सुरेश सर्वेद की कहानी - अंतर्मुखी

SHARE:

अंतर्मुखी की आंखें जिस सड़क पर टिकी थी वह व्यस्त सड़क नहीं थी.पांच दस मिनट के अंतराल में एकाध गाड़ी फर्राटे मारते निकल जाती.उस सड़क में अंतर्मु...

अंतर्मुखी की आंखें जिस सड़क पर टिकी थी वह व्यस्त सड़क नहीं थी.पांच दस मिनट के अंतराल में एकाध गाड़ी फर्राटे मारते निकल जाती.उस सड़क में अंतर्मुखी की आंखें क्षितिज को खोज रही थी.क्षितिज अंतर्मुखी का न रिश्तेदार था न प्रेमी बस उनमें सामान्य जान पहचान थी.इसी बहाने उनकी मुलाकात अक्सर हो जाया करती थी.जब भी वे मिलते घण्टों बतियाते पर उन्हें कितना समय निकल गया इसका एहसास नहीं होता. उन्हें लगता - अभी कुछ ही क्षण गुजरे हैं.उनमें इतनी अंतरंगता आ गयी थी कि एक दूसरे से दूर होते ही वे परेशानी महसूस करते.

जाने आज सुबह से ही अंतर्मुखी को ऐसा क्यों लगने लगा था कि क्षितिज आयेगा.अंतर्मुखी बार बार खिड़की के पास खड़ी हो जाती और सड़क की ओर नजरें दौड़ाती पर हर बार उसके हाथ मायूसी लगती.वह हर बार खिड़की के पास से अलग होते समय सोचती कि वह अब खिड़की के समीप नहीं आयेगी मगर पल दो पल बाद वह स्वयं को पुनः खिड़की के समीप पाती.अब उसे स्वयं पर क्रोध आने लगा था.वह बड़बड़ा उठी -मैं क्यों क्षितिज का इंतजार कर रही हूं । उसे आना होगा तो आयेगा.अचानक उसका मन प्रफुल्लित हो उठा.आँखें चमक उठी.उसने देख लिया था - क्षितिज उसके घर की ओर आ रहा है.वह दरवाजा खोलने दौड़ी.चाह तो रही थी कि दरवाजा खोल दे मगर वह अपने उतावलेपन को उजागर करना नहीं चाहती थी.वह इंतजार करने लगी - क्षितिज के द्वारा घंटी बजाने का.जैसे ही क्षितिज ने डोर बेल बजायी. अंतर्मुखी ने दरवाजा खोल दिया.क्षितिज ने मुस्करा कर कहा - कहीं तुम मेरी ही प्रतीक्षा तो नहीं कर रही थी....?

- मैं भला तुम्हारी प्रतीक्षा क्यों करने लगी......? अंतर्मुखी झूठ बोल गयी.

दोनों भीतर आये.क्षितिज को कुर्सी में बैठने कह वह चाय बनाने जाने लगी कि टेबल पर रखा कीमती गमला डगमगा कर गिरने को हुआ.गिरते हुए उस गमले को बचाने दोनों के हाथ एक साथ बढ़े.और उनके हाथ आपस में चिपक गये.हाथों के स्पर्श से उनके शरीर में स्पंदन हुआ.उनकी चाहत थी - हाथ ऐसे ही चिपके रहें.अनायास उनमें झिझक उत्पन्न हुई.उन्होंने अपने - अपने हाथ खींच लिए.क्षितिज ने कहा - आज तो मुझे कुछ खाने की इच्छा हो रही है.

- मैं पुलाव बना लाती हूँ .....। अंतर्मुखी पुलाव बनाने चली गयी.

वापस आयी तो अंतर्मुखी के हाथ में पुलाव की प्लेट थी.पुलाव की प्लेट लेते समय क्षितिज ने जानबूझकर अंतर्मुखी के हाथ को स्पर्श किया.क्षण भर की सुखद अनुभूति से अंतर्मुखी सिहर उठी.वह पुलाव खाने लगा. अंतर्मुखी आनंदित थी. उसने पूछा - क्षितिज, पुलाव स्वादिष्ट है न ?

