डाँ.नन्दलाल भारती एम.ए. । समाजशास्त्र। एल.एल.बी. । आनर्स । पी.जी.डिप्लोमा-एच.आर.डी. । । श्रमवीर। । खेवसीपुर वाली महन्थ नानी कहने को तो अन...
डाँ.नन्दलाल भारती
एम.ए. । समाजशास्त्र। एल.एल.बी. । आनर्स ।
पी.जी.डिप्लोमा-एच.आर.डी.
। । श्रमवीर। ।
खेवसीपुर वाली महन्थ नानी कहने को तो अनपढ़ थी। पराधीन भारत में वे भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ मुहिम चला रखी थी। नाना कालूराम शिवनरायनी परम्परा के बड़े महन्थ थे उन्हें लोग आदर के साथ नानाजी कहने लगे थे। शोषित समाज के उत्थान के लिये वे आजीवन संघर्षरत रहे। उनके शिष्यों की संख्या हजारों में थी। उनके संदेशों पर अमल करने वाले कई लोग शैक्षिक और आर्थिक विकास की धारा से भी जुड़ रहे थे। अचानक बड़े महन्थजी का देवलोक गमन हो गया। महन्थजी के देवलोक गमन के बाद उनकी धर्मपत्नी महन्थदेवी ने उनकी गद्दी संभाल ली जो बाद में चलकर खेवसीपुर वाली महन्थ नानी के नाम से मशहूर हुई। महन्थ नानी नाना कालूराम के मिशन को आगे बढ़ाने में जुट गयी। वे अपने शिष्यों के साथ पुत्रवत् व्यवहार करती वे अपने संदेश में कहती बच्चों मन से हीन भावना को कोसों दूर रखो जातिवाद एक भ्रम है। कमजोर वर्ग का आदमी साजिश का शिकार है। हर आदमी में शूद्र वैश्य,क्षत्रीय और ब्राहमण के गुण विद्यमान होते हैं। एक वर्ग को अछूत मानकर उसका शोषण करना दैवीय सत्ता के खिलाफ है। बच्चों सदकर्म की राह चलो जमाना तुमको एक दिन सिर पर बिठायेगा। नानी का आध्यात्मिक संदेश कई लोगों के जीवन बदल दिये थे। भले ही नानी को अछूत वर्ग का होने के कारण प्रचार-प्रसार जो साधन उपलब्ध थे उनसे कोसों दूर थे पर पर उनके शिष्यों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही थी। खेवसीपुर वाली नानी की प्रसिद्धि निम्न वर्णिक समाज में खूब थी पर कुछ उच्च वर्णिक लोग भी नानी के महन्थई पर यकीन करने लगे थे। नानी के संदेश उनके घर-मंदिर से सैकड़ों कोस दूर से श्रमवीर को खींच लाया। श्रमवीर अंग्रेजों के जमाने में दूसरी जमात तक पढ़ लिख गया। लिखना पढ़ना उसे अच्छी तरह से आता था। अंग्रेजो की गोदाम में कामगार हो गया था। वह नानी की शरण में पहुंचा। नानी ने उसे अतिथि देवो भवः का सम्मान करते हुए उच्च आसन पर बिठाया। श्रमवीर के माथे पर उदासी के मंड़राते बादल देखकर नानी बोली बेटा तुम्हारी क्या परेशानी है।
श्रमवीर-मैं आपका शिष्य बनने की तमन्ना लेकर कोसों दूर से आया हूं।
नानी-बेटा मेरा शिष्य बनने के लिये घर छोड़ने की जरूरत नहीं है। घर-परिवार के अपने दायित्वों को निभाते हुए भक्ति परम्परा पर खरे उतर सकते हो। नानी ने उसके घर-परिवार हित-मित के बारे में कुशल क्षेम पूछी। पत्नी, बच्चों- बुद्धायन, शरणायन, गीतायन, संन्ध्यान की जानकारी ली।
श्रमवीर-महन्थ नानी को घर परिवार के बारे में विस्तार से बताते हुए बोला माता मैं आपकी हर आज्ञा का पालन करूंगा बस मुझे शिष्य बना लीजिये।
नानी ने श्रमवीर के कान में बिना किसी औपचारिकता के गुरू-मन्त्र फूंक दिया था।
श्रमवीर दीक्षा लेकर अपने गांव लौट आया। नानी के संदेशों को दूर -दूर फैलाने में जुट गया।
बेटा बुद्धायन,शरणायन,बेटी गीतायन और संन्ध्यान स्कूल जाने लगे थे। श्रमवीर भैंस को हौंद पर लगाकर नीम की छांव के नीचे खटिया पर बैठा ही था कि गांव के जमींदार जो प्रधान भी थे आ धमके। डनहे देखकर श्रमवीर खटिया से उठ खड़ा हो गया।
