मंजुषा एक कोमल सी,सुन्दर सी कोपला का जब प्रस्फुटन होता है तो वह कितनी सुन्दर और प्यारी लगती है,बस ऐसी ही थी मंजुषा जब सन् 1961 में उस...
मंजुषा
एक कोमल सी,सुन्दर सी कोपला का जब प्रस्फुटन होता है तो वह कितनी सुन्दर और प्यारी लगती है,बस ऐसी ही थी मंजुषा जब सन् 1961 में उसका जन्म हुआ था। सितम्बर 1961 की वह शाम जब इस कली का प्रस्फुटन हुआ था एक अविस्मरणीय क्षण था पूरे सेठ परिवार के लिये। सेठ परिवार के ज्येष्ठ पुत्र अमृतसिंह की ज्येष्ठ पुत्री थी मंजुषा।
धन्नालालजी सेठ इस परिवार के मुखिया थे जो कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के विभाजन के समय उत्त्ारप्रदेश में आये थे,उनकी पत्नि श्रीमती सुहागवन्ती जी बहुत ही होनहार, मेहनती और. कुशल गृहिणी थीं। बहुत ही समझदारी व सूझबूझ से वे अपनी गृहस्थी चलाती थी।उनके दो पुत्र तथा तीन पुत्रियां थीं ,उनमें से अमृतसिंहजी ज्येष्ठ पुत्र थे जो कि सुहागवन्तीजी के अथक प्रयासों से एवं स्वयं की योग्यता से शासकीय शिक्षक बने। उनकी शादी श्री धन्नालाल जी की पसंद से ही बहुत ही कम आयु में एक साधारण लडकी से हो गइ्रर् और शादी के एक साल बाद मंजुषा ने जन्म लिया,उस समय घर में उसके दादा-दादी,मम्मी-पापा,तीन बुआयें तथा एक चाचा थे।भरापूरा हंसता-खेलता परिवार था।मंजुषा हाथों हाथ फूलों जैसी पली थी,उसको गोदी में खिलाने के लिये झगडे हुआ करते थे।उसके एक गुडिया जैसे सुन्दर-सुन्दर कपडे बनाये जाते थे तथा एक से एक सुन्दर खिलौने लिये जाते । जैसे-जैसे वह बडी होती गई उसके लिये समस्त अच्छी से अच्छी सुविधायें दी गईं । अच्छे प्राथमिक स्कूल में उसकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई उच्च शिक्षा भी अच्छे विद्यालय में कराई गई,सबके ख्वाब थे कि मंजुषा डॉक्टर बने परन्तु वह डॉक्टर नहीं बन सकी उसे एम. एस . सी. कराया गया और इस परीक्षा को उसने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया और एम. एस... .सी. करते ही उसकी नौकरी बैंक में लग गई । तब तक उसकी दो बुआओं की भी शादी हो चुकी थी। उसके धर में सबकी हार्दिक इच्छा थी कि मंजुषा बहुत अच्छी नौकरी करे और किसी उच्चाधिकारी से उसकी शादी हो । उसकी बुआ ने बडे अरमानों से घर बनवाया था और घर बनवाने के बाद ही मंजुषा की नौकरी भी लग गई । अब तो घर में बहुत ही आल्हादमय और आन्नंदमय वातावरण हो गया । मंजुषा के पिताजी श्री अमृतसिंहजी जो कि बहुत ही सीघे सच्चे ,ईमानदार और कर्तव्यपरायण तथा सदाचारी थे।उन्होंने अपनी नौकरी से अपने बहिन-भाइयों और बच्चों को पढाया,दो बहिनों और एक भाई की शादी भी कर दी थी । बडा खुशनुमा माहोल था सारे धर का,परन्तु शायद विधाता केा यह सब मंजूर न था । मंजुषा जो कि बहुत ही नाजों से पली थी,जिसके लिये बहुत अच्छे,सुयोग्य व उच्चाघिकारी वर की तलाश की जा रही थी,परन्तु विधाता की ऐसी विडम्बना हुई कि उसकी दोस्ती एक अपने साथ काम करने वाले लड़के से हो गई ,वह लड़का जो किसी भी प्रकार से पूरे परिवार को पसन्द नहीं था मंजुषा उससे प्यार करने लगी ।
यह मालूम होते ही सन्नाटा छा गया ,ऐसा लगा मानो सारे परिवार को चहुँ ओर से काले बादलों ने धेर लिया हो,मानो उनके सपने चूर-चूर हो गये हों, मानो उनके दिल के टुकडे-टुकडे हो गये हों । मंजुषा को जो किसी महल की रानी के रुप मे देखना चाहते थे उन सबके लिये यह सब सुनना भी असह्य हो गया ।
