मुंह बनाकर आनंदीराम भोजन करने लगा.पत्नी रमशीला से रहा नहीं गया.उसने कहा-मुंह बनाकर भोजन करने का कारण ?‘ आं...
मुंह बनाकर आनंदीराम भोजन करने लगा.पत्नी रमशीला से रहा नहीं गया.उसने कहा-मुंह बनाकर भोजन करने का कारण ?‘ आंनदीराम चुप रहा.वह थाली बजा अपना क्रोध प्रदर्शित करते रहा.रमशीला समझ चुकी थी.आनंदीराम को क्रोध तभी आता है जब सब्जी स्वादिष्ट न बनी हो.यह सत्य भी था,कटोरी की सब्जी ज्यों की त्यों धरी थी.रमशीला ने पुनः प्रश्न किया -तुम सब्जी नहीं खा रहे हो ?‘
पत्नी का प्रश्न आनंदीराम को चुभ गया .वह तिलमिला गया.कटोरी की ओर इंगित करके कहा-यह कोई सब्जी है.पैसे फेंककर मुर्गे लाता हूं .सोचता हूं -दो कौर ज्यादा खाऊंगा.तुम सब्जी को नाश करके रख देती हो.‘ रमशीला पर दोषारोपण होते ही वह तिलमिला गई.बोली-दोष मेरा नहीं ,दोष आपका है . प्राकृतिक रुप से बढ़े हुए मुर्गे और अप्राकृतिक रुप से बढ़े मुर्गे में अंतर तो होगा ही न ? अपनी छाती पर हाथ रखकर सोचो ,क्या मैंने पूरी ईमानदारी और लगन के साथ सब्जी नहीं बनाई ? ‘ - खाक मेहनत लगन से सब्जी बनाई हो .....। ‘ आनंदीराम खीझ गया.उससे भोजन नहीं किया गया.वह उठ खड़ा हुआ.
पति-पत्नी का विवाद भोजन कक्ष से शयन कक्ष तक पहुंच गया. दोनों के मन खट्टे हो चुके थे.विवाद पर विराम ही नहीं लग रहा था. जहां आनंदीराम ने पैसा फेंककर मुर्गे का काकरेल लाया था , वहीं रमशीला ने सब्जी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.जब सब्जी बन रही थी,उससे उठती खुशबू से आनंदीराम की जिव्हा लपलपा रही थी.वह मान भी रहा था कि रमशीला ने सब्जी को स्वादिष्ट बनाने में जरा भी हिल - हवाला नहीं की .वह यह भी स्वीकार रहा था कि सब्जी में स्वादहीनता के लिए खाद-बीज पूरे जिम्मेदार है. इंजेक्शन-दवाई में पले -बढ़े मुर्गे की काकरेल में वह स्वाद हो ही नहीं सकता जो स्वाद प्राकृतिक रुप से बढ़े मुर्गे के काकरेल में होता है.
आनंदीराम ने निश्चय किया कि अब की बार वह प्राकृतिक रुप से पले -बढ़े मुर्गे का ही काकरेल खायेगा.अपनी इस इच्छा को पूरी करने के लिए उसने कड़कनाथ प्रजाति क े मुर्गे का चूजा ले आया.उस चूजे को आनंदीराम अधिक से अधिक गोश्त टूटने वाला मुर्गा बनाना चाहता था.उसने चूजे के रखने की व्यवस्था की. वह समय पर दानापानी डालता था.इल्लियां लाकर खिलाता.आनंदीराम के देखरेख और जतन का ही परिणाम था कि कड़कनाथ चूजा से मुर्गा बन गया. आनंदीराम और कड़कनाथ में निकटता आ गयी थी. आनंदीराम के आगमन का भान कड़कनाथ को हो जाता .वह कहीं भी रहता आनंदीराम के आने से डेना फड़फड़ा कर उसके पास आ जाता था.आनंदीराम भी बिना कड़कनाथ को देख बेचैन रहता .कड़कनाथ असामान्य मुर्गा था. वह बाँग देता तो उसकी आवाज दूर दूर तक गूंज उठती.डेना उठाकर फड़फड़ाने से ऐसा प्रतीत होता मानो विशालकाय वृक्ष हिला हो.एक-एक पग वह तौलकर रखता था.उसके भरे पूरे शरीर और दबंगता के समक्ष अन्य मुर्गे बौने लगते.वह एक प्रकार से अन्य मुर्गो का मुखिया बन बैठा था.
