1.(पिताजी को प्रणाम) पिता ने प्रसन्न रहना सिखाया, विपदाओं में भूल के गुम को, न जाने कितने कष्ट सह के, काबिल बनाया पिता ने हमको। निज श्रम ...
1.(पिताजी को प्रणाम)
पिता ने प्रसन्न रहना सिखाया,
विपदाओं में भूल के गुम को,
न जाने कितने कष्ट सह के,
काबिल बनाया पिता ने हमको।
निज श्रम अर्जित धन से,
हमें विद्या अध्ययन कराया,
भोजन,वस्त्र या हो कुछ भी,
हमें मिला मन का चाहा।
समस्त आयु कमा कमा कर,
हमें सौंप दिया सम्पति-धन को,
न जाने कितने कष्ट सह के
काबिल बनाया पिता ने हमको।
पिता थे पथ प्रदर्शक किनारे ,
हम थे जल की बहती धारा,
प्रोत्साहित किया प्रशंसा से,
और डांट कर त्रुटियों को सुधारा।
उत्तम अधम के अंतर से,
अवगत कराया पिता ने हमको, ं
न जाने कितने कष्ट सह के,
काबिल बनाया पिता ने हमको।
असीमित है कर्ज पिता के,
पर सरल है ये कर्ज चुकाना,
केवल पितृ आदर करना है,
और है आज्ञाकारी बन जाना।
पितृ आशीष की दीप्ति से,
दीनू सुपुत्र बन चमको।
न जाने कितने कष्ट सह के,
काबिल बनाया पिता ने हमको।
2. (अगणित यादें,चिरकाल उदासी।)
फूल खिले पर दिल मुरझाया,
ठंडी हवा ने फिर आ ज जलाया।
पत्तों से ज्यादा जख्म हरे हैं,
जीवन खाली,दुःख भरे हैं।
पुष्प सुगंध व्यर्थ ही बहती,
तरु छाया भी सुकून ना देती।
कुंकती कोयल अब मन ना लुभाती,
सतरंगी तितली मुझे चिढ़ाती।
बबूल में शूल,पर चुभन है मन में,
कुरूप जिंदगी सुन्दरवन में।
वन में वृक्ष गिरते,नए उगते,
पर परम मित्र के विकल्प ना मिलते।
वहाँ गया फिर तू मिला ना साथी,
छोड़ अगणित यादें,चिरकाल उदासी।
3. ( बस अच्छे ही लोग मिले)
सागर तट पर मोती,
सूरज ढलते ही ज्योति,
ऐसे सुखद संयोग मिले,
जिस जगह रहा,
जिस जगह गया,
वहीं पर अच्छे लोग मिले।
कुछ अजनबी अपने बने,
कुछ अपनों ने कुर्बानी दी,
कुछ बड़ों ने प्यार से डांटा,
कुछ बच्चों ने नादानी की।
अन्जानों के संग चलने के,
उनके संग घुलने-मिलने के,
अद्भुत-अतुल्य प्रयोग मिले,
जिस जगह रहा,
जिस जगह गया,
वहीं पर अच्छे लोग मिले।
उनका हुनर था तारे छूने का,
पर पाँव थे जमीं पर टिके हुए,
प्रेम, सादगी, विनम्रता जैसे,
‘शब्द’ थे दिल पर लिखे हुये।
पाकर भी अहंकार ना हो,
निंदा से सरोकार ना हो,
ऐसे वचन अमोघ मिले,
जिस जगह रहा,
जिस जगह गया,
वहीं पर अच्छे लोग मिले।
एक सुंदर तस्वीर ही बनती,
डालता जब कागज पर स्याही को,
इतना वक्त कहां की परखूं?
