रंग बरसे : गोवर्धन यादव का आलेख - एक अबुझ प्यास है फ़ागुन तेरो नाम

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रंग के पर्व होली पर रचनाकार पर भी रंग का बुखार चढ़ गया है. यह पूरा सप्ताह होलियाना मूड की रचनाओं से रंगीन बना रहेगा. आप सभी  अपनी रंगीन रचन...

रंग के पर्व होली पर रचनाकार पर भी रंग का बुखार चढ़ गया है. यह पूरा सप्ताह होलियाना मूड की रचनाओं से रंगीन बना रहेगा. आप सभी  अपनी रंगीन रचनाओं के साथ इस रंग पर्व में शामिल होने के लिए सादर आमंत्रित हैं.

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एक अबुझी प्यास है फ़ागुन तेरो नाम

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वसंत-पंचमी के दस-पन्द्रह दिन बाद गाँवों में फ़ाग-गीत गाए जाने की शुरुआत हो जाती है .साज सजने लगते हैं और महफ़ीलें जमने लगती हैं. रात्रि की शुरुआत के साथ ढोलक की थाप और झांझ-मंजीरों की झनझनाहट के साथ फ़ाग गाने का सिलसिला देर रात तक चलता रहता है. हर दो-चार दिन के अन्तराल के बाद फ़ाग गायी जाती है और जैसे-जैसे होली निकट आती जाती है,लोगों का उत्साह देखते ही बनता है.

अब न तो वे दिन रहे और न ही वह बात रही. तेजी से बढते शहरीकरण और दूषित राजनीति के चलते आपसी सौहार्द और सहयोग की भावना घटती चली गई और आज स्थिति यह है कि फ़ाग सुनने को कान तरसते हैं.

फ़ाग की बात जुबान पर आते ही मुझे अपना बचपन याद हो आता है. बैतुल जिले की तहसील मुलताई,जहाँ से पतीत-पावनी सूर्यपुत्री ताप्ती का उद्गम स्थल है,मेरा जन्म हुआ, और जहाँ से मैंने मैट्रीक की परीक्षा पास की, वह पुराना दृष्य आँखों के सामने तैरने लगता है. जमघट जमने लगती है, ढोलक की थाप, झांझ-मंजीरों की झनझनाहट ,टिमकी की टिमिक-टिन, से पूरा माहौल खिल उठता है. फ़िर धीरे से आलाप लेते हुए खेमलाल यादव फ़ाग का कोई मुखडा उठाते हैं और उनके स्वर में स्वर मिलने लगते है. दमडूलाल यादव,दशरथ भारती, सेठ सागरमल, फ़कीरचंद यादव, श्यामलाल यादव, सोमवार पुरी गोस्वामी, गेन्दलाल पुरी खूसटसिंह, पलु भारती,लोथ्या भारती, भिक्कुलाल यादव (द्वय )और उनके साथियों का स्वर हवा में तैरने लगता हैं. बीच-बीच में हंसी-ठिठौली का भी दौर चलता रहता है. शाम से शुरु हुए इस फ़ाग की महफ़िल को पता ही नहीं चल पाता कि रात के दो बज चुके हैं. फ़ाग का सिलसिला यहाँ थम सा जाता है,अगले किसी दिन तक के लिए.

जिस दिन होलीका -दहन होना होता है, बच्चे-बूढे-जवान मिलकर लकडियाँ जमाते हैं. गाय के गोबर से बनी चाकोलियों की माला लटका दी जाती है. रंग-बिरंगे कागजों की तोरणें टंगने लगती है. लकडियों के ढेर के बीच ऊँचे बांस अथवा बल्ली के सिरे पर बडी सी पताका फ़हरा दी जाती है. बडी गहमा-गहमी का वातावरण होता है इस दिन. बडॆ से सिल पर भाँग पीसी जा रही होती है. कोई दूध औटाने के काम के जुटा होता है. जितने भी लोग वहाँ जुडते हैं, सभी के पास कोई न कोई काम करने का प्रभार होता है.