कड़कनाथ की दबंगता और रुतबा को देख आनंदीराम गौरवान्वित होता.कड़कनाथ के भरे-पूरे शरीर आनंदीराम को संदेह में डाल देता.उसे लगता - कड़कनाथ मेरे हत्थे चढ़ने के पूर्व किसी दूसरे के हत्थे न चढ़ जाए.‘ जितना डर उसे बनबिलाव का नहीं था,उससे कहीं अधिक डर आदमी का था.....। खेत क ा धान खलिहान में आ गया था.आनंदीराम कड़कनाथ को नया खाने के दिन मारना चाहता था.उसने कड़कनाथ का मांस चखने बेटी-दामाद को बुला लिया था. उस दिन वह धान मिंजाई करने खलिहान साफ कर रहा था कि खरखराहट की आवाज आयी. मुर्गे के इधर-उधर दौड़ने से आनंदीराम चौंक गया.उसने देखा-एक बनबिलाव खलिहान में घुस आया है.अन्य मुर्गे तो भाग खड़े हुए हैं पर कड़कनाथ जहां के तहां खड़ा है. वह दृश्य देखने लगा-बनबिलाव ,कड़कनाथ पर झपट्टा मारना चाहता है.कड़कनाथ के भरे-पूरे शरीर और दबंगता के सामने वह साहस नहीं जुटा पा रहा है. कड़कनाथ ने बनबिलाव को अकड़ कर देखा.जोरदार डेना फड़फड़ाया.चोंच से अपने पैर फि र जमीन को टोंचा.बनबिलाव सकते में आ गया.कड़कनाथ ने डेना फड़फड़ाकर,बनबिलाव की ओर दौड़ लगाया.भयभीत बनबिलाव नौ-दो ग्यारह हो गया.
दृश्य देख आनंदीराम प्रसन्नता से खिल गया.उसने सोचा-कड़कनाथ ताकतवर तो है साथ ही साहसी भी इसके मांस खाने में मजा आयेगा.‘ आनंदीराम और परिवार को जिस दिन का इंतजार था, वह दिन भी आ गया.आंनदीराम और उसके दामाद कड़कनाथ को मारने की व्यवस्था में जुट गए. इधर रमशीला सब्जी बनाने मसाले की व्यवस्था करने में लग गयी.आनंदीराम कड़कनाथ के पास गया. आनंदीराम के हिंसात्मक विचार से कड़कनाथ अनभिज्ञ था.वह सहजता पूर्वक आनंदीराम के हाथ में आ गया.आनंदीराम की पकड़ अन्य दिनों की अपेक्षा मजबूत थी.कड़कनाथ के भीतर आशंका सिपचने लगी.वह फड़फड़ाने लगा.आनंदीराम की पकड़ मजबूत और मजबूत हो गयी.दामाद ने आनंदीराम को हथियार थमाया.आनंदीराम ने धारदार हथियार से कड़कनाथ का डेनाअलग करना चाहा.अचानक आनंदीराम की द्य्ष्टि कड़कनाथ की आँखों में जा टिकी.उसकी ऑँखों से लाचारी झलक रही थी.आनंदीराम के मन में विचार उठा- वह लाचार और असहाय पर अत्याचार तो नहीं कर रहा ?‘
आनंदीराम ,कड़कनाथ का डेना उसके शरीर से अलग नहीं कर सका.दामाद ,कड़कनाथ को मारने जोर देता रहा मगर आनंदीराम की शक्ति क्षीण हो गयी.उसकी पकड़ ढीली पड़ती गई. स्थिति यहां तक पहुंची कि क ड़कनाथ,आनंदीराम की पकड़ से छुटकारा पा गया.आनंदीराम ने हथियार फेंक दिया.दामाद ने कहा -ये आपने क्या किया ? -किसी और दिन कड़कनाथ को मार लेंगे......। इतना कह आनंदीराम वहां से चल पड़ा.
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सुरेश सर्वेद
तुलसीपुर, साईं मंदिर के पास,
राजनांदगांव छ.ग.
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