फेरीवाला घर की मुंडेर पर कौओं के कॉव-कॉव करने से पहले कपड़े का गट्ठर कंधे पर सहेजे अविराम वह चला जा रहा था एकान्त, अंतहीन दिशा की ओर....
फेरीवाला
घर की मुंडेर पर
कौओं के कॉव-कॉव करने से पहले
कपड़े का गट्ठर कंधे पर सहेजे
अविराम वह चला जा रहा था एकान्त, अंतहीन दिशा की ओर..............
वह चला जा रहा था..............
उन असंभावित ठिकानों की ओर
जहॉ से दो जून रोटी के लिये
नकद प्राप्ती की आशा बेईमानी भी हो सकती थी
उसके लिये
विश्वास की नैया में सवार
रोज की भांति फिर भी वह चला जा रहा था
वह चला जा रहा था
देश-समाज की समस्याओं से इतर
घर चलाने की चिंता में कोल्हू के बैल की तरह
खुद को शामिल करते
वह चला जा रहा था
उन मासूम बच्चे-बच्चियों की परवरिश की चिन्ता में अकेले
असमय काल के गाल में समा गए
जिनके माता-पिता पिछले साल
दूध की जगह जिन्हें प्राप्त हो रही थी
नमक घुला पानी
ं गिनती की रोटियॉ
कई-कई दिनों की थकावट से
लगातार संघर्ष के बावजूद
पगडंडियों से शहर तक
उसे तय करने थे वे रास्ते
जिनके भरोसे वह आश्वस्त कर चुका था बच्चों को
अगले कुछ दिनों के राशन-पानी की जुगाड़ के लिये
वह चला जा रहा था अपने छोटे-छोटे कदमों पर बल देते
उसी एक ठिकाने की ओर
(2)
दूसरे दिन आने का आश्वासन देकर
जो ग्राहक चाह रहे थे अपना पिंड छुड़ाना
एक छोटी सी पूॅजी का गट्ठर
संभाले जा रहा था एक फेरीवाला के संपूर्ण जीवन का बोझ
बच्चों की स्वाभाविक हॅसी
उनके मृत मॉ-बाप की इच्छा
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नुनुवाँ की नानी माँ
सोते से
कोई नहीं उठाता अल-सुबह
अब स्कूल के लिये
जबरन नास्ते में शामिल की
नहीं करता कोई खुशामद बार-बार
दरवाजे पर खड़ा
दिखता नहीं परेशां कोई कभी
टेम्पो आने की खबर पाकर पहले की तरह
चुटकी भर प्यार व
एक चुम्बन को तरस रहा
अर्से बाद पहली दफा
लोगों ने देखा भरी आँखों रोते नुनुवाँ को
ढरक रहे उसकी आँखों से
अविरल आँसु
और वह ढ़ूँढ़ता जा रहा
चन्दामामा
विक्रम-बेताल
परियों की कहानी सुना-सुना कर
प्रतिदिन अपने आगोश में
सुला जाने वाली
उस अच्छी-प्यारी, न्यारी नानी माँ को
बिना कहे छोड़कर चली गई जो उसे.........!!!
वह चाह रहा जानना
मम्मी-पापा से
मौसी-मामा से
बिना कहे कुछ
कब-क्यूॅ और कहाँ
चली गई नानी मॉ..............?
बच्चे के सवाल से
कलप रही आत्माएँ सबकी
निरुत्तर सभी
प्रश्नों की खड़ी श्रृखला से
किसे मालूम
अनायास छोड़कर सभी को
क्यूँ और कहाँ चली गई वें
एक साथ कई-कई चुप्पियों के
टूटने की आपसी जिरह के बीच
सवालात वहीं के वहीं धरे रहे फिर भी उसके
आप ही बतला दीजिये न
रुठकर आखिर कहाँ चली गईं नानी माँ ?
थक-हार कर नाना जी से ही अंतिम सवाल
क्या बतलाऐ कोई कि
अब नहीं रहीं इस पृथ्वी पर नुनुवाँ की नानी माँ .........!!!
कि निर्धारित वक्त से पूर्व ही
वे चाहती रही होगीं चली जाना छोड़कर
रोते-विलखते नुनुवाँ को
गुलशन के अन्य फूलों को
कि उपर वाले की यहि मर्जी रही होगी शायद....।
कि वापस लौटेगीं जरुर
बच्चे के बचे चुम्बन की खातिर
सबकुछ समझ चुका नुनुवाँ की
बातों को ही मानना पड़ा सच अंततः
रोते-रोते
थक-हार कर सोने की मुद्रा में
बुदबुदाऐ जा रहा था जो
जरुर आऐगी एक दिन उसकी प्यारी-न्यारी नानी माँ....!!!
