युवा लेखिका डॉ प्रीत अरोड़ा हिन्दी साहित्य में उभरती लेखिका हैं जो चंडीगढ़ में रहकर साहित्य और समाज की सेवा कर रही हैं. उन्हें अनेक सम्मानों ...
युवा लेखिका डॉ प्रीत अरोड़ा हिन्दी साहित्य में उभरती लेखिका हैं जो चंडीगढ़ में रहकर साहित्य और समाज की सेवा कर रही हैं. उन्हें अनेक सम्मानों जैसे अंतर्राष्ट्रीय पर तस्लीम परिकल्पना विशेष ब्लॉग प्रतिभा सम्मान-2011, राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड 2012 (युवा लेखिका ) इत्यादि से भी सम्मानित किया गया है .अब तक वे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र – पत्रिकाओं व किताबों में भी लिख चुकी हैं देश विदेश के अनेक साहित्यकारों के साक्षात्कार लिए है. ऐसे में खुद उनको साक्षात्कार के लिए तैयार करना तथा उनका साक्षात्कार लेना एक दुर्लभ अनुभव से होकर गुज़ारना रहा. वे इन्टरनेट पर भी जुडी हैं तथा फेस बुक से जुड़ने वाले उनके मित्र जानते हैं कि उन्हें समकालीन स्त्री विमर्श के विषय कितने पसंद हैं. प्रस्तुत है व्यंग्यकार जितेन्द्र जीतू द्वारा इन्ही सब विषयों पर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश ......
प्रश्न---आप चंडीगढ़ में रहकर अपने साहित्यिक दायित्वों का निर्वहन कर रही हैं. कृपया अपने साहित्यिक पृष्ठभूमि के बारे में हमारे पाठकों को बताएं.
उत्तर---जीतू जी हालांकि मैं पंजाबी परिवार से हूँ .पर मैंने हिन्दी को ही कार्यक्षेत्र के रूप में ही चुना क्योंकि मुझे हिन्दी भाषा और साहित्य से गहरा लगाव है .मेरी माता जी हिन्दी में बी .ए आनर्स हैं वे अक्सर हिन्दी में लेखनकार्य करती थी उनकी प्रेरणा से ही मैंने हिन्दी में एम .ए और पी .एचडी कर लेखन के क्षेत्र में कदम रखा .
प्रश्न -- इधर नारी विमर्श पर लगभग अपच की हद तक चर्चा हुई है. साहित्य को और इसके विमर्शों को इस तरह से बाँटना आपकी दृष्टि से कितना उचित है?
उत्तर—देखिए जब समाज और साहित्य के अन्तर्गत हम किसी विशेष मुद्दे पर विचार – विमर्श करते हैं तो उस के पक्ष –विपक्ष पर विचार आने स्वाभाविक ही होता है .चूंकि मैंने भी नारी –विमर्श पर ही शोध-कार्य किया है तो मेरे नज़रिए से नारी –विमर्श नारी –चेतना का वाहक है ताकि शोषित नारी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर मानवी के रूप में जीवन व्यतीत कर सके .मैनें कई जगह पढ़ा कि नारी –विमर्श को दैहिक विमर्श से भी जोड़ा गया जोकि गलत है क्योंकि यदि नारी –विमर्श नारी –मुक्ति की बात करता है तो मुक्ति से उनका तात्पर्य आत्याचारों व संकीर्ण मानसिकता से है न कि सम्बन्धों और संस्कारों से मुक्ति .इसलिए नारी –विमर्श को किसी गलत अवधारणा के साथ जोड़कर देखना उचित नहीं है
प्रश्न--आपने अनेक लेखकों के साक्षात्कार लिए हैं. इस सम्बन्ध में अपने अनुभवों को पाठकों के साथ साझा करने का मैं अनुरोध करूँगा. कृपया बताएं कि आपके द्वारा लिया गया पहला साक्षात्कार किसका था. क्या आपको इस प्रक्रिया में कभी कोई दिक्कत भी पेश आयी हैं?
