रंग बरसे : प्रमोद कुमार चमोली का व्यंग्य - हम ‘‘होली'' है जी

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व्‍यग्‍ंय हम ‘‘ होली '' है जी · प्रमोद कुमार चमोली इस होली देश के होली लोगों को फाल्‍गुनी मस्‍ती में बोराए इस हुलियारे का कीचड़...

व्‍यग्‍ंय

हम ‘‘होली'' है जी

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· प्रमोद कुमार चमोली

इस होली देश के होली लोगों को फाल्‍गुनी मस्‍ती में बोराए इस हुलियारे का कीचड़ भरे हाथों से आपके टमाटर से लाल लाल गालों पर कीचड़ लगा कर अभिवादन। भंग से भंगाभंग और चंग से थपाथप हुए लोगों मेरी भगवान से प्रार्थना है कि आप होली पर ही नहीं पूरी जिन्‍दगी ऐसे ही भंगाभंग रहें और चंग की थपाथप पर ता ता थैया करते रहें। अरे! ये क्‍या आप लोग तो बुरा मान गए। बुरा मानना आपका जन्‍मसिद्ध अधिकार है हमने माना, पर भइए होली पर बौराए भंगियाए हम जैसे फोकटिए कलम घिस्‍सुओं का आप बिगाड़ क्‍या लेंगे? कीचड़ में पत्‍थर फेकेंगे तो आप के ही उजले कपड़े गंदे होंगे। हम तो सिर से पाँव तक कीचड़ में सने होली मना रहे है। चलों छोड़ो अब हम कह देते हैं बुरा न मानो होली है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि होली के इस होली पर्व पर हम तो इस छूट का पूरा मजा लेने वाले हैं। आज के दिन के हम माफिया डॉन हैं। बड़े नेता अभिनेता बाहुबली होली पर हमारी बिरादरी के लोगों के आगे पीछे घूमते नजर आ जाते हैं। क्‍योंकि भंग की भंगाभंग हमसे सच बुलवा ही देती है। और फिर जिसकी पोल खुलती है वो माथा पीटने के अलावा कुछ भी नहीं कर पाता।

खैर छोड़ो होली लोगों अब हम सीरियस हुआ जाते हैं। बात ये ही आपकी जिन्‍दगी के भंगाभंग रहने की कामना तो हमने इसलिए की है कि आप को कभी सुधबुध न रहे। सुधबुध छीन लेने के लिए घोटालों की क्‍लोरोफार्म देश की फिजाओं में घुल चुकी है। इसे सूंघ कर आप कहीं घोटालेबाज न बन जाए। मैं समझता हूँ कि आप जैसे होली लोग घोटालेबाज बनने की बजाय भांग घोटकर घोटेबाज बनना ज्‍यादा पसंद करेंगे। हालाँकि एक बात बता देते हैं कि आज तक जो भी हमने सोचा है हुआ उसका उल्‍टा ही है।

अपुन आपके ता ता थैया करने का भी हम इसलिए ही बोला है कि आप होली लोगों ने अपनी तर्जनी पर काला निशान लगा के न जाने कितनी बार सफेद कपड़े वालों को चुन कर अरबों खरबों का चूना लगाया है। सच बताओ यार कि एक बार भी आपको अपने सही चुनाव पर गर्व हुआ। नहीं न, होगा भी नहीं । जब आप लोग चुनाव पर चुनाव करवाते रहेंगे तो महंगाई डायन तो आप से नाच करवाएगी ही । आपका अभ्‍यास नहीं होगा तो आप थक जाएँगे इसलिए हम चाहते हैं कि आप का स्‍वास्‍थ्‍य ठीक रहे ताकि जरूरत पड़ने पर थके नहीं।

अगर गौर करें तो जिन्‍दगी भी चुनाव दर चुनाव ही तो है। बचपने में अच्‍छी स्‍कूल का चुनाव, फिर कैरियर के लिए अच्‍छे कोर्स का चुनाव, कैरियर से मुक्‍ति हो तो शादी के लिए चुनाव, यानि चुनाव ही चुनाव। तो भईए हम तो कहते हैं जिन्‍दगी के कुछ पलों का तो सही चुनाव कर लिया करो। दुनिया में सबसे सस्‍ती मस्‍ती हमारे यहाँ ही मिलती है और वो भी त्‍यौहारों की मस्‍ती। बाजार हमे बौराने के लिए बैचेन है। इस सस्‍ती मस्‍ती को महँगा बनाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहा है। इनकों परम्‍परागत तरीके से जमकर मनाओं। अपनी गुंजिओं को अपनाओ ये चॉकलेटी खुशियों के आनन्‍द बड़े चॉकलेटी होते हैं। थोड़ी सी गरमी पाकर पिघल जाते है और ठण्‍ड पाकर कड़े हो जाते हैं।