मंजुषा का परिवार बडा इज्जतदार परिवार था । परिवार का हर सदस्य बडा सुसंस्कृत और विद्वान कहलाता था और सन् 1980 के दशक में प्रेमविवाह बहुत ही शर्मनाक माना जाता था । सारा परिवार अपनी इज्जत और लड़की के भविष्य को लेकरबहुत चिन्तित हो गया । उन्हें लगा कि मानो उनकी इज्जत मिट्टी में मिल गई है ।दूजी ओर मंजुषा जो कि उस हवा में पूर्ण गति से पूर्ण वेग से बह रही थी,वह किसी भी प्रकार से प्रेमबंधन को तोड़ना नहीं चाहती थी,परन्तु उस समय समाज का यह माहोल था कि एक मध्यमवर्गीय परिवार वाले बच्चों के प्रेम विवाह से अपने आपको समाज में मुँह दिखाने लायक नहीं समझते थे ।
खैर इस विरोधाभास में बेचारी मंजुषा पिसती रही और उसके परिवार वालों ने अपनी इज्जत बचाने के लिये मानो लड़की केा मुसीबतों रुपी सूली पर चढा दिया ।अपनी जाति के एक लडके से उसकीश्शादी कर दी ।शादी के वक्त रिश्तेदारों ने बताया था कि वह एक सीधासादा और होनहार लडका है,लडके का अपना धन्धा है।
परन्तु विधाता की विडम्बना यहां भी पीछे नहीं रही। मंजुषा किसी तरह से अपनी पुरानी यादों को भुलाकर ष्नये सपने संजोने की केाशिश कर रही थी तो देखा कि उसका पति मुकेश पूरा दिन शराब के नशे में धुत रहता है और एक राजकुमारी सा जीवन जीने वाली मंजुषा एक कोठरी में रहकर अपना जीवन बिताने लगी । वह एक सौम्य,सुशील और संवेदनशील तथा संभ्रान्त धरेलू महिला की जिन्दगी जीने लगी । कुछ समय उपरान्त उसने एक सुन्दर सी कन्या को जन्म दिया परन्तु मंजुषा की जिन्दगी में प्रेम करना इतना बडा पाप हो गया कि विधाता शायद उसे उस पाप से मुक्ति देना नही चाहता था। मंजुषा ने मानो आग में कूद कर और कठिन चट्टानों को लांघकर अपनी गृहस्थी को संभाला तो मुकेश बीमार हो गया। मुकेश का इलाज करवाया।
बैंक में नौकरी करने वाली मंजुषा की उसके पति ने नौकरी भी छुड़वा दी थी और इन सब परेशानियों में फंसने पर उसे एक छोटे से स्कूल में नौकरी करना पडी और उस छोटी सी नौकरी से उसने अपनी बच्ची को पाला और अपने पति का इलाज करवाया ।विधाता को इतना भी शायद गंवारा नहीं हुआ और मंजुषा की बच्ची अभी चार वर्ष की ही थी उसका पति इस दुनिया को छोड़कर चला गया ।
मंजुषा के आंसू न आंखों की कोठरी में बन्द रह सकते न ढुलकर बाहर आ सकते,क्योंकि नाजों से पली हुई मंजुषा कितने कंटकाकीर्ण मार्ग से अंगारों के बीच में से चलेगी यह सोचने पर भी सीना फटता है ।
परन्तु हिम्मत मां की ,मंजुषा की जिसने अपनी बच्ची को पालना था,उसने अपनी हिम्मत नहीं हारी,तमाम यातनायें सहन करीं,मानों उबलते हुए दूध को अपनी कोमल हथेलियों में लिया ,व्यंग्यात्मक सहानुभूति रुपी कांटों को अपने कानों से अन्तस्तल में डाला और अपने अथक प्रयासों से फिर से बैंक की नौकरी प्राप्त कर ली । आज वही मंजुषा बैंक अधिकारी के रुप में लंदन में कार्य कर रही है। उसने अपनी बच्ची को इंजीनियरिंग की शिक्षा दी और एक इंजीनियर से अपनी बेटी की शादी भी कर दी । आज बेटी भी खुश है और मंजुषा भी बहुत खुश है ।
मंजुषा को किस बात की इतनी सजा मिली इसका मुझे आज भी बहुत ताज्जुब है ।
केवल मंजुषा ही नहीं ऐसी कई मंजुषायें इस धरा पर ऐसे ही कष्टों को झेल रही हैं क्यों ?ष्हर बच्चे को उम्र के बढ़ते पडाव में अपने मां-बाप के तजुर्बे का सहारा अवश्य लेना चाहिये और उनके बताये हुए मार्ग को कभी नहीं ठुकराना चाहिये।
प्रेम अन्धा होता है
उससे जीवन मैला होता है
किस्मत अपनी अपनी है
किसी को तार देता है
किसी को डुबो देता है ।
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प्रेम मंगल
कर्यालय अघीक्षक
स्वामी विवेकानन्द इंजीनियरिंग कॉलेज
इन्दौर म...․प्र․
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