उत्तर – किसी भी लेखक के निजी जीवन से लेकर उसके साहित्यिक सफर को जानने का माध्यम बनती है साक्षात्कार विधा .जिन –जिन रचनाकारों को हम पढ़ते हैं और पसंद करते हैं निश्चित रूप से हमें उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की जिज्ञासा होती है .मैंने सबसे पहला साक्षात्कार सुधा ओम ढ़ींगरा जी का लिया था .उसके बाद मैंने मृदुला गर्ग ,पूर्णिमा वर्मन ,तेजेन्द्र शर्मा ,दिव्या माथुर,रश्मि प्रभा ,इला प्रसाद ,उषा राजे सक्सेना ,उषा वर्मा ,सुषम बेदी ,शैल अग्रवाल ,कृष्ण बिहारी ,अनिता कपूर ,सुभाष नीरव ,रचना श्रीवास्तव ,डॉ हरदीप संधू इत्यादि रचनाकारों के साक्षात्कार लिए .इन सभी रचनाकारों से सम्पर्क बनाने में थोड़ी – बहुत दिक्कत आई क्योंकि लगभग रचनाकार विदेश से हैं तो उनसे ईमेल या फोन से सम्पर्क करना दुष्कर होना स्वाभाविक है .बाकी सभी ने मुझे भरपूर सहयोग और स्नेह दिया .
प्रश्न --आप एक लेखिका भी हैं. खुद को किस विधा में सहज पाती हैं?
उत्तर—मैं हिन्दी साहित्य से प्यार करती हूँ और हिन्दी भाषा के विकास और समाज – सेवा में योगदान देना चाहती हूँ और इसके लिए मैं प्रयासरत भी हूँ .मैंने स्वयं को किसी खास एक विधा में नही बाँधा .जिस विधा के माध्यम से मैं अपनी बात सहजता से समाज तक पहुँचा सकूँ उसी में लिखना पसंद करती हूँ .फिर वो आलेख ,कहानी ,लधुकथा कविता ,संस्मरण इत्यादि चाहे कोई भी हो .मेरा लक्ष्य तो अपनी बात को सही अर्थों में समाज तक पहुँचाना है
प्रश्न-- आपके यहाँ साहित्य की क्या स्थिति है?
उत्तर –जीतू जी चण्डीगढ़ शहर को फैशन ,खान – पान ,रहन –सहन में बहुत आगे माना जाता है .परन्तु साहित्यिक दृष्टि से देखें और वो भी हिन्दी में तो यहाँ हिन्दी को लेकर संगोष्ठियां व कार्यक्रम इत्यादि बहुत होते हैं .लोगो की रूचि हिन्दी पढ़ने में बहुत कम है .
प्रश्न--आप इन्टरनेट के माध्यम से भी खुद को व्यक्त कर रही हैं. इतना समय कैसे निकल लेती हैं?
उत्तर – आज इन्टरनेट ही एक मात्र ऐसा माध्यम बन चुका है जिसके द्वारा हम बहुत जल्दी और विस्तृत रूप से किसी भी क्षेत्र में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं .अगर हमें किसी रचनाकार को पढ़ना है ,सम्पर्क स्थापित करना है ,अपनी बात समाज तक पहुँचानी है ,तो हमें इन्टरनेट से जुड़ना बहुत जरूरी है .जीतू जी जब किसी क्षेत्र में कुछ करने और आगे बढ़ने की ललक पैदा हो जाए तो समय तो निकालना ही पड़ता है .जब किसी भी कार्य को करने के लिए जनून पैदा हो जाए तो इंसान खाली नही बैठ पाता .
प्रश्न –प्रीत जी जानना चाहूँगा कि यह माध्यम प्रिंट साहित्य का कितना हित अथवा अहित कर रहा है? जो पाठक लेखक के इस साहित्य को पढना चाहतें हैं लेकिन इन्टरनेट नहीं जानते हैं वे कैसे इन्टरनेट के माध्यम से व्यक्त किये गए विचारों को जान पाएंगे? क्या इसके लिए बाद में प्रिंट कराने/सी ड़ी की व्यवस्था होनी चाहिए.