प्रधानजी बोले-अरे श्रमवीर तुम लोगों को आरक्षण क्या सरकार ने दे दी तुम लोग हम जमीदारों के मुकाबले में उतर आये। तुम्हारे बच्चे तो स्कूल जाने लगे है,तुम तो अंग्रेजी सरकार के दमाद थे तुम्हारी औलादें स्वतन्त्र देश की दमाद हो जायेगी। तुम लोगों के लिये जब से स्कूल के दरवाजे खुले है तब से तो तुम लोग सरकारी बा्रहमण हो गये हो।
श्रमवीर-माथे ठोंकते हुए बोला प्रधानजी हमसे क्या गुस्ताखी हो गयी कि इतना ताना महना मार रहे हैं।
प्रधानजी-तुमसे क्या होगी ? हमसे हो गयी हमारे पूर्वजो से हो गयी कहते हो साइकिल आगे बढ़ा दिये। प्रधानजी के जाने के बाद घण्टों वह प्रधान की बात पर विचार मंथन करता रहा पर मर्म नहीं समझ पाया। घण्टों बाद बात भेजे में उतरी तो वह जोर से चिल्ला उठा अरे संध्यायन की मां आज तो गजब हो गया प्रधान जी अपनी ही नहीं पुरखों की गलती पर अफसोस जता गया। वह बोली हम लोग तो ठहरे सीधे-साध ये बाबू लोग ऐसे ही मीठी बोल-बोल कर हमारी जड़ उखाड़ते रहे हैं। अब तो बाबू लोगों की बात पर विश्वास नहीं होता।
श्रमवीर-देखो भागवान जमाना बदल गया है,बाबूलोग भी बदल रहे हैं,सरे-राह ऐसी बात एक दबंग जमींदार के मुंह से निकलना बदलाव की बयार है।
संध्यायन की मां बुद्धिमती बोली-यही लोग तो तुमको सरकारी ब्राहमण,सरकारी दमाद और बहुत कुछ कहकर अपमान करते हैं।
श्रमवीर-तुम क्या चाहती हो बच्चों को इंजीनियर बनाकर मिलिट्री और दूसरी सरकारी नौकरी में ना भेजूं।
बुद्धिमती-मैंने तो मना नहीं किया पर मरे बच्चे सरकारी दमाद नहीं बनेंगे।
श्रमवीर-मतलब......................?
बुद्धिमती-मेरे बेटी-बेटे बिना-रिजर्वेशन वाली नौकरी में जायेगे या तो............
श्रमवीर-या तो का मतलब ?
बुद्धिमती-देखो हमारे पुरखों की समझदारी की वजह से अपनी जमीन बची है। तुम खेतीबारी के काम के साथ राशन की दुकान भी चला रहे हो। तुम्हारे श्रम की बरक्त की वजह से कोई कमी नहीं है। क्यों न तुम बच्चों के व्यापार के ज्ञान देते । अरे अपने समाज के लोग जिनके पास कोई आसरा नहीं हैं,उन्हें सरकारी नौकरी करने दो।
श्रमवीर-बात तो दिमाग झकझोरने वाली कर रही हो । मांता महन्थदेवी का आगमन होने वाला है बच्चों के सामने उनसे रायशुमारी करेंगे। काश तुम्हारे जैसे सभी अपने वाले सक्षम लोग सोच लेते तो कम से कम हमारे शोषित समाज के बहुत लोगों का उद्धार हो जाता।
बुद्धिमती-बुद्ध किसी वक्त राजा थे,दुनिया के हित के लिये राजपाट और अपना परिवार छोड़कर जंगल चले गये थे आज उन्हें भगवान कहा जाता है,उनकी पूजा आराधना हो रही है। अपने बच्चे भी तो बुद्धम् शरणम् गच्छामि का मन्त्र बोलने लगे हैं।
श्रमवीर-बच्चों का भविष्य उन्हें निश्चित करने दो। हम तो उनके पालक है। लालन-पालन,उनको उचित शिक्षा-दीक्षा देना अपना दायित्व है।
बुद्धिमती-अरे खेवसीपुर वाली माताजी के शिष्य वह तो बड़ी ईमानदारी से कर रहे हो।
श्रमवीर-ठीक है माताजी पर छोड़ दो।
बुद्धिमती-चलो बच्चों को भूख लग रही है खाना खा लो।
श्रमवीर-क्या बच्चों को भूख लग रहे हैं हम है कि गप्पें लड़ा रहे हैं। रात में ही तो पूरे परिवार को एक साथ बैठकर खाने का मौका मिलता है। सुबह तो चारों बच्चों का स्कूल कालेज जाने का अलग-अलग टाइम होता है,वही हाल आने का भी। चलो खाना खा लेते हैं।
गीतायन रोटी तोड़ते हुए बोली मां बापू कौन सी गप्पों की बात कर रहे थे।
श्रमवीर-लो मेरी बात इनके कान तक पहुंच गयी।
संध्यायन-बापू कैसी बात करते हो आपकी बात हमारे कोनों को नहीं छुयेगी ?
