आतंकवादः कड़े कानूनी उपायों की जरुरत प्रमोद भार्गव आतंकवादी रंग की दलीलों के बीच एक बार फिर हैदराबाद में आतंकी हमले ने खून से लाल इबारत लिख...
आतंकवादः कड़े कानूनी उपायों की जरुरत
प्रमोद भार्गव
आतंकवादी रंग की दलीलों के बीच एक बार फिर हैदराबाद में आतंकी हमले ने खून से लाल इबारत लिख दी है। 23 निर्दोषों की जानें गईं और 100 जीवन-मृत्यु के झमेले से जूझ रहे हैं। हैदराबाद में इसके पहले 25 अगस्त 2007 में भी इसी दिलसुखनगर के गोकुल चाट भंडार पर आतंकी हमला हो चुका है। इसमें 42 लोग मारे गए थे। विस्फोट के तरीके से यह माना जा रहा है कि यह हरकत आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन की हो सकती है। लेकिन यहां हैरानी इस बात पर है कि इस बम विस्फोट की आशंका दो दिन पहले खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों को मिल गई थी। आंध्रप्रदेश समेत देश के सभी राज्यों को सतर्कता बरतने की हिदायत दे दी गई थी, बावजूद सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक हो गई ? जाहिर है, हमारी खुफिया एजेंसियों में पर्याप्त तालमेल की कमी है। जबकि इसी कमी को दूर करने के नजरिये से राष्टीय जांच एजेंसी, मसलन एनआईए वजूद में लाई गई थी। इस हमले के मद्देनजर जरुरी हो जाता है कि राजनीतिक दल अपने क्षुद्र स्वार्थों से उपर उठकर ‘राष्टीय आतंक रोधी केंद्र' यानी एनसीटीसी कानून को इसी बजट सत्र में पारित कराएं, जिससे आतंकी गतिविधियों पर अंजाम तक पहुंचने से पहले ही अंकुश लगाया जा सके।
केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने मंजूर किया है कि उनके पास दो दिन पहले ही यह जानकारी आ चुकी थी कि आतंकवादी गंभीर वारदात कर सकते हैं। बावजूद हरकत को न रोक पाना इस बात की तसदीक है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां और राज्य पुलिस जवाबदेही से बेफिक्र हैं। उनमें परस्पर विश्वास और सामंजस्य का भी जबरदस्त अभाव है। समान पद, श्रेणी और वेतनमान होने के इनके अहंकार भी परस्पर टकराकर सच्चाई को टालने का काम करते हैं। यही वजह है कि एनआईए और राज्यों के आतंक रोधी दस्तों के बीच टकराव के हालात पैदा होते रहते हैं। इसीलिए हमारे यहां घटनाओं पर घटने से पहले काबू नहीं पाया जाता है। इस विसंगति को दूर करने के लिहाज से ही केंद्र सरकार एनसीटीसी कानून अस्तित्व में लाना चाहती है, कई राज्य सरकारों के विरोध करने के कारण यह लंबित विधेयक कानूनी रुप नहीं ले पा रहा है। खासतौर से गैर कांग्रेसी सरकारों को अशंका है कि गुप्तचर ब्यूरो के मातहत बनने वाली इस संस्था का केंद्र सरकार सीबीआई की तरह दुरुपयोग कर सकती है। यह सही है कि यह शंका भी एकदम निराधार नहीं है, बावजूद ऐसी एक संस्था को वर्चस्व में लाने की जरुरत है, जो राजनीतिक, क्षेत्रीय, सांप्रदायिक और जातीय संकीर्णताओं से उपर उठकर काम करे।
दरअसल इस कानून का प्रारुप पूर्व गृहमंत्री पी․चिंदबरम् ने अमेरिका के आतंक-रोधी दस्ते एनसीटीसी का अध्ययन करने के बाद तैयार किया था। गोया, अमेरिका में 9/11 के हमले के पहले वहां की एफबीआई, सीआईए और पेंटागन जैसी तमाम सुरक्षा एजेंसियों के पास आतंकी हमले की जानकारियां थीं, लेकिन इन सूचनाओं को साझा न कर पाने के अभाव में वे हमले को रोकने में नाकाम रहीं। इस हमले की जांच हेतु गठित आयोग ने अपनी रिपोर्ट में खुफिया एजेंसियों की कमजोरी का खुलासा करते हुए कहा कि तमाम एजेंसियों में तालमेल न होने के कारण यह घटना घटी। साथ ही आयोग ने एक ऐसी संस्था बनाए जाने का सुझाव दिया जो कि सुरक्षा मामलों से जुड़ी विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय का काम कर सके। इस सिफारिश को अमेरिकी सरकार ने स्वीकार किया और वहां ‘नेशनल काउंटर टेरररिज्म एजेंसी ;एनसीटीसीद्ध 2004 में वजूद में लाई गई। इसे वहां की गुप्तचर संस्था सीआईए से अलग रखा गया। इसका निदेशक पृथक से बनाकर इसे सीधे राष्टपति के अधीन रखा गया। बाद में इसे आतंक रोधी कानून के तहत मान्यता भी दे दी गई।
