संपर्क रूपलाल मोबाइल फोन नहीं रखता था। उसे पंसद नहीं था कि लोग उससे हर वक्त बात करें। हर समय प्रत्येक के साथ उसका संपर्क बना रहे यह उसे अ...
संपर्क
रूपलाल मोबाइल फोन नहीं रखता था। उसे पंसद नहीं था कि लोग उससे हर वक्त बात करें। हर समय प्रत्येक के साथ उसका संपर्क बना रहे यह उसे अच्छा नहीं लगता था।
स्पलाल की पत्नी रूबिया अपने पति को कहा करती थी कि आप जब ऑफिस में रहते है और आपको आने में देर होती है तो मेरा मन भी मोबाइल फोन के जरिए आपसे बात करने को करता है इसलिए आप फोन ले लीजिए। रूबिया पर रूपलाल के मित्रगण, पास-पड़ोस वाले काफी दवाब बना रखा था मोबाइल फोन रखने के लिए। रूबिया जानती थी कि मित्रगण और पास-पड़ोस के लोगों के दवाब में उसका पति फोन खरीदने वाला नहीं अगर भावनात्मक रूप से उसे समझाया जाए तो शायद फोन उसका पति खरीद ले।
रूपलाल अपनी पत्नी को समझाता था कि पहले भी लोग रहते थे, कहां था सभी के पास मोबाइल फोन ? वह मजकिया अंदाज में कहता मान लो रूबिया कि मेरे आने में देर हो रही हो और तुमने फोन लगाया लेकिन मुझसे बात नहीं हो सकी तब तो तुम्हारी हालत और खराब हो जाएगी। कई तरह के बुरे ख्याल आने लगेंगे। रूबिया कहती वो तो है पर अगर फोन करूंगी तो आप क्यों नहीं बात करेंगे ? उसके कई कारण हो सकते है जिसे जानना तुम्हारे लिए जरूरी नहीं है।
रूपलाल के मित्र, कुलिग, पुत्र, पुत्रियां सभी मोबाइल फोन नहीं रहने की वजह से काफी परेशान थे। रूपलाल का मित्र संजय एक दिन कहने लगा कि यार रूपलाल तुम भी अजब करते हो आज के मोबाइल ऐज में मुझे नहीं लगता कि ऐसा कोई व्यक्ति भी होगा जो मोबाइल फोन नहीं रखता हो।
रूपलाल समझाने के लहजे में अपने मित्र संजय को कहने लगा कि यार जब मोबाइल फोन का प्रचलन नहीं था तब भी तो लोग आसानी से एक दूसरे के संपर्क में रहते थे। चूंकि सभी के पास मोबाइल फोन है इसलिए मुझे भी मोबाइल फोन रखना चाहिए यह कोई तर्क नहीं हुआ।
संजय इस मुद्दे पर रूपलाल से बहस कर समय बर्बाद करना उचित नहीं समझा और रूपलाल को चाय उसके घर पर शाम को पीने की दावत देता गया। जाते-जाते कहता गया कि आना जरूर नहीं आने से फोन पर तुमसे बात भी नहीं हो पाएगी कि क्यों नहीं तुम चाय पीने आ रहे हो !
रूपलाल मुस्कुरा कर हामी भर दी। शाम को संजय के घर पर रूपलाल की मित्रमंडली विराजमान थी। घंटे भर की चाय दावात के दौरान सभी का फोन बजता रहा, बात करने के लिए मुखातिब हुए नहीं कि फोन आ गया। फोन पर बात हो रहा है कि पापा कब तक घर आ जायेंगे। दूसरे मित्र की पत्नी ने फोन किया कि थ्री जी फोन क्यों लेकर चले गए, अरे उस फोन के नेट पर ब्यूटी टिप्स लेनी थी।
रूपलाल को मित्र ने पत्नी से फोन पर हुयी बात का सारांश बताया तो रूपलाल को समझ नहीं आ रहा था कि रात को पत्नी ब्यूटी टिप्स लेकर क्या करेगी, लेना ही है तो सुबह ले लेती, इसके लिए दावत में गये पति को फोन कर डिस्टर्ब करने की क्या जरूरत थी।
रूपलाल जब तीसरे मित्र की ओर मुखातिब हुआ ही था कि उसका फोन भी बज उठा, अब रूपलाल कैसे और किससे बात करे, यह उसकी समस्या बनती जा रही थी। इससे बेहतर तो था कि सभी अपने-अपने घरों में चाय पीते और फोन पर बातें करते, एक जगह इकटठा होने की क्या जरूरत थी ?