बुद्धिमती-बेटा खाते समय बातें नहीं करते तुम्हारे बापू कहते हैं ना ।
गीतायन-मां टाल रही हो।
श्रमवीर-टालने जैसी कोई बात नहीं है बेटा,मेरी गुरू मां का आगमन होने वाला है।
बुद्धायन-कब खेवसीपुर वाली नानी मां के चरणों से हमारा घर धन्य होने वाला है।
शरणायन-क्या.......? हमारे घर नानी मां आ रही है।
बुद्धिमती- हां बेटा। खाना खाओ। माता अपने घर विश्राम करेगी।
शरणायन-भईया ठीक कह रहा है हमारा घर धन्य हो जायेगा,महन्थ नानी मां के पांव पड़ते ही।
महीनों बाद नानी मां का आगमन श्रमवीर के गांव में हुआ सभी लोग नानीमां की आगवानी किये। नानीमां सप्ताह भर गांव में रूकी हर शाम उनका उपदेश होता नानीमां अधिकतर शिक्षा,सामाजिक समानता और देशप्रेम के मुद्दे पर दिल को छू लेने वाली अमृत वचन सुनाती थी। नानीमां कहती थी सभी तरक्कियों की चाभी शिक्षा है। तरक्की से दूर फेंके गये लोगों को शिक्षा को हथियार बनाना चाहिये। बिना शिक्षा के आदमी अपाहिज समान है। सेठ-साहूकारों ने कमजोर तबके लोगों के अनपढ़ होने का भरपूर फायदा उठाया है। सौ रूपये के कर्ज देकर हजारों पर अंगूठा लगवा लेते थे । आज जबकि देश को आजाद हुए पच्चास साल हो गये इसके बाद भी अनपढ़ों के साथ हादसे हो रहे हैं। शिक्षित आदमी को हर जगह मान-सम्मान मिलता है। लड़कों के साथ लड़कियों को भी पढ़ाना जरूरी हो गया है। जब घर में पढ़ी लिखी बहू आयेगी तो ऐसी बहू आने से तरक्की स्वयं चलकर आयेगी। नानीमां शिक्षा पर बहुत जोर देती थी। बीच-बीच में श्रमवीर के बच्चों का जिक्र भी कर देती थी क्योंकि श्रमवीर का मानना था कि बच्चों को विरासत में धन नहीं शिक्षा,वह भी ऐसी शिक्षा देनी चाहिये जिससे बच्चा अपने पांव पर खड़ा हो सके। नानीमां अपने संदेश में शिष्य श्रमवीर का उदाहरण पेश करती थी। रविदास और कबीर के दोहों से नानीमां अपना शिष्यों को संदेश देना प्रारम्भ करती थी और अन्त भी।
आखिरी संदेश के बाद नानीमां की आंखे भर आयी थी। श्रमवीर का गांव छोड़ते हुए उन्हें तकलीफ तो हुई,गांव वाले भी उन्हें नहीं देना जाना चाहते थे। नानीमां बोली शिष्यों जैसे पानी एक जगह रूक सड़ने लगता है वैसे ही साधु का जीवन होता है, भले ही मैं गृहस्त हूं पर गृहस्ती का भार मेरे उपर नहीं है,सब कुछ तीनों बेटों को सौंप कर महन्थ का जीवन जी रही हूं। अब मैं संदेश देकर चलते रहना मैं अपना कर्म समझती हूं।
नानीमां के विश्राम का इन्तजाम श्रमवीर के आवास पर था। रात में परिवार के साथ श्रमवीर घण्टों बतियाता रहता था। अलसुबह नानीमां को प्रस्थान करना था । श्रमवीर नानीमां से बोला नानीमां एक प्रश्न मेरे दिल में मेरे बच्चों के भविष्य को लेकर है,आज्ञा दे तो पूछूं।
नानीमां-श्रमवीर के उपर मातृत्व भरा हाथ फेरते हुए बोली पूछो बेटवा।
श्रमवीर गदगद होकर बोला नानी मां बच्चों के भविष्य में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
नानीमां-बच्चों को खुद अपनी राह चुनने दो।
श्रमवीर-दोनों बेटे बोलते हैं नौकरी नहीं करना है सरकारी दमाद नहीं कहलाना है। नानीमां बच्चों को इंजीनियर बनाने का क्या फायदा।
नानीमां-बच्चे क्या करना चाहते हैं।
