हिन्दी की प्रिंट मीडिया की लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिकाएँ इंटरनेट से दूरी बनाए फिरती हैं. इसके पीछे प्रकाशकों / संपादकों की क्या मंशा होती है...
हिन्दी की प्रिंट मीडिया की लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिकाएँ इंटरनेट से दूरी बनाए फिरती हैं. इसके पीछे प्रकाशकों / संपादकों की क्या मंशा होती है वे तो वही जानें, मगर अंततः उन्हें इंटरनेट का बिजनेस मॉडल आज नहीं तो कल अपनाना ही होगा. नया ज्ञानोदय भी एक लोकप्रिय हिंदी साहित्यिक पत्रिका है, मगर इसके अंक इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं होते. होना तो यह चाहिए कि समूची पत्रिका के तमाम अंक इंटरनेट पर यूनिकोड में निःशुल्क पठन-पाठन हेतु उपलब्ध हो, मगर यह पीडीएफ में भी नहीं आती और आती भी है तो टूटी फूटी कड़ियों के साथ!
बहरहाल, खुशी की एक बात यह है कि इस पत्रिका का जनवरी 2013 का महाग़ज़ल विशेषांक आप सभी के निःशुल्क डाउनलोड के लिए उपलब्ध है.
वैसे तो ज्ञानोदय की साइट पर इसके डाउनलोड लिंक पाने के लिए साइट पर पंजीकरण करना होता है, जो कि एक छोटी सी प्रक्रिया है, मगर आप इसे बिना पंजीकरण किए भी साइट के डायरेक्ट डाउनलोड लिंक से इसे निःशुल्क डाउनलोड कर सकते हैं.
नया ज्ञानोदय के इस ग़ज़ल महाविशेषांक के बारे में विशेष संपादकीय में लिखा गया है -
ग़ज़ल उर्दू की एक लोकप्रिय साहित्यिक विधा है। पूछा जा सकता है कि अचानक यह ग़ज़ल विशेषांक क्यों प्रकाशित किया जा रहा है, इसका औचित्य क्या है? वस्तुतः साहित्य की किसी भी विधा पर किसी भाषा या देश का एकाधिकार नहीं होता। आज के कथा साहित्य का अवलोकन करें तो हम पाएँगे, उस पर भी कई भाषाओं और कई देशों का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष प्रभाव है। आज हिन्दी कहानी का वह रूप नहीं है जो हितोपदेश अथवा कथा सरितसागर का था। आज कहानी में कई अन्य भाषाओं के कथाकारों की प्रतिध्वनियाँ सुनी जा सकती हैं। किसी भी देश या भाषा की कहानी हो, उस पर चेखव, मोपासाँ, ओ हेनरी, हेमिंग्वे, सॉमरसेट मॉम, काज़़्का, दास्तोएवस्की, मंटो, शरच्चन्द्र, प्रेमचन्द, लूशुन की प्रतिध्वनियाँ सुनी जा सकती हैं। जहाँ तक ग़ज़ल का सम्बन्ध है, वह भी भारत में सार्वभाषिक विधा के रूप में विकसित हो रही है। आज ग़ज़ल के पाठक उर्दू से कहीं अधिक हिन्दी में हैं। ग़ालिब को ही लें, अब तक उनके दीवान की हिन्दी में अनेक टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं और लिखी जा रही हैं। शायद ही हिन्दी का कोई कवि होगा, जिसने ग़ालिब का अध्ययन न किया हो, मीर को न पढ़ा हो, ज़ौक का नाम न सुना हो। हिन्दी में पचास के दशक में प्रकाश पंडित के सज़्पादन में उर्दू शायरों की एक शृंखला प्रकाशित हुई थी, जिसने हिन्दी के आम पाठकों का ध्यान खींचा था और देखते ही देखते उसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो गये। आज हिन्दी के लगभग समस्त प्रकाशकों ने ग़ज़लों के संकलन प्रकाशित किये हैं जो पाठकों में ख़ूब लोकप्रिय हैं। अक्सर लोग यह कह कर ग़ज़ल से पल्ला झाड़ लेते हैं कि ग़ज़ल हुस्नो इश्क़ पर केन्द्रित एक रोमांटिक विधा है; जबकि सचाई यह नहीं है। ग़ज़ल की रवायत ही कुछ ऐसी है कि हर बात, वह चाहे कितनी भी गहरी क्यों न हो, प्रिय या प्रियतम के माध्यम से ही कही जाती है। यह ग़ज़ल की सीमा भी है और शक्ति भी। यह शायर की प्रतिभा पर निर्भर करता है कि वह किस युक्ति से हुस्न और इश्क़ की सीमा में रहते हुए उसमें ज़िन्दगी के रंग भरता है और फ़लसफ़े हयात की बात करता है, जीवन और मृत्यु के दर्शन को समझने की कोशिश करता है :
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे
