करो वही जो ह्दय कहे आशिष को उसके दादाजी कह रहे थे कि ये गिटार-विटार बजाने की कोई जरूरत नहीं है, पढ़ने में ध्यान लगाओ जो काम देगा। आशिष दा...
करो वही जो ह्दय कहे
आशिष को उसके दादाजी कह रहे थे कि ये गिटार-विटार बजाने की कोई जरूरत नहीं है, पढ़ने में ध्यान लगाओ जो काम देगा।
आशिष दादाजी को बोलते हुए घर से बाहर गिटार लेकर निकल गया कि प्रोग्राम से लौटने के बाद गिटार-विटार छोड़ दूंगा, दादाजी।
दादाजी क्रोधित से हो गए और जाकर आशिष के पिता को कहा कि मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है। क्या हुआ पिताजी, आशिष के पिता ने पूछा, अरे होना क्या है, आशिष बिगड़ता जा रहा है, 12वीं की परीक्षा सर पर है और उसे गिटार बजाने की पड़ी है, दादाजी ने शिकायत के लहजे में कहा।
आशिष के पिता दूसरे ख्यालात के इंसान थे। उनका संबंध अपने पुत्र आशिष से दोस्त जैसा था। आशिष के पिता पहले ही आशिष से पूछ चुके थे कि परीक्षा की तैयारी कैसी है ? आशिष ने उन्हें बताया था कि चिंता की कोई बात नहीं है पिताजी, मैं अच्छे अंकों से परीक्षा पास करूगां। इसलिए आशिष को अतिरिक्त गतिविधियों के लिए उसके पिता ने मूक सहमति दे रखी थी।
घर पर आशिष की माँ और उसके दादाजी का एक ख्याल था। दोनों ही अपने-अपने तरीके से आशिष को डांटते-फटकारते रहते थे जिसका कोई असर आशिष पर नहीं पड़ता था। आशिष के पिताजी उसके दोस्त थे।
गिटार अच्छा बजाता था आशिष, सबसे दिलचस्प बात यह थी कि वह स्पेनिश गिटार पर शास्त्रीय संगीत का अभ्यास करने लगा था। राग विहाग, मालकोश और राग दरबारी पूरे आलाप के साथ स्पेनिश गिटार पर जब आशिष बजाता था तो दादाजी को समझ में तो नहीं आता था परंतु भाव-विभोर वे भी हो जाते थे और आशिष इस बात को समझ गया था कि अभ्यास खत्म होने के बाद ही दादाजी उसे डाटेंगे, बीच में नहीं।
एक शाम शहर के स्थानीय टाउन हॉल में सांस्कृतिक कार्यक्रम में शहर के बाहर से संगीत के नामचीन कलाकार आए हुए थे। स्थानीय कलाकारों में आशिष को भी राग पीलू बजाना था। संगीत के नामी कलाकारों ने आशिष को हल्के से लिया कि अभी बच्चा है। खैर समय आया और आशिष की उंगलियां राग पीलू को स्पेनिश गिटार पर बजाने लगी, वो शमा बंधा कि कोलकाता और दिल्ली से आए कलाकारों ने मंत्रमुग्ध होकर ढाई घंटे तक राग पीलू सुनते रहे। दो नामचीन कलाकारों ने खूद अपना प्रोगाम स्थगित करवा दिया क्योंकि वे कलाकर बीच में आशिष के गिटार वादन को रोकना नहीं चाहते थे। सबसे बुजुर्ग दिल्ली से आए शास्त्रीय संगीत के उस्ताद ने अपनी शॉल आशिष को पुरस्कार के रूप में अपनी ओर से भेंट किया और आशीर्वाद दिया कि बेटा आशिष करोड़ों में एक तुम्हारी तरह बिना किसी संगीत घराने से जुड़े शास्त्रीय संगीत की सलाहियत हासिल करता है। माँ सरस्वती तुम्हारे ह्दय में वास करती है। संगीत को छोड़ना नहीं बेटे, चाहे जिंदगी में सब कुछ क्यों न छूट जाए।
आशिष बुजुर्ग कलाकार के चरणों में झुक गया, उन्होंने आशिष को गले लगा लिया। कार्यक्रम के बाद आशिष के पिता को बजुर्ग कलाकार ने सलाह दिया कि आपका पुत्र सिर्फ आपका ही पुत्र नहीं बल्कि यह भारत माता का पुत्र है, इसके ह्दय में माँ सरस्वती का बास है। ये जो बजाएगा उससे न सिर्फ मनुष्य जाति आनंदित होगी अपितू पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी आनंदित होंगे। आशिष ह्दय से गिटार वादन करता है जिससे सुनने वाले तो आनंदित होते ही है वो खूद भी आनंदित होता है।
आशिष के पिता को नैतिक रूप से बल मिला कि वे पहले से ही सोचते आ रहे कि पुत्र जो भी दिल लगाकर करना चाहे उसे करने देना चाहिए, को एक बुजुर्ग कलाकार का समर्थन भी मिल गया।
आशिष के पीठ को थपथपाते हुए उसके पिता ने अश्रु सहित आंखों से इतना ही कहा कि लगे रहो बेटा, तुम एक दिन बहुत बड़ा कलाकार बनोगे।
सबक
पंडित जी ने पूरा घर-आंगन, बाग-बगीचा घूम-घूम कर मुआयना करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि घर में वास्तुदोष है।
नीरज ने पंडितजी से पूछा, क्या-क्या दोष है पंडित जी घर में ?