श्रमवीर-दोनों नौकरी करने की नहीं नौकरी देने की बात करते हैं। बेटियां शिक्षा की मशाल जलाना चाहती है।
नानीमां-बच्चों की तो बहुत उंची सोच है श्रमवीर बेटा।
श्रमवीर-नानीमां इतनी उंची-उंची शिक्षा लेकर बच्चे नौकरी नहीं करने को कह रहे हैं,आप कह रही है उंची सोच है। ये कैसी सोच मां ।
नानीमां-बच्चों का सपना उद्योग लगाना है।
श्रमवीर-नानीमां उद्योग खड़ा करने के लिये तो बहुत रकम की जरूरत होगी। मैं कोई उद्योगपति खानदान का नहीं,ठहरा निम्न वर्णिक बच्चों का सपना कैसे पूरा कर सकूंगा।
नानीमां-बच्चों की मंशा अच्छी है,ज्ञान की पूंजी उनके पास है। जरूर सफल होगे। तुम उनका साथ दो। शिक्षा की पूंजी तुम्हारे खानदान में आ चुकी है। मुझे विश्वास है दोनों बेटे बुद्धायन और शरणायन उच्च उद्योगपति बनकर तुम्हारा ही नहीं तुम्हारे गांव का नाम रोशन करेंगे। बेटियां गीतायन और संन्ध्यायन ने शिक्षा की मशाल जलाने का प्रण कर चुकी है। अपने लिये रास्ता भी बनाने लगी है। उनके पांव जमने के बाद सुयोग वर तलाश की उनका ब्याह गौना कर दो। डां अम्बेडकर बाबा ने कहा ही है शिक्षित बनो संघर्ष करो अब वक्त आ गया है शिक्षित होकर सम्पन्न बनने का विकास करने का। श्रमवीर बेटा बच्चों को अपने भविष्य का फैसला लेने दो । बैसाखी मत बनो बच्चे उच्च शिक्षित है जो करेंगे अच्छा करेंगे, विश्वास रखो इससे तुम्हारे कुनबे का मान-सम्मान बढ़ेगा ।
बुद्धायन बोला-नानीमां यही तो हम भी कह रहे हैं पर बापूजी हैं कि मानते नहीं। रोज-रोज अखबार में छपे नौकरी का इश्तहार लेकर आ जाते हैं कहते हैं यह नौकरी अच्छी रहेगी। नानीमां हम दोनों भाईयों ने नौकरी नहीं करने का मन बना लिया है। बहनें भी अपनी राह चुन चुकी हैं।
श्रमवीर-तुम दोनों नौकरी नहीं करोगे तो क्या करोगे ।
बुद्धायन और शरणायन-उद्योग स्थापित करेंगे।
श्रमवीर-करोड़ों की पूंजी कहां से आयेगी फिर क्या भरोसा उद्योग चलेगा।
बुद्धायन-विश्वास करो बापूजी आपका मान जरूर बढेगा। रही बात पूंजी की तो सरकार कर्ज देती है उद्योग लगाने के लिये।
श्रमवीर-मुझे तो डर लग रहा है,हम तो उद्योगपति घराने से नहीं रहे।
बुद्धायन-बापूजी जोखिम तो उठाना पड़ेगा कुछ बनने के लिये। नौकरी में भी तो खतरे हैं। जातीय भेद के कारण अपरोक्ष रूप उच्च शिक्षितों को दण्डित किया जाता है। निम्न वर्र्णिक अफसरों कर्मचारियों की चरित्रावली खराब कर दी जाती है। उनका विकास रूक जाता है,कई उच्च शिक्षित निम्न वर्णिक कर्मचारियों ने आत्महत्या तक कर लिये हैं। कालेज के छात्रों का भविष्य सुरक्षित नहीं है। जातीयता को आधार बनाकर उनका मूल्याकंन होता है,कई होनहारों ने आत्महत्या कर लिये हैं। बापूजी दोनों तरफ खतरे हैं। जिस राह पर हम दोनों भाई जाने की सोच रहे हैं उसके लिये हम खुद जिम्मेदार होंगे।
नानीमां-श्रमवीर तुमको तो और खुश होना चाहिये कि तुम्हारे औलादें फैसला लेने की कूवत रखती हैं। मेरा आर्शीवाद है बुद्धायन,शरणायन,गीतायन और संन्ध्यायन जो भी फैसले लेंगे तुम्हारे लिये ही नहीं दूसरे और नवजवानों के लिये प्रेरणादायी होगा।
श्रमवीर-मुझे अब कुछ नहीं कहना है नानीमां आपका आशीष बच्चों के साथ हैं तो मुझे डर कैसा ?