- कोई खास नहीं....।

अंतर्मुखी को झटका लगा.उसने सोचा था- क्षितिज पुलाव चख कर प्रशंसा के पुल बांध देगा.क्षितिज के वाक्यों से वह कुढ़ गयी.बोली - मैंने मर खप कर स्वादिष्ट पुलाव बनाया और तुमने मेरी तारीफ न करके एक झटके में अस्वीकार दिया ?

- अंतर्मुखी, तुम दिन - दिन आत्मप्रशंसक बनती जा रही हो यह किसी भी स्थिति में उचित नहीं.तुम्हारी झूठी प्रशंसा करुं यह मेरी आदत में शामिल नहीं.

अंतर्मुखी तिलमिला गयी. उसका क्रोध उफना उठा.वह उठ खड़ी हुई. क्षितिज ने उसे रोकना चाहा. अंतर्मुखी झटके के साथ भीतर चली गयी.उसी समय अंतर्मुखी के पिता पंकज आये.क्षितिज को अकेला देखकर पूछा -तुम यहाँ अकेले बैठे हो.अंतर्मुखी घर में नहीं है क्या ?

- जी, वह भीतर है....। क्षितिज का उत्तर था.

पंकज भीतर आये.उन्होंने देखा -अंतर्मुखी के चेहरे पर प्रसन्नता की आभा नहीं है. उसमें तनाव और क्रोध है.उन्होंने कहा - बैठक में क्षितिज अकेला बैठा है. और तुम ....।

- तो मैं क्या करुं ?

पहले तो क्षितिज को देखकर अंतर्मुखी चहकती थी.उनकी मुलाकात सामान्य होती थी. वे घण्टों बैठकर वार्तालाप करते पर पंकज ने कभी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया.आज जब अंतर्मुखी के मुंह से रुखा शब्द निकला तो पंकज को संदेह होने लगा.उसका संदेह तो तब और पुख्ता हो गया जब क्षितिज बिना बताए लौट गया.उसे लगने लगा कि निश्चय ही अंतर्मुखी और क्षितिज के बीच आंतरिक संबंध है.

क्षितिज के चले जाने के बाद अंतर्मुखी की छटपटाहट बढ़ गयी.वह बड़बड़ा उठी -मुझे क्षितिज से रुखा व्यवहार नहीं करना था. मैंने क्षितिज को जाने से क्यों नहीं.... पर सारा दोष मेरा ही तो नहीं.क्षितिज भी तो मुझे मना सकता था.जब वह कल आयेगा तो डटकर लड़ूंगी

जब तक क्षितिज और अंतर्मुखी में सामान्य व्यवहार चल रहा था तब तक पंकज ने इनकी ओर झांक कर देखने की आवश्यकता भी नहीं समझी.असामान्य व्यवहार ने उनमें संदेह उत्पन्न कर दिया था.वे अंतर्मुखी की एक एक गतिविधि पर ध्यान देने लगे.दूसरे दिन अंतर्मुखी क्षितिज की प्रतीक्षा कर रही थी.पंकज अनदेखा कर सब कुछ देख रहे थे.

अंतर्मुखी के परिवर्तित व्यवहार ने क्षितिज के मन को आघात पहुंचाया था.उसने निश्चय किया था कि वह अंतर्मुखी के घर नहीं जायेगा पर वह अंतर्मुखी के घर की ओर चल पड़ा.

अंतर्मुखी ने क्षितिज को देखा तो प्रसन्नता से खिल उठी .तत्क्षण ही उसके चेहरे में बदलाव आ गया.उसकी धड़कन बढ़ गयी. शरीर कांपने लगा.चेहरे पर आतंकित होने का भाव उभर आया.क्षितिज ने चौखट पर कदम रखा. उसने अंतर्मुखी को देखकर मुस्काना चाहा ही था कि अंतर्मुखी एक झटके के साथ उठी और भीतर चली गयी.क्षितिज को शॉक पहुंचा.वह उल्टे पैर लौट गया.