नाना जी का सामान
बहुत दिनों से
घर के पूर्वी कोने में
सहेज कर रखे गए
चमड़े के उस बैग को जला दिया गया
नौकरी पाने की खुशी में
खरीद रखा था नाना जी ने जिसे चालीस वर्षों पूर्व
एक बड़े शहर के फुटपाथ पर पहली दफा
फेंक दिये गए पुराने पतलून
चिप्पी सटे जूते
फटी जुरावें
आईना-कंघी
उनकी अनुपस्थिति में भी
प्रति दिन एहसास करा जाता जो
उनकी बहुमूल्य उपस्थिति का
कबाड़खाने में लगातार हथौड़े की मार सह रहे
उस चार पहिया वाहन को भी बेच डाला गया
बहुत कम कीमत पर
आखिरी मर्तबा जिसे बनाने में खर्च करने पड़े थे उन्हें
माह भर के पेंशन के सारे रुपये
इस उम्र में थका देने वाला श्रम
बाबू जी के लिखे पोस्टकार्ड
माँ की ओर से भेजा गया दीर्घायु का आर्शीवाद
बच्चों को ढेर सारा प्यार
सब कुछ शामिल था उस कूड़े के ढेर में पड़े
एक छोटे से पत्र में
संभाल रखा था जिन्हें नामालूम वर्षों से सिरहाने नाना जी ने
देखते रहे सबकुछ सामने
उनके समय की व्यवस्था में ही प्रति दिन आ रहे बदलाव को
अपने ही अधिकारों में इस समय की पीढ़ी के अतिक्रमण को
प्रयास करते रहे ढ़ूँढ़ते रहने के
समय के अन्तर में परिवर्तन की मनोदशा को
चाह कर भी
नहीं कर पा रहे थे बयां
कि जिस चमड़े के बैग को जला दिया गया बेवजह
जीवन की कही-अनकही
कितनी यादें रही होगीं उससे जुड़ी
नाना जी अब नहीं करते परवाह
अपने सामानों की
निर्धारित स्थान पर सहेज कर रखने की जन्म से अपनी आदतों के बावजूद
वे करते वही
उनकी पकड़ से कैच कर लिये जाने वाले काम की तलाश में
निगरानी रख रहे बच्चों को पसंद आ रहा होता जो
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एक पागल
बस स्टॉप,
कचहरी परिसर
नुक्कड़, चौक-चौराहों पर
प्रतिदिन हाथ फैलाकर भीख मॉगता
नहीं देखा जा रहा वह इन दिनों
वह नहीं देखा जा रहा
चाय की दुकानों पर काम करने वाले उन लड़कों को गरियाते
कपटी भर चाय पिलाने के एवज में
अपनी उम्र के हिसाब से जो परोसते भद्दी-भद्दी गालियाँ उसे
कंकड़-ढेलों की मार से जिसका होता आतिथ्य सत्कार प्रतिदिन
और माथे पर हाथ धरे बचने की मुद्रा में जो बढ़ता जाता गुर्राता हुआ आगे
उन वकीलों-मुवक्किलों के आजु-बाजू भी नहीं देखा जा रहा वह इन दिनों
रुपये-दो रुपये देने के एवज में जो चाहते उससे
लगातार कई-कई घंटों तक की हँसी
न समझने वाली उसकी मुस्कुराहट में
महसूसते समाप्त होती दिन भर की जो अपनी थकावटें
कहाँ और क्यूँ चला गया किसी को कुछ भी पता नहीं
उसके न रहने से लोगों के चेहरे पर छा गई खामोशी
अवरुद्ध सा हो गया हँसी का फव्वारा
दिन भर काम समाप्त कर वापस घर लौट जाने की एक बड़ी शान्ति
पूरा पागल था वह
सभी यही कहते
वह पागल था, क्योंकि
जलपान की दुकान पर लोगों के छोड़े जूठन खाकर
मिटाया करता अपनी भूख आवारा कुत्तों के साथ
गंदे पानी पीकर बुझाता दिन भर की प्यास
सड़क पर रात्रि विश्राम कर कटती जिसकी जिन्दगी
नहीं दिख रहा कई दिनों से इधर
लोग चाह रहे जबकि वह दिखे पुरानी मुस्कुराहट के साथ
पहली नजर उसके दीदार से जिनके बीतते दिन शुभ
अनायास उसके गुम हो जाने से शिथिल हो गई लोगों की जुवां
किसी ने कहा, पड़ी मिली
गटर किनारे उसकी लाश
चार पहिऐ वाहन से कुचल कर हो गई होगी मौत
भुरभुरी पुल के समीप किसी ने कहा
उड़ती हुई किन्तु बाद में बिल्कुल पक्की
खबर आई कहीं से दोस्तों !