रूपलाल खिन्न सा दिख रहा था तब तक उसके मित्र ने फोन रख दिया और रूपलाल के पास आकर कहा कि खामख्वाह परेशान करते है, घर पर साइकिल की चाभी गुम हो गयी थी, फोन पर मुझसे पूछ रहा था मेरा बेटा कि कहीं मैं तो चाभी साथ नहीं ले आया। रूपलाल खीझते हुए कहा तो फोन क्यों रख दिया, चाभी लौटा दो। हें, हें, हें मित्र ने रूपलाल को देखकर हंसा। इसी बीच दौड़ा-दौड़ा दूसरे कमरे से संजय वहां आया और एक मित्र को कहा कि अरे यार, दीपक अभी तक नहीं आया, जरा फोन तो लगा, पूछ कहां रह गया है। फोन दीपक को मिलाया जा ही रहा था कि संजय के मोबाइल फोन पर दीपक का फोन आया कि यार नहीं पहुंच पाउंगा, सॉरी यार, संजय ने पूछा क्यों नहीं पहुंच पाएगा ? दीपक ने कहा यार आ तो तुम्हारे यहां ही था पर बस स्टॉप पर मोना डार्लिंग मिल गयी उसी के साथ दोआब ढाबा में स्पेशल चाय पी रहा हूँ, सॉरी यार, फिर कभी आ जाउंगा तुम्हारे घर भाभी जी के हाथ का चाय पीने।
रूपलाल सोचने लगा कि जब से वह दावत पर आया है किसी मित्र ने भी आपस में बैठकर बातें नहीं की, सभी फोन पर ही बातें कर रहें है। वह अब चलने की सोचने लगा, ये फोन का चिल्लपो तो न जाने कब तक चलता रहेगा। रूपलाल जैसे ही जाने को तैयार हुआ कि संजय उसके पास आया और बोला क्यों यार रूपलाल इतने गुमसुम क्यों हो ? किसी का फोन नहीं आया, चेटींग करो, गुमसुम रहना भूल जाओगे।
रूपलाल आजिज आ चुका था, बोला चलता हॅूं यार, देर हो गयी है पता नहीं रिक्सा, बस, टेक्सी, ऑटो कुछ मिलेगा भी या पैदल ही जाना होगा। संजय बोला एक मिनट यार, हरखुआ स्टेशन से लौट रहा होगा, पता करते है कहां है वह ?
रूपलाल पूछा कौन है हरखुआ, अरे वही नुक्कड़ पर जिसकी रिक्सा खड़ी रहती है, संजय ने रूपलाल को याद दिलाने के लहजे में बोला, कई बार तो जा चुका है उसके रिक्से से।
हां हैलो, हरखु, कहां है तू, संजय फोन पर पूछ रहा था, हां-हां ठीक है, मेरे घर पर आ जा, एक साहब जायेंगे। संजय फोन ऑफ कर रूपलाल को कहा, हरखुआ रिक्सा लेकर यहीं आ रहा है।
रूपलाल रिक्सा पर बैठा घर जाते हुए सोच रहा था कि हरखुआ कितना कमाता होगा और कितना का रोज रिचार्ज कराता होगा ? रूपलाल को रहा नहीं गया, उसने पूछ ही डाला, अच्छा हरखु रोज कितना रिचार्ज कराते हो, रोज पूरा घर खाने में थोड़ा कटौती करता है न साहब तो पचास में पचास भरवा लेता हॅूं, हरखुआ ने बताया।
रूपलाल कुछ आगे पूछना मुनासिब नहीं समझा।
स्वस्थ भविष्य
चं्रद्रशेखर से उसके परिवार वाले नाराज से रहते थे। खास कर उसकी पत्नी क्योंकि चंद्रशेखर अपने पुत्र और पुत्री को टूयशन नहीं पढ़वाना चाहता था, पुत्री द्वारा पहली कक्षा में नब्बे प्रतिशत नंबर नहीं लाने से उसे ड़ांटता नहीं था। कम्प्यूटर सेट और मोबाइल फोन सेट अपने पुत्र-पुत्री को नहीं खरीद कर देता था।
चंद्रशेखर की पत्नी रमा तो हत्थे से कबड़ी रहती थी अपने पति से। रमा पूछती थी अपने पति से कि आखिर आधुनिक समाज के जितने भी मानदंड़ है आप किसी भी मानदंड़ को नहीं मानते। रमा गंभीरता से कहती कि बच्चे टूयशन नहीं लेंगे तो सौ में सौ कैसे लायेंगे। स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा है मुझसे कि बच्चों को ट्यूशन लगवा देने के लिए नहीं तो जीवन के दौड़ में पीछे छूट जायेंगे।
चंद्रशेखर अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश में कहता था कि देखो रमा बच्चे दोपहर दो बजे स्कूल से आते है और फिर तुरंत तीन बजे उन्हें ट्यूशन भेज दोगी तो वे खेलेंगे कब ?