उनमें छिपी बुराई को।
पर दुःख में रोने वाले,
खुशी में खुश होने वाले,
सज्जन ‘दीनू’ को रोज मिले,
जिस जगह गया,
जिस जगह रहा
वहीं पर अच्छे लोग मिले।
4.(दीदार परवरदिगार का)
मशरीक में मगरीब में,
शुमाल या जनुब में,
जमीं से फ़लक तक,
हर किसी मखलुक में,
हर तरफ पाता हूँ,
दीदार परवरदीगार का।
चर्च-मंदिर की इबादत में,
मस्जिद की नमाज में,
गुरूद्वारे की गुरूवाणी में,
और पूरे समाज में।
हर तरफ पाता हूँ,
दीदार परवरदिगार का।
गुरू ग्रन्थ साहिब, गीता में,
बाइबल में, कुरान में,
मुल्क के हर मजहब में,
हर कौम में, जुबान में
हर तरफ पाता हूँ
दीदार परवरदिगार का।
एक ही खालिक है सबका,
जो मुनक्कद करता है कायनात,
गॉड, अल्लाह, प्रभु, वाहे गुरू,
जो भी बोलो, तुम हजरात!
आओ एक चिराग जलाएं,
जो हर मजहब को जगमग कर दे,
तस्सदुद् को खत्म करके,
अमन-चैन कायम कर दे।
कासिद ‘दानिश’ का पैगाम,
दुनिया में नसर कर दो,
ये नेक मकसद है,
बस सफर-ए-मकसुद़ पर चल दो।
5. (प्यार की उड़ान)
देखता हूं नीचे तो,
बादलों का कारवाँ,
देखता हूं ऊपर तो,
अथाह नीला आसमाँ।
गगनचुंबी इमारतें पर्वतों की शिखाएँ,
मुझको देखना है तो, सब अपना सर उठाएँ।
ध्वनि से भी तेज चल ध्वनि को देता हूं मात,
एक अकेला आसमां में हवा से करता हूं बात।
कर्म भूमि है मेरी, ये अनंत अम्बर विशाल,
बना आसमाँ का प्रहरी मैं, आसमाँ पर ताने ढाल।
नभ और धरा के सफर में, रोमांच तो हर ओर है,
पर बीच जिन्दगी-मौत के, एक झीनी डोर है।
एक प्यार तेरा है जिसने मजबूती दी है डोर में,
एक प्यार तेरा है जिससे जीता हूँ इस दौर में।
भू आसमाँ की राह में, तुझसे मिलने की चाह में,
एक प्यार तेरे की खातिर जगता हूँ मैं भोर में।
दूसरी चाहत उड़ना और पहली हो तुम,
इससे ज्यादा अब क्या वादा?
क्या कहूं तुम्हें और मैं?
6. (तुम खास,तेरी यादें आम )
तेरा ख्वाब देख जगा भोर में,
तेरे ख्यालों में ही शाम हो गयी है,
तुम खास हो गए हो,
तेरी यादें आम हो गयी है.
फरिश्ते की तरह आये हो,
मेरी जिंदगी में खुशियां लेकर,
तकलीफों की धूप में,
तेरी सोहबत से छाँव हो गयी है.
तुम खास हो गए हो,
तेरी यादें आम हो गयी है.
बेलुत्फ जिन्दगी में,
मक्सद न था जीने का,
तेरी मोहब्बत पाना,
अब जिन्दगी का मुकाम हो गयी है.
तुम खास हो गए हो,
तेरी यादें आम हो गयी है.
तेरी बेरुखी दोजख
और तेरी बातें जन्नत है,
मेरी जन्नत सी जिन्दगी,
अब तेरे नाम हो गयी है.
तुम खास हो गए हो,
तेरी यादें आम हो गयी है.
अधूरे थे ख्वाब मेरे,
अधूरी थी जिन्दगी,
तेरी दस्तक से,
आशियाने में खुशियाँ तमाम हो गयी है.
तुम खास हो गए हो,
तेरी यादें आम हो गयी है.