एक भारी वाहन के नीचे किसी बच्चे को बचाने में
कुर्बान कर दी अपनी जान उसने
जबकि बच्चे की जाति-धर्म, अमीरी-गरीबी, घर-मुकाम से था वह पूरी तरह बेखबर
उसकी मुस्कुराहट वैसी की वैसी ही थी बावजूद इसके
चेहरे पर जो दिखा करता उसके प्रतिदिन
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अमरेन्द्र सुमन
‘‘मणि बिला'', केवट पाड़ा (मोरटंगा रोड), दुमका, झारखण्ड, पिन-814101
जनमुद्दों / जन समस्याओं पर तकरीबन दो दशक से मुख्य धारा मीडिया की पत्रकारिता, हिन्दी साहित्य की विभिन्न विद्याओं में गम्भीर लेखन व स्वतंत्र पत्रकारिता।
जन्म ः 15 जनवरी, 1971 (एक मध्यमवर्गीय परिवार में) चकाई, जमुई (बिहार)
शिक्षा ः एम0 ए0 (अर्थशास्त्र), एल0एल0बी0
रूचि ः मुख्य धारा मीडिया की पत्रकारिता, साहित्य लेखन व स्वतंत्र पत्रकारिता
प्रकाशन ः देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, जैसे - साक्ष्य, समझ, मुक्ति पर्व, अक्षर पर्व, समकालीन भारतीय साहित्य, अनुभूति-अभिव्यक्ति, स्वर्गविभा ,तथा सृजनगाथा (अन्तरजाल पत्रिकाऐं) सहित साहित्य, योजना, व अन्य साहित्यिक/राजनीतिक पत्रिकाएँ, सृष्टिचक्र, माइंड, समकालीन तापमान, सोशल अॉडिट, न्यू निर्वाण टुडे, इंडियन गार्ड (सभी मासिक पत्रिकाऐ) व अन्य में प्रमुखता से सैकड़ों आलेख, रचनाएँ प्रकाशित साथ ही कई दैनिक व साप्ताहिक समाचार-पत्रों - दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, चौथी दुनिया, ,(उर्दू संस्करण) देशबन्धु, (दिल्ली संस्करण) राष्टी्रय सहारा,(दिल्ली संस्करण) दि पायनियर , दि हिन्दू, (अंग्रेजी दैनिक पत्र) प्रभात खबर, राँची एक्सप्रेस,झारखण्ड जागरण, बिहार अॉबजर्वर, सन्मार्ग, सेवन डेज, सम्वाद सूत्र, गणादेश, इत्यादि में जनमुद्दों, जन-समस्याओं पर आधारित मुख्य धारा की पत्रकारिता, शोध व स्वतंत्र पत्रकारिता। सैकड़ों कविताएँ, कहानियाँ, संस्मरण, रिपोर्टाज, फीचर व शोध आलेखों का राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन।
पुरस्कार एवं
सम्मान ः
शोध पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अन्तराष्ट्रीय प्रेस दिवस (16 नवम्बर, 2009) के अवसर पर जनमत शोध संस्थान, दुमका (झारखण्ड) द्वारा स्व0 नितिश कुमार दास उर्फ ‘‘दानू दा‘‘ स्मृति सम्मान से सम्मानित। 30 नवम्बर 2011 को अखिल भारतीय पहाड़िया आदिम जनजाति उत्थान समिति की महाराष्ट्र राज्य इकाई द्वारा दो दशक से भी अधिक समय से सफल पत्रकारिता के लिये सम्मानित। नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में 19 व 20 दिसम्बर 2012 को अन्तरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य में अनुवाद विषय का महत्व पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में सहभागिता के लिये प्रशस्ति पत्र व अंगवस्त्र से सम्मानित। साहित्यिक-सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों में उत्कृष्ट योगदान व मीडिया एडवोकेसी से सम्बद्ध अलग-अलग संस्थाओं / संस्थानों की ओर से अलग-अलग मुद्दों से संबंधित विषयों पर कई फेलोषिप प्राप्त। सहभागिता के लिए कई मर्तबा सम्मानित।
कार्यानुभव ः मीडिया एडवोकेसी पर कार्य करने वाली अलग-अलग प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में बतौर रिसोर्स पर्सन कार्यो का लम्बा अनुभव। विज्ञान पत्रकारिता से संबंधित मंथन युवा संस्थान, रॉची के तत्वावधान में आयोजित कई महत्वपूर्ण कार्यशालाओं में पूर्ण सहभागिता एवं अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त। कई अलग-अलग राजनीतिक व सामाजिक संगठनों के लिए विधि व प्रेस सलाहकार के रूप में कार्यरत।
सम्प्रति ः अधिवक्ता सह व्यूरो प्रमुख ‘‘सन्मार्ग‘‘ दैनिक पत्र व ‘‘न्यू निर्वाण टुडे ‘‘ संताल परगना प्रमण्डल ( कार्यक्षेत्र में दुमका, देवघर, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज व जामताड़ा जिले शामिल ) दुमका, झारखण्ड
Ekks0% & 9431779546 ,oa 9934521554
email:--amrendra_suman@rediffmail.com
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