उत्तर ---हर चीज का फायदा और नुकसान तो होता ही है .फायदा तो यह है कि हम भारत ही नहीं बल्कि विदेश तक भी आसानी से सम्पर्क स्थापित कर रहे हैं .नुकसान यह है कि आज लोग समय और पैसे दोनों की बचत करते हुए ई – मैगज़ीन और ई – किताबों को ही पढ़ना अधिक पसंद करते हैं जिसके कारण मुद्रित साहित्य की ब्रिकी कम हो गई है .अब जो लोग इन्टरनेट नहीं जानते पहले तो उन्हें सीखने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि नामुमकिन कुछ भी नहीं ,पर किसी कारणवश यदि कोई नही सीख पाता तो उसके लिए बाद में प्रिंट कराने और सी .ड़ी की व्यवस्था होनी चाहिए .मैंने एक सम्मेलन में निर्मल वर्मा जी की कहानियों पर आधारित सी .ड़ी देखी थी .तो अपने आप में ये एक अच्छा प्रयास होगा .
प्रश्न ---इन्टरनेट पर अपने अनुभवों को पाठकों के साथ शेयर करने की में आपसे गुज़ारिश करूंगा. मसलन क्या फेसबुक पर मित्रों को मित्रों का दर्ज़ा दिया जा सकता है? यह प्रश्न आपके समक्ष रखने का साहस इसलिए कर पा रहा हूँ क्योंकि खुद फेसबुक के मंच पर इस तरह के प्रश्न उठा चुके हैं.
उत्तर ----इन्टरनेट पर मेरा अनुभव अच्छा रहा है .मुझे इन्टरनेट के माध्यम से ही विदेशों तक सम्पर्क स्थापित करने का सुअवसर प्राप्त हुआ.पर दुख उस समय होता है जब कुछ लोग इन्टरनेट का गलत फायदा उठाकर दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं .खासकर फेसबुक पर आए दिन उसका दुरुयोग करने वालोँ की खबरें मिलती है .इसके लिए मैंने फेसबुक पर रिश्तों की असलियत नामक आलेख भी लिखा था जो प्रवासी दुनिया और वटवृक्ष पत्रिका पर पढ़ा जा सकता है .जिसमें मैंने ये बात मुख्य रूप से कही थी ---
“ आओ मिलजुलकर यह अभियान चलाएँ
फेसबुक को स्वस्थ और मनोरंजक बनाएँ
इसे जन-सम्पर्क का सुंदर माध्यम बनाकर
शान्ति और मित्रता का सन्देश फैलाएं ”
प्रश्न –अंत में आप पाठकों को क्या कहना चाहेगी ?
उत्तर—मैं खासकर युवाओं से यह कहना चाहूँगी कि वे अपने जीवन और समय का सदुपयोग करें .अपनी रूचि और कार्य-क्षमता के अनुसार क्षेत्र का चुनाव कर स्वयं की एक पहचान बनाए .क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर कोई न कोई हुनर अवश्य होता है पर आवश्यकता होती है उसे तराशने की .
शुभ कामनाओं सहित
डॉ प्रीत अरोड़ा
आज इन्टरनेट ही एक मात्र ऐसा माध्यम बन चुका है जिसके द्वारा हम बहुत जल्दी और विस्तृत रूप से किसी भी क्षेत्र में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं .अगर हमें किसी रचनाकार को पढ़ना है ,सम्पर्क स्थापित करना है ,अपनी बात समाज तक पहुँचानी है ,तो हमें इन्टरनेट से जुड़ना बहुत जरूरी है .
जवाब देंहटाएंachchha laga is sakshaatkar se dr.prit aroda ji ke baare me jaanaa ..ve sahity ke kshetr me aur pragati kare ..shubh kamna