हर बार होली के आने पर कुछ प्रकृति प्रेमी और चमड़ी के डॉक्‍टर चिल्‍लपों मचाने लगते कि इस होली अवसर पर कृत्रिम रंगों का प्रयोग नहीं करे। अरे! इन्‍हें कौन समझाए कि ये बाजार के प्राकृतिक रंग आपकी जेबों को रंगहीन बना देते हैं। हम मिट्टी से जुड़े लोग हैं हमारी आप से प्रार्थना है कि आप तो रेत में लिपट लिपट कर होली खेलें। ये सबसे प्राकृतिक रंग है हमारा दावा है कि इससे आपकी चमड़ी और दमड़ी दोनों ही सुरक्षित रहेगी। इस बहाने आपको देश की मिट्‌टी से भी जुड़ने का सुअवसर प्राप्‍त होगा। हो सकता है इस मिट्‌टी लोटन से कहीं देशप्रेम की भावना भी जग सकती है।

होली लोगों इस अवसर पर पानी का उपयोग भी कम करें। हमारे देश में पानी की बहुत कमी है। पानी तो हमारी आँखों का भी सूखने लगा है। अमीर और गरीब के बीच की खाई प्रशान्‍त महासागर से भी गहरी हो चुकी है। देखों अभी यहाँ पर बहुतों का पानी उतर चुका है। बड़े-बड़े अनशनकारी, आंदोलनकारियों का पानी उतर चुका है। यहाँ उम्‍मीद बनती कम है टूटती ज्‍यादा है। हमारा तो इतना ही कहना कि हम इस देश के आम लोग ही बस ‘‘होली'' बचें हैं। कम से कम देश के इन होली लोगों का पानी तो बचा रहे। बाकी आपकी मरजी। हम कर भी क्‍या सकते हैं।

भैया हमारी पर समझ ये नहीं आता कि हम होली मनाते क्‍यों हैं। अगर इसके पीछे हरिण्‍यकश्‍यप की कहानी है तो हमारी छोटी सी समझदानी में ये बात नहीं आई कि होलीका के मरने के बाद होली क्‍यों मनाई गई। क्‍या उस समय मानवाधिकार वालों ने हो हल्‍ला नहीं मचाया होगा?

अब मचाया भी होगा तो किसे मालूम? अगर नहीं मचाया होगा तो हमारा क्‍या? आजकल मचाते है तो हमारा क्‍या लेते हैं? हम तो भैया होली लोग हैं। हल्‍ला मचाना हमारा काम नहीं इसके लिए बाकयदा हमने लोगों को चुनकर भेजा है। उन्‍हें अपना काम करना चाहिए। वैसे भी किसी के काम में इंटरफेयर करना हम होली लोगों की फितरत नहीं हैं। अब लोगों का कितना काला धन किस बैंक में उससे हमें क्‍या लेना। अब कोन प्रधानमंत्री की दोड़ में आगे चल रहा है। हमें क्‍या मतलब? भइए हम तो ''होली'' लोग हैं। होली लोग तो फक्‍कड़ बाबा की तरह होते हैं। अब असल बाबा लोग तो फक्‍कड़ रहे नहीं सो ये फक्‍कड़ रहने काम भी हम होली लोगों के जिम्‍में आ गया। हम तो यही कहते हैं कि होली के दिन तो ‘होली' होकर देखो

-- 

प्रमोद कुमार चमोली

राधास्‍वामी संत्‍संग भवन के सामने

गली नं.-2,अंबेडकर कॉलोनी

बीकानेर, 334003

मोबाइल-9414031050

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. बहुत खूब प्रमोद जी। अमीर और गरीब के बीच की खाई तो प्रशांत महासागर के सबसे बड़े मेरियाना गर्त से भी गहरी होने वाली है।

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  2. प्रकाश जी शुक्रिया| "आभार अमीर और गरीब के बीच की खाई तो प्रशांत महासागर के सबसे बड़े मेरियाना गर्त से भी गहरी होने वाली है।" सही है प्रकाश जी

    जवाब देंहटाएं
  3. शुक्रिया आभार शरद कुमार श्रीवास्तव जी

    जवाब देंहटाएं
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