रमा को आश्चर्य होता था सोचकर कि उसका पति चाहता है कि बच्चे खेले, पढ़े नहीं। रमा कहती आजकल बच्चे खेलते कहां है, शाम को ट्यूशन से लौटने के बाद टीवी और सीडी देखते है, रात को नूडल्स और मैगी खाकर सो जाते है। हमलोग का बच्चा ही सिर्फ खेलता है, मुझे तो शर्म आती है पडोसियों से आंख मिलाने में। पड़ोस की शर्मा जी की पत्नी तो कल मुझसे कह रही थी कि मैदान में सिर्फ हमारा बच्चा ही शाम को खेलता है बाकी मोहल्ले के सभी बच्चे तो टूयशन चले जाते है।
चंद्रशेखर अपनी पत्नी को बोला कह देना सीमा भाभी को कि खेलने के बाद बच्चे को मैं खुद पढ़ाता हॅूं। चंद्रशेखर आगे कहने लगा कि देखो रमा जैसे खाना और पढ़ना जरूरी है न वैसे ही बच्चों को खेलना भी जरूरी है और हां रात को खाने में बच्चों को नूडल्स और मैगी तो देना ही नहीं, इन सब चीजों का कोई फूड वैल्यू नहीं है। इसे खाते रहने से बच्चों का विकास रूक जाएगा। बच्चों को रात में दूध और रोटी खाने की आदत दिलवाओ अगर नहीं खाता है तो उन्हें कहना कि पापा तो रोज दूध और रोटी खाते है। बच्चे बड़ों का अनुसरण करते है देखना वे लोग भी दूध और रोटी खाने लगेंगे।
रमा झुंझलाते हुए कहती कि आपका तो हर चीज ही उल्टा है बरसे कंबल, भींगें पानी की तरह। अरे खेलने से बच्चे बर्बाद हो जाऐेंगे और आप है कि बच्चों को खेलवाना चाहते है, रमा कह रही थी। पढ़ाई को खेल समझ रखा है क्या आपने, रमा अपने पति से पूछा करती थी।
चंद्रशेखर कहता देखो रमा, पढ़ाई को खेल-खेल में ही पढ़ाना है बच्चों को। बच्चों को अपने पढ़े गए विषयों का ज्ञान होना चाहिए, नंबर अगर कम भी लाता है तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
रमा खीझती हुई अपने पति से पूछती कि आप बच्चों को मोबाइल फोन छूने नहीं देते, लैपटॉप पर गेम खेलने नहीं देते, टीबी देखने का भी समय सिर्फ दो घंटे बांध दिया है तो फिर बच्चे करेंगे क्या सारा दिन ?
खेलेंगे, चंद्रशेखर ने जवाब दिया। कमरे में दिन भर छुट्टी के दिनों में टीबी देखने से कहीं बेहतर है शारीरिक खेल, चंद्रशेखर अपनी पत्नी को कहता। जरा सोचो रमा हमलोग तो मोबाइल फोन या लैपटॉप का इस्तेमाल कुछ सालों से कर रहे है इतने कम दिनों में ही आंखें कमजोर हो गयी है, लैपटॉप पर बैठकर काम करने से कमर और गर्दन में दर्द रहने लगा है अगर बच्चों को इसी उम्र में मोबाइल फोन और लैपटॉप दे दोगी और बेरोकटोक टीबी देखने दोगी तो जवान होते-होते बच्चे अंधे, बहरे और कई अन्य बीमारियों का शिकार हो जायेंगे तब हमलोगों को ही कोसेगें कि हमारे माता-पिता ने हमें बताया नहीं और हमें बीमार कर दिया। बच्चे देश के भविष्य है और एक अच्छे शहरी होने के नाते यह हमलोगों का कर्तव्य है कि हम अपने बच्चे को एक स्वस्थ भविष्य दे। हमारे बच्चे बड़ा होकर अगर बीमार नागरिक बन गए तो यह देश के साथ गद्दारी है।
रमा सोचने पर मजबूर हो गयी कि उसका पति जो कह रहा है वह तो सच है। हमलोग भेड़ चाल में बिना सोचे समझे बच्चों को वो सभी चीजें बहुत आसानी से पकड़ा देते है जो उनका भविष्य खराब कर देगा। आधुनिक समाज का मानदंड़ अगर मोबाइल फोन, लैपटॉप और टीबी है तो हमलोग प्राचीन समाज में ही स्वस्थ रहना चाहेंगे, रमा निश्चय कर ली थी।
चंद्रशेखर अब खुश था क्योंकि उसके बच्चों की माँ अब बच्चों को स्वस्थ भविष्य देने के निश्चय कर चुकी थी।
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राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा, गिरिडीह, झाारखंड़, मो-9471765417
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