क्षितिज के आते तक तो अंतर्मुखी प्रतीक्षा करती और सोचती रहती कि आज क्षितिज पर बरसूंगी.कहूंगी - मैं तुमसे बात नहीं करती तो तुम तो बात कर सकते हो न ? मैं तुम्हें सदैव मनाती हूं तो क्या तुम मुझे एक बार नहीं मना सकते...? लेकिन क्षितिज को सामने पाकर वह वहां से भाग खड़ी होती.

वस्तुतः इस प्रकार का व्यवहार उच्चाकर्षण के कारण हो रहा था. दोनों में मित्रता थी मगर अचानक मतभेद होने से दूरियाँ बढ़ती चली गयी.

एक दिन दूर से ही क्षितिज ने अंतर्मुखी और हंसमुख को हंस हंस कर बातें करते देखा.वह छटपटा उठा.इच्छा तो हुई कि अंतर्मुखी को हंसमुख से बात करने से रोके पर ऐसा कर पाना उसके लिए संभव नहीं था.क्षितिज की आंखों के सामने बिजली कौंधी और प्रेरणा का चेहरा नाच उठा......।

प्रेरणा से उसकी गहन मित्रता थी.उनका आपस में घुलमिल कर उठना बैठना होता था.वे एक दूसरे से मिलने को तत्पर होते न मिलने पर विचलित.प्रेरणा ने क्षितिज के साथ जीवन जीने का विचार किया था.क्षितिज भी यही चाहता था.किंतु वे अपनी बात खुलकर नहीं कह सके स्पष्ट बातों के अभाव में उनकी इच्छा प्रकट नहीं हो पायी. इससे प्रेरणा में नैराश्य और हीनता आ गयी.वह समझने लगी - क्षितिज मात्र दिखावा करता है.वह किसी दूसरे को अपनी जीवन संगिनी बनायेगा. इस विचार के साथ प्रेरणा स्वयं को उपेक्षित समझने लगी.प्रेरणा तीव्र उत्तेजना का शिकार हो गयी.संवादहीनता ने उनके मध्य दरार पैदा कर दी.स्थिति यहाँ तक पहुंची कि जो भी उससे प्यार जताता उसके लिए वह समर्पित हो जाती.

प्रेरणा जब भी किसी को समर्पित होती तो इसकी सूचना क्षितिज को अवश्य देती.यह अपने मन क ी कुढ़न को कम करने का प्रयत्न था मगर इसके दुष्परिणाम स्वयं भोग रही थी - अनेक गंभीर रोगों को आमंत्रित करके.प्रेरणा जब भी सूचित करती क्षितिज विक्षिप्त हो जाता.वह विचलित मन की पीड़ा को कम करने शराब का सहारा लेने लगा.

लगातार शराब सेवन से दुष्परिणाम सामने आने लगे - उसके शरीर में जर्जरता आती गयी.वह जीवित होकर भी शव तुल्य हो गया.ऐसा भी समय आया जब उसमें घूंट भर शराब पीने की शक्ति नहीं रह गयी.

क्षितिज शराब की दुनिया से उबरा तो उसे प्रेरणा के संबंध में पता चला कि अति उत्तेजना और समर्पण के कारण वह सिफलिस रोग की शिकार हो गयी.वह कहाँ गई पता करने पर भी जानकारी नहीं मिली.

क्षितिज में अब गंभीरता आ गयी थी.वह शतरंज का प्रेमी तो था ही.अतः मन बहलाने पुनः शतरंज खेलने लगा.लगातार शतरंज खेलते खेलते उसमें दक्षता आ गयी.वह प्रतियोगिता में भाग लेने लगा.......।

सहसा क्षितिज विचारों से उबरा.अंतर्मुखी और हंसमुख अब तक एक दूसरे से बात करके हंस रहे थे.क्षितिज के समक्ष प्रश्न खड़ा हुआ -मैं प्रेरणा के जीवन में नायक बनने आया था पर संवादहीनता के कारण खलनायक बन गया.क्या अंतर्मुखी के जीवन में भी खलनायक बन जाऊंगा ?