जटिल रहस्यवादी चिन्तन को सहज सरल ढंग से अभिव्यक्त करना ग़ज़ल में ही संभव है। कुछ लोग ग़ज़ल के विन्यास को देखते हुए उस पर शब्द क्रीड़ा का भी आरोप लगाते हैं, मगर यह उन कवियों के लिए कहा जा सकता है, जो ग़ज़ल के नाम पर शब्दों के साथ खेलते हैं और शब्द क्रीड़ा को ही अपनी उपलब्धि मान लेते हैं। ऐसे कवियों की संख्या भी कम नहीं है। ग़ज़ल में ही क्यों, शब्दों की बाज़ीगिरी किसी भी विधा में दिखायी जा सकती है। बड़ा शायर उसी को माना गया है, जो बह्र, काफ़िए और रदीफ़ के अनुशासन के भीतर रह कर सिर्फ़ भाषा के चमत्कार दिखाने में ही नहीं रम जाता, बल्कि आम आदमी के संघर्षों, उम्मीदों, निराशाओं, सपनों को वाणी देता है। यह अंक एक तरह से ग़ज़ल का ऐसा कोश है, जिसमें आप को उस्तादों के कलाम भी पढ़ने को मिलेंगे और ग़ज़ल के चार सौ साल के सफ़र का एक जायज़ा भी मिल जाएगा। हिन्दी में ग़ज़ल को सही पहचान दुष्यन्त ने दिलवायी थी, आज दुष्यन्त के बाद भी कवियों की लम्बी जमात है, जो ग़ज़ल को बनाने-सँवारने में संलग्न हैं। इस विशेषांक से गुज़रते हुए आपको ख़ुद एहसास हो जाएगा, कौन शायर कहाँ खड़ा है। इसे व्याख्यायित करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, पाठक स्वयं तय कर लेंगे और हमें भी बताएँगे कि किन कवियों और शायरों ने उन्हें प्रभावित किया। ‘नया ज्ञानोदय’ का यह विशेषांक पाठकों को सौंपते हुए हमें सचमुच बहुत सन्तोष हो रहा है। यहाँ अमीर ख़ुसरो, वली दकनी, मीर, ग़ालिब, मोमिन, दाग़, फ़ैज़, फिराक़, मज़़्दूम तो हैं ही; अहमद नदीम क़ासमी, नासिर काज़मी, जाँ निसार अज़़्तर, इज़्ने इंशा, मजरूह, साहिर, जिगर, परवीन शाकिर, कैफ़ी आज़मी, शहरयार, फ़राज़, गुलज़ार भी हैं और हिन्दी में हमने कबीर से शुरू किया है। निराला हैं, शमशेर भी; कृष्ण अदीब हैं, सुदर्शन फ़ाकिर भी; गरज कि हमारा भरपूर प्रयास रहा है कि इस अंक में आज तक के प्रतिनिधि ग़ज़लकारों की शमूलियत हो। हमारा यह प्रयास कहाँ तक सफल रहा है, यह तो पाठक ही बताएँगे!
इस अंक को तैयार करने में हमें अनेक विद्वानों का सहयोग मिला। हम विशेष रूप से अब्दुल बिस्मिल्लाह और ज्ञानप्रकाश विवेक के आभारी हैं, जिन्होंने इस अंक की सामग्री जुटाने में हमारी मदद की। उन तमाम पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों, प्रकाशकों के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं, जहाँ से कुछ ग़ज़लें हमने प्राप्त कीं।
‘नया ज्ञानोदय’ परिवार की ओर से पाठकों को नये वर्ष की शुभकामनाएँ।
तो, कौन साहित्य प्रेमी इस महाविशेषांक को पढ़ना नहीं चाहेगा?
इस ग़ज़ल महाविशेषांक का नया ज्ञानोदय साइट पर डायरेक्ट डाउनलोड लिंक है -
http://jnanpith.net/sites/default/files/January%202013.pdf
डाउनलोड में समस्या हो तो समस्या टिप्पणी में दर्ज करें.
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आपने तो जेसे मेरी दिली इच्छा पूरी कर दी मई भी इसके प्रिंट संस्करण को खरीदकर सहेज कर रखूँगा आपके द्वारा लिंक देने हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र
thanks for the lovely collection
जवाब देंहटाएंलिंक वर्क नहीं कर रहा।
जवाब देंहटाएंसंभव हो तो ashwani.sewi@gmail.com पर mail कर दें या 9911576543 पर व्हाट्सएप कर दें।
आभार
महाशय विशेष सम्पादकीय पढकर मन सम्पूर्ण पत्रिका पढने को बेचैन हो उठा है | आपके द्वारा प्रदत्त लिंक पर Not Found Error आ रहा है | आपकी सहायता अपेक्षित है |
जवाब देंहटाएंसाइट पर ज्ञानोदय से संपर्क का पता दिया है. उनसे संपर्क करें.
हटाएंLink kam nahi kar raha hai.
जवाब देंहटाएंPlease send on my mail or give another link.
Qamarjnv@gmail.com
नया ज्ञानोदय की साइट - http://jnanpith.net/naya_gyanodaya.html पर दिए गए संपर्क पते पर वहां संपर्क कर यह अंक प्राप्त करें.
जवाब देंहटाएंगजल महा विशेषांक मुझे कैसे मिल सकता है?
जवाब देंहटाएंआपसे निवेदन है कि मुझे नया ज्ञानोदय, फरवरी-2013 का अंक उपलब्ध करवाएंगे तो मेहरबानी होगी।
जवाब देंहटाएंshyamlal.neer@gmail.com
Or WhatsApp 8233209330 पर।