खेती से उत्तम कोई उद्यम नहीं राम नरेश ‘उज्ज्वल' हरे-भरे लहलहाते खेत सभी का मन मोह लेते हैं। मिट्टी की मोहक सुगन्ध जीवन के स...
खेती से उत्तम कोई उद्यम नहीं
राम नरेश ‘उज्ज्वल'
हरे-भरे लहलहाते खेत सभी का मन मोह लेते हैं। मिट्टी की मोहक सुगन्ध जीवन के सच्चे सुख का अहसास कराती है। बैलों की घंटियाँ परिश्रम का बोध कराती हैं।बैलगाड़ी की चुरमुराहट निरन्तर कर्र-मर्र करके जिंदगी को आगे बढ़ाने का प्रतीकात्मक संदेश देेती है। गाँव में बने मिट्टी के घरों में जो सुख प्राप्त होता है,वह अवर्णनीय है। शहर के पत्थरों में तपिश के सिवा है ही भला क्या? किंतु गाँव के लोग शहर की ओर निरन्तर भाग रहे हैं। शहर की चमक दमक उन्हें आकर्षित कर रही है । ग्रामीण शहरी बाबू बनने की अंधी दौड़ लगा रहे हैं। खेती योग्य भूमि कालोनियों में तब्दील हो रही है। खेत-पात से लोगों का मन उचटता जा रहा है।
दिन प्रति दिन मँहगाई आसमान छू रही है। मकान बढ़ रहे हैं। खेत कम हो रहे हैं। अनाज की खपत बढ़ रही है, किंतु उत्पादन कम हो रहा है। दिन प्रति दिन यदि खेती योग्य भूमि गैर कृषि कार्यों के लिए अधिग्रहीत होती रही,तो वह दिन दूर नहीं ,जब हम सब एक-एक दाने को मोहताज हो जाएँगे और भूख से बिलाबिलाएँगे।
आज का युवा पढ़-लिख कर नौकरी के लिए दर -ब-दर भटकता है,किंतु खेती-बारी के नजदीक नहीं जाता। तरक्की के नाम पर गुलामी करना कहाँ तक उचित है? तरक्की के लिए पढ़ाई-लिखाई जरूरी है। पढ़ने के बाद नौकरी मिले , ये तो अच्छी बात है,किंतु नौकरी न मिले,तो इसमें निराश होने की क्या बात है। पढ़े-लिखे वर्ग को कृषि पर ध्यान देना चाहिए। कृषि में भी अच्छा कैरियर बनाया जा सकता है। गाँव के लोग कम पढ़े होते हैं,इसलिए ज्यादा अच्छी फसल नहीं ले पाते हैं। यदि इसमें शिक्षित युवा आ जाएँगे तो खेती में एक दाने से असंख्य दाने पैदा होंगे। नई-नई तकनीक का प्रयोग करके हमें कृषि क्षेत्र को मजबूत करना चाहिए। यदि युवा वर्ग पढ़-लिख कर खेती- किसानी करेगा तो हमारा देश अवश्य ही नई पहचान बनाएगा। कृषि को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाएगा। किसान के नाम पर सिर्फ निर्धन व्यक्ति की ही तस्वीर नहीं उभरेगी।
सबसे बड़ी विडम्बना तो यही है, कि अभावग्रस्त व्यक्ति ही खेती करता है। जिसके पास बीज लाने भर की भी व्यवस्था नहीं है,वह कृषि करता है। जन-धन और शिक्षा से युक्त व्यक्ति कृषि करना नहीं चाहते हैं । खेती के नाम पर मुँह बिचकाने वाले धनाड्यों से कोई कहे, कि सुबह-शाम जो भोजन करते हैं,वह इसी कृषि की देन है। जिससे हमारा जीवन चलता है,वह व्यवसाय भला निकृष्ट कैसे हो सकता है? गाँव की हालत बद से बदतर होती इसीलिए चली जा रही है, क्योंकि युवाओं का रूझान इससे खत्म होता जा रहा है।
कृषि जैसा व्यवसाय अन्य कोई भी नहीं है। किसान चाहे तो शहर के लोगों से अच्छा कमा - खा सकता है। ज्यादा अच्छे घरों में रह सकता है। जरूरत है सिर्फ समझदारी की । समझदारी के साथ यदि कृषि की जाए तो किसान कभी भी पिछड़ नहीं सकता है। उसे उच्च विचार करके अच्छे साधनों का प्रयोग करना चाहिए।
अतिरिक्त आय के लिए पशु पालन, कुक्कुट पालन ,बतख पालन, बकरी पालन, मौन पालन आदि का विकल्प खुला है। सरकार को कृषि को आगे बढ़ाने के लिए उन्नतशील योजनाओं का क्रियान्वयन करना चाहिए।कृषि आधारित उत्पादन के लिए विक्रय केंद्र की भी स्थापना कराना चाहिए, जहाँ किसानों को उचित मूल्य प्राप्त हो सके।
आज सरकार जो भी कृषकों के लिए लाभकारी योजनाएँ लाती है। उसमें कमीशन खोर पहले से ही लग जाते हैं। घोटाले की भेंट चढ़ जाती है हर योजना। कृषक हमेशा तमाशा बनकर रह जाते हैं। इन धाँधलेबाजों से कृषकों को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है। कृषि प्रधान देश के किसानों का इस प्रकार हाल-बेहाल होना कतई शोभा नहीं देता। कृषि व्यवसाय को प्रथम श्रेणी में लाने के लिए जागरूकता का अभियान चलाना चााहिए। यदि एक बार कृषि की ओर गम्भीरता के साथ लग गए तो हमें दुनिया में पिछड़ाने वाला कोई न होगा। हमारा देश पुनः बन सिरमौर कहलाएगा।
