सा पी गया। प्रभु भी निश्छल के पवित्र भावों को समझ गये और बोले दीनानाथ और कोई इच्छा हो तो बोलो । आज मैं सृष्टि का सारा सुख भी तुम्हें प्रदान कर दूंगा। आज तुमने मुझे जीत लिया दीनानाथ । तुम्हारे मन से छल कपट ईर्ष्या द्वेष का आवरण सदा के लिये हट गया तुम जल सदृश सरल हो गये दीनानाथ तुम दीनानाथ हो गये ।
यह सुनकर दीनानाथ का हृदय प्रभुभक्ति के सागर में गोते मारने लगा । जब सामने तारणहार खडें हों तो भला डूबने का डर किसको होगा। दीनानाथ की भी यही मनःस्थिति थी वह प्रभू को अपनी आंखों से दूर नहीं करना चाहता था । परन्तू प्रभू बोले यह तुम्हारा पुत्र तुम्हारा नाम तो रोशन करेगा परन्तु तुम्हारे पास नहीं रहेगा । इतना सुनते ही जब वह मन की यात्रा से वापस आया तो सामने आसमान सा फैला हुआ दुख भरा जीवन था जिसमें खुशियां यदाकदा तारों के मानिंद चमक जाया करती हैं और मूर्ख इंसान उसी को रोशनी मानकर अंधेरे में जिया जा रहा है । दीनानाथ की मनःस्थिति उस राजा सी हो गई जिसको यह वरदान था कि जो भी वस्तु वह छुयेगा सोना बन जायेगी । काटो तो खून नहीं दुखी मन से कभी अपने भाग्य को कोसता कभी ईश्वर की कृपा का धन्यवाद देता वह अपने बुढापे को लेकर परेशान हो उठा । उसे लगा बुढापे का अकेलापन उसको तोड देगा। फिर एक दार्शनिक की भांति वह सोचने लगा
मृत भूत एवं अजन्में भविष्य की क्या चिन्ता करना यदि वर्तमान अच्छा है ।
एक पल में उसके चेहरे से शिकन काफूर हो गई । जिंदगी में बस उसे खुशियों के अवसरों की तलाश थी। राहुल को बी․ई में एडमीशन मिल गया । जितने अच्छे कॉलेज का विचार था उतना नहीं मिला परन्तु वह संतुष्ट था। जिंदगी की जंग जारी रहेगी हथियार जंग लगे हुए तो क्या निरंतर साहस से लड़ते लड़ते उन पर भी चमक आ जायेगी । उसे अपनी योग्यता साबित करने का एक और मौका मिल गया । वह हमेशा कुछ पक्तियां बुदबुदाता रहता था
मैं हमेशा से एक योद्धा रहा हूँ बस एक और युद्ध सर्वश्रेष्ठ एवं अंतिम।
दीनानाथ को ना चाहते हुए भी राहुल को बडे शहर में पढने भेजना पडा। उसे ईश्वर के कहे हुए शब्द याद आ रहे थे । अब उसे लगने लगा था कि राहुल कभी लौटकर नहीं आएगा। उसे अपनी उम्र और ज्यादा लगने लगी । उसे एहसास होने लगा कि अब उसे छडी का सहारा लेना ही पडेगा । दीनानाथ थक हारकर इसको नियति मानकर शांत हो जाता है । वास्तव में नियति अपना रास्ता खुद ही तय करती है ं ।हम उसके हाथों के खिलौने मात्र हैं । हम मौन दर्शक से उसको ईश्वर की इच्छा का नाम देकर संतुष्ट हो जाते हैं । भाग्य में सब कुछ पहले से ही लिखा जा चुका है । उसकी पूर्णता का अवसर अब आया था। ये स्थितियां हमारे नियंत्रण से परे हैं और इन पर शोक विसाद और गर्व करना ही हम मानवों का स्वभाव है ऐसा सोचकर दीनानाथ ने राहुल को बडे शहर जाने की अनुमति प्रदान की। उधर राहुल को भी लग रहा था कि वह एक ही पल में अपने पिता जो अब उसकी माँ भी थी और ईश्वर भी से कुछ समय के लिये उस रिश्तों को डोर को ढीला करके उनसे दूर जा रहा है ।