7. (मोहब्बत का मतलब)
कौन ऐसा है जिसे, सुख-सुमन हरदम मिले,
गम इस बात नहीं,कि मुझको हमेशा ग़म मिले।
तुमको फ़िक्र न मेरी,न मेरे अश्कों की,
पर है दुआ यही कि, तुमको खुशियाँ हर कदम मिले।
मेरी खुदगर्जी चाहती, मोहब्बत के बदले मोहब्बत,
तुम्हें मिले हर चाहत,बेशक मुझे अकेलापन मिले।
मेरी दुआएं तोड़ देगी,एक दिन मेरे ख्वाबों को,
दुआएं कुबूल हो ख़ुदा,बेशक टूटे ख्वाबों को न मरहम मिले।
मोहब्बत का मतलब,किसी को पाना नहीं होता,
मेरी दुनिया से दुर जाकर भी, तू ख्यालों में हरदम मिले।
8 (सोच की बहती नदी)
.ना तो मैं परवाज थी,
ना परिंदों की आवाज थी,
पर उम्मीदों की उड़ान भरती रही,
अनछुई को छूने की,
अनकही को कहने की,
कोशिश मैं करती रही।
ना किसी ने चाही हो,
वो मेरी तो चाह थी,
सबकी सोच से परे,
एक नई मेरी राह थी।
राह में अकेली,
एक अनसुलझी पहेली,
उपहास का पात्र बनती रही,
अनछुई को छूने की,
अनकही को कहने की,
कोशिश मैं करती रही।
मेरी बात तो गंभीर थी,
पर सबने हंसकर ही निहारा,
किसी ने सनकी कहा,
तो किसी ने पागल पुकारा,
दुःख में आँखें मींच,
बुद्धिमानों के बीच,
मैं जीकर भी मरती रही,
अनछुई को छूने की,
अनकही को कहने की,
कोशिश मैं करती रही।
मेरी सोच की बहती नदी में,
एक दिन एक ठहराव आया,
अफसोस वो रुकी वहीं,
जहाँ था दुनिया ने समझाया।
दिल की न मानकर,
खुद को बेबस जानकर,
दुनिया की हाँ में हाँ करती रही।
अनछुई को छूने की,
अनकही को कहने की,
कोशिश से डरती रही,
दिल की न मानकर
खुद को बेबस जानकर,
दुनिया की हाँ में हाँ करती रही।
9.(छा गए है बदरा)
छा गए है बदरा
छा गए आकाश में,
पुलकित है हर कोई,
जो थे बरखा की आस में।
सूर्य देव छिप गए,
बादल दल के पीछे,
इन्द्रदेव वर्षा करने को,
आए हैं ऊपर से नीचे।
घनघोर गर्जन करते,
मेघ नभ में भरते हुंकार,
आसमाँ में जल को थामें,
जल बरसाने को तैयार।
तडि़त दीप्ति से दर्शाती,
मेघों का विकराल आलिंगन,
मंद-मंद पवन शीतल से,
मुदित हुआ है जन-जन ।
गरजते मेघ, कड़कती बिजली,
और सुहाना मौसम,
आओ इस बारिश में भीगें,
भीग जाए तुम और हम।
10.दोस्ती के गढ़वाली ग्राम के वासी,
कितने प्रसन्न है हम दोनों साथी.
ऊपर है प्रेम पर्वत शिखर,
नीचे बेरुखी की खाई भयंकर,
ना नीचे बेरुखी की खाई में उतरना,
ना ऊपर प्रेम शिखरों पर चढ़ना,
हम यहीं रहेंगे,
हम यहीं रहेंगे ,
दोस्ती के सुंदर गाँव में.
प्रेम शिखर अति सुंदर है किन्तु,
वहाँ पर है दुर्विचारो के जंतु,
दूर से भी सुंदर है लगते,
ये प्रेम शिखर आनंदित करते,
प्रेम शिखर के प्रेम-प्रपात का जल,
हम पी लेंगे ग्राम-गंगा तट पर,
करीब है विश्वास का हरित वन,
बहती यहाँ शीतल प्रसन्नता पवन,
मधुर संगीत परिंदों के स्वर का,
उषाकाल में कीर्तन मंदिर का,
प्रातः के दिनेश रश्मियों की ज्योति,
इस पवित्र गाँव में प्रकाशित होती,
कहाँ मिलेगा?
कहाँ मिलेगा?
ऐसा सुंदर गाँव.
हम यहीं रहेंगे,
हम यहीं रहेंगे,
दोस्ती के सुंदर गाँव में.
दिनेश जांगड़ा
पता- # 01, बाडों पट्टी, हिसार (हरियाणा )
शिक्षा- 1. समाज कार्य में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण
2. योग विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधिपत्र
प्रकाशित पुस्तकें- दास्तान ए ताऊ, कवि की कीर्ति
ई -मेल- dkjangra609@rediffmail.com
upar prem shikhar nicheniche be rukhi ki khayi ek anuthi ukti ati sunder prastuti karan
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