दूसरे दिन अलसुबह नानीमां प्रस्थान कर गयी। बुद्धायन और शरणायन उद्योग स्थापित करने से पहले कुछ महीनों की ट्रेनिंग के लिये शहर चले गये। ट्रेनिंग के बाद दोनों भाईयों ने मिलकर श्रमवीर इंजिनियरिंग कम्पनी की स्थापना कर दिये। धीरे-धीरे कम्पनी की साख में वृद्धि होने लगी। कम्पनी का कारोबार चल निकला। क्पनी का टर्नओवर करोड़ों का हो गया। बुद्धायन और शरणायन की जिद रंग लायी। बुद्धायन और शरणायन की खुली आंखे का सपना सच हुआ। दोनों भाई बिना किसी धार्मिक एवं जातीय भेदभाव के नवजवानों को नौकरी देने लगे। श्रमवीर इंजिनियरिंग कम्पनी मानवीय समानता की मिशाल साबित होने लगे। बुद्धायन और शरणायन कम्पनी के आम कर्मचारियों के साथ काम करते,इससे कर्मचारियों का मनोबल बढ़ गया था। कर्मचारी खुद की कम्पनी समझकर बड़े ईमानदारी से काम करते थे। बुद्धायन और शरणायन कम्पनी के निदेशक होकर भी आम कर्मचारियों के साथ काम करते और उनकी तरह कम्पनी से तनख्वाह लेते थे। कम्पनी को जो मुनाफा होता उसका आधा हिस्सा कर्मचारियों में बांट जाता था,25 प्रतिशत कम्पनी के विकास पर बाकी कर्मचारियों के वेलफेयर,चिकित्सा,शिक्षा और समाजिक कार्यो पर खर्च होने लगा था। कम्पनी के अध्यक्ष श्रमवीर ने एक योजना चालू कर दी थी,कम्पनी का जो भी कर्मचारी अपने बच्चे को उंची शिक्षा दिलाने में असमर्थता होगे उनके बच्चे की शिक्षा का भार कम्पनी बिना किसी ब्याज के ऋण के कर्ज देकर शिक्षा पूरी करवाने भार वहन करेगी। यदि कर्र्मचारी के पुत्र-पुत्री के शिक्षा पूरी करने के बाद कम्पनी में नौकरी करना चाहेंगे तो उन्हें योग्यतानुसार नौकरी भी देगीं। श्रमवीर के इस योजना का कम्पनी को बड़ा लाभ हुआ। कम्पनी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगी। श्रमवीर अब सेठ श्रमवीर महन्थायन हो गये थे। बुद्धायन और शरणायन ने मानवीय समानता के प्रतीक के रूप में कम्पनी के मुख्य कार्यालय परिसर में भगवान बुद्ध की विशालकाय प्रतिमा का निर्माण करवा दिया था। सेठ श्रमवीर महन्थायन से कुछ विदेशी पत्रकारों ने उनकी तरक्की का कारण जानना चाहा तो उन्होंने बेहिचक बुद्धायन और शरणायन की उच्च शिक्षा के साथ कुछ नया करने की जिद बताया। सच भी है शिक्षा ही तो है जो सर्व-उन्नति की जननी है। ऐसे ही शिक्षा की जरूरतों आज देश के शोषित-पीड़ित समाज के नवयुवकों के लिये। देखना है भारतीय समाज और सरकार कब अपने फर्ज पर खरी उतरती थी।
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डाँ.नन्दलाल भारती...19.03.2013
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जनप्रवाह। साप्ताहिक। ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन
उपन्यास-चांदी की हंसुली,सुलभ साहित्य इंटरनेशल द्वारा अनुदान प्राप्त
नेचुरल लंग्वेज रिसर्च सेन्टर,आई.आई.आई.टी.हैदराबाद द्वारा भाषा एवं शिक्षा हेतु रचनाओं पर शोध कार्य ।
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