डर दोनों को था कि ज्यादा खींचतान में रिश्तों की यह कोमल डोर टूट ना जाये । नियति ने राहुल को भी मानसिक रूप से तैयार किया और उसने भी इस अवसर को अपना भाग्य मानकर स्वयं को मानसिक रूप से तैयार कर लिया। पिता दीनानाथ ने जैसे तैसे पेट काटकर आडे वक्त के लिये जो जोड़कर रखा था उससे राहुल को कुछ नये कपडे दिलाये तथा किताबें आदि अन्य खर्चों के लिये नकद भी दिया। दीनानाथ जब राहुल को छोडने बस स्टैण्ड पहुंॅचे तो उनकी आँखों ने दिल के राज खोल दिये निर्मल प्रेम की गंगा बिना भागीरथ के पृथ्वी पर आ पहुँची थी। इसकी एक --एक बूंद प्रेम के सागर सी बहुमूल्य थी। राहुल की आंखे भी डंवडबाई जिसने उसको हाथ पकड कर चलना सिखाया है उसी के हाथ में वह छडी सौंपकर बुढापे में उससे दूर जा रहा है । वह पिता से लिपट गया रूंधे गले से वह नहीं कह पाया पर उसका हृदय बार बार कहता नहीं पिताजी मुझे बाहर नहीं जाना है और प्रतिउत्तर में यही आवाज आती थी कि नहीं बेटा जीवन में अच्छे अवसरों का सही उपयोग करके ही भाग्य बनता है ।
हृदयवीणा के तारों पर जब रिश्तों की गर्माहट से संगीतकार ने दस्तख दी तो एक ऐसा संगीत बज उठा जिसके स्वर सिर्फ दीनानाथ और राहुल के कानों में गूँज रहे थे । दोनों की आंखे नम थी और चेहरे पर थे संतुष्टि के भाव । पिता और पुत्र का संबंध सभी रिश्तों से अलग एक निश्छल संबंध होता है बस पिता ही ऐसा पुरूष होता है जो कभी अपने पुत्र से घृणा नहीं करता। बच्चे के जन्म से लेकर उसके परिपक्व होने तक पिता उसको गंभीरता से निहारता है उसके क्रियाकलापों का सूक्ष्मावलोकन करता है । गिरते हुए को थामना पिता से ज्यादा अच्छा भला कौन जान सकता है । वह पुत्र का दर्पण होता है उसका आदर्श भी। वह फल की आस में वृक्ष नहीं लगाता वरन यह सोचता है कि इससे संसार में किसी को भी छांव हुई तो उसका वृक्ष लगाना सार्थक हो जाएगा । इस तरह पिता संसार के हितैषी होते हैं वे संसार को एक ऐसी अमूल्य निधि दे जाते हैं जो लंबे समय तक संसार को सामर्थ्यवान बनाये रखेगी। पुत्र की सफलताओं पर वे गर्वित तो होते है। परन्तु वह इसका सारा श्रेय पुत्र की क्षमताओं को देते हैं वहीं पुत्र पिता द्वारा प्रदत्त अवसरों को अपने जीवन की पूंजी मानते हैं । आज के इस आधुनिक युग में रिश्ते डिस्पोजल से हो गये हैं जो जिसका इस्तेमाल कर लेता है उसको अनुपयोगी समझ कर फेंक देता है । पीढियों में सामंजस्य कम हो गया है हमने इसे जनरेशन गैप का नाम दे दिया है । इसी से परिवार टूट रहे हैं । धर की छत कमजोर हो गई है उसे अपनों पर विश्वास नहीं रहा है । उम्रभर के अनुभवी लोगों का अनुभव नकारा जा रहा है । वे प्यार भरे दो शब्द सुनने को तरसते रहते हैं ऐसे में उन्हें अपना अनुभव बेमानी लगता है पुरानी चीजों की तरह वृद्वों को नहीं सहेजा जाता । उनको जिंदगी के हवाले कर दिया जाता है आत्मा निकालकर । ऐसी विकट परिस्थिति में भी रिश्तों के अपने नाम हैं बस खेद है कि वो नाम के अनुरूप सार्थक नहीं रहे। हम आमने सामने होकर भी अपनों को नहीं देख पा रहे हैं हम बिना कारण के पता नहीं किसके लिये लडे जा रहे हैं
रिश्तों के बीच की धुंध जब छंट जाएगी ।
जिंदगी फिर वैसी मुस्कुराती नजर आएगी।
भीड में भी सब अपने नजर आयेगें।
सूरत नहीं आदमी की जब सीरत बदल जाएगी।
ट्रेन की सीटी बजी वर्षों पुराने रिश्तों की जैसे परीक्षा की घडी निकट आ गई हो । दीनानाथ और राहुल के आपसी प्रेम का दायरा भौगोलिक दूरी के साथ बढ़ना प्रारंभ हो गया था। रेल की गति दोनों के हृदय की गति को भी बढा रही थी। हृदय के तारों ने एक विस्तार लेना चालू किया उधर आंखों ने बगावत कर दी । अब ऐसा लग रहा था मानो प्रेम के इस तूफान में ना प्रेमी बचेगा ना दुनिया ।
मौत किसको अपने आगोश में नहीं लेगी ।
जब तक जिंदगी है जिंदादिली से जिये जा।