क्षिजित एक नीम वृक्ष के तले खड़ा हो गया.उसने अपनी पीड़ा को कम करने आँखें बंद कर ली.उसकी व्यथा से द्रवित होकर नीमवृक्ष रो पड़ा.उसने आँसुओं की बूंदे गिराई .

क्षितिज के मन में कई प्रश्न हिलोरें मार रहे थे- क्या प्रेरणा की तरह अंतर्मुखी भी गर्त में चली जायेगी ?क्या उसका भी भविष्य अंधक ार में भटक जायेगा..... नहीं, नहीं , अब ऐसा कदापि नहीं होगा.मैं अंतर्मुखी का मित्र या हितैषी नहीं बन सका तो खलनायक या दुश्मन भी नहीं बनूंगा.अब किसी भी स्थिति में दुखांत कहानी की पुनरावृत्ति नहीं होगी.

क्षितिज के विचारों को नीम के वृक्ष ने भी सहमति दी.उसने अपनी डालियों को हिलाकर सद्भावना के पत्ते बरसाये.साथ ही क्षितिज को खुश्बूदार हवाएँ दीं.

वहाँ से क्षितिज सीधे सीमांत के घर गया.वह उसका मित्र था. सीमांत ने मुस्करा कर क्षितिज का स्वागत कि या.कहा - मैं जानता हूँ, तुम कहाँ से आ रहे हो ?

- हाँ मित्र, मैं अंतर्मुखी के ही घर से आ रहा हूँ .

- अंतर्मुखी के घर से आ रहे हो फिर भी निराश....? सीमांत ने कहा.

क्षितिज ने गहरी साँस भरते हुए कहा - अंतर्मुखी, सुन्दर - सुशील और भोली है. पता नहीं वह कैसे व्यक्ति की जीवन संगिनी बनेगी ?

- क्षितिज, ये तुम क्या कह रहे हो....?

सीमांत की आंखें आश्चर्य से फट गयी.उसने तो अब तक यही समझा था कि - क्षितिज और अंर्तमुखी का संबंध गहरा है और वे आपस में मिलकर जीवन यापन करेंगे.पर यहाँ तो क्षितिज का वाक्य इन विचारों का विरोध कर रहा था.क्षितिज ने आगे कहा - जो भी अंतर्मुखी से जुड़ेगा उसका परिवार सदैव सुखी और शांत रहेगा.......। क्षितिज थोड़ा रुका. कहा - सीमांत तुम अंतर्मुखी को अपनी जीवन संगिनी चुन लो.

इस वाक्य से सीमांत सकते में आ गया.क्षितिज ने आगे कहा - तुम आश्चर्य में न पड़ो,मैं और अंतर्मुखी मित्र थे अभिन्न मित्र.हम निश्छलता से सुख दुख बांटते थे.मेरा उसका लांछित संबंध बिल्कुल नहीं रहा.

सीमांत ने क्षितिज के हृदय में झाँक कर देखा - वास्तव में वह निर्मल था.

क्षितिज को इस बार अंतर्राष्ट्रीय शतरंज स्पर्धा के लिए चुना गया था.उसे स्पर्धा में शामिल होना था मगर अंतर्मुखी के भविष्य की चिंता उसे खाये जा रही थी.वह अंतर्मुखी को समझाने उसके घर जा पहुंचा.अंतर्मुखी, क्षितिज क ो देखते ही भागने को हुई कि क्षितिज ने उसकी दोनों बाहों को कस कर पकड़ लिया.अंतर्मुखी भयभीत हो गई. वह थर - थर कांपने लगी.वह स्वयं को छुड़ाने झटकारने लगी.क्षितिज ने उसे जोर से झकझोरा और कहा - मेरी बात सुनो....।