पंडिताई झाड़ते हुए पंडित जी ने बताया घर ज्यादा पीछे के तरफ बना दिया गया है। कुंआ जहां बना हुआ है उसके विपरीत दिशा में खोदा जाना चाहिए था। घर का मुख्य द्वार बांये न होकर दांयी तरफ होना चाहिए था।
नीरज घर के दोष जानने के बाद पंडितजी को बगीचे में ले गया और पूछा कि यहां भी कुछ दोष है क्या पंडितजी ? पंडित जी बगीचे में घूमने लगे, नीरज बगीचे में स्थित कमरे से पंडित जी के बैठने के लिए कुर्सी लाने के लिए जैसे ही कमरे के अंदर प्रवेश किया, वैसे ही जोर से चरमराते हुए कुछ गिरने की आवाज आयी, दौड़ कर नीरज जब बगीचे में आया तो देखता है कि पंडित जी के उपर एक मोटा पीपल के पेड़ की डाल गिरा पड़ा है।
कौन सी वस्तु कहां होनी चाहिए, कौन सा पेड़ कहां लगाना चाहिए और कहां नहीं लगाना चाहिए यह बताते पंडित जी को कहां खड़े होना चाहिए और कहां नहीं, इसका सबक भगवान ने सीखा दिया था।
कब्र की बुकिंग
इंतकाल के बाद आफताब को अपने अब्बा को दफनाने के लिए एक कब्रगाह से दूसरे कब्रगाह के चक्कर लगानी पड़ रहे थे। एक तो अब्बा के इंतकाल के बाद गमों का जो पहाड़ आफताब के सर पर टूटा वह तो था ही, कब्रगाहों में दफनाने के लिए जगह नहीं मिल पाना आफताब के लिए एक नयी मुसीबत खड़ी कर दिया था।
अब्बा अपने हयात में जब थे तो अक्सर आफताब को कहा करते थे कि बेटा मेरे इंतकाल के बाद मुझे तुम वहां की मिटटी देना जिसके इर्द-गिर्द दरवेशों को दफनाया गया हो ताकि मुझे वहां नवा-ए-सरोश सुनाई पड़े। जीते जी जिनका सोहबत नहीं कर सका मरने के बाद अगर उनका सोहबत कब्रगाह में हो गया तो बहुत बड़ी बात होगी। अब्बा की कभी कही बातें आफताब को मेहन्दीया कब्रगाह में खड़े-खड़े याद आ रही थी।
आफताब को कब्रगाह के केयर टेकर से बातचीत कर बहुत ही आश्चर्य हो रहा था कि कब्रगाह में जगह नहीं है और जो खाली जगह दिख रही है उसे दूसरे अन्य लोगों ने खरीद रखा है वहां खरीददारों के रिश्तेदारों को ही दफन किया जाएगा।
आफताब यह सोचते हुए रंज महसूस कर रहा था कि जिंदा रहते तो लोग तिजारत करते ही है अब मौत और लाशों की भी तिजारत शुरू हो गयी है।
खैर फिलहाल तो आफताब अपने अब्बू को मिटटी देने के लिए सदर बाजार, दिल्ली स्थित ख्वाजा वकीबिल्ला कब्रगाह ले गया। मययत में शामिल आफताब का दोस्त रियाज अहमद ख्वाजा वकीबिल्ला कब्रगाह में आधा दर्जन कब्रों को अपने सात परिवार के सदस्यों के लिए पिछले दो वर्षों पहले बुकिंग किया था। आफताब के परेशानी को देखते हुए रियाज अहमद ने अपने बुक किए गए आधे दर्जन कब्रों में से एक कब्र जो दरवेशों के इर्द-गिर्द स्थित था आफताब के अब्बू के लिए दे दिया और अपने दोस्त होने का हक अदा किया।
आफताब बहुत बड़े मुसीबत से निजात पा चुका था वरन् अब्बू के लाश को लिए हुए इस कब्रगाह से उस कब्रगाह तक भटकने का दर्द वही समझ सकता है जिसपर यह बिती हो। अपने दोस्त रियाज अहमद का वो ताउम्र एहशानमंद रहा क्योंकि अपने दोस्त के कारण ही अपने अब्बू को दरवेशों के कब्रों के बगल में दफना पाया था आफताब।
मकाम तक मुकीम को पहुंचा कर आफताब जब घर लौटा तो उसे एक ही जानकारी परेशान कर रही थी कि अब मरने के बाद इतनी आसानी से कब्र नसीब नहीं होने वाला। उसे यह बात भी परेशान कर रही थी कि उसे अब तक कब्र की बुकिंग की बात का पता क्यों नहीं था। दूसरे ही दिन अपने परिवार के सभी सदस्यों की गिनती करने के बाद चौरान्वे कब्रों को बुक करवाने निकल पड़ा था आफताब। जिन्दगी को तो बाजार ने अपनी जद में ले ही लिया है मौत को भी नहीं छोड़ा बाजार ने, शिद्त से सोचता हुआ जा रहा था आफताब।
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राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा, गिरिडीह, झारखंड़
815301 सेल-9471765417
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