जैसे-जैसे दिन ढलने को होता है,वैसे-वैसे काम करने की गति भी बढती जाती है. साझं घिर जाने के साथ ही एक चमकीला चाँद आसमान पर प्रकट होता है और चारॊं ओर दुधिया रंग अपनी छटा बिखेरने लगता है. अब होलीका दहन वाले स्थान के पास बडी दरी बिछा दी जाती है और लोगों का जमावडा होना शुरु हो जाता है. टिमकी,ढोलक,झांझ,मंजीरें,करताल बजने लगते हैं. फ़ाग गायन शैली सामूहिक गायन के रुप में होता है. फ़ाग गायन की विषय वस्तु द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बृज ग्वालबालों एवं गोपियों के साथ हास-परिहास की शैली प्रचलित है.सबसे पहले श्री गणेश का सुमरन किया जाता है. फ़िर कान्हा और राधा के बीच खेली जाने वाली रंग-गुलाल-पिचकारी के मद्धुर भावों को पिरोती फ़ाग गायन की शुरुआत होती है.-

 

(१) “चली रंग की फ़ुहार, पिचकारियों की मार

कान्हा तू न रंग डार, काहे सताए रंग डार के

राधा पडॆ तोरे पैयां गिरधारी न तू मारे भर-भर पिचकारी

भींगी चुनरी हमार काहे दिया रंग डार

मैं तो गई तोसे हार,काहे सताये रंग डार के”

 

(२) “ सारी चुनरी भिंगो दी तूने मोरी

मेरे सर की मटकिया फ़ोडी

कहूं जा के नंद द्वार तोरो लाला है गंवार

करे जीना दुश्वार,काहे सताये रंग डार के”

(३) सारे बृज मे करे ठिठौली

लेके फ़िरे सारे ग्वालों की टॊली

किन्हे गाल मोरे लाल

डाला किस-किस पे गुलाल

मैया ऎसा तेरा लाल,काहे सताये रंग डार के.”

 

फ़ाग गायन का क्राम चलता रहता. स्त्री-पुरुष-बच्चे घरों से निकल आते पूजन करने. फ़िर देर रात होलिका-दहन का कार्यक्रम शुरु होता. बडा बुजुर्ग लकडी-कंडॆ के ढेर में आग लगाता और इस तरह होलिका दहन की जाती. पौराणिक मान्यता के अनुसार” हिरणाकश्यप” द्वारा अपने भक्त पुत्र प्रहलाद को “होलिका” में जलाने के प्रयास के असफ़ल हो जाने पर तत्कालीन समाज द्वारा मनाए गए आंदोलन से इसे जोडा जाता है. होलिका दहन के बाद लोग अपने-अपने घर की ओर रवाना हो जाते, इस उत्साह के साथ कि अगले दिन जमकर रंग बरसाएंगे.

सुबह से ही सारे मुहल्ले के लोग बाबा खुसट के यहाँ इकठ्ठे होते. फ़ाग गाने का क्रम शुरु हो जाता. फ़िर आती रंग डालने की बारी. सुबह से ही लोग टॆसू के फ़ूलों का रंग उतारकर पात्रों में जमा कर लेते. इसी रंग से सभी रंग कर सराबोर हो जाते. फ़िर सभी को कुंकुम-रोली लगाई जाती. ठंडाई का दौर भी चल पडता. इस अवसर पर बने पकवानों का भी लुफ़्त उठाया जाने लगता.

फ़ाग-गायन मंडली हंसी-ठिठौली करती बाबा दमडूलाल के घर जा पहुँचती.वहाँ पहले से ही टॊली के स्वागत-सत्कार की व्यवस्था हो चुकी होती है.एक दिन पहले से ही आंगन को गोबर से लीपकर तैयार कर दिया जाता है. इस दिन बिछायत नहीं की जाती. लोग घेरा बनाकर बैठ जाते. फ़ाग उडती रहती. रंग-गुलाल बरसता रहता. ठंडाई का दौर चलता रहता. पकवानों का रसास्वादन भी चलता रहता. घर का प्रमुख लोगों के सिर-माथे पर तिलक-रोली करता और इस तरह फ़ाग के राग उडाती टॊली आगे बढ जाती. सबसे मिलते-जुलते, रंग –गुलाल में सराबोर होती टोली के सदस्य, अपने –अपने घरों की ओर निकल पडते.

नहा-धोकर लोग चार बजे के आसपास होलिका-दहन वाले स्थान पर आ जुडते. फ़ाग उडने लगती. फ़िर मंडली गाते-बजाते मेघनाथ-बाबा के दर्शनार्थ के लिए बढ जाती.वहाँ उस दिन अच्छा खासा मेला लग जाता. इस तरह सारे गांव की मंडलियां वहाँ जुडने लगती है. लोग एक दूसरे को गले लगाते हैं. इस तरह प्रेम-सौहार्द की भावना से ओतप्रोत यह त्योहार सम्पन्न होता.

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: रंग बरसे : गोवर्धन यादव का आलेख - एक अबुझ प्यास है फ़ागुन तेरो नाम
रंग बरसे : गोवर्धन यादव का आलेख - एक अबुझ प्यास है फ़ागुन तेरो नाम
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