क्षितिज की आवाज में रोष था.अंतर्मुखी का छटपटाना रुक गया.क्षितिज ने कहा - मैं तुमसे अभद्र व्यवहार करने नहीं, तुम्हें सावधान करने आया हूं.मैं स्वीकारता हूं कि तुम्हारा हंसमुख या किसी दूसरे से आंतरिक संबंध नहीं .तुम पवित्र हो.... पर तुम उस स्थिति पर पहुँच चुकी हो जहाँ तुम्हें कोई सम्मिलन के लिए उत्साहित करेगा तो तुम समर्पित हो जाओगी.इससे बचने का यही उपाय है कि प्रणयप्रार्थी के शब्दों को दिमाग में लेते हुए न अत्यधिक उत्तेजित होना और न ही नर्वस.अपितु उसे स्थिर बुद्धि से टाल देना..... और हां,हंसमुख विवाहित है. उसके बच्चे हैं.उससे मिलना जुलना उचित नहीं.....।

अंतर्मुखी अवाक थी जबकि क्षितिज को संतुष्टि थी कि उसने अपनी बात रख दी.वह स्पर्धा में भाग लेने चला गया.

उस दिन हंसमुख भी अंतर्मुखी के घर आया.वह अन्य दिनों की तरह सामान्य था.उसके दिमाग में किसी प्रकार की चंचलता या गर्माहट नहीं थी.घर में अंतर्मुखी अकेली थी.एकांत वातावरण ने हंसमुख को उत्साहित किया.वह अंतर्मुखी से सम्मिलन का निवेदन कर बैठा.एक क्षण तो अंतर्मुखी अति उत्तेजना के कारण नर्वस हो गयी. वह समर्पित होती कि क्षितिज की चेतावनी याद आ गयी.उसकी अंतर्चेतना जाग उठी.उसने शांत स्वर से हंसमुख को समझाया - हंसमुख , तुम विवाहित हो.अपने पत्नी बच्चों के साथ सुखी रहो. मुझे भी अपना भविष्य बनाना है.

इस वाक्य ने हंसमुख के ज्वार को ठंडा कर दिया.वह चुपचाप लौट गया.

क्षितिज शतरंज स्पर्धा से लौटकर सीमांत से मिलने गया.वहाँ अंतर्मुखी थी.उसे देख क्षितिज के विश्वास मिश्रित आश्चर्य से पैर ठिठके. उसकी दृष्टि टेबल पर रखी तस्वीर पर गयी.उसमें सीमांत और अंतर्मुखी का एक साथ खिंचाया चित्र था. उसने स्थिति स्पष्ट कर दी कि अब वे दोनों एकात्म हो गये हैं.

अंतर्मुखी ने क्षितिज का आत्मिक स्वागत किया. लगा कि वह क्षितिज की ही प्रतीक्षा में हो और क्षितिज अपने कथनानुसार आ गया हो. अंतर्मुखी ने कहा - वास्तव में हंसमुख आया था.मैंने उसे समझा कर लौटा दिया.सच कहूँ - तुम्हारे कथन ने ही मुझे बचाया है....।

उसने क्षितिज पर दृष्टि डाली.वह आभार व्यक्त कर रही थी.

--

सुरेश सर्वेद,

तुलसीपुर, राजनांदगांव, छ.ग.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सुरेश सर्वेद की कहानी - अंतर्मुखी
सुरेश सर्वेद की कहानी - अंतर्मुखी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWyngvWNZowjm7vTY8-PtRJYuoyxUVqKLSAo8MHK7rH30f5m5elDa8Z0VouyRRgCdRcuQtqEBbZntJM4yC1rDW0gVdZxyqsdMFEOoPsow0gPnR_YiFMasBXAYKx2D4K2RNJuJI/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWyngvWNZowjm7vTY8-PtRJYuoyxUVqKLSAo8MHK7rH30f5m5elDa8Z0VouyRRgCdRcuQtqEBbZntJM4yC1rDW0gVdZxyqsdMFEOoPsow0gPnR_YiFMasBXAYKx2D4K2RNJuJI/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/03/blog-post_5157.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/03/blog-post_5157.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content