चिदंबरम् ने इस अध्ययन के बाद इसका अनुकरण भारत में किया। उन्होंने एनसीटीसी का गठन किए जाने की दृष्टि से, गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत एक कार्यकारी आदेश जारी करके इसका मसौदा भी तैयार किया किया। लेकिन इसे स्वतंत्र एजेंसी बनाने की बजाय गुप्तचर ब्यूरो के अधीन रखने की भूल कर दी। साथ ही इसे पूरे देश में कहीं भी स्वतंत्र रुप से तलाशी लेने, संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लेने और आपत्तिजनक सामग्री जब्त करने के अधिकार भी दे दिए। इसके बाद जब इस कानून पर सहमति के लिए प्रांतों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई गई तो टकराव के हालात बन गए। इसकी दो प्रमुख वजहें रहीं, एक तो आईबी के पास भी उतने अधिकार नहीं हैं, जितने एनसीटीसी को दिए गए, जबकि इसे आईबी के अधीन रखे जाने का प्रावधान है। दूसरे, संविधान में कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। इसलिए इस हस्तक्षेप को संविधान के साथ खिलवाड़ माना गया। एक तरह से राज्य पुलिस का दर्जा भी एनसीटीसी को दे दिया गया। लिहाजा मुख्यमंत्रियों में यह आशंका पैदा होना सहज है कि एनसीटीसी को ये अधिकार मिल जाने के बाद राजनीतिक लोगों के आतंकवादियों से संबंध जोड़कर उन्हें नाहक परेशान किए जाने का सिलसिला चल निकलेगा। जाहिर है पी․ चिंदबरम् की 2008 में मुबंई में हुए आतंकवादी हमले के परिप्रेक्ष्य में आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए राष्टीय स्तर पर एक साझा कानूनी ढांचा वर्चस्व में लाने की परिकल्पना जन्मी थी, वह विचार शैशवास्था में ही धनराशायी हो गया। सुशील कुमार शिंदे इस विचार को आगे बढ़ा पाएंगे, उनसे यह उम्मीद कम ही है।
दरअसल इस पूरे मामले में पारदर्शिता की कमी रही। सरकार मुख्यमंत्रियों के समक्ष यह साफ नहीं कर पाई कि एनसीटीसी लाकर वह क्या अनूठा और कारगर कानूनी उपाय करना चाहती है। सरकार ने इसी दौरान यह भी जताया था कि वह पुलिस बलों की कानूनी संरचना में भी बदलाव चाहती है। इनमें सीमा सुरक्षा बल और आरक्षित पुलिस बल शामिल हैं। इसके पहले केंद्र एनआईए को भी वजूद में ला चुका था। लेकिन एनआईए की आतंकवाद से संघर्ष की अभी तक कोई सार्थक भूमिका सामने नहीं आई। इस वक्त नरेन्द्र मोदी ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि केंद्र राज्य के भीतर राज्य का गठन करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है। इन बदलावों से यह आशंका पैदा होना लाजिमी है कि कहीं केंद्र यह तो नहीं चाहता कि जिस तरह सीबीआई का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रुप में करता है, उसकी वही मंशा इन बलों और एनसीटीसी को लेकर तो नहीं हैं ? क्योंकि देश के पास अर्धसैनिक सशस्त्र बल और विशेषाधिकार कानून तथा सेना ही ऐसी इस्पाती ताकतें हैं, जो आतंकवाद, माओवाद, नक्सलवाद और कश्मीर जैसे आतंरिक सुरक्षा से जुड़े मसलों से जूझ रहे हैं। बहरहाल बढ़ते आतंकवाद को काबू में लेने के लिए यदि एनसीटीसी अमेरिका की तर्ज पर भारत में लाया जाता है तो यह उम्मीद की जा सकती है कि यह खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों में समन्वय भी बना लेगा और आतंकवादियों की नाक में नकेल भी डाल देगा। लेकिन इसे अमल में लाने के लिए केंद्र को साफ दृष्टि और पारदर्शिता अपनानी होगी।
प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म․प्र․
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
वोट बैंक की पाली-ट्रिक्स के चलते इस पर काबू नहीं पाया जा सकता.
जवाब देंहटाएंjab tak rajnitik rotiyan is par sikti rahengi tab tak kuch nahin hone wala.do din ghadiyali aanso baha kar,muwavje ki lollypop khila kar sarkar shant ho jayegi.sharam ki bat hae ki desh ke grah mantri yeh kah kar palla jhad lete haen ki alert ki suchna rajyon ko de di gayee thi.jab in netaon ko marna pade tab shayad samajh aa jaye.
जवाब देंहटाएंलेख में नग्न सत्य को व्यक्त करने का प्रयास है
जवाब देंहटाएंउत्तम लेख ....
जवाब देंहटाएंप्रमोद जी आपने बिल्कुल मूलगामी सवाल उठाया है। भारत में आतंकवाद का साया अनंतकाल तक बना रहेगा, साशंकता नहीं और प्रश्न चिह्न भी नहीं। आप चकित होंगे-कहेंगे'भई शुभ-शुभ बोलो।' परंतु बोलने से क्या होता है जो सच है वह सच ही है। दूसरा वास्तव यह भी है कि केंद्र की विभिन्न एजंसियों से राज्य सरकारों को हमेशा सतर्क रहने की सूचना मिलती है पर यह सूचना केंद्र और राज्यों के लिए केवल सूचना बन कर रहती है। समय-समय पर अलर्ट जारी करना फैशन बन गया है ऐसा सुरक्षा एजंसियों को लग रहा है अतः गंभीरता खत्म हो गई। आपने आगे सही लिखा कि 'परस्पर विश्वास और सामंजस्य का भी जबरदस्त अभाव है।'भारत और अमरिका की तुलना तो हो नहीं सकती क्योंकि भारत भारत है और अमरिका अमरिका। न जनता सजग है,न सरकार, न सुरक्षा एजंसियां। ऐसी स्थिति में आतंकवादी साया बना रहेगा और इसका बना रहना देश हीत में नहीं है। आपका आलेख आम भारतीयों की चिंता को प्रकट कर रहा है।
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