इतने बड़े कृषि विभाग के रख -रखाव व देख-रेख पर करोड़ों रूपया पानी की तरह खर्च किया जाता है सरकार के द्वारा, पर लाभ एक पैसे का नहीं होता। अफसर मोटी तनख्वाह पाकर ऐश करते हैं। सभी योजनाएँ आलमारियों में बंद पड़ी सिसकियाँ भरती रहती हैं । कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित कृषि साहित्य कृषकों की समझ से परे है। उसकी भाषा को समझना बड़े -बड़े विद्वानों के वश की बात नहीं है।
कृषि साहित्य के लेखन और प्रकाशन के लिए सहयोग भी कमीशन के आधार पर मिलता है। कृषि जगत की लोकप्रिय पत्रिकाएँ कृषि विभाग से कुछ भी प्राप्त करने में असमर्थ होती हैं। जनभाषा में प्रकाशित साहित्य किसानों तक कभी भी नहीं पहुँचाया जाता है। किसानों को किसान मेलों में मुफ्त का कूड़ा ही कृषि साहित्य के नाम पर बाँटा जाता है।
कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए सरल भाषा में साहित्य उपलब्ध कराना चाहिए। यदि कृषि विभाग के पास ऐसा साहित्य नहीं है,तो बाजार से कृषि आधरित पत्रिकाओं को क्रय कर गाँव-गाँव में वितरित कराना चाहिए । इसी के साथ कृषि को सम्मान का दर्जा दिलाने के लिए कृषि विभाग द्वारा युवाओं को जोड़कर आगे लाना चाहिए। उन्हें कृषि के लाभों से अवगत कराना चाहिए ,किंतु कृषि विभाग एवं सरकार का रवैया सदैव उपेक्षित रहा है। सिर्फ कागजों पर ही उन्नति दर्शाई जाती है। यदि कृषि पर ध्यान न दिया गया तो एक दिन सभी को पछताना पड़ेगा। कृषि विभाग यदि अपना कार्य करने में सक्षम ही नहीं है तो इसके होने का औचित्य ही क्या है?
आज कृषि क्षेत्र में युवा वर्ग की आवश्यकता है,इसलिए पढ़े-लिखे युवाओं को अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए इस कृषि क्षेत्र में आकर अपनी सार्थक भूमिका निभानी चाहिए।यह कहावत आज भी समीचीन है ,कि उत्तम खेती मध्यम बान । निषिद्ध चाकरी भीख निदान॥
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घ् राम नरेश ‘उज्ज्वल'
मुंशी खेड़ा,
अमौसी एयरपोर्ट,
लखनऊ-226009
जीवन-वृत्त
नाम ः राम नरेश ‘उज्ज्वल‘
पिता का नाम ः श्री राम नरायन
विधा ः कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि
अनुभव ः विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ
रचनाओं का प्रकाशन
प्रकाशित पुस्तकेः 1-‘चोट्टा‘(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा
पुरस्कृत)
2-‘अपाहिज़‘(भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार
से पुरस्कृत)
3-‘घुँघरू बोला‘(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0
द्वारा पुरस्कृत)
4-‘लम्बरदार‘
5-‘ठिगनू की मूँछ‘
6- ‘बिरजू की मुस्कान‘
7-‘बिश्वास के बंधन‘
8- ‘जनसंख्या एवं पर्यावरण‘
सम्प्रति ः ‘पैदावार‘ मासिक में उप सम्पादक के पद पर
कार्यरत
सम्पर्क ः उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई
अड्डा, लखनऊ-226009
मोबाइल ः 09616586495
sammnit rachanakar ujjwal ji ki rachana 'kheti se uttam koi udyam nahin' ka avlokan kiya.ye rachana bharat bhumi ki sarthak abhivyakti hai. kheti sahi mayane me samman aur garima pradan karane wala udyam hai. kintu naukarshah aur netaon ne is udyam ko nimntar banane me koi kor kasar nahin rakh chhori hai.is vicharottejak lekh ke liye sri ujjwal ko badhai va sadhuvad tatha prakashan hetu apko dhanyawad.
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