दोनों की आंखे निर्मल प्रेम की गवाही दे रही थी। ट्रेन के आंख से ओझल होते ही दीनानाथ का शरीर निस्तेज सा हो गया शरीर में आत्मा तो थी पर जिंदगी में अब वो बात कहाँ । एक पल में राहुल का बचपन उसके सामने नए - नए चेहरों से उसके सामने आने लगा कभी उसको सुंदर फूल नजर आते कभी वृक्षों से लदे फल कभी ऊँचे पहाड नजर आते तो कभी एक लंबा रास्ता । अचानक सारे दृश्य आंखों से ओझल हो जाते हैं और उसको एक खाई नजर आती है जिसके एक ओर दीनानाथ खडा है दूसरी ओर राहुल । ये खाई दिन व दिन इतनी बढ़ती जा रही है कि एक दिन इसको पाटना मुश्किल हो जायेगा काम नामुमकिन फिर भी नहीं होगा । लोगों के दिलों में जो खाई बन गई है उसको पाटने मेें जिंदगीयां कम पड जाएगीं। परिस्थितयां राहुल का साथ देती हैं वह निरंतर उन्नति करता हुआ आज विदेश में है ।
अतीत की इस झांकी के दर्शन कर जब दीनानाथ वर्तमान में प्रवेश करता है तो सुबह ही उसे राहुल का पत्र मिलता है उम्र और रिश्तों की बडी हुई दूरियों ने उसकी आंखों की रोशनी मंद कर दी थी इसलिये जब भी राहुल का पत्र आता तो दीनानाथ गाँव के एक शिक्षक से पत्र पढवाया करता था। शिक्षक को भी दोनों के बीच संवादसेतु बनना रास आता था। आज भी उसने झट से पत्र छीना और पढना चालू किया । पिता को चरणस्पर्श और खैरियत की सुनकर दीनानाथ फूला ना समाया उसे लगा कि आज उसका पिता होना सार्थक हो गया था। उसे गर्व हुआ कि संसार में ऐसे कई हिन्दुस्तान हैं जहां चंद भारतीयों ने अपनी भारतीयता से उनको जीवित रखा है ।अगला वाक्य उस शिक्षक के मुँह से बाण सा निकला और उसने पिता के गर्व को चूरचूर कर दिया। उस बाण ने पिता को ऐसा घाव दिया कि आज भी कई पिता आहत परेशान घूम रहे हैं।-“पिताजी मैनें मैनेजर की लडकी से शादी कर ली है ।आर्शीवाद लेने शीघ्र आऊँगा आपका राहुल। अंतर-
वेदना को सहते हुए खुद को झुंठलाते हुए दीनानाथ हंसकर कहने लगा -
समय कितना बदल गया है गाँव में शहर घुस गये हैं सडकें मेडों को खा रही हैं। घरों में दीवारें बन गई हैं दिल में दिमाग घुस गया है ।ऐसे में मेरा राहुल विदेश जाकर थोडा बदल गया तो क्या।
आज जब सोना ही जंग खाने लगे तो लोहे को क्या दोष देना।
जब मन को मनाना होता है तो बहाने हजार मिल जाते हैं । ऐसे ही दीनानाथ अपनी टीस दबाये निरपेक्ष होने का स्वांग रचा रहा था। पर हृदय चेहरे को नहीं झुठला पाया । उसके हृदय का रूदन आंखों से प्रकट हो गया ।वह अंदर से इतना टूट चुका था कि एक हवा का झोंका भी उसको दूर उडा ले जायेगा।शिक्षक ने उसके कंधे पर ढांढस भरा हाथ रखा पर दुखी हृदय को आराम कहां उसकी स्थिति तो उस किसान जैसी हो गई थी जिसकी जिंदगी भर की फसल वक्त के पाले ने खराब कर दी हो और सरकार एक हल्की सी रकम सा मुआवजा देकर ठहाके लगा रही हो । अचानक तेज हवा के साथ बारिश होने लगती है । दीनानाथ का अपने पुत्र पर झूठा गर्व पानी पानी होकर बहने लगा।उसके मन का भार हल्का हो गया वह ऐसा महसूस करने लगा मानो आज और अभी दुनिया में आया हो। वह दोनों हाथ उठाकर इस अंर्तजागृति के लिये उस परमात्मा का शुक्रगुजार था। अब वह पानी जितना सरल हो गया था ।उसको हर छोटे नये पौधे में राहुल दिखता ।परन्तु उसके पेड बनने की कल्पना से ही वह डर जाता है और शांत मन से वह धर की ओर चल देता है जहां बिखरी पडीं हैं पुरानी यादें । उसे उन्हें समेटना हैं रखना है यथास्थान और जगह बनानी है नयी यादों नये रिश्तों नयी रस्मों नये लोगों के लिये ।
प्रस्तुतिः नवीन पटवा
सहायक प्राध्यापक,अंग्रेजी
शासकीय नेहरू महाविद्यालय,अशोकनगर (म․प्र)